शब्द का अर्थ
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कुंद :
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पुं० [सं० कुं√दा (देना)+क, नि० मुम्] १. जूही की तरह का एक पौधा। २. इस पौधे के सफेद फूल जिनसे दाँतों की उपमा दी जाती है। ३. कनेर का पेड़। ४. कमल। ५. विष्णु। ६. कुंदुर नामक गोंद। ७. एक प्राचीन पर्वत। ८. नौ निधियों में से एक। ९. उक्त के आधार पर नौ की संख्या। १॰. खराद। उदाहरण—कुंदै फेरि जानि गिउ काढ़ी।—जायसी। वि० [फा०] १. गुठला। कुंठित। २. मंद। |
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कुंद-जेहन :
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वि० [फा० कुन्द+अ० जहन] जिसकी बुद्धि मंद या मोटी हो। पुं० मंद बुद्धिवाला व्यक्ति। |
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कुंदण :
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पुं० =कुंदन। |
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कुंदणपुरि :
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पुं० =कुंडिनपुर। |
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कुंदन :
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पुं० [सं० कुंद=श्वेतपुष्प] १. बहुत अच्छे और साफ सोने का पतला पत्तर, जो प्रायः अवलेह के रूप में होता है और जिसकी सहायता से गहनों में नगीने जड़े जाते हैं। २. शुद्ध और स्वच्छ सोना। वि० उक्त प्रकार के सोने की तरह शुद्ध, सुंदर और स्वच्छ। |
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कुंदन-साज :
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पुं० [हिं० कुंदन+फा० साज] १. सोने से कुंदन का पत्तर बनानेवाला। २. कुंदन की सहायता से नगीने जड़नेवाला। ज़ड़िया। |
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कुंदनपुर :
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पुं० =कुंडिनपुर। |
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कुँदना :
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पुं० [सं० कंडु] बाजरे के पौधों में लगनेवाला एक रोग, जिसमें बाल में दाने न पड़कर राख-सी उड़ने लगती है। कंडो। |
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कुंदम :
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पुं० [सं० कुंद√मा (मान)+क] बिल्ली का बिल्ला। |
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कुंदर :
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पुं० [सं० कु√दृ (विदारण)+अच्, नि० मुम्] १. ओषधि के काम आनेवाली एक प्रकार की घास। कंडूर। खरच्छद। (निघंटु) २. विष्णु का एक नाम। |
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कुँदरू :
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पुं० १. एक प्रकार की लता जिसमें परवल की तरह फल लगते हैं। २. उक्त लता के फल, जिसकी तरकारी बनती है। बिम्बा-फल। |
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कुंदला :
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पुं० [?] एक तरह का तंबू या खेमा। |
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कुंदा :
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पुं० [सं० स्कंद से फा० कुंदः] १. वृक्षों आदि के तने या मोटी डालों का बड़ा और मोटा टुकड़ा, जो अभी चीरकर काम में लाने के योग्य न बनाया गया हो। २. उक्त प्रकार की लकड़ियों का वह जोड़ा जिसमें अपराधियों के पैर फँसाकर उन्हें एक जगह बैठा रखते थे। विशेष—इसी प्रकार के दंड को पैर में ‘काठ मारना’ कहते थे। ३. उक्त प्रकार की लकड़ी का वह मोंगरा जिससे कपड़ों पर कुंदी की जाती है। ४. उक्त प्रकार की लकड़ी का वह टुकड़ा जिस पर रखकर बढ़ई लकड़ियां गढ़ते हैं। ठीहा। निहठा। ५. लकड़ी का वह टुकड़ा जो बंदूक के पिछले भाग में लगा रहता है। ६. औजारों आदि का दस्ता या मूठ। बेंट। ७. लकड़ी का वह टुकड़ा जिससे खोआ बनाने के समय दूध चलाया और कड़ाही के तल से रगड़ा जाता है। ८. उक्त के आधार पर दूध से तैयार किया हुआ खोआ। मावा। मुहावरा—कुंदा कसना या भनना=दूध गाढ़ा करके उससे खोआ तैयार करना। ९. कुश्ती लड़ने के समय प्रतिपक्षी को नीचे गिराकर उसकी गरदन पर कलई और कोहनी के बीचवाले भाग से (जिसका रूप बहुत कुछ लकड़ी के कुंदे के समान होता है) रगड़ते हुए किया जानेवाला आघात। घस्सा। घिस्सा। रद्दा। विशेष—यह भी कसरत या व्यायाम का एक अंग है। इससे एक ओर तो ऊपर वाले पहलवान के हाथ मजबूत होते हैं, और दूसरी ओर नीचे गिरे हुए पहलवान की गरदन मोटी होती है। पुं० [सं० स्कंध=कंधा] १. गरदन के दोनों ओर के भाग या विस्तार। कंधा। मुहावरा—(पक्षियों का) कुंदे जोड़, तौल या बाँधकर नीचे उतरना=दोनों ओर के पर समेटकर नीचे आना या उतरना। २. गुड्डी या पतंग के वे दोनों कोने जो कमानी की सहायता से सीधे रखे जाते हैं। ३. पायजामें की कली, जिससे दोनों पाँवों के ऊपरी भाग बीच से जुड़े रहते हैं। पुं०=कुंडा। |
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कुंदी :
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स्त्री० [हिं० कुंदा] १. धुले या रंगे हुए कपड़ों को लकड़ी की मोगरी से कूटने की वह क्रिया जो उनकी तह जमाने और उनमें चमक तथा चिकनाई लाने के लिए की जाती है। २. उक्त के आधार पर किसी को अच्छी तरह मारने-पीटने की क्रिया। |
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कुंदीगर :
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पुं० [हिं० कुंदी+फा० गर] कपड़ों आदि की कुंदी करनेवाला कारीगर। |
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कुंदु :
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पुं० [सं० कुं√दृ (विदारण)+डु, बा० मुम्] चूहा। |
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कुंदुर :
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पुं० [सं० कुं√दृ+उरन्, मुम्] एक प्रकार का सुगंधित पीला गोंद जो सलई के पेड़ों से निकलता है। शल्लकीं-निर्यास। |
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कुँदेरना :
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स० [सं० कुदलन्=खोदना] खुरचना या छीलना। कुरेरना। |
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कुँदेरा :
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पुं० =कुनेरा। |
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