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प्रसाद  : पुं० [सं० प्र√सद्+घञ्] १. प्रसन्नता। २. किसी पर की जानेवाली ऐसी कृपा जिससे उसका बहुत बड़ा उपकार होता हो। ३. ईश्वरीय कृपा। ४. देवी-देवता को भोग लगाई हुई वह वस्तु जो भक्त जनों में बाँटी जाती है। क्रि० प्र०—बँटना।—बाँटना। ५. उक्त का वह अंश जो किसी भक्त जन को प्राप्त होता है। ६. साधु-संतों की परिभाषा में, भोजन जिसका पहले देवता को भोग लगाया जाता है और जो बाद में उसके प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। मुहा०—प्रसदा पानी=यह समझकर भोजन करना कि यह देवता के अनुग्रह का फल और उसकी प्रसन्नता का सूचक है। ७. भोजन। (पश्चिम) क्रि० प्र०—छकना।—पाना। ८. देवता, गुरुजन आदि को देने पर बची हुई वस्तु जो काम में लाई जाय। ९. ऐसी चीज जो किसी गुरुजन से उसके अनुग्रह के फल-स्वरूप मिली हो। १॰. साहित्य में, काव्य का एक गुण जो उस व्यवस्था में माना जाता है। जब काव्य-रचना बहुत ही सरल, सहज और स्वच्छ होती है और जिसमें पाठक या श्रोता को उसका आशय समझने में कुछ भी कठिनता नहीं होती; तथा उसके हृदय में उद्दिष्ट भावों का संचार या परिपाक अनायास हो जाता है। ११. शब्दालंकार के अंतर्गत कोमला वृत्ति जो काव्य में उक्त गुण उत्पन्न करनेवाली होती है। १२. धर्म की पत्नी मूर्ति से उत्पन्न एक पुत्र। १३. निर्मलता। स्वच्छता। १४. स्वास्थ्य। पुं० दे० ‘प्रासाद’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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प्रसाद-दान  : पुं० [सं० ष० त०] वह चीज जो प्रसन्न होकर या प्रेम भाव से किसी को दी जाय। (एफेक्शन गिफ्ट)
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प्रसादक  : वि० [सं० प्र√सद्+णिच्+ण्वुल्—अक] १. बहुत बड़ी कृपा करनेवाला। २. आनन्द बढ़ाने या प्रसन्न करनेवाला। ३. प्रीतिकार। ४. निर्मल। स्वच्छ। पुं० १. प्रसाद। २. देवधन। ३. बथुए का साग।
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प्रसादन  : पुं० [सं० प्र√सद्+णिच्+ल्युट्—अन] १. किसी को अपने अनुकूल रखने के लिए प्रसन्न करना। २. अन्न। वि० १. प्रसन्न करनेवाला। २. आनन्द या सुख देनेवाला।
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प्रसादना  : स्त्री० [सं० प्र√सद्+णिच्+युच्—अन+टाप्] सेवा। परिचर्या। स० [सं० प्रसादन] प्रसन्न करना(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ० प्रसन्न होना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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प्रसादनीय  : वि० [सं० प्र√सद्+णिच्+अनीयर्] जिसे प्रसन्न किया जा सके या प्रसन्न करना उचित हो।
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प्रसादित  : भू० कृ० [सं० प्र√सद्+णिच्+क्त] १. जो प्रसन्न किया गया हो। २. आराधित। ३. साफ या स्वच्छ किया हुआ।
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प्रसादी (दिन्)  : वि० [सं० प्र√सद्+णिच्+णिनि] १. प्रसन्न करनेवाला। २. प्रीति या प्रेम उत्पन्न करनेवाला। प्रीतिकार। ३. शांत। ४. अनुग्रह या कृपा करनेवाला। ५. निर्मल। स्वच्छ। स्त्री० [सं० प्रसाद] १. देवताओं को चढ़ाया हुआ पदार्थ। नैवेद्य। प्रसाद। २. उक्त का वह अंश जो प्रसाद के रूप में लोगों को दिया जाता है। ३. वह चीज जो बड़े लोग प्रसन्न होकर छोटों को देते हैं।
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प्रसाद्य  : वि० [सं० प्र√सद्+णिच्+यत्] [स्त्री० प्रसाद्या] १. जिसे प्रसन्न करना या रखना उचित हो। २. जिसे प्रसन्न किया या रखा जा सके।
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