शब्द का अर्थ
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प्रत्यक् :
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क्रि० वि० [सं० प्रति√अंच् (गति)+क्विन्] पीछे। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
प्रत्यक्-चेतन :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. योग के अनुसार वह निर्मल चित्त-वृत्तिवाला व्यक्ति जिसने आत्म-ज्ञान प्राप्त कर लिया हो। २. अंतरात्मा। ३. परमेश्वर। |
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प्रत्यक्-पर्णी, प्रत्यक्-पुष्पी :
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स्त्री० [सं० ब० स०,+ङीप्] दंती वृक्ष। मूंसाकानी। २. अपामार्ग। चिचडा। |
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प्रत्यक्ष :
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वि० [सं० प्रति-अक्षि, अव्य० स०+अच्] १. जो आँखों के सामने उपस्थित हो तथा स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा हो। २. जिसका ज्ञान इंद्रिय या इन्द्रियों से स्पष्ट रूप में हो रहा हो। जैसे—प्रत्यक्ष झूठा। ३. जिसमें कोई घुमाव-फिराव या पेचीलापन न हो। नियम, परिपाटी आदि के विचार से सीधा। जैसे—प्रत्यक्ष कर। ४. जिसमें किसी बाहरी आधार या साधन का उपयोग न हुआ हो। जैसे—प्रत्यक्ष प्रमाण। ५. सीधे जनता के मतों के आधार पर या अनुसार होनेवाला। जैसे—प्रत्यक्ष निर्वाचन। (डाइरेक्ट, उक्त तीनों अर्थों में) पुं० चार प्रकार के प्रमाणों में से एक जिसके स्पष्ट होने के कारण किसी प्रकार का आपत्ति या सन्देह न किया जा सके। यह सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। जैसे—नित्य ज्वर आना ही उसके रोगी होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। क्रि० वि० आँखों के आगे। सामने। |
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प्रत्यक्ष कर :
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पुं० [सं० कर्म० स०] वह कर जो उपभोक्ताओं तथा करदाताओं से प्रत्यक्ष रूप में लिया जाता हो, किसी माध्यम से नहीं। (डाइरेक्ट टैक्स) |
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प्रत्यक्ष ज्ञान :
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पुं० [सं०] इन्द्रियों के द्वारा होनेवाला किसी वस्तु या विषय का ज्ञान या जानकारी। (पर्सेप्शन) |
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प्रत्यक्ष-लवण :
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पुं० [सं० कर्म० स०] वह नमक जो भोजन परोसने के समय किसी चीज में डालने के लिए अतिरिक्त रूप में और अलग दिया जाता है। |
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प्रत्यक्ष-वाद :
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पुं० [सं० ष० त०] दार्शनिक क्षेत्र में, यह मत या सिद्धान्त कि जो कुछ इन्द्रियों से प्रत्यक्ष दिखाई देता हो, या जो अनुभूत होता हो, वही ठीक है; उसके सिवा और सब बातें अथवा अज्ञात और अदृश्य कारण आदि मिथ्या या व्यर्थ और सब बातें अथवा अज्ञात और अदृश्य कारण आदि मिथ्या या व्यर्थ हैं। (एम्परिसिज्म) |
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प्रत्यक्ष-वादी (दिन्) :
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वि० [सं० प्रत्यक्ष-वाद+इनि] प्रत्यक्ष-वाद सम्बन्धी। प्रत्यक्ष-वाद का। पुं० वह जो प्रत्यक्ष-वाद का अनुयायी, पोषक या समर्थक हो। वह जो केवल प्रत्यक्ष को प्रमाण मानता हो। |
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प्रत्यक्षता :
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स्त्री० [सं० प्रत्यक्ष+तल्+टाप्] प्रत्यक्ष होने की अवस्था, गुण या भाव। |
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प्रत्यक्षदर्शी (र्शिन्) :
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वि० [सं० प्रत्यक्ष√दृश्+णिनि] [स्त्री० प्रत्यक्ष-दर्शिनी] जिसने प्रत्यक्ष रूप से कोई घटना या बात होती हुई देखी हो। साक्षी। (आई-विटनेस) |
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प्रत्यक्षर :
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अव्य० [सं० प्रति-अक्षर, अव्य० स०] प्रत्येक अक्षर के विचार से। |
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प्रत्यक्षरी :
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स्त्री० [सं० प्रत्यक्षर+अच्+ङीष्] लेखो आदि की अक्षरशः की हुई नकल। प्रतिलिपि। |
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प्रत्यक्षी (क्षिन्) :
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वि० [सं० प्रत्यक्ष+इनि] प्रत्यक्षदर्शी। |
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प्रत्यक्षीकरण :
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पुं० [सं० प्रत्यक्ष+च्वि, ईत्व√कृ (करना)+ल्युट्+अन] [भू० कृ० प्रत्यक्षीकृत] १. किसी वस्तु या विषय को ऐसा रूप देना कि वह प्रत्यक्ष हो जाय। २. कोई बात या विषय प्रत्यक्ष रूप से सामने लाना। |
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