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टीका  : पुं० [सं० टीक-चलना] १. धार्मिक हिंदुओं में वह सांप्रदायिक चिन्ह जो केसर, चंदन, रोली आदि से मुख्यतः मस्तक पर और गौणतः छाती, बाँह आदि पर लगाया जाता है। तिलक। २. विवाह स्थिर करने के समय का वह कृत्य जिसमें कन्या पक्ष के वर को केसर का तिलक लगाकर कुछ धन, मिठाई आदि देते हैं। तिलक। ३. कुछ विशिष्ट धार्मिक संस्कारों के अवसर पर संबंधियों के यहाँ दी या भेजी जानेवाली मिठाई, धन आदि (टीका लगाने का औपचारिक लक्षण) क्रि० प्र०–चढ़ना।–चढ़ाना।–भेजना। ४. किसी नये राजा के सिंहासन पर बैठने के समय का वह कृत्य जिसमें पुरोहित उसके मस्तक पर तिलक लगाकर नियमतः या विधानतः उसे सिंहासन का अधिकारी नियत या स्थिर करता है। ५. वह राजकुमार जो राजा के उपरान्त उसका उत्तराधिकारी होने को हो या जिसे टीका लगने को हो। टिकैत। ६. दोनों भौहों या ललाट के बीच का वह मध्य भाग जहाँ उक्त प्रकार का चिन्ह लगाया जाता है। ७. पशुओं के मस्तक या ललाट का उक्त भाग। जैसे–घोड़े या बैल का टीका। ८. वह जो किसी कुल, वर्ग समाज समूह आदि में सबसे बढ़कर या मुख्य माना जाता हो। शिरोमणि। ९. आधिपत्य, प्रधानता आदि का चिन्ह या लक्षण। जैसे–क्या तुम्हारे सिर पर कोई टीका है जिससे तुम्हारी ही बात मानी जाय। पद–टीके का=सब से बढ़कर। अच्छा। उत्तम। १॰. मध्य युग में धन आदि के रूप में वह भेंट जो असामी या प्रजावर्ग के लोग किसी बड़े जमींदार या राजा को कुछ विशिष्ट मांगलिक अवसरों पर देते थे। ११. माथे या ललाट पर पहना जानेवाला एक प्रकार का लंबोत्तरा गहना। १२. किसी प्रकार का लंबोत्तरा चिन्ह या निशान। १३. आज-कल कुछ विशिष्ट रोगों का वह चेप या रस जो रासायनिक प्रक्रिया से प्रस्तुत करके प्राणियों के शरीर में सूइयों आदि से इसलिए प्रविष्ट किया जाता है कि प्राणी उस रोग से रक्षित रहें। जैसे–चेचक प्लेग या हैजे का टीका। स्त्री० [देश०] किसी ग्रंथ, पद या वाक्य का अर्थ स्पष्ट करनेवाला कथन या लेख। अर्थ का विवरण। विवृत्ति। व्याख्या। जैसे–(क) महाभारत या रामायण की टीका। (ख) किसी के उपदेश या गूढ बात की टीका।
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टीका-टिप्पणी  : स्त्री० [सं० व्यस्त पद] कोई प्रसंग छिड़ने या बात सामने आने पर उसके गुणों दोषों आदि के प्रसंग में प्रकट किये जानेवाले विचार।
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टीकाकार  : पुं० [सं० टीका√कृ (करना)+अण्] १. वह जो कठिन या दुर्बोध ग्रंथ की टीका करता हो। २. गूढ़ शब्दों, पदों, वाक्यों आदि की सुबोध भाषा मं व्याख्या लिखनेवाला व्यक्ति।
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