शब्द का अर्थ
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पुष्कर :
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पुं० [सं०√पुष्+क, कित्व, पुष्क√रा (देना)+ क] १. जल। पानी। २. जलाशय। पोखरा। ३. कमल। ४. कलछी के आगे लगी हुई कटोरी। ५. ढोल, मृदंग आदि का मुँह। ६. हाथी की सूँड़ का अगला भाग। ७. आकाश। आसमान। ८. तीर। वाण। ९. तलवार का फल। १॰. म्यान। ११. पिंजड़ा। १२. पद्यकंद। १३. नृत्यकला। १४. सर्प। १५. युद्ध। लड़ाई। १६. अंश। भाग। १७. नशा। मद। १८. भग्नपाद नक्षत्र का एक अशुभ योग जिसकी शांति का विधान किया गया है। १९. पुष्कर-मूल। २॰. कुष्ठौषधि। कुट। २१. एक तरह का ढोल। २२. एक प्रकार का रोग। २३. एक दिग्गज। २४. सारस पक्षी। २५. विष्णु का एक रूप। २६. शिव। २७. भरत के एक पुत्र। २८. कृष्ण के एक पुत्र। २९. एक असुर का नाम। ३॰. गौतम बुद्ध का एक नाम। ३१. पुराणानुसार ब्रह्मांड के सात लोकों में से एक। ३२. मेघों का एक नायक। ३३. आधुनिक अजमेर के पास का एक प्रसिद्ध तीर्थ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पुष्कर :
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पुं० [सं०√पुष्+क, कित्व, पुष्क√रा (देना)+ क] १. जल। पानी। २. जलाशय। पोखरा। ३. कमल। ४. कलछी के आगे लगी हुई कटोरी। ५. ढोल, मृदंग आदि का मुँह। ६. हाथी की सूँड़ का अगला भाग। ७. आकाश। आसमान। ८. तीर। वाण। ९. तलवार का फल। १॰. म्यान। ११. पिंजड़ा। १२. पद्यकंद। १३. नृत्यकला। १४. सर्प। १५. युद्ध। लड़ाई। १६. अंश। भाग। १७. नशा। मद। १८. भग्नपाद नक्षत्र का एक अशुभ योग जिसकी शांति का विधान किया गया है। १९. पुष्कर-मूल। २॰. कुष्ठौषधि। कुट। २१. एक तरह का ढोल। २२. एक प्रकार का रोग। २३. एक दिग्गज। २४. सारस पक्षी। २५. विष्णु का एक रूप। २६. शिव। २७. भरत के एक पुत्र। २८. कृष्ण के एक पुत्र। २९. एक असुर का नाम। ३॰. गौतम बुद्ध का एक नाम। ३१. पुराणानुसार ब्रह्मांड के सात लोकों में से एक। ३२. मेघों का एक नायक। ३३. आधुनिक अजमेर के पास का एक प्रसिद्ध तीर्थ। |
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पुष्कर-कर्णिका :
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स्त्री० [सं० पुष्कर√कर्ण+ण्वुल्—अक, टाप्, इत्व] १. स्थलपद्मिनी। २. सूँड़ की नोक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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स्त्री० [सं० पुष्कर√कर्ण+ण्वुल्—अक, टाप्, इत्व] १. स्थलपद्मिनी। २. सूँड़ की नोक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पुष्कर-चूड़ :
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पुं० [सं०] लोलार्क पर्वत पर स्थित दिग्गज का नाम। |
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पुं० [सं०] लोलार्क पर्वत पर स्थित दिग्गज का नाम। |
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पुष्कर-जटा :
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स्त्री० [सं०] १. कुट नामक औषधि। २. कमल की जड़। भसींड। |
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स्त्री० [सं०] १. कुट नामक औषधि। २. कमल की जड़। भसींड। |
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पुष्कर-नाड़ी :
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स्त्री० [सं० पुष्कर√नड् (नष्ट करना)+ णिच्+अच्—ङीष्] स्थल पर होनेवाला एक तरह का कमल। स्थलपद्मिनी। |
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स्त्री० [सं० पुष्कर√नड् (नष्ट करना)+ णिच्+अच्—ङीष्] स्थल पर होनेवाला एक तरह का कमल। स्थलपद्मिनी। |
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पुष्कर-नाभ :
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पुं० [ब० स०, अच्] विष्णु। |
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पुं० [ब० स०, अच्] विष्णु। |
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पुष्कर-पर्ण :
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पुं० [ष० त०] १. कमल का पत्ता। २. यज्ञ के वेदी बनाने के काम में आनेवाली एक प्रकार की ईंट। |
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पुं० [ष० त०] १. कमल का पत्ता। २. यज्ञ के वेदी बनाने के काम में आनेवाली एक प्रकार की ईंट। |
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पुष्कर-प्रिय :
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पुं० [ब० स०] मधुमक्षिका। मधुमक्खी। |
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पुं० [ब० स०] मधुमक्षिका। मधुमक्खी। |
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पुष्कर-बीज :
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पुं० [ष० त०] कमल का बीज। कमल-गट्टा। |
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पुष्कर-मुख :
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पुं० [ब० स०] सूँड़ का विवर। वि० सूँड़ जैसे मुँहवाला। |
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पुं० [ब० स०] सूँड़ का विवर। वि० सूँड़ जैसे मुँहवाला। |
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पुष्कर-मूल :
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पुं० [ब० स०] एक प्रकार की वनस्पति की जड़, जिसके संबंध में कहा जाता है कि यह कश्मीर के सरोवरों में उत्पन्न होती है। यह ओषधि आजकल नहीं मिलती, वैद्य लोग इसके स्थान पर कुष्ठ या कुट का व्यवहार करते हैं। |
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पुं० [ब० स०] एक प्रकार की वनस्पति की जड़, जिसके संबंध में कहा जाता है कि यह कश्मीर के सरोवरों में उत्पन्न होती है। यह ओषधि आजकल नहीं मिलती, वैद्य लोग इसके स्थान पर कुष्ठ या कुट का व्यवहार करते हैं। |
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पुष्कर-व्याघ्र :
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पुं० [स० त०] घड़ियाल। |
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पुं० [स० त०] घड़ियाल। |
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पुष्कर-शिफा :
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स्त्री० [ष० त०] पुष्कर-मूल। |
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स्त्री० [ष० त०] पुष्कर-मूल। |
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पुष्कर-सागर :
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पुं० [उपमि० स०] पुष्कर-मूल। |
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पुं० [उपमि० स०] पुष्कर-मूल। |
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पुष्कर-सारी :
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स्त्री० [ष० त०+ङीष्] एक प्राचीन लिपि। |
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स्त्री० [ष० त०+ङीष्] एक प्राचीन लिपि। |
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पुष्कर-स्थपति :
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पुं० [ष० त०] शिव। |
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पुं० [ष० त०] शिव। |
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पुष्करस्रक् (ज्) :
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पुं० [ब० स०] अश्विनीकुमार। स्त्री० कमलों की गूँथी हुई माला। |
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पुं० [ब० स०] अश्विनीकुमार। स्त्री० कमलों की गूँथी हुई माला। |
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पुष्कराक्ष :
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वि० [पुष्कर-अक्षि, ब० स०, अच्] कमल- नयन। पुं० विष्णु। |
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वि० [पुष्कर-अक्षि, ब० स०, अच्] कमल- नयन। पुं० विष्णु। |
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पुष्कराख्य :
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पुं० [सं० पुष्कर-आख्या, ब० स०] सारस पक्षी। |
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पुं० [सं० पुष्कर-आख्या, ब० स०] सारस पक्षी। |
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पुष्कराग्र :
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पुं० [सं० पुष्कर-अग्र, ष० त०] सूँड़ का अगला भाग। |
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पुष्करावती :
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स्त्री० [सं० पुष्कर+मतुप्, वत्व, दीर्घ] एक प्राचीन नदी। |
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स्त्री० [सं० पुष्कर+मतुप्, वत्व, दीर्घ] एक प्राचीन नदी। |
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पुष्करावर्तक :
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पुं० [सं० पुष्कर-आ√वृत्त (बरतना)+ णिच्+ण्वुल्—अक] मेघों के एक अधिपति। |
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पुं० [सं० पुष्कर-आ√वृत्त (बरतना)+ णिच्+ण्वुल्—अक] मेघों के एक अधिपति। |
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पुष्कराह्व :
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पुं० [सं० पुष्कर-आह्वा, ब० स०] सूँड़ का अग्र भाग। |
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पुं० [सं० पुष्कर-आह्वा, ब० स०] सूँड़ का अग्र भाग। |
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पुष्करिका :
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स्त्री० [सं० पुष्कर+ठन्—इक्+टाप्] लिंग का एक रोग। |
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स्त्री० [सं० पुष्कर+ठन्—इक्+टाप्] लिंग का एक रोग। |
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पुष्करिणी :
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स्त्री० [सं० पुष्कर+इनि+ङीष्] १. हथिनी। २. छोटा जलाशय। ३. ऐसा जलाशय, जिसमें कमल खिले हों। ४. कमल का पौधा। ५. एक प्राचीन नदी। ६. चाक्षुष मनु की पत्नी। ७. भूमन्यु की पत्नी और ऋचीक की माता। |
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पुष्करिणी :
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स्त्री० [सं० पुष्कर+इनि+ङीष्] १. हथिनी। २. छोटा जलाशय। ३. ऐसा जलाशय, जिसमें कमल खिले हों। ४. कमल का पौधा। ५. एक प्राचीन नदी। ६. चाक्षुष मनु की पत्नी। ७. भूमन्यु की पत्नी और ऋचीक की माता। |
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पुष्करी (रिन्) :
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पुं० [सं० पुष्कर+इनि] हाथी। वि० जिसमें कमल हों। |
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पुष्करी (रिन्) :
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पुं० [सं० पुष्कर+इनि] हाथी। वि० जिसमें कमल हों। |
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