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चट  : क्रि० वि० [अनु०] १. चट शब्द करते हुए। २. जल्दी से। झट। तुरंत। पद-चट-पट (देखें)। मुहावरा–चट से=बहुत जल्दी। तुरंत। पुं० १. वह शब्द जो किसी कड़ी वस्तु के टूटने पर होता है। जैसे–लकड़ी या शीशा चट से टूट गया। २. उँगलियों के पोर जोर से खींचने पर अंदर की हड्डियों की रगड़ से होनेवाला शब्द। क्रि० प्र०-बोलना। भू० कृ० [हिं० चाटना] १. (पदार्थ) जो चाट या खाकर समाप्त कर दिया गया हो। २. (धन) जो भोग आदि के द्वारा नष्ट या समाप्त कर दिया गया हो। मुहावरा–चट कर जाना=(क) सब खा जाना। (ख) दूसरे की वस्तु लेकर न देना। दबा रखना। चट करना=खाना या निगलना। पुं० [सं० चित्र, हिं, चित्ती] १. दाग। धब्बा। २. घाव आदि के कारण शरीर पर बना हुआ चिन्ह या दाग। ३. चकता। ४. ऐब। दोष। ५. कलंक। लांछन। पुं० [?] पटसन का बना हुआ टाट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चट-कल  : स्त्री० [हिं० चट=पटसन+कल (यंत्र)] वह कारखाना जहाँ जूट और पटसन की चीजें बनती हों।
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चट-चट  : स्त्री० [अनु०] किसी चीज के चटकने या तड़कने के समय होनेवाला चट-चट शब्द। जैसे–चट-चट करके छत की कई कड़ियाँ टूट गई। २. किसी चीज के जलने या फटने के समय होनेवाला चट-चट शब्द। जैसे–लकडियाँ चट-चट करती हुई जल रही थीं। ३. उँगलियाँ चटकाने पर होनेवाला चट-चट शब्द। क्रि० वि० चट-चट शब्द उत्पन्न करते हुए। मुहावरा–चटचट बलैया लेना=प्रिय व्यक्ति (विशेषतः बच्चे) को विपत्ति, संकट आदि से बचाने के उद्देश्य से उंगलियाँ चटकाते हुए उसकी मंगल-कामना करना। (स्त्रियाँ)।
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चट-पट  : क्रि० वि० [अनु०] १. बहुत जल्द। तुरंत। जैसे–चट-पट चले आओ। २. अपेक्षाकृत बहुत थोड़े समय में। जैसे–काम चट-पट खत्म कर यहाँ चले आना। वि० [स्त्री० चटपटी] =चटपटा।
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चटक  : पुं० [सं०√चट् (भेदन करना)+क्वुन्-अक] [स्त्री० चटका] १. गौरा पक्षी। गौरैया। चिड़ा। पद-चटकाली (देखें)। २. पिप्पलामूल। स्त्री० [सं० चटुल=सुन्दर] चटकीलापन। चमक-दमक। कांति। पद-चटक-मटक (देखें)। ३. छापे के कपडो़ को साफ करने का ढंग। वि० चटकीला। चमकीला। जैसे–कटक रंग, चटक चाँदनी। स्त्री. १. फुरतीलापन। तेजी। २. चंचलता । शोखी। वि० १. फुरतीला। तेज। २. चटपटा। चटकारा। क्रि० वि० चटपट। शीघ्रता से। तुरंत।
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चटक-मटक  : स्त्री० [हिं० चटक+मटक] नाज-नखरे लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए शरीर के कुछ अंग हिलाने-डुलाने की क्रिया या भाव।
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चटकई  : स्त्री० [हिं० चटक] १. चटक होने की अवस्था या भाव। २. चमकीलापन। ३. तेजी। फुरती। ४. जल्दी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चटकदार  : वि० [हिं० चटक+फा० दार (प्रत्यय)] १. जिसमें चटक या चमक-दमक हो। चमकते हुए रंगवाला। २. तेज। फुरतीला।
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चटकना  : अ० [अनु० चट] १. ‘चट’ शब्द करते हुए टूटना या फूटना। हलकी आवाज के साथ टूटना या तड़कना। कड़कना। जैसे–शीशा चटकना। २. किसी बीच में कहीं से कुछ कट या फट जाना। हलकी दरार पड़ना। जैसे–लकड़ी चटकना। ३. कोयले लकड़ी आदि का जलते समय चट-चट शब्द करना। ४. कलियों आदि का चटचट शब्द करते हुए खिलना। जैसे–गुलाब की कलियाँ चटकना। ५. चिढ़कर अप्रसन्न होना या हलका क्रोध दिखलाना। रुष्ट होना। जैसे–तुम तो जरा सी बात में चटक जाते हो। ६. आपस में अनबन या बिगाड़ होना। वि० जल्दी चटकने या टूटनेवाला। पुं० तमाचा। थप्पड़। क्रि० प्र०-देना।–मारना।–लगाना।
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चटकनी  : स्त्री०=सिटकनी (दरवाजे की)।
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चटकवाही  : स्त्री० [हिं० चटक+वाही (प्रत्यय)] १. शीघ्रता। जल्दी। २. तेजी। फुरती।
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चटका  : पुं० [हिं० चटकना] १. चटकने की क्रिया या भाव. २. मन उचटने की स्थिति या भाव। विराग। ३. तमाचा। थप्पड़। पुं० [हिं० चाट] १. चरपरा स्वाद। २. सुख का स्वाद मिलने के कारण उत्पन्न होने वाली लालसा। चसका। पुं० [देश०] हरे चने की डोडी। पपटा। पुं० [सं० चित्र, हिं० चट्टा] १. दाग। धब्बा। २. शरीर पर पड़नेवाला चकता। पुं० [हिं० चट](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. शीघ्रता । जल्दी। २. तेजी। फुरती।
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चटका-शिरा  : स्त्री० [ष० त०] पिपरामूल।
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चटकाई  : स्त्री० [हिं० चटक+आई (प्रत्यय)](यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) चटकीलापन। उदाहरण–लगत चित्र सी नंदनादि बन की चटकाई।-रत्ना०।
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चटकाना  : स० [हिं० चटकना हिं० चटकना का स०] १. किसी को चटकने में प्रवृत्त करना। ऐसा करना जिससे कुछ चटके। २. उंगलियों के पोरों को इस प्रकार झटके से खींचना या जोर से दबाना कि उनसे चट शब्द निकले। ३. किसी चीज से चट-चट शब्द उत्पन्न करना। जैसे–जूतियाँ चटकाना। देखें जूती के अंतर्गत। ४. चट शब्द उत्पन्न करते हुए कोई चीज तोड़ना। ५. किसी व्यक्ति को इस प्रकार अप्रसन्न या उद्विग्न करना कि वह कड़वी और रूखीं बातें करने लगे। ६. किसी के मन में विरक्ति उत्पन्न करके उसे कहीं से चले जाने या भगाने में प्रवत्त करना जैसे–ये लोग नये नौकर को टिकने नहीं देते, उसे आते ही चटका देते हैं। ७. चिढ़ाना।
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चटकारा  : पुं० [अनु० चट] १. किसी चटपटी वस्तु के खाते या चाटते समय तालू पर जीभ टकराने से होनेवाला शब्द। पद-चटकारे का=इतना स्वादिष्ट कि खाने या पीने के समय मुँह से चट-चट शब्द होता है। जैसे–चटकारे की तरकारी या हलुआ। २. कोई स्वादिष्ट चीज खाने या पीने के बाद उसके स्वाद की वह स्मृति जो वह चीज फिर से खाने या पीने का चसका उत्पन्न करे। मुहावरा–चटकारे भरना=खूब चाट-चाटकर और स्वाद लेते हुए कोई चीज खाना या पीना। खाने-पीने के समय जीभ से होंठ चाटते रहना। वि० १. =चटकीला। २. =चटपटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [सं० चटुल] [स्त्री० चटकारी] चंचल। चपल।
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चटकारी  : स्त्री० [अनु०] चुटकी, जिसे बजाने पर चट-चट शब्द होता है। क्रि० प्र०-बजाना।-भरना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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चटकाली  : स्त्री० [सं० चटक-आली, ष० त०] १. चटकों अर्थात् गौरा पक्षियों की पंक्ति या समूह। २. चिड़ियों की पंक्ति या समूह।
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चटकाहट  : स्त्री० [हिं० चटकना] १. कोई चीज चटकने से उत्पन्न होनेवाला चट शब्द। उदाहरण–फूलति कली गुलाब की चटकाहट चहुँओर।-बिहारी। २. चटकने या तड़कने की क्रिया या भाव।
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चटकी  : स्त्री० [सं० चटक] बुलबुल की तरह की एक चिड़िया। स्त्री०=चटका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चटकीला  : वि० [हिं० चटक+ईला (प्रत्यय)] [स्त्री० चटकीली] [भाव० चटकीलापन] १. (रंग) जो मचकीला और तेज हो। जैसे–चटकीला लाल या हरा। २. (पदार्थ) जिसका रंग चमकीला और तेज हो। जैसे–चटकीला कपड़ा, चटकीली धारियाँ। ३. जिसमें खूब आभा और चमक हो। जैसे–मुख की चटकीली ज्योति या छबि। ४. (खाद्य पदार्थ) जिसमें खूब नमक, मिर्च और मसाले पड़े हों। जैसे–चटकीली तरकारी। ५. (बात) जो चित्ताकर्षक तथा सुंदर हो। लुभावना। जैसे–चटकीला राग। ६. (पदार्थ) जिसका स्वाद उग्र या तीव्र हो। जैसे–दाल में नमक कुछ चटकीला है।
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चटकीलापन  : पुं० [हिं० चटकीला+पन (प्रत्यय)] चटकीले होने की अवस्था, गुण या भाव।
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चटकोरा  : पुं० [अनु०] एक प्रकार का खिलौना।
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चटखना  : अ०=चटकना। पुं०=चटकना।
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चटखनी  : स्त्री०=चटकनी (सिटकिनी)।
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चटखारा  : वि० पुं०=चटकारा।
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चटचटा  : पुं० [अनु०] बार-बार होनेवाला चट-चट शब्द। वि०[स्त्री.चटचटी] जिसमें से बार-बार चट-चट शब्द होता हो। जैसे–चट-चटी लकड़ी (जलाने की)।
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चटचटाना  : अ. [हिं०चट-चट+आना (प्रत्यय)] १. किसी वस्तु का चट-चट शब्द करना। २. चटचट शब्द करते हुए किसी वस्तु का टूटना या तड़कना। ३. चट-चट शब्द करते हुए जलना। स० चट-चट शब्द करते हुए कोई काम करना।
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चटनी  : स्त्री० [हिं० चाटना] १. चाटकर खाई जानेवाली वस्तु। अवलेह। २. आम,इमली,पुदीना आदि खट्टी वस्तुओं में नमक,मिर्च,धनिया आदि मिलाकर गीला पीसा या घोला हुआ गाढ़ा चरपरा अवलेह जो भोजन का स्वाद तीक्ष्ण करने के लिए उसके साथ खाया जाता है। मुहावरा–(किसी की) चटनी करना या बनाना=(क) पदार्थ आदि तोड-फोड़कर चूर-चूर करना। (ख) व्यक्ति आदि को बहुत अधिक मारना। (किसी चीज का) चटनी होना या हो जाना=(क) खाद्य पदार्थ का स्वादिष्ट होने के कारण सब में इस प्रकार थोड़ा-थोड़ा बँट जाना कि कुछ भी बाकी न बचें। (ख) किसी चीज का कम होने के कारण थोड़ा-थोड़ा काम में लगने या बँटने पर कुछ भी बाकी न बचना। ३. काठ या चार-पाँच अंगुल लंबा एक खिलौना जिसे छोटे बच्चे मुँह में डालकर चाटते या चूसते है।
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चटप  : स्त्री० [अनु०] १. आक्रमण। २. मनोवेग की प्रबलता। उदाहरण–काम स्याम तनु चटप कियौ।-सूर।
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चटपटाना  : अ० [हिं० चटपट] जल्दी मचाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स० किसी को जल्दी करने में प्रवृत्त करना।
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चटपटी  : स्त्री० [हिं० चटपट] १. जल्दी। शीघ्रता। २. उतावली। हड़बड़ी। क्रि० प्र० –पड़ना।–मचाना। ३. आकुलता। घबराहट। ४. बेचैनी। विकलता। उदाहरण–मो दृग लागि रूप, दृगन लगी अति चटपटी।–बिहारी। ५. उत्सुकता। छटपटी। स्त्री० [हिं० चटपटा] खाने की चटपटी चीज। चाट। जैसे–कचालू आदि।
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चटर  : पुं० [अनु०] चट-चट शब्द।
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चटर-चटर  : स्त्री० [अनु०] खड़ाऊँ पहनकर चलने से होनेवाली चट-चट की ध्वनि।
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चटरजी  : पुं० [बं० चाटुर्ज्या] बंगाली ब्राह्मणों की एक शाखा। चट्टोपाध्याय।
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चटरी  : स्त्री० [अनु०] १. खेसारी नाम का अन्न। लतरी। २. रबी की फसल के साथ उगनेवाली एक वनस्पति।
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चटवाना  : स० [हिं० चाटना का प्रे०] किसी को कुछ चाटने में प्रवृत्त करना। चटाना।
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चटशाला  : स्त्री० [हिं० चट+सं० शाला] छोटे बच्चों की पाठशाला।
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चटसार  : स्त्री० =चटशाला।
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चटसाल  : स्त्री० =चटशाला।
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चटा  : पुं० [हिं० चटशाला] चटशाला में पढ़नेवाल बालक या विद्यार्थी। उदाहरण–मनौं मार-चटसार सुढार चटा से पढ़हीं।
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चटाई  : स्त्री० [सं० कट=चटाई] बाँस आदि खर जाति के डंठलों की खपाचियों, ताड़ आदि के पत्तों का एक दूसरे में गूँथकर बनाया हुआ लंबा आसन या आस्तरण। स्त्री० [हिं० चाटना] चटाने की चाटने की क्रिया या भाव।
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चटाईदार  : वि० [हिं० चटाई+फा० दार] जिसकी बुनावट या रचना चटाई की बनावट की तरह हो। जैसे–धोती का चटाईदार किनारा, गले में पहनने की चटाईदार सिकड़ी।
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चटाक  : पुं० [अनु०] १. वह शब्द जो दो वस्तुओं के चकराने अथवा किसी वस्तु के गिरने, टूटने आदि से होता है। क्रि० प्र० चट या चटाक शब्द उत्पन्न करते हुए। पद-चटाक-पटाक=(क) चटाक या चट-चट शब्द के साथ। (ख) बहुत जल्दी। तुरन्त। २. थप्पड़ मारने से होनेवाला शब्द। पुं०=चकत्ता (दाग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चटाकर  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़ जिसका फल खट्टा होता है।
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चटाका  : पुं० [अनु०] १. लकड़ी या और किसी कड़ी वस्तु के जोर से टूटने का शब्द। २. तीव्रता। प्रबलता। मुहावरा–चटाके का=कड़ाके का। जोरों का। ३. थप्पड़ जिसके लगने से चटाक शब्द होता है। (पश्चिम)। क्रि० वि० चट-पट। तुरन्त।
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चटाख  : पुं०=चटाक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चटाचट  : स्त्री० [अनु०] क्रमशः अथवा लगातार टूटती हुई वस्तुओं से होनेवाला चट-चट शब्द। क्रि० वि० एक पर एक। लगातार। जैसे–उसे चटाचट थप्पड़ लगे।
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चटान  : स्त्री०=चट्टान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चटाना  : स० [हिं० चाटना का प्रे०] १. किसी को कुछ चाटने में प्रवृत्त करना। जैसे–बच्चे को खीर चटाना। २. थोड़ा-थोड़ा खिलाना। जैसे–बच्चे को कुछ चटा दो। ३. घूस या रिश्वत लेना। जैसे–कचहरी वालों को कुछ चटाकर अपना काम निकालना। ४. छुरी, तलवार आदि की धार रगड़कर या और किसी प्रकार तेज करना। जैसे–चाकू को पत्थर चटाना।
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चटापटी  : स्त्री० [हिं० चटपट] १. चटपटी। जल्दी। २. ऐसा रोग या महामारी जिसमें लोग चटपट या बहुत जल्दी मर जाते हों। क्रि० वि०=चट-पट।
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चटावन  : पुं० [हिं० चटाना] १. चटाने की क्रिया या भाव। २. हिंदुओं का एक संस्कार जिसमें छोटे बच्चे के मुंह में पहले-पहल अन्न लगाया जाता है। अन्नप्राशन।
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चटिक  : क्रि० वि० [हिं० चट] चटपट। तत्काल। तुंरत।
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चटिका  : स्त्री० [सं० चटक+टाप, इत्व] पिपरामूल।
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चटियल  : वि० [देश०] (मैदान) जिसमें पेड़, पौधे आदि बिलकुल न हों। उजाड़ और सपाट।
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चटिया  : पुं० [हिं० चटशाला+इया (प्रत्यय)] १.चटशाला में पढ़नेवाला अथवा पढ़ा हुआ विद्यार्थी। २. चेला। शिष्य।
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चटिहाट  : वि० [देश०] १. उजड्ड। २. जड़। मूर्ख।
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चटी  : स्त्री० १.=चटसार। २. =चट्टी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चटी  : स्त्री० =च्यूँटी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चटु  : पुं० [सं०√चटे (भेदन करना)+कु] १. खुशामद। चापलूसी। २. उदर। पेट। ३. यतियों योगियों आदि का आसन।
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चटु-लालस  : वि० [ब० स०] (व्यक्ति) जो अपनी खुशामद करवाना चाहता हो। खुशामद-पसन्द।
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चटुक  : पुं० [सं० चटु+कन] काठ का बड़ा बरतन। कठौता।
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चटुकार  : वि० [सं० चटु√कृ (करना)+अण्, उप० स०] खुशामद करनेवाला।
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चटुल  : वि० [सं० चटु+लच्] १. चंचल। चपल। २. सुंदर। ३. मधुर-भाषी।
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चटुला  : स्त्री० [सं० चटुल+टाप्] १. बिजली। २. प्राचीन काल का स्त्रियों का एक प्रकार का केश-विन्यास।
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चटुलित  : भू० कृ० [सं० चटुल+इतच्] १. हिलाया हुआ। २. बनाया सँवारा या सजाया हुआ।
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चटुल्लोल  : वि० [सं० चटुल-लोल, कर्म० स० नि० सिद्धि] १ चंचल। २. सुंदर। ३. मधुर-भाषी।
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चटैल  : वि०=चटियल।
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चटोर  : वि० दे० ‘चटोरा’।
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चटोरपन  : पुं०=चटोरपन।
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चटोरपन  : पुं० [हिं० चटोर+पन (प्रत्यय)] चटोरे होने की अवस्था, गुण या भाव।
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चटोरा  : वि० [हिं० चाट+ओरा (प्रत्यय)] [स्त्री० चटोरी] १.जिसे चटपटी चीजें खाने का शौक हो। २. अधिक खाने का लोभी। ३. जो अपनी संपत्ति या पूँजी खा-पका गया हो।
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चट्ट  : वि० [हिं० चाटना] १.(खाद्य पदार्त) जिसे अच्छी तरह खा या चाट लिया गया हो। २. (माल) जो खा-पीकर खत्म कर दिया गया हो। ३. जिसका कुछ भी अंश न बच रहा हो। क्रि० वि०-चट।
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चट्ट  : वि०=चटोरा। पुं० [अनु०] १. पत्थर का बड़ा खरल। २. छोटे बच्चों का एक प्रकार का खिलौना जिसे वे प्रायः मुँह में रखकर चाटते या चूसते रहते हैं। चुसनी।
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चट्टा  : पुं० [सं० चेटक-दास] चेला। शिष्य। पुं० [देश०] १.चटियल मैदान। २. चकत्ता। ददोरा। ३. ईटों, बालू, मिट्टी आदि को गिनने या नापने के लिए उनका लगाया या बनाया हुआ सुव्यवस्थित थाक या ढेर। पुं० [सं० कट+चटाई] बाँस आदि की लंबी चटाई।
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चट्टा-बट्टा  : पुं० [हिं० चट्ट=चाटने का खिलौना+बट्टा-गोला] १. काठ के खिलौने का समूह जिसमें चट्टू, झुनझुने, गोले आदि रहते हैं। मुहावरा–चट्टे-बट्टे लड़ाना=इधर की बातें उधर कहकर लोगों को आपस में लड़ाना या उनमें वैर-विरोध उत्पन्न कराना। २. वे गोले जिन्हें बाजीगर झोले में से निकालकर लोगों को दिखाते हैं। पद-एक ही थैले के चट्टे-बट्टे=एक ही गुट के मनुष्य। एक ही तरह या स्वाभाव के लोग।
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चट्टान  : स्त्री० [हिं० चट्टा] १. पत्थर का बहुत बड़ा और विशाल खंड। २. किसी वस्तु का बहुत बड़ा और ठोस टुकड़ा। जैसे–नमक की चट्टान। ३. ऐसी वस्तु जिसमें चट्टान की सी दृढ़ता या स्थिरता हो।
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चट्टी  : स्त्री० [हिं०चट्टा या अनु] टिकान। पड़ाव। मंजिल। (विशेषतः पहाड़ी इलाकों में प्रयुक्त) स्त्री० [अनु० चट-चट] खुली एड़ी का एक प्रकार का जूता। स्त्री० [हिं० चाँटा=चपत] १. क्षति। २. जुरमाना। दंड। क्रि० प्र०-भरना।
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