बी ए - एम ए >> फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्रयूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स
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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर
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शिक्षा के कार्य
(Functions of Education)
प्रश्न- राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के क्या कार्य होने चाहिये?
अथवा
मानव जीवन में शिक्षा का क्या कार्य है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शिक्षा का राष्ट्रीय जीवन में क्या महत्व है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भूमिका (Introduction)
शिक्षा एक अत्यन्त ही व्यापक प्रक्रिया है। इसका सम्बन्ध व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र से. होता है। इस स्थिति से स्पष्ट है कि शिक्षा के कार्य भी अनेक होते हैं। इस विषय में श्री एम. एल. जैक्स का कथन है कि, "शिक्षा को अनेक कार्य करने है - शिक्षा द्वारा बालक को इस योग्य बनाना चाहिए कि वह स्वयं सोच सके, परिश्रम कर सके, उत्तम मित्र बना सके, कला का मूल्यांकन तथा अमरता का अनुभव कर सके।' शिक्षा के इन विभिन्न कार्यों को अध्ययन की सुविधा के लिए दो मुख्य वर्गों में विभक्त किया जाता है -
(i) व्यक्ति के जीवन में शिक्षा के कार्य।
(ii) राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के कार्य।
व्यक्ति के जीवन में शिक्षा के कार्य
(Functions of Education in Individual Life)
हम जानते हैं कि शिक्षा का सम्बन्ध व्यक्ति तथा समाज दोनों से ही है। यहाँ पर शिक्षा के उन कार्यों का वर्णन किया जायेगा जिनका सम्बन्ध व्यक्ति के जीवन से होता है। शिक्षा के इन वर्गों के मुख्य कार्यों का निम्नलिखित वर्णन किया गया है -
1. बालक का सर्वागीण विकास - शिक्षा का एक कार्य बालक का सर्वांगीण विकास करना भी है। शिक्षा बालक का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक विकास करती है। शिक्षा द्वारा किये गये बालक के सर्वागीण विकास से जीवन भर लाभ ही प्राप्त होता है।
2. भौतिक सम्पन्नता प्रदान करना - यथार्थ जीवन में भौतिक सम्पन्नता का होना भी अनिवार्य है। आज के युग में शिक्षा का एक कार्य व्यक्ति को भौतिक सम्पन्नता प्राप्त करने के योग्य बनाना भी है। शिक्षा जीविकोपार्जन का महत्वपूर्ण साधन है। शिक्षा प्राप्त व्यक्ति धनोपार्जन कर सकता है।
3. आत्मनिर्भरता प्रदान करना - शिक्षा का कार्य आत्मनिर्भर बनाना भी है। शिक्षित व्यक्ति अपने समस्त कार्य स्वयं करने योग्य हो जाता है। ऐसा व्यक्ति समाज पर बोझ नहीं बनता बल्कि स्वयं समाज की कुछ न कुछ सहायता ही करता है। शिक्षा के इस कार्य के विषय में मिल्टन ने स्पष्ट रूप से कहा है 'मैं केवल उसी शिक्षा को पूर्ण शिक्षा कहता हूँ जो मनुष्य को शान्ति और युद्ध से सम्बन्धित निजी तथा सार्वजनिक समस्त कार्यों को उचित प्रकार से करने के योग्य बनाती है।'
4. मूल-प्रवृत्तियों का नियमन एवं शोधन करना - शिक्षा का एक कार्य बालक की मूल-प्रवृत्तियों को नियमित करना भी है। शिक्षा के अभाव में व्यक्ति की पाशविक प्रवृत्तियाँ प्रबल हो जाती हैं। शिक्षा इन पाशविक प्रवृत्तियों को सही दिशा प्रदान करती है। इससे बालक पथ भ्रष्ट होने से बच जाता है। डैनियल वेनस्टर के अनुसार, शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा, "अनुशासित हो, आवेग नियंत्रित हो, वास्तविक और अच्छे प्रेरक प्रोत्साहित किये जायें।
5. परिस्थितियों से अनुकूलन सिखाना - जीवन में निरन्तर रूप से अनुकूल तथा प्रतिकूल परिस्थितियों से अनुकूलन स्थापित करना पड़ता है जो व्यक्ति सुशिक्षित है. इस प्रकार की परिस्थिति से सरलता से अनुकूलन स्थापित कर लेता है। वह संघर्षो तनावों, कुण्ठाओं एवं हताशाओं की स्थिति में विचलित नहीं होता बल्कि परिस्थितियों का सही ढंग से सामना करता है। यह शक्ति शिक्षा से आती है।
6. भावी जीवन को तैयार करना - शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य बालक या शिक्षार्थी के भावी जीवन को तैयार करना है। शिक्षा बालक को इस योग्य बना देती है जिससे वह अपने भावी जीवन के अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक हो जाये अर्थात् "शिक्षा को प्रौढ़ जीवन के उत्तरदायित्वों और विशेष अधिकारों को निभाने योग्य बनाती है।
7. अन्तर्निहित शक्तियों का विकास करना - ऐसा माना जाता है कि बालक में कुछ शक्तियाँ एवं क्षमताएँ निहित होती हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से यह स्पष्ट हो चुका है कि बालक की उचित शिक्षा की व्यवस्था हो तो उसकी ये निहित शक्तियाँ विकसित हो सकती हैं। इस स्थिति में शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार शिक्षा का एक मुख्य कार्य बालक की अन्तर्निहित शक्तियों का विकास करना है। इस विषय में प्रसिद्ध पाश्चात्य शिक्षाशास्त्री पेस्तालॉजी का कथन उल्लेखनीय है, "शिक्षा मनुष्य के आन्तरिक शक्ति का स्वाभाविक, सर्वागीण तथा प्रगतिशील विकास है।
8. चरित्र का निर्माण करना एवं नैतिकता का विकास करना - शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करना तथा उसे नैतिक दृष्टि से उन्नत बनाना भी है। वास्तविक शिक्षा व्यक्ति के विभिन्न गुणो जैसेकि सत्य, न्याय, त्याग, सद्भावना, सहयोग तथा अहिंसा आदि के विकास में सहायक होती है। शिक्षा के इस कार्य को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। ऐसा माना जाता था कि चरित्रहीन ज्ञानी व्यक्ति निन्दनीय होता है। वास्तव में चरित्र का महत्व ज्ञान से भी अधिक माना जाता है। अनेक पाश्चात्य शिक्षाशास्त्रियों ने भी शिक्षा के क्षेत्र में चरित्र निर्माण को विशेष महत्व दिया है।
राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के कार्य
(Functions of Education in National Life)
1. सामाजिकता का विकास - शिक्षा का एक कार्य व्यक्तियों में सामाजिकता का विकास करना भी है। सामाजिकता के गुण से युक्त व्यक्ति सामाजिक संघर्षो एवं तनावों से बचकर रहता है। एक-दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं किया जाता तथा समाज तथा राष्ट्र की उन्नति में योगदान दिया जाता है।
2. योग्य कार्यकर्ता तैयार करना - राष्ट्रीय उन्नति एवं प्रगति के लिए योग्य एवं निपुण व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। योग्य एवं निपुण व्यक्ति सभी कार्य उत्तम ढंग से करते हैं। ये व्यक्ति उद्योग व्यवसाय एवं अनुसंधान के क्षेत्र में अपना योगदान देते हैं। इस प्रकार के योग्य एवं निपुण कार्यकर्ता शिक्षा द्वारा ही तैयार होते हैं। राष्ट्रीय उन्नति में शिक्षा का यह योगदान विशेष उल्लेखनीय है।
3. सभ्यता एवं संस्कृति का संरक्षण - समाज, जाति एवं राष्ट्र की प्रगति एवं गौरव के लिए सभ्यता एवं सुसंस्कृत का संरक्षण अनिवार्य है। शिक्षा का एक मुख्य कार्य सभ्यता एवं संस्कृति की सुरक्षा एवं संरक्षण भी है। एक प्रसिद्ध शिक्षाविद श्री ओटावे ने इस विषय को इस प्रकार कहा है, "शिक्षा का एक कार्य समाज के संस्कृत मूल्यों और व्यवहारों के प्रतिमानों को उसके नवयुवकों तथा कार्यशील सदस्यों को प्रदान करता है।"
4. राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि स्थापित करना - शिक्षा का एक मुख्य कार्य समाज में राष्ट्रीय हितों के महत्व को स्थापित करना भी है। समुचित शिक्षा के परिणामस्वरूप व्यक्ति राष्ट्रीय हितों के लिए निजी एवं व्यक्तिगत हितों को बलिदान करने पर भी तैयार हो जाते हैं। शिक्षित व्यक्ति यह समझने लगता है कि राष्ट्रीय हितों में ही व्यक्ति के हित निहित होते हैं।
5. समाज सुधार एवं प्रगति में योगदान - सदैव ही किसी रूप में समाज सुधार एवं प्रगति के लिए प्रयास करने पड़ते हैं। इस कार्य में शिक्षा महत्वपूर्ण योगदान देती है। शिक्षा में ही व्यक्ति सामाजिक परिवर्तन एवं प्रगति के सिद्धान्तों से परिचित होता है। इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त सामाजिक नागरिक कुरीतियों तथा कुप्रथाओं एवं अन्धविश्वासों से स्वयं मुक्त होते हैं तथा समाज को भी मुक्त करने का प्रयास करते हैं।
6. अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास - आज राष्ट्रीय महत्व के साथ ही अन्तर्राष्ट्रीयता का ही महत्व स्वीकार किया जाने लगा है अब विभिन्न राष्ट्र एक-दूसरे के विरोधी न होकर अनेक क्षेत्रों में पूरक हैं। अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विशेष महत्व स्वीकार किया जाने लगा है। शिक्षा का एक महत्वपूर्ण कार्य अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास करना भी है।
7. राष्ट्रीय एकता को बल प्रदान करना राष्ट्रीय प्रगति के लिए राष्ट्रीय एकता का विशेष महत्व है। राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने में शिक्षा का विशेष योगदान होता है। शिक्षा राष्ट्रीय एकता को बल प्रदान करती है। इस विषय में पण्डित नेहरू का कथन उल्लेखनीय है, “एक दृष्टि से राष्ट्रीय एकता के प्रश्न में जीवन की प्रत्येक वस्तु आ जाती है। शिक्षा का स्थान सर्वोपरि है, यही आधारशिला है। "शिक्षित व्यक्ति राष्ट्रीय एकता को समाप्त करने वाली विभिन्न गतिविधियों से दूर रहते हैं। वे क्षेत्रवाद सम्प्रदायिकता, जातिवाद तथा भाषावाद जैसे विघटनकारी कारकों से दूर रहते हैं।
8. राष्ट्रीय विकास में योगदान राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य राष्ट्रीय विकास में योगदान प्रदान करना भी है। यदि किसी देश में अधिकांश नागरिक शिक्षित होते हैं तो राष्ट्र की उन्नति तीव्र एवं बहुपक्षीय ढंग से होती है। शिक्षित व्यक्ति अपनी निजी उन्नति के लिए राष्ट्रीय हितों की अवहेलना नहीं करता।
9. अच्छे नागरिकों का निर्माण - राष्ट्र की उन्नति एवं प्रगति के लिए अनिवार्य है कि वहाँ नागरिक अच्छे व योग्य हों तथा नागरिक गुणों से युक्त हो। शिक्षा का कार्य अच्छे नागरिक तैयार करना भी है। अच्छा नागरिक उस व्यक्ति को कहा जा सकता है जो देशभक्त हो, अधिकारों तथा कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो। यह योग्यता शिक्षा द्वारा ही प्राप्त होती है।
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- प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
- प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
- प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
- प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
- प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।