शब्द का अर्थ
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					नाराच					 :
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					पुं० [सं० नार-आ√चम् (खाना)+ड] १. ऊपर से नीचे तक लोहे का बना हुआ तीर या बाण। २. ऐसा दिन जिसमें बादल घिरे रहें। मेघों से आच्छादिन दिन। दुर्दिन। ३. एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में २4 मात्राएँ होती हैं। ४. एक प्रकार का वर्ण-वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण और चार रगण होते हैं। इसे महामालिनी और नारका भी कहते हैं।				 | 
			
			
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					नाराच घृत					 :
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					पुं० [सं०] चीते की जड़, त्रिफला, भटकटैया, बायविडंग आदि एक साथ मिलाकर तथा घी में पकाकर तैयार किया हुआ एक औषध जो मालिश, लेप आदि के काम आता है।				 | 
			
			
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					नाराचिका					 :
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					स्त्री० [सं०] छन्द शास्त्र में वितान वृत्त का एक भेद जिसके प्रत्येक चरण में नगण, रगण, लघु और गुरु होता है।				 | 
			
			
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					नाराचिका					 :
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					स्त्री० [सं० नाराच+ठन्–इक, टाप्] सुनारों आदि का छोटा काँटा या तराजू।				 | 
			
			
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					नाराची					 :
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					स्त्री० [सं० नाराच+अच्–ङीष्] सुनारों आदि का छोटा काँटा।				 | 
			
			
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