शब्द का अर्थ
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चतुर :
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वि० [सं०√चत् (याचना करना)+उरच्] १.(व्यक्ति) जिसकी बुद्धि प्रखर हो और इसी लिए जो हरकाम बहुत समझ बूझकर तथा जल्दी करता हो। कार्य और व्यवहार में कुशल। २. अपना मतलब निकाल लेनेवाला। ३. निपुण। दक्ष। ४. चालाक। धूर्त्त। ५. जिसे बातें बनानी खूब आती हों। |
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चतुर-क्रम :
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पुं० [ब० स०] संगीत में ३२. मात्राओं का एक प्रकार का ताल। |
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चतुरई :
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स्त्री०=चतुराई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चतुरक :
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पुं० [सं० चतुर+कन्] चतुर। |
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चतुरंग :
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वि० [सं० चतुर-अंग, ब० स०] [स्त्री० चतुररंगिणी] जिसके चार अंग हों। चार अंगोंवाला। पुं० १. सेना के चार अंग-हाथी, घोड़ा रथ और पैदल। २. चतुरंगिणी सेना का सेनापति। ३. चतुरंगिणी (सेना)। ४. संगीत में वह गाना जिसमें उसके साधारण बोल के साथ सरगम, तराने और किसी वाद्य (जैसे–तबला, सितार आदि) के बोल भी मिले हों। ५. शतरंज का खेल। |
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चतुरंगिणी :
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स्त्री० [सं० चतुर-अंग, कर्म० स०+इनि] ऐसी सेना जिसमें हाथी, घोड़े, रथ और पैदल ये चारों अंग हों। |
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चतुरंगी :
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वि०=चतुर। उदाहरण–चित्रन होर च्यंति मनरे चतुरंगी नाह।-चन्दवरदाई। |
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चतुरंगुल :
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पुं० [सं० चतुर-अंगुल, ब० स०] अमलतास। |
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चतुरंगुला :
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स्त्री० [सं० चतुरंगुल+टाप्] शीतल लता। |
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चतुरंता :
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स्त्री० [सं० चतुर-अंत, ब० स० टाप्] पृथ्वी। |
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चतुरता :
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स्त्री० [सं० चतुर+तल्-टाप्] चतुर होने की अवस्था, गुण या भाव। |
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चतुरदसगुन :
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पुं०=चौदह विद्या (‘दे० ‘विद्या’)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चतुरनीक :
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पुं० [सं० चतुर-अनीक, ब० स०] चतुरानन। ब्रह्मा। |
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चतुरपन :
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पुं० [हिं० चतुर+पन]=चतुरता। |
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चतुरबीज :
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पुं०=चतुर्बीज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चतुरभुज :
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पुं०=चतुर्भुज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चतुरमास :
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पुं०=चतुर्मास।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चतुरमुख :
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वि० पुं० चतुर्मुख।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चतुरम्ल :
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पुं० [सं० चतुर-अम्ल, द्विगुस०] वद्यक में, अमलबेत, इमली, जंबीरी और कागजी नीबू के रसों को मिलाकर बनाया हुआ खट्टा द्रव्य। |
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चतुरश्र :
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वि० [सं० चतुर-अश्रि, ब० स० अच० नि०] चार कोनोंवाला। पुं० १. ब्रह्मसंतान नामक केतु। २. ज्योतिष में चौथी या आठवीं राशि। |
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चतुरसम :
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पुं०=चतुरस्सम। |
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चतुरस्र :
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पुं० [सं० चतुर-अस्रि, ब० स० अच० नि०] १. संगीत में, एक प्रकार का तिताला ताल। २. नृत्य में, हाथ की एक प्रकार की मुद्रा या हस्तक। |
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चतुरह :
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पुं० [सं० चतुर-अहन्, द्विगुस० टच्] वे याग जो चार दिनों में पूरे होते हों। |
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चतुरा :
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स्त्री० [हिं० चतुर से] नृत्य में धीर-धीरे भौंह कँपाने की क्रिया। वि० पुं०=चतुर। |
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चतुराई :
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स्त्री० [सं० चतुर+हिं० आई (प्रत्यय)] १.चतुर होने की अवस्था, गुण या भाव। २. होशियारी। ३. चालाकी। धूर्त्तता। |
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चतुरात्मा :
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पुं० [सं० चतुर-आत्मन्, ब० स०] १. ईश्वर। २. विष्णु। |
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चतुरानन :
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वि० पुं० [सं० चतुर-आनन, ब० स०] जिसके चार मुँह हों। चार मुखोंवाला। पुं० ब्रह्मा। |
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चतुरापन :
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पुं०=चतुराई। |
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चतुराश्रम :
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पुं० [सं० चतुर-आश्रम, द्विगुस०] ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ और संन्यास ये चारों आश्रम। |
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चतुरासीति :
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वि० [सं० चतुरशीति] चौरासी। |
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चतुरिंद्रिय :
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पुं० [सं० चतुर-इंद्रिय, ब० स०] चार इंद्रियों वाले जीव या प्राणी। |
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चतुरी :
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स्त्री० [देश०] एक प्रकार की पतली लंबी नाव जो एक पेड़ के तने को खोदकर बनाई जाती है। |
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चतुरूषण :
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पुं०[सं० चतुर-ऊषण, द्विगुस०] वैद्यक में सोंठ, मिर्च, पीपल, और पिपरामूल, इन चार उष्ण या गरम पदार्थों का समूह। |
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चतुर्गति :
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वि० [सं० ब० स०] चार दिशाओं या प्रकारों की गतिवाला। पुं० १. विष्णु। २. ईश्वर। ३. कछुआ। |
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चतुर्गव :
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पुं० [सं० चतुर-गो, द्विगुस०] वह गाड़ी जिसे चार बैल मिलकर खींचते हों। |
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चतुर्गुण :
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वि० [सं० द्विगुस] १. चार गुणोंवाला। २. चौपहला। ३. चौगुना। |
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चतुर्जातक :
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पुं० [सं० द्विगुस०] वैद्यक में, इलायची (फल), दारचीनी (छाल) तेजपत्ता (पत्ता) और नागकेसर (फूल) इन चारों पदार्थों का समूह। |
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चतुर्थ :
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वि० [सं० चतुर+डट्, थुक् आगम] क्रम या गिनती में चार की संख्या पर पड़नेवाला। चौथा। जैसे–चतुर्थ आश्रम, चतुर्थ श्रेणी। पुं० एक प्रकार का चौताला ताल (संगीत)। |
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चतुर्थ-काल :
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पुं० [कर्म० स०] १. दिन का चौथा पहर। २. सन्ध्या का समय। |
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चतुर्थ-भाज् :
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वि० [सं० चतुर्थ√भज् (ग्रहण करना+ण्वि, उप० स०] प्रजा द्वारा उपजाये हुए अन्न आदि में से कर स्वरूप एक चौथाई अंश पानेवाला (अर्थात् राजा)। |
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चतुर्थक :
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पुं० [सं० चतुर्थ+कन्] वह बुखार जो हर चौथे दिन आता हो। चौथिया ज्वर। |
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चतुर्थांश :
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पुं० [चतुर्थ-अंश, कर्म० स०] १. किसी चीज के चार बराबर भागों में से हर एक। चौथाई। २. [ब० स०] चार अंशों या भागों में से किसी एक अंश या भाग का मालिक। |
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चतुर्थांशी(शिन्) :
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वि० [सं० चतुर्थाश+इनि] चतुर्थाश पानेवाला। |
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चतुर्थांश्रम :
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पुं० [सं० चतुर्थ-आश्रम, कर्म० स०] आश्रमों में चौथा, अर्थात् संन्यास। |
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चतुर्थिका :
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स्त्री० [सं० चतुर्थ+कन्, टाप्, इत्व] एक परिमाण जो ४ कर्ष के बराबर होता है। पल। |
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चतुर्थी :
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स्त्री० [सं० चतुर्थ+ङीष्] १. चांद्रमास के किसी पक्ष की चौथी तिथि। चौथ। २. संस्कृत व्याकरण में संप्रदान कारक या उसमें लगनेवाली विभक्ति। |
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चतुर्थी-कर्म(र्मन्) :
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पुं० [मध्य० स०] विवाह के चौथे दिन के कृत्य जिनमें स्थानिक देवता, नदी आदि के पूजन होते हैं। |
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चतुर्थी-क्रिया :
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स्त्री० [मध्य० स०] किसी की मृत्यु के चौथे दिन होनेवाले कृत्य। |
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चतुर्थी-तत्पुरुष :
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पुं० [तृ० त०] तत्पुरुष समास का वह प्रकार या भेद जिसमें चौथी विभक्ति का लोप होता है। |
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चतुर्दत :
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वि० [सं० ब० स०] चार दाँतोंवाला। जिसके चार दाँत हों। पुं० ऐरावत नामक हाथी जिसके चार दाँत कहे गये हैं। |
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चतुर्दश-पदी :
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स्त्री० [सं० ब० स० ङीष्] पाश्चात्य ढंग की एक प्रकार की कविता जिसमें कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार कुल चौदह चरण या पद होते हैं। (सॉनेट)। |
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चतुर्दश(न्) :
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वि० [सं० मध्य० स०] चौदह। |
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चतुर्दशी :
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स्त्री० [सं० चतुर्दशन्+डट्-ङीष्] चांद्रमास के किसी पक्ष की चौदहवीं तिथि। चौदस। |
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चतुर्दष्ट्र :
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पुं० [सं० ब० स०] १. ईश्वर। २. कार्तिकेय की सेना। ३. एक राक्षस का नाम। |
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चतुर्दिक्(श) :
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अव्य० [सं० द्वि० गुस] चारों दिशाओं में। चारों ओर। पुं० चारों दिशाएँ। |
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चतुर्दिश :
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पुं० [सं० द्विगुस०] चारों दिशाएँ। क्रि० वि० चारों ओर से। चारों दिशाओं में या से। |
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चतुर्दोल :
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पुं० [सं० चतुर√दुल् (ढोना)+णिच्+घञ्] १. चार डंडों का हिँडोला या पालना। २. वह सवारी जिसे चार कहार उठाकर ले चलते हों। ३. चंडोल नाम की सवारी। |
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चतुर्द्वार :
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पुं० [सं० ब० स०] वह घर जिसके चारों ओर चार दरवाजे हों। |
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चतुर्धाम(न्) :
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पुं० [सं० द्विगुस०] हिन्दुओं के द्वारका, रामेश्वर, जगन्नाथपुरी और बदरिकाश्रम ये चार मुख्य तीर्थ या धाम। |
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चतुर्बाहु :
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वि० [सं० ब० स०] चार बाँहों या भुजाओं वाला। पुं० १. महादेव। शिव। २. विष्णु। |
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चतुर्बीज :
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पुं० [सं० द्विगुस०] वैद्यक में, काला जीरा, अजवाइन, मेंथी और हालिम इन चार पदार्थों के दानों या बीजों का समूह। |
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चतुर्भद्र :
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पुं० [सं० द्विगुस०] अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष इन चारों पदार्थों का समूह। वि० उक्त चारों पदार्थों से युक्त। |
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चतुर्भाव :
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पुं० [सं० ब० स०] विष्णु। |
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चतुर्भुज :
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वि० [सं० ब० स०] [स्त्री० चतुर्भुजा] १. (व्यक्ति) जिसकी चार भुजाएँ हों। चार भुजाओं वाला। २. (ज्यामिति में वह क्षेत्र) जिसमें चार भुजाएँ या कोण हों। जैसे–सम चतुर्भुज क्षेत्र। पुं० १. विष्णु। २. ज्यामिति में, चार भुजाओंवाला क्षेत्र। |
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चतुर्भुजा :
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स्त्री० [सं० चतुर्भुज+टाप्] १. गायत्री रूप धारिणी महाशक्ति। २. दुर्गा की एक चार भुजाओं वाली विशिष्ट मूर्ति। |
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चतुर्भुजी :
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पुं० [हिं० चतुर्भुज से] १. एक वैष्णव संप्रदाय जिसके आचार, व्यवहार आदि रामानन्दियों से मिलते जुलते होते हैं। २. उक्त संप्रदाय का अनुयायी या सदस्य। वि० चार भुजाओंवाला। |
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चतुर्मास :
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पुं० [सं० द्विगुस] आषाढ़ मास की शुक्ला एकादशी से कार्तिक-शुक्ला एकादशी तक की अवधि जिनमें विवाह आदि शुभ काम वर्जित हैं। चौमासा। |
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चतुर्मुख :
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वि० [सं० ब० स०] [स्त्री० चतुर्मुखी] जिसके चार मुख हों। चार मुँहोंवाला। क्रि० वि० चारों ओर। पुं० १. ब्रह्मा। २. संगीत में, एक प्रकार का चौताला ताल। ३. नृत्य में एक प्रकार की चेष्टा। |
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चतुर्मुखी :
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वि० [हिं० चतुर्मुख से] चतुर्मुख। |
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चतुर्मूर्ति :
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पुं० [सं० ब० स०] विराट्, सूत्रात्मा, अव्याकृत और तुरीय इन चारों अवस्थाओं या रूपों में रहनेवाला, ईश्वर। |
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चतुर्युग :
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पुं० [सं० द्विगुस] चारों युगों का समूह। चतुर्युगी। |
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चतुर्युगी :
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स्त्री० [सं० चतुर्युग+ङीष्] सत्ययुग, द्वापर, त्रेता और कलियुग इन चारों युगों का समूह। ४३२॰॰॰॰ वर्षों का समूह। चौकडी़। |
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चतुर्वक्त्र :
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पुं० [सं० ब० स०] ब्रह्मा। |
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चतुर्वर्ग :
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पुं० [सं० द्विगुस] अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष ये चारों पदार्थ या इनका समूह। |
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चतुर्वर्ण :
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पुं० [सं० द्विगुस] हिंदुओं के चारों वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। |
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चतुर्वाही (हिन्) :
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वि० [सं० चतुर√वह (ढोना)+णिनि, उप० स०] जिसे चार (पशु या व्यक्ति) मिलकर खींचते या वहन करके ले चलते हों। पुं० चार घोड़ों की गाड़ी। चौकडी। |
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चतुर्विद्य :
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वि० [सं० ब० स०] १. जिसने चारों वेद पढ़े हों। २. चारों विद्याओं का ज्ञाता। पंडित। |
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चतुर्विद्या :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] चारों वेदों की विद्या या ज्ञान। |
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चतुर्विध :
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वि० [सं० ब० स०] १. चार प्रकारों या रूपों का। २. चौतरफा। क्रि० वि० चार प्रकारों या रूपों में। |
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चतुर्विंश :
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वि० [सं० चतुर्विशति+डट्] चौबीसवाँ। पुं० एक दिन में पूरा होनेवाला एक प्रकार का यज्ञ। |
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चतुर्विंशति :
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वि० [सं० मध्य० स०] चौबीस। स्त्री० चौबीस का सूचक अंक या संख्या। |
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चतुर्वीर :
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पुं० [सं० ब० स०?] चार दिनों में होनेवाला एक प्रकार का सोमयाग। |
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चतुर्वेद :
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पुं० [सं० ब० स०] १. परमेश्वर। ईश्वर। २. [कर्म० स०] चारों वेद। वि० [ब० स०] चारों वेदों का ज्ञाता। |
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चतुर्वेदी(दिन्) :
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पुं० [सं० चतुर्वेद+इनि] १. चारों वेदों को जाननेवाला पुरुष। २. ब्राह्मणों का एक भेद या वर्ग। |
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समानार्थी शब्द-
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चतुर्व्यूह :
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पुं० [सं० ष० त०] १. चार मनुष्यों अथवा पदार्थों का समूह। जैसे–(क) राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न। (ख) कृष्ण, बलदेव, प्रद्युम्न और अनिरूद्ध। (ग) संसार, संसार का हेतु, मोक्ष और मोक्ष का उपाय। २. विष्णु। ३. योग-शास्त्र। ४. चिकित्सा-शास्त्र। |
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चतुर्होत्र :
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पुं० [सं० ब० स०] १.परमेश्वर। २. विष्णु। |
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