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न्यग्रोध  : पुं० [सं० न्यक्√रुध् (रोकना)+अच्] १. बड़ का पेड़। बरगद। २. शमी वृक्ष। ३. मोहनौषधि। ४. मूसाकानी। मूर्षिकर्णी। ५. विष्णु। ६. शिव। ७. बाँह। ८. लंबाई की एक नाप जो उतने विस्तार की होती है जितना विस्तार पूरी तरह से दोनों हाथ फैलाने पर एक हाथ की उँगलियों के सिरे से दूसरे हाथ की उँगलियों के सिरे तक होता है।
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न्यग्रोध-परिमंडल  : पुं० [सं० ब० स०] वह जिसकी लंबाई-चौड़ाई एक व्याम या पुरसा हो। (मत्स्यपुराण)
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न्यग्रोध-परिमंडला  : स्त्री० [सं० ब० स०,+टाप्] कठोर स्तनों, विशाल नितंबों और क्षीण कटिवाली फलत
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न्यग्रोधा  : स्त्री० [सं० न्यग्रोध+टाप्]=न्यग्रोधी।
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न्यग्रोधादिगण  : पुं० [सं० न्यग्रोध-आदि, ब० स० न्यग्रोधादि-गण, ष० त०] वैद्यक में वृक्षों का एक गण जिसके अन्तर्गत बरगद पीपल, गूलर आदि कई वृक्ष सम्मिलित हैं।
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न्यग्रोधिक  : वि० [सं० न्यग्रोध+ठन्–इक] (स्थान) जहाँ बहुत से वट-वृक्ष हो।
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न्यग्रोधिका  : स्त्री० [सं० न्याग्रोधी+कन्–टाप्, ह्वस्व] विषपर्णी।
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न्यग्रोधी  : स्त्री० [सं० न्याग्रोध+डीष्] विषपर्णी।
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