बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-5 भारत में मौद्रिक सिद्धान्त एवं बैंकिंग बीकाम सेमेस्टर-5 भारत में मौद्रिक सिद्धान्त एवं बैंकिंगसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-5 भारत में मौद्रिक सिद्धान्त एवं बैंकिंग - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- संस्थागत साख आवंटन की समस्या और नीतियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
किसी क्षेत्र के आर्थिक विकास में साख का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान होता है। देश में वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों, औद्योगिक वित्त निगमों, आयात-निर्यात बैंकों आदि द्वारा साख-सुविधा प्रदान की जाती है। अतः किसी व्यक्तिगत संस्था या उद्यम को इन वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली साख को संस्थागत साख कहते हैं। अन्य शब्दों में, वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रदान की जाने वाली साख को वित्तीय साख कहा जाता है। संस्थागत साख को मुख्यतः तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
1. कृषि क्षेत्रों के लिए संस्थागत साख
2. उद्योग एवं व्यापार क्षेत्रों के लिए संस्थागत साख
3. व्यक्तिगत ऋण
संस्थागत साख की समस्या और नीतियाँ ( Problems and Policies of Institutional Credit) - संस्थागत साख को आवंटित किया जाना एक साल का कार्य नहीं है। इससे जुड़ी कई समस्याएँ हैं। मुख्य समस्याओं को तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
1. सरकार और वाणिज्यिक क्षेत्रों के बीच संस्थागत ऋण के आवंटन की समस्या (Problem of Allocation of Institutional Credit between the government and Commercial Sectors) - सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में ऋण की आवश्यकता है। इसलिए, यह एक बड़ी समस्या है कि ऋण का अधिक आवंटन सरकारी क्षेत्र में होना चाहिए या निजी क्षेत्र में। सम्बन्धित क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए ऋण आवंटन के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं-
(a) सरकारी क्षेत्रों को साख का आवंटन (Allocation of Credit in Government Sector ) - प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री प्रो. कीन्स का मत है कि सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक से अधिक संस्थागत साख वितरित किया जाना चाहिए। उनका तर्क है कि सरकार लोक कल्याण के कार्यों जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, रक्षा आदि का निष्पादन करती है। इसके अतिरिक्त उच्च पूँजी निवेश वाले उद्योगों की स्थापना के लिए भी सार्वजनिक क्षेत्र की सहभागिता होती है। उनका कहना है कि दीर्घकाल में निजी क्षेत्र में अनेक खामियाँ नज़र आती हैं इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक- से-अधिक साख आवंटित किया जाना चाहिए।
(b) निजी क्षेत्रों में साख का आवंटन (Allocation of Credit in Private Sector) - निजी क्षेत्र में अधिक लाभ का आकर्षण होता है। निजी क्षेत्र में अधिक से अधिक लाभ कमाने की आशा के कारण अधिक कौशल एवं प्रवीणता की आवश्यकता होती है। संतुलन और इष्टतम पूँजी की उपस्थिति में न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन किया जा सकता है। यह न केवल उत्पादन की लागत को कम करता है बल्कि उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले उत्पादों का भी निर्माण करता है।
2. अंतर- क्षेत्रीय क्षेत्रों एवं खण्डों में संस्थागत साख के आवंटन की समस्या (Problem of Allocation of Institutional Credit between Inter-regional and Inter- sectoral Areas) - किसी देश की अर्थव्यवस्था अपने आप में वृहद् होती है। पूरे देश के विभिन्न क्षेत्रों का समुचित विकास करना एक कठिन कार्य होता है। कुछ क्षेत्र अधिक विकसित हो जाते हैं और कुछ अन्य कम विकसित रह जाते हैं। इसी प्रकार सभी क्षेत्रों में सभी समान रूप से विकास नहीं हो पाता है। एक क्षेत्र में कृषि में अच्छा विकास हो सकता है जबकि दूसरे में औद्योगिक क्षेत्र में ऐसा विकास हो सकता है। एक क्षेत्र में शिक्षा की स्थिति बहुत अच्छी हो सकती है और दूसरे क्षेत्रों में परिवहन सुविधाओं का अच्छा विकास हो सकता है अर्थात् प्रत्येक क्षेत्र में संतुलन की कमी रहती है।
अतः सीमित मात्रा में ऋण आवंटित करते समय एक बड़ी समस्या उत्पन्न होती है कि किस क्षेत्र या खंड को प्राथमिकता दी जाये। नियमों की तुलना में तार्किकता के अधिक क्रियान्वयित होने के कारण इस जटिल समस्या का समाधान करना कठिन हो जाता है। सामाजिक न्याय को दृष्टि से देखें तो साख आवंटन में सर्वाधिक महत्व पिछड़े क्षेत्रों को दिया जाना चाहिए ताकि उस क्षेत्र के लोग मुख्य धारा में आ सके, लेकिन यदि आर्थिक दृष्टि से देखा जाये तो साख आवंटन में प्राथमिकता उस क्षेत्र को दी जानी चाहिए जहाँ कुछ विकास पहले ही हो चुका हो।
3. बड़े और छोटे ऋणधारियों के महत्व संस्थागत साख के आवंटन की समस्या ( Problem of Allocation of Institutional Credit between Large and Small borrowers) - बड़े और छोटे ऋणधारियों के बीच संस्थागत साख के आवंटन के सम्बन्ध में भी समस्या उत्पन्न होती है कि प्राथमिकता बड़े कर्जदारों को दी जाए या छोटे कर्जदारों को। बडे कर्जदारों में प्रमुख उद्योगपति, बड़े व्यापारी और बड़े किसान सम्मिलित हैं, जबकि छोटे कर्जदारों में लघु और कुटीर उद्योगों और लघु किसानों को सम्मिलित किया जाता है।
(a) बड़े ऋणधारियों को साख का आवंटन - बड़े ऋणधारियों को साख आवंटन में प्राथमिकता देने के सम्बन्ध में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं-
(i) तीव्र औद्योगीकरण - अर्थव्यवस्था के विकास के लिए औद्योगिक क्षेत्र का विकास आवश्यक है। जापान और चीन जैसे देशों के विकास में उद्योगों का बडा योगदान है। देश के तीव्र औद्योगीकरण के लिए प्रमुख ऋणधारियों को ऋण में प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि बड़े पैमाने के उद्योगों की नींव विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
(ii) कृषि बिकास - भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसकी अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर करती है। अतः देश के विकास के लिए बड़े पैमाने पर किसानों को साख में प्राथमिकता देनी होगी, क्योंकि कृषि उत्पादकता में वृद्धि के लिए वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग और तकनीकी विकास की आवश्यकता होती है।
(iii) विदेशी मुद्रा प्राप्त करना - बड़े व्यापारियों का क्षेत्र इतना विस्तृत होता है कि वे विदेशी बाजारों में भी निर्यात करते हैं। निर्यात में वृद्धि के कारण अधिक मात्रा में विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
(iv) निम्न जोखिम - अपनी अच्छी साख के कारण बड़े ऋणधारियों द्वारा साख के भुगतान न करने का जोखिम नगण्य होता है। अतः साख के आवंटन में बड़े ऋणधारियों को प्राथमिकता दी जाती है।
(b) छोटे ऋणधारियों को साख का आवंटन - साख आवंटन में छोटे ऋणधारियों को प्राथमिकता देने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं-
(i) महात्मा गाँधी जी के अनुसार, देश के विकास के लिए लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना आवश्यक है। अतः लघु एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए साख आवंटन में छोटे ऋणधारियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
(ii) छोटे ऋणधारियों का जीवन-स्तर प्रायः निम्न स्तर का होता है। अतः छोटे ऋणधारियों को साख प्रदान करके उनके जीवन स्तर में सुधार लाया जा सकता है।
(iii) छोटे ऋणधारी सामान्यतया विभिन्न क्षेत्रों और खण्डों में फैले हुए होते हैं। उन्हें साख प्रदान करके क्षेत्रीय असमानताओं को भी दूर किया जा सकता है।
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