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परन  : पुं० [सं० पर्ण ?] मृदंग आदि बाजों को बजाते समय मुख्य बोलों के बीच-बीच में बजाये जानेवाले बोलों के खंड। पुं०=प्रण (प्रतिज्ञा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पर्ण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=परनि (आदत)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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परना  : पुं० [सं० उपरना] अँगोछा। गमछा। अ०= पड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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परनापरनी  : स्त्री०=पन्नी (पतला वरक)।
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परनाम  : पुं०=प्रणाम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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परनाल  : पुं० [स्त्री० अल्पा० परनाली]=पनाला (बड़ा घड़ा)।
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परनाली  : स्त्री० [?] अच्छे घोड़ों की पीठ के मध्य भाग का (पुट्ठों और कंधों की अपेक्षा) नीचापन जो उनके तेज और बढ़िया होने का सूचक होता है। क्रि० प्र०—पड़ना। स्त्री०=प्रणाली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० हिं० ‘परनाला’ (पनाला) का स्त्री० अल्पा०।
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परनि, परनी  : स्त्री० [हिं० पड़ना] पड़ी हुई आदत। अभ्यास। टेव। बान। उदा०—राखौं हरकि उतै को धावै उनकी वैसिय परनि परी री।—सूर। स्त्री० [हिं० आ पड़ना] आक्रमण। धावा। उदा०—अहे परनि मरि प्रेम की पहरथ पारि न प्रान।—बिहारी।
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परनै  : पुं०=परिणय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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परनौत  : स्त्री०=प्रणाम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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