शब्द का अर्थ
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					निरोध					 :
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					पुं० [सं० नि√रुध्+घञ्] [भू० कृ० निरुद्ध] १. रोकने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. अवरोध। रुकावट। रोक। ३. किसी के चारों ओर डाला जानेवाला घेरा। ४. आज-कल, किसी उपद्रवी या संदिग्ध व्यक्ति को (उसे उपद्रव करने से रोकने के लिए) किसी घिरे हुए स्थान में शासन द्वारा रोक रखने की क्रिया या भाव। (डिटेंशन) ५. योग में, चित्त की वृत्तियों को रोकना। ६. नाश।				 | 
			
			
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					निरोध-परिणाम					 :
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					पुं० [सं० मयू० स०] योग में, चित्तवृत्ति की एक विशेष अवस्था जो व्युत्थान और निरोध के मध्य में होती है।				 | 
			
			
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					निरोधक					 :
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					वि० [सं० नि√रुध्+ण्वुल्–अक] निरोध करने या रोकनेवाला।				 | 
			
			
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					निरोधन					 :
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					पुं० [सं० नि√रुद्ध+ल्युट्–अन] १. निरोध करने की क्रिया या भाव। बंधन या रोक में रखना। २. रुकावट। रोक। ३. वैद्यक में पारे का एक संस्कार, जो उसका शोधन करने के समय किया जाता है।				 | 
			
			
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					निरोधना					 :
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					स० [सं०] १. निरोध या निरोधन करना। २. अपने अधिकार या वश में करना।				 | 
			
			
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					निरोधा					 :
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					स्त्री० [सं०] किसी ऐसे स्थान से जहाँ संक्रामक रोग फैला हो, आये हुए व्यक्तियों आदि के नये प्रदेश के लोगों में मिश्रित होने से रोकना जिससे रोग उस प्रदेश में फैलने और बढ़ने न पाये। २. वह स्थान जहाँ उक्त उद्देश्य से रोके हुए व्यक्तियों को स्थायी रूप से रोक रखा जाता है। (क्वारैनटीन)				 | 
			
			
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					निरोधाचार					 :
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					पुं० [सं० निरोध-आचार, ष० त०] सब कामों में होने या डाली जानेवाली रुकावट।				 | 
			
			
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					निरोधाज्ञा					 :
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					स्त्री० [सं० निरोध-आज्ञा, ष० त०] ऐसी आज्ञा जिसे किसी कोई कार्य करने से रोका जाता है।				 | 
			
			
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					निरोधी (धिन्)					 :
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					वि० [सं० नि√रुध्+णिनि] निरोधक। (दे०)				 | 
			
			
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