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नरक  : पुं० [सं०√नृ (कलेश लेना)+अच्] [वि० नारकीय] वह स्थान जहाँ मृत्यु के उपरांत दुष्ट जीवों की आत्माओं को रहना तथा यातनाएँ सहनी पड़ती हैं। (पुराण) क्रि० प्र०—भोगना। २. बहुत गंदा और दुर्गंधपूर्ण स्थान। ३. ऐसा स्थान जहाँ अनेक प्रकार के कष्ट होते हों। ४. किसी चीज का बहुत ही गंदा और मैला अंश। ५. पुराणानुसार कलि के पौत्र का नाम जो कलि के पुत्र भय और पुत्री मृत्यु के गर्भ से उत्पन्न हुआ था और जिसने अपनी बहन यातना के साथ विवाह किया था। ६. विप्रचित दानव के एक पुत्र का नाम। ७. ‘नरकासुर’। पुं० [सं०] राजा।
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नरक-गति  : स्त्री० [स० त०] वह दूषित कर्म जिसके फलस्वरूप नरक में वास होता है। (जैन)
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नरक-चतुर्दशी  : स्त्री० [मध्य० स०] कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी जिस दिन घर का सारा कूड़ा-कतवार निकालकर बाहर फेंका जाता है। विशेष—नरकासुर इसी दिन मारा गया था।
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नरक-चौदस  : स्त्री०=नरक-चतुर्दशी।
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नरक-भूमिका  : स्त्री० [ष० त०] नरक। (जैन)
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नरकगामी (मिन्)  : वि० [सं० नरक√गम् (जाना)+णिनि] जिसे अपने पापों का फल भोगने के लिए नरक जाना पड़े।
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नरकट  : पुं० [हिं०] बेत की जाति का एक प्रसिद्ध पौधा जिसके डंठल मजबूत किंतु खोखले होते हैं और अनेक प्रकार के कामों में लाये जाते हैं।
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नरकंत  : पुं०=नरकांत (राजा)।
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नरकल  : पुं०=नरकट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नरकस  : पुं०=नरकट।
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नरकस्था  : स्त्री० [सं० नरक√स्था (स्थित होना)+क—टाप्] वैतरणी नदी।
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नरका  : पुं० [सं० नरकट] हल के पीछे की वह नली जिसमें बोने के लिए बीज डाले जाते हैं।
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नरकांतक  : पुं० [सं० नरक-अंतक ष० त०] विष्णु।
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नरकामय  : पुं० [सं० नरक-आमय, ब० स०] प्रेत।
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नरकारि  : पुं० [सं० नरक-आमय, ष० त०] श्रीकृष्ण।
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नरकावास  : वि० [सं० नरक-आवास, ब० स०] नरक में रहनेवाला। पुं० नरक में होनेवाला वास या निवास।
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नरकासुर  : पुं० [सं० नरक-असुर मध्य स०] एक प्रसिद्ध राक्षस जो पृथ्वी का एक पुत्र था तथा जिसे विष्णु ने प्रागज्योतिषपुर का राज्य दिया था। इसके अत्याचारों से क्षुब्ध होकर भगवान कृष्ण ने इसका सिर सुदर्शन से काटा था।
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नरकी  : वि०=नारकी। वि० [सं० नारकिन्] बहुत बड़ा पापी जो नरक में जाने योग्य कर्म करता हो।
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नरकुल  : पुं०=नरकट।
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