बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शारीरिक शिक्षा - खेलकूद चोटें एवं कायिक चिकित्सा बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शारीरिक शिक्षा - खेलकूद चोटें एवं कायिक चिकित्सासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शारीरिक शिक्षा - खेलकूद चोटें एवं कायिक चिकित्सा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- अनुचित आसन के कारणों, प्रभावों एवं हानियों को विस्तार से समझाइये |
अथवा
अनुचित आसनों के कारण शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
अनुचित आसनों के कारण शरीर में विभिन्न प्रकार की विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं। फलतः मनुष्य में उदासीनता, आलस्य, थकावट व हीन भावना बनी रहती है। अनुचित आसनों के कारण निम्नलिखित हैं-
(1) जन्मजात - कुछ बच्चों में जन्म से ही आसन सम्बन्धी विकृतियाँ पाई जाती हैं, जो उनके शरीर को बेढंगा व बेडौल बना देती हैं, जैसे- हाथ-पैरों का मुड़ा होना, कंधे झुके होना, कूबड़ होना, अववर्धन आदि अन्य प्रकार की कई विकृतियाँ कई कारणों से पैदा हो जाती हैं, जो शरीर की मुद्रा को बिगाड़ देती हैं।
(2) दुर्घटना या चोट के कारण - यदि शरीर के किसी अंग पर चोट लग जाए तो शरीर के भार का संतुलन बिगड़ जाता है। ठीक से चल फिर भी नहीं सकता और यदि चोट का उपचार सही समय पर न किया जाए तो उस अंग की आकृति बदल जाती है तथा उसमें दोष उत्पन्न हो जाता है और वह हमेशा के लिए रह जाता है।
(3) व्यवसाय के कारण - बहुत से व्यवसाय ऐसे हैं, जिनमें एक तरफ की माँसपेशियों का व्यायाम होता है तो शरीर का एक तरफ झुकाव होता चला जाता है। यदि उन माँसपेशियों को व्यायाम न दिया जाए तो गोल कंधे जैसे दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इसी प्रकार के दूसरे व्यवसाय जैसे दर्जी की पीठ का दोष, माली, कमर पर भार उठाने वाला तथा मजदूर आदि। अतः कुछ व्यवसाय भी आसन को अनुचित रूप प्रदान करते हैं।
(4) पौष्टिक आहार का अभाव - पौष्टिक आहार से अभिप्राय सन्तुलित भोजन से है। असंतुलित भोजन अथवा कुपोषण से भी सूखा रोग बच्चे की अस्थियों का विकास रुक जाता है व माँसपेशियाँ कमजोर पड़ जाती हैं। शरीर को उचित मात्रा में ऊर्जा नहीं मिल पाती और शरीर में कमजोरी आ जाती है, जिससे विभिन्न प्रकार के कार्य करने के लिए अनुचित आसन का प्रयोग करना पड़ता है।
(5) बीमारी के कारण - कई बार बच्चों के खराब आसन का कारण लम्बी बीमारी भी हो सकती है। ऐसी अनेकों बीमारियाँ हैं जिनके कारण शरीर के अंगों में दोष उत्पन्न हो जाता है, जो शारीरिक मुद्रा पर प्रभाव डालती हैं। ऐसी कुछ बीमारियाँ हैं - हड्डी में सूजन, रिकेट्स (सूखा रोग), अधरंग, बहरापन व दमा आदि।
(6) अत्यधिक कार्य - अधिक कार्य, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, थकान उत्पन्न करता है। कुछ समय बाद हमें आराम की आवश्यकता होती है, परन्तु लगातार अत्यधिक श्रम करते रहने से मनुष्य अनुचित साधनों का प्रयोग करने लगता है। वह काम को खत्म करने अथवा थकान को कम करने के लिए अनुचित शारीरिक मुद्रा का सहारा लेता है और धीरे-धीरे वह उस आकृति में ढल जाता है।
(7) मोटापा - शरीर का भार अधिक हो जाने पर शरीर में मोटापा बढ़ जाता है, जिससे शरीर के संचालन में बाधा पड़ती है तथा व्यक्ति अपने आप को असहाय समझने लगता है। चलने- फिरने में कठिनाई होती है। शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए पैरों को बाहर की तरफ निकालना पड़ता है जिससे घुटने अंदर की तरफ हो जाते हैं, जिससे Knock Knee का दोष हो जाता है। इसी के साथ शरीर के अधिक भार का प्रभाव उसके पैरों को चपटा बना देता है, जिसे Flat Foot चपटे पैर का दोष हो जाता है। अतः मोटापा अनुचित आसन का एक प्रमुख कारण है।
(8) कोमलता व नकल - यह महिलाओं में आमतौर से प्रचलित अन्धा-धुंध दौड़ है। स्वयं को नाजुक दिखाने के लिए चलते-बैठते समय अत्यधिक कोमलता का प्रदर्शन करती हैं, जो उनके गठन को बिगाड़ता है। बच्चे भी इसी प्रकार अपनी पसंद के किसी व्यक्ति अध्यापक अथवा हीरोइन आदि की नकल करते हैं। वे बिना कारण जाने उनके तरीकों को अपना लेते हैं, जो उनके शरीर की मुद्रा पर अनुचित प्रभाव डालता है।
(9) अनुचित वस्त्र व फैशन - फैशन के चक्कर में कई युवा व युवती शरीर को साधने का कोई विशेष ढंग अपना लेते हैं या बहुत तंग वस्त्र व जूते पहनते हैं, जो शरीर की स्वाभाविक गतिविधियों में बाधा डालते हैं। यहाँ तक कि चुस्त व तंग कपड़ों में साँस लेना भी मुश्किल हो जाता है तथा शरीर के अंगों को संकुचित होना पड़ता है। इसी के साथ युवा अवस्था में चुस्त कपड़ों के कारण शरीर के अंग प्रदर्शित भी होते हैं। उनको छुपाने के लिए कंधे आगे को झुकाने की आदत पड़ जाती है, जिससे चलने का ढंग व शरीर की मुद्रा दोनों में परिवर्तन आ जाता है।
(10) अनुचित फर्नीचर - स्कूलों में बच्चों की आयु या कद के अनुसार डेस्क या कुर्सी आदि के न होने से भी बच्चों में आसन सम्बन्धित दोष हो जाते हैं। छोटे बच्चों को कई बार डेस्क - व बेंच दोनों आपस में जुड़े होने के कारण बैठने में बड़ी असुविधा होती है। यदि वह आगे झुकता है तो ठीक से बेंच पर नहीं बैठ पाता और यदि पीछे बेंच पर बैठता है तो आगे डेस्क के लिए झुकना पड़ता है। इस प्रकार अनुचित फर्नीचर भी शारीरिक विकृतियों को जन्म देता है।
(11) अनुचित समय सारणी - स्कूल की सभी कक्षाओं की समय सारणी यदि एक ही होगी तो छोटे बच्चों को अधिक लम्बी अवधि तक बैठना पड़ेगा जो उनके नाजुक शरीर में मुद्रा दोषों का कारण बनता है। अतः पूर्ण विद्यालय की समय-सारणी प्राइमरी व माध्यमिक कक्षाओं की अलग-अलग होनी चाहिए। इसके बीच के अन्तराल में बच्चों के मनोरंजन, आराम आदि का प्रावधान होना चाहिए।
(12) गलत दण्ड देना - कभी-कभी अध्यापक की सजा देने का ढंग भी अनुचित आसन का कारण बन जाता है। काफी समय खड़े रहना, मुर्गा बनाना, लम्बे समय तक हाथ ऊपर करके खड़े होना आदि दण्ड खराब आसन के लिए उत्तरदायी है।
(13) भारी बस्ते - आजकल बच्चों के बस्तों में अधिक भार होता है, जिससे वे उन्हें उठाने में असमर्थ होते हैं, वे उन्हें कन्धों या पीठ पर उठाते हैं जिससे वे आगे को झुक कर चलते हैं या कन्धों को एक तरफ झुकाते हैं। ऐसा प्रतिदिन करना भी बच्चों में अनुचित आसन का कारण बनता है।
अनुचित साधनों को दूर करने के उपाय - स्कूलों में अध्यापकों का कर्त्तव्य होता है कि बच्चों को शिक्षा देने के साथ-साथ उनके शरीर की सुयोग्यता व पुष्टि पर भी ध्यान दे। इसके लिए बच्चों को सही शारीरिक आसनों का प्रयोग कराने के लिए उनका उचित मार्गदर्शन करें। बच्चों के अनुचित आसनों को दूर करने और उचित आसनों की आदत डालने के लिए निम्न प्रयास किये जा सकते हैं-
(1) पौष्टिक भोजन का ज्ञान देना व स्कूल में उसकी व्यवस्था करना।
(2) बच्चों को सही मुद्रा का ज्ञान व अभ्यास करवाना।
(3) बच्चों का बोझ कम करके भी हम बच्चों को अनुचित आसन से बचा सकते हैं। इसके लिए स्कूलों में ही गृह-कार्य करवाकर उन विषयों की पुस्तकें व कॉपियाँ स्कूल में रखी जा सकती हैं, जिससे बच्चों के बस्तों का वजन हल्का होगा और कंधों पर अनुचित बोझा नहीं पड़ेगा और आसन ठीक रहेगा।
(4) थकान और तनाव के हर सम्भव कारण जैसे बहरापन, आँखों पर दबाव आदि का विश्लेषण और निवारण किया जाना चाहिए।
(5) कुछ कारणों का निवारण किया जाना भी आवश्यक हैं, जो आसन को प्रभावित करते हैं, जैसे- दोषपूर्ण व्यावसायिक अभ्यास, दोषपूर्ण बैठने का स्थान, तंग व दोषपूर्ण वस्त्रं व जूते।
(6) कक्षा में आगे बैठने की सीटें ऐसे बच्चों के लिए आरक्षित रखें जो अल्प दृष्टि या ऊँचा सुनते हैं या ऐसे दोषों से पीड़ित हैं।
(7) जन्मजात विकृतियों के लिए छात्रों को विकलांगों के अस्पताल में जाने के निर्देशन देना व ऐसी व्यवस्था करवाना।
(8) स्कूलों में उचित फर्नीचर की व्यवस्था बच्चों की आयु व कद के अनुसार ताकि बच्चे ठीक से बैठ सकें।
(9) स्कूली गतिविधियों में समय-समय पर परिवर्तन करने से बच्चों को ज्यादा देर तक एक स्थिति में नहीं बैठना पड़ेगा। इसके लिए स्कूल समय-सारणी में भी पीरियड ज्यादा लम्बे नहीं होने चाहिए।
(10) कमरों में प्रकाश एवं वायु की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ताकि बच्चों को पढ़ाने, श्यामपट्ट देखने आदि में असुविधा न हो। बच्चे उचित स्थिति में बैठकर शिक्षा ग्रहण करते हैं तो आसन ठीक रहता है।
(11) शिक्षकों द्वारा बच्चों को गलत शारीरिक सजा नहीं देनी चाहिए जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो।
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- प्रश्न- चोट पुनर्वास के लक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पट्टियों के प्रकार की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- टैपिंग क्या है? इसके उद्देश्य, और सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- इलास्टिक चिकित्सीय टेप क्या है?
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- प्रश्न- कायिक चिकित्सा का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कायिक चिकित्सा के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिरोधी व्यायाम को स्पष्ट करते हुए इसकी तकनीकी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मालिश से क्या समझते हैं? मालिश के सामान्य विचारों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मालिश के प्रकार को दर्शाते हुए किन्हीं चार प्रकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मालिश के प्रभाव से आप क्या समझते हैं? शरीर के विभिन्न अंगों पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मालिश के निम्न प्रकारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
- प्रश्न- मालिश का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- मालिश के संक्षिप्त इतिहास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रगड़ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- थर्मोथैरेपी उपचार के परिचय और प्रदर्शन के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- थर्मोथैरेपी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सौना स्नान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ठंडा और गर्म स्नान पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'भंवर स्नान' चिकित्सा विधि का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- विद्युत चिकित्सा एवं अवरक्त चिकित्सा से आप क्या समझते हैं? इन्फ्रारेड किरणों के साथ चिकित्सा उपचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डायथर्मी चिकित्सा से आपका क्या अभिप्राय है? डायधर्मी के प्रकार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पराबैंगनी किरणों से आप क्या समझते हैं? परागबैंगनी किरणों के द्वारा उपचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विद्युत चिकित्सा पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अल्प तरंग डायथर्मी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- इन्फ्रारेड किरणों का लाभ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शार्ट वेव डायथर्मी के उपयोग को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उपचारिक व्यायाम के क्षेत्र और वर्गीकरण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उपचारिक व्यायाम को परिभाषित कीजिए और इसके सिद्धान्तों एवं नियमों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मांसपेशियों के पुनर्वास और मजबूती के लिये योग आसन के साथ चिकित्सीय महत्व का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- योग में पुनर्वास क्या है? समझाइये?
- प्रश्न- उपचारिक व्यायाम के विभिन्न उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उपचारिक व्यायामों का प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिरोधी व्यायाम से आप क्या समझते हैं? प्रतिरोधी व्यायाम की तकनीक को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मुक्त व्यायाम की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पुनर्वास क्या है इसकी आवश्यकता किन रोगों में होती है?
- प्रश्न- योग हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित करता है?
- प्रश्न- ताड़ासन का संक्षेप में वर्णन कीजिये?
- प्रश्न- कुक्कुटासन की विधि और लाभ वर्णन कीजिये।