शब्द का अर्थ
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तेल :
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पुं० [सं०तैल] १.तिल अथवा किसी तेलहन के बीजों अथवा कुछ विशिष्ट वनस्पतयों को पेरकर निकाला हुआ प्रसिद्ध स्निग्ध दह्म तरल पदार्थ जो खाने-पकाने, जलाने, शरीर में मलने अथवा औषध आदि के काम में आता है। चिकना। स्नेह० जैसे–तिल नीम बदाम या सरसों का तेल। मुहावरा–तेल में हाथ डालना-अपनी सत्यता प्रमाणित करने के लिए खौलते हुए तेल में हथ डालना। (मध्य युग की एक प्रकार की परीक्षा) आँखों का तेल निकालना-ऐसा परिश्रम करना जिससे आँखों को बहुत अधिक कष्ट हो। २.विवाह की एक रीति जो साधारणतः विवाह से दो दिन और कहीं-कहीं चार-पाँच दिन पहले भी होती है और जिसमें वर अथवा वधू के शरीर में हल्दी मिला हुआ तेल लगाया जाता है। मुहावरा–तेल उठना या चढ़ना-विवाह से पहले उक्त रीति का सम्पादन होना। तेल चढ़ाना-उक्त रीति का संपादन करना। ३.पशुओं के शरीर से निकलनेवाली पतली चरबी जो सहज में जल सकती और दवा रंगाई आदि के काम में आती है। जैसे–मगर या साँड़े का तेल। ४.कुछ विशिष्ट प्रकार के खनिज द्रव्य पदार्थ जो सहज में जल सकते है। जैसे–मिट्टी का तेल। |
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तेलंग :
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पुं०=तैलंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तेलगू :
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पु०स्त्री०=तेलुगू। |
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तेलचलाई :
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स्त्री० [हिं०तेल+चलाना] दे०मिडा़ई (छींट की छपाई की)। |
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तेलवाई :
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पुं० [हिं० तेल+वाई(प्रत्यय)] १. शरीर में तेल मलने या लगाने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. विवाह की एक रसम जिसमें कन्या |
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तेलसुर :
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पुं० [१] एक तरह का लंबा वृक्ष जिसकी नावें आदि बनाने के काम आती है। |
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तेलहड़ा :
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पुं० [हिं० तेल+डंडा] [स्त्री० अल्पा० तेलहँड़ी] १. मिट्टी की वह हाँड़ी जिसमें तेल रखा जाता हो। २. तेल रखने का कोई पात्र। |
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तेलहन :
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पुं० [सं०तैल धान्य] कुछ वनस्पतियों के वे बीज जिन्हें पेरने से उनमें से चिकना और तरल पदार्थ (अर्थात् तेल) निकलता हो। |
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तेलहा :
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वि० [हिं० तेल] [स्त्री० तेलही] १. जिसमें तेल हो (बीज या पौधा) २. तेल के योग से बना या पका हुआ। जैसे–तेल ही जलेबी। ३. जिस पर तेल गरा या लगा हो। ४. जिसमें तेल की सी गंध या चिकनाहट हो। |
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तेला :
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पुं० [हिं० तीन] वह उपवास जो तीन दिनों तक बराबर चलें। |
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तेलिन :
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स्त्री० [हिं० तेली का स्त्री] १. तेंली की या तेली जाति की स्त्री। २. एक प्रकार का छोटा बरसाती कीड़ा जिसके स्पर्श से शरीर में जलन होने लगती है। |
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तेलियर :
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पुं० [देश०] एक तरह का पक्षी जिसके काले रंग के शरीर पर सफेद रंग की बहुत सी चित्तियाँ होती है। |
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तेलिया :
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वि० [हिं० तेल] १. जो तेल की तरह चमकीला और चिकना हो। २. तेल की तरह हलके काले रंगवाला। ३. जिसमें तेल होता या रहता हो। तेल से युक्त। पुं० १. तेल की तरह का काला और चमकीला रंग। २. उक्त रंग का घोड़ा। ३. एक प्रकार का कीकर या बबूल। ४. कोई ऐसा पक्षी या पशु जिसका रंग तेल की तरह काला और चिकना हो। ५. सींगिया नामक विष। स्त्री० एक प्रकार की छोटी मछली। |
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तेलिया गर्जन :
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पुं० [सं०]=गर्जन। |
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तेलिया-कत्था :
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पुं० [हिं० तेलिया+कत्था] एक तरह का कत्था या खैर जो तेल की तरह कुछ काला पन लिये होता है। |
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तेलिया-कंद :
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पुं० [सं० तैल+कंद] एक प्रकार का कंद। विशेष–यह कंद जिस भूमि में होता है वह तेल से सीची हुई जान पड़ती है। |
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तेलिया-काकरेजी :
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पुं० [हिं० तेलिया+काकरेजी] कालापन लिये गहरा ऊदा रंग। वि० उक्त प्रकार के रंग का। |
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तेलिया-कुमैत :
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पुं० [हिं० तेलिया+कुमैत] १. घोड़े का एक रंग जो अधिक कालापन लिये लाल या कुमैत होता है। २. उक्त रंग का घोड़ा। |
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तेलिया-पाखान :
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पुं० [हिं० तेलिया+पखान] एक तरह का चिकना और मजबूत पत्थर। |
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तेलिया-पानी :
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पुं० [हिं० तेलिया+पानी] वह जल जिसमें कुछ चिकनाहट हो अथवा जिसका स्वाद तेल जैसा हो। |
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तेलिया-मुनिया :
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स्त्री० [हिं] मुनिया पक्षी की एक जाति। इस मुनिया के ऊपर और नीचे के पर बादामी रंग के सिर ठोड़ी तथा गला कत्थई रंग का होता है। |
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तेलिया-मैना :
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स्त्री० [हिं०] एक तरह की मैना। तिलारी। |
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तेलिया-सुरंग :
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पुं०=तेलिया कुमैत। |
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तेलिया-सुहागा :
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पुं० [हि० तेलिया+सुहागा] एक तरह का सुहागा जिसमें कुछ चिकनापन होता है। |
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तेली :
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पुं० [हिं० तेल+ई (प्रत्यय)] [स्त्री० तेलिन] १. वह जो तेलहन पेरकर तेल निकालता और बेचता हो। २. हिंदुओं में एक जाति जो उक्तकाम व्यवसाय के रूप में करती है। पद–तेली का बैल-वह जो अपना अधिकतर समय बहुत ही तुच्छ और परिश्रम के कामों में लगाता हो। |
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तेलुगू :
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पुं० [सं० तैलंग] १. तैलंग देश का आधुनिक नाम। २. उक्त देश का निवासी। स्त्री० तैलंग देश का भाषा। |
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तेलौंची :
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स्त्री० [हिं० तेल+औंची (प्रत्यय)] तेल रखने की प्याली। |
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तेलौना :
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वि० [हिं० तेल+औना (प्रत्यय)] [स्त्री० तेलौनी] दे० ‘तेलहा’। |
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