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फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र

यूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स

प्रकाशक : कानपुर पब्लिशिंग होम प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 307
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर

5

शिक्षा के उद्देश्य
(Aims of Education)

 

प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्यों की विवेचना संक्षेप में कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों की क्या आवश्यकता है?

अथवा

शिक्षा के उद्देश्य से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के उद्देश्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

अथवा

शिक्षा के उद्देश्यों की आवश्यकता स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के सामान्य उद्देश्यों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

अथवा

शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों का वर्णन कीजिए। आप किस उद्देश्य को सबसे अधिक महत्वपूर्ण समझते हैं?

उत्तर-

भूमिका
(Introduction)

प्रत्येक मानवीय क्रिया एवं गतिविधि का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है। उद्देश्यरहित कार्य व्यर्थ होता है। इसलिए शिक्षा का उद्देश्यपूर्ण होना नितान्त आवश्यक एवं स्वाभाविक है, क्योंकि शिक्षा एक व्यापक प्रक्रिया है तथा इसका सम्बन्ध मानव जीवन के विभिन्न पक्षों से हैं इसलिए शिक्षा के उद्देश्य भी बहुपक्षीय हैं। विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों एवं विद्वानों ने अपने-अपने ढंग एवं दृष्टिकोण से शिक्षा के उद्देश्य का प्रतिपादन किया है। शिक्षा के उद्देश्य के महत्व को प्रत्येक विद्वान समान रूप से स्वीकार करता है। वास्तव में शिक्षा एक अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, अतः उसका उद्देश्यपूर्ण होना नितान्त आवश्यक है।
इस विषय में एक विद्वान डी. टी. लिमये ने इस प्रकार कहा - "उद्देश्यों एवं आदर्शों के बिना शिक्षा पतवार रहित नाव और बिना गन्तव्य स्थान के इधर-उधर भटकने वाले जहाज के समान होगा।' इस तथ्य को प्रो० भाटिया ने इन शब्दों में अभिव्यक्त किया है। "उद्देश्य के ज्ञान के बिना शिक्षक उस नाविक के समान हैं जो समुद्र की लहरों के थपेड़े खाती तट की ओर से बढ़ती जा रही हैं।' शिक्षा के वास्तविक उद्देश्यों के निर्धारण के लिए विशद अध्ययन एवं विवेचन आवश्यक है। वास्तव में किसी भी विषय के व्यवस्थित अध्ययन के लिए उसके उद्देश्य को जानना आवश्यक है।
उद्देश्य निर्धारण के लाभ -
किसी भी कार्य को करने से पूर्ण उसके उद्देश्य स्पष्ट रूप से निर्धारित कर लेने चाहिए। उद्देश्य निर्धारित हो जाने से अनेक लाभ होते हैं। सर्वप्रथम कहा जाता है कि कार्य के मुख्य उद्देश्य को निर्धारित कर लेने से कार्य करने वाले व्यक्ति के समय एवं शक्ति की पर्याप्त बचत हो जाती है। कार्य के मुख्य उद्देश्य को निर्धारित कर लेने के पश्चात् हम अपनी समस्त शक्तियों को एक विशिष्ट दिशा में केन्द्रित कर देते है और हमारी शक्तियाँ इधर-उधर वितरित नहीं होती।
इसके अतिरिक्त यह भी सत्य है कि यदि मनुष्य का मुख्य उद्देश्य स्पष्ट रूप से निर्धारित न हो तो सम्बन्धित गौण उद्देश्य व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं, इससे बाद में काफी निराशा होती है। एक बार उद्देश्य के निर्धारित हो जाने के पश्चात् उद्देश्यों को प्राप्त कर लेने के लिए अभीष्ट साधनों पर विचार किया जा सकता है तथा उन्हें अपनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए शिक्षा का उद्देश्य निर्धारित हो जाने के पश्चात शिक्षा के पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, अध्यापक पाठशाला की व्यवस्था आदि के स्वरूप को निर्धारित किया जा सकता है?

काल एवं परिस्थितियों के सापेक्ष शिक्षा के उद्देश्य

यह सत्य है कि शिक्षा का महत्व व्यक्ति एवं समाज के लिए सदैव ही रहता है परन्तु शिक्षा के उद्देश्य सदैव समान नहीं रहते अर्थात् सदैव ही शिक्षा के उद्देश्य परिवर्तित होते रहते हैं। प्रत्येक देशकाल में समाज एवं राष्ट्र की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए शिक्षा का स्वरूप एवं उद्देश्य भी भिन्न-भिन्न हो जाते हैं। एक समय था जबकि समस्त विश्व में धार्मिक भावना को अधिक महत्व दिया जाता था। इस काल में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ही धार्मिक था। जहाँ युद्ध एवं आक्रमणों का बोल-बाला अधिक होता है वहाँ शिक्षा का मुख्य उद्देश्य-शारीरिक संगठन शिक्षा को ही अधिक महत्व दिया जाता था, इससे भिन्न-भिन्न राज्यों के कल्याण के लिए शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भिन्न-भिन्न स्वीकार होता है।
प्राचीनकाल में शिक्षा का उद्देश्य धार्मिक एवं व्यावसायिक था। इसके बाद ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने भारतीय शिक्षा को ऐसा रूप दिया कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य राज्य की सेवा करना हो गया। आधुनिक युग में स्वतंत्र भारत में शिक्षा के बहुपक्षीय उद्देश्यों को महत्व दिया गया है। आज का युग विज्ञान का युग है। वैज्ञानिक युग में भौतिक उन्नति एवं समृद्धि को अधिक महत्व दिया जाता है। अतः आज शिक्षा का उद्देश्य आर्थिक समृद्धि प्राप्त करना हो गया है।
अन्धविश्वास एवं रूढ़ियाँ तथा कुरीतियाँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में बाधक होती हैं। अतः शिक्षा का उद्देश्य इन बाधाओं को समाप्त करना है। शिक्षा के उद्देश्यों के निर्धारण में राष्ट्र की शासन-प्रणाली का भी महत्वपूर्ण योगदान है। इसलिए लोकतांत्रिक, अधिनायकवादी, साम्यवादी तथा एकतन्त्रीय शासन प्रणाली वाले देशों में शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं नीतियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। जनतांत्रिक राष्ट्रों में शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास करना होता है। अतः शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त छूट एवं स्वतन्त्रता होती है। इससे भिन्न एकतन्त्रिय शासन प्रणाली तथा अधिनायकवादी देशों में शिक्षा का उद्देश्य राज्य की व्यवस्था में सहायक होना माना जाता है। अत ऐसे में व्यक्ति को अधिक छूट या स्वतन्त्रता नहीं दी जाती है। पूँजीवादी राष्ट्रों में शिक्षा का उद्देश्य आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त करना है। शासन प्रणाली के अतिरिक्त कभी- कभी व्यक्ति की किसी विशिष्ट मनोवृत्ति के परिणामस्वरूप भी शिक्षा के उद्देश्य परिवर्तित होते देखे जाते हैं। उदाहरण के लिए जर्मनी में हिटलर ने अपने शासन-काल में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य अपने देश को सैन्य दृष्टिकोण से प्रबल बनाना निर्धारित किया था। इसके लिए उस काल में जर्मनी में सैन्य शिक्षा अनिवार्य कर दी गयी तथा समस्त पाठ्य-पुस्तकों में देश की सीमाओं की सुरक्षा एवं विस्तार पर बल दिया जाने लगा।
इसी प्रकार भारतवर्ष में भी गाँधी जी ने शिक्षा का उद्देश्य हस्तकलाओं में निपुण बनाना प्रतिपादित किया था। स्पष्ट है कि प्रभावशाली विद्वान अथवा नेता की मनोवृत्ति भी शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण कारक होती है। उपरोक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि शिक्षा के उद्देश्य के निर्धारण में विभिन्न कारक अपना-अपना योगदान देते हैं। इसलिए शिक्षा के उद्देश्य स्थिर नहीं होते।

शिक्षा के उद्देश्य

यह सिद्ध है कि शिक्षा के व्यापक उद्देश्य हैं। भिन्न-भिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने अपने जीवन दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण किया है। इसके अतिरिक्त देशकाल की आवश्यकताओं तथा माँगों को ध्यान में रखकर भी शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित होते हैं। शिक्षा के उद्देश्यों को निम्नलिखित वर्गों में रखा जा सकता है।
1. शिक्षा द्वारा ज्ञानार्जन का उद्देश्य (Aim of getting knowledge)
2 शिक्षा का जीवन-उपार्जन सम्बन्धी उद्देश्य (Vocational aim of education)
3. शिक्षा का चरित्र-चित्रण सम्बन्धी उद्देश्य (Character development aim of education)
4. शिक्षा का सम्पूर्ण विकास सम्बन्धी उद्देश्य (Aim of complete living)
5. शारीरिक विकास का उद्देश्य (Aim of physical development)
6 परिस्थिति के अनुकूलन का उद्देश्य (Aim of adaptation to situation)
7. शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य (Individual aims of education)
8. शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य (Social aims of education)
9. सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य (Cultural development aim)
10. समरूप या सन्तुलित विकास का उद्देश्य (Harmonious development aim )
11. अवकाश-काल का सदुपयोग (Utilisation of leisure time) 

शिक्षा के आदर्श उद्देश्य के गुण

यह स्पष्ट है कि शिक्षा एक व्यापक तथा बहुपक्षीय प्रक्रिया है। अतः इसके अनेक प्रकार के उद्देश्य हो सकते हैं। अब प्रश्न उठता है कि शिक्षा के कौन से उद्देश्यों को आदर्श उद्देश्य माना जायेगा? विभिन्न विद्वानों ने शिक्षा के आदर्श उद्देश्य को निम्नलिखित विशेषताओं से मुक्त माना है -
1. शिक्षा के उद्देश्य देशकाल के अनुरूप होने चाहिए - शिक्षा के आदर्श उद्देश्यों को देशकाल के अनुरूप होना चाहिए। जिस प्रकार की राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियाँ होती हैं, उसी के अनुरूप शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित होने चाहिए।
2. शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट एवं निश्चित होने चाहिए - शिक्षा के उद्देश्यों की एक विशेषता- उनका स्पष्ट एवं निश्चित होना चाहिए। अस्पष्ट एवं अनिश्चित उद्देश्यों से शिक्षा द्वारा लाभ प्राप्त करने के स्थान पर हानि ही हो सकती है। यदि शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट एवं निश्चित न हो तो भिन्न-भिन्न व्यक्ति उनका अर्थ भिन्न-भिन्न लगायेंगे जोकि अनुचित है।
3. उद्देश्य को निर्धारित करने समय शिक्षक की राय स्वीकार करना - शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित करते समय शिक्षकों अर्थात् शिक्षार्थियों की राय को जानना भी अनिवार्य होता है। शिक्षक ही शिक्षक एवं शिक्षार्थी के विषय में उचित जानकारी प्रदान कर सकता है। सामान्य रूप से राजनैतिक नेता एवं दार्शनिक लोग शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित किया करते हैं। यह अनुचित है शिक्षा के उद्देश्य शिक्षकों की राय से ही निर्धारित होना चाहिए।
4. शिक्षा के उद्देश्य व्यापक होने चाहिए - हम जानते हैं कि शिक्षा का सम्बन्ध जीवन के समस्त पक्षों से होता है। अतः शिक्षा के निर्धारित उद्देश्यों द्वारा जीवन के विभिन्न पक्षों का समुचित विकास होना चाहिए। अतः शिक्षा के उद्देश्य इस प्रकार निर्धारित करने चाहिए कि वे पर्याप्त व्यापक हों।
5. शिक्षा के उद्देश्य में व्यावहारिकता होनी चाहिए- शिक्षा के उद्देश्य ऐसे होने चाहिए जिन्हें वास्तव में पूरा किया जा सकता है। ऐसे उद्देश्य जिन्हें व्यावहारिक रूप से पूरा नहीं किया जा सकता है, वे व्यर्थ होते हैं।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
  4. प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
  6. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
  7. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
  8. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
  9. प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
  10. प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  12. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  23. प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
  26. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
  27. प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
  28. प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
  29. प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
  30. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
  33. प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
  34. प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
  36. प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  37. प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
  44. प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
  46. प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।

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