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पांडु-कर्म (र्मन्)  : पुं० [ष० त०] सुश्रुत के अनुसार व्रण-चिकित्सा का एक अंग जिससे फोड़े के अच्छे हो जाने पर उसके काले वर्ण को औषधि के प्रयोग में पीला बनाते हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांडु-कर्म (र्मन्)  : पुं० [ष० त०] सुश्रुत के अनुसार व्रण-चिकित्सा का एक अंग जिससे फोड़े के अच्छे हो जाने पर उसके काले वर्ण को औषधि के प्रयोग में पीला बनाते हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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