बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शारीरिक शिक्षा - खेलकूद चोटें एवं कायिक चिकित्सा बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शारीरिक शिक्षा - खेलकूद चोटें एवं कायिक चिकित्सासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शारीरिक शिक्षा - खेलकूद चोटें एवं कायिक चिकित्सा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- खिंचाव व मोच से आप क्या समझते हैं? इसकी विस्तृत विवेचना कीजिए।
अथवा
मोच को समझाते हुए उसके उपचार बताइए।
अथवा
मोच पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर -
खिंचाव तब होता है जब ऊतकों पर दबाव या अधिक बल लगाया जाए। इससे ऊतकों में किसी प्रकार की विरूपता आ जाती है। इस विरूपता को विकृति कहते हैं। खिंचाव को पेशियों की या अस्थियों से जुड़े कंडरों की क्षति भी कहा जाता है। अभ्यास या प्रतियोगिता के समय अनेक स्थितियाँ हो सकती हैं जिनके कारण खिंचाव हो सकता है
(1) हल्की - जब माँसपेशियों में बिना कटाव के मामूली खिंचाव हो और कंडरा में भी कटाव न हो, उसे हल्की विकृति कहते हैं। इसमें शक्ति की कोई कमी नहीं आती।
(2) सामान्य - जब पेशी या कंडरा में अथवा अस्थि के साथ जोड़ पर कटाव हो जाने के कारण सामान्य खिंचाव होता है। इस स्थिति में अंग की शक्ति घट जाती है।
(3) गम्भीर खिंचाव - जब माँसपेशी या टैंडन फट जाए तो गम्भीर खिंचाव की स्थिति होती है, जिसके कारण प्रत्यक्ष चोट या अधिक दबाव होता है। इसके कारण सम्बन्धित अंग की शक्ति बिल्कुल घट जाती है।
लक्षण-
(i) खिंचावग्रस्त अंग को हिलाने-डुलाने पर दर्द महसूस होना।
(ii) चोट के आस-पास सूजन ( Swelling) होना।
(iii) चोटग्रस्त अंग को हाथ से दबाने पर कटक की आवाज का आभास होना।
(iv) माँसपेशियों में ऐंठन या तनाव।
(v) टंडन को कवर करने वाली पेशी में सूजन।
खिंचाव का बचाव तथा प्रबन्धन-
(1) बचाव के लिये प्रत्येक खिलाड़ी को प्रशिक्षण या प्रतियोगिता पूर्व उचित ढंग से शरीर को गर्भाना चाहिए। शरीर के सभी भाग या अंगों के खिंचाव वाले व्यायाम अवश्य करने चाहिए।
(2) जिस जगह चोट लगी हो उसे आरामदायक स्थिति में रखना चाहिए। यदि अधिक दर्द और सूजन हो तो यह खिंचाव ही होता है।
(3) ठण्डे पानी या बर्फ का प्रयोग तुरन्त ही लगभग 20 से 30 मिनट तक करना चाहिए। बर्फ का प्रयोग सीधे ही नहीं करना चाहिए बल्कि रुई या कपड़े में लपेट कर ही करना चाहिए।
( 4 ) 2 या 3 दिन तक मालिश नहीं करनी चाहिए, यदि इतने समय से पहले मालिश की जाए तो रक्त का बहाव शुरू हो सकता है।
(5) यदि फिर भी दर्द होता है तो चोटग्रस्त एथलीट को कोई दर्दनाशक दिया जा सकता है। इसके लिए स्प्रे दर्दनाशक का प्रयोग उचित होता है जो बाजार में उपलब्ध होता हैं।
( 6 ) चोटग्रस्त अंग को थोड़ा ऊपर की स्थिति में रखना चाहिए तथा पूर्णरूप से आराम करना चाहिए।
(7) यदि दर्द बन्द हो जाए तो कुछ परिवर्तन के बाद आइसोटोनिक व्यायाम करना भी लाभदायक होता है।
(8) ठीक हो जाने के बाद चोटग्रस्त एथलीट को खेलों में तुरन्त ही भाग नहीं लेना चाहिए बचाव पट्टी के साथ उसे धीरे-धीरे खेलना आरम्भ करना चाहिए।
मोच - यह लिगामैंट की चोट होती है। मोच एक या अधिक स्नायुओं के अधिक खिंच जाने या कट जाने से आती है। व्यायाम के दौरान स्नायु कई बार तनावग्रस्त तथा क्षतिग्रस्त हो जाती है। चोट कुहनी, घुटने या टखने के जोड़ के निकट लगती है। मोच अक्सर भारोत्तोलन, टेनिस और मैदान तथा ट्रैक के खेलों में आती है। कभी-कभी मोच के साथ-साथ अस्थि भंग भी हो जाता है तथा सूजन बहुत अधिक हो जाती है। इसके अतिरिक्त दर्द भी होता है। कई बार लिगामैंट ढीला भी हो जाता है।
मोच भी खिंचाव की तरह तीन प्रकार की होती हैं-
(1) हल्की मोच - जब एक या अधिक स्नायु में मामूली खिंचाव या कटाव हो जाता है तो उसे हल्की मोच कहते हैं, इससे योग्यता में कमी आ जाती है। जब टखने पर किसी तरफ से दबाव पड़ता है तो एड़ी की हड्डी टखने के जोड़ से हिल जाती है और जो लिगामेन्ट जोड़ को जकड़े रहते हैं उनमें ऐंठन या खिंचाव आ जाता है। कभी-कभी फट भी जाते हैं।
(2) सामान्य मोच - जब टखने या सम्बन्धित अंग के स्नायु फट जाए और उस अंग के कार्य में कुछ कमी आ जाय तो सामान्य मोच कहलाती है। इसमें स्नायु फटने की संख्या एक से अधिक होती है।
(3) गम्भीर मोच - गम्भीर मोच में एक से अधिक या सभी स्नायु पूरी तरह फट जाएं और सम्बन्धित अंग की हरकत में बहुत बाधा महसूस हो उसे गम्भीर मोच कहते हैं। कभी-कभी अस्थि विस्थापन भी हो जाता है। आसपास की रक्तवाहिकाएँ अंशतः या पूर्णतः फट जाती हैं और बहुधा संधि के बाहर या कभी-कभी अंदर रक्तस्राव होने लगता है। जोड़ वाले भाग में सूजन और पीड़ा होती है। जोड़ों की हरकत कष्टपूर्ण तथा सीमित होती है।
लक्षण-
(i) चोट के समय सम्बन्धित भाग में तेज दर्द का होना।
(ii) चोटग्रस्त भाग के फटने या चटखने का अनुभव होता है, कभी-कभी अस्थि विस्थापन का आभास होता है।
(iii) चोटग्रस्त स्थान पर कोमलता का अनुभव होता है।
(iv) चोटग्रस्त अंग की हरकत समाप्त हो जाती है।
(vi) यदि दर्द की तरफ पैर या चोटग्रस्त अंग पर दबाव डाला जाता है तो जोड़ में ढीलापन महसूस होगा और जोड़ अपनी स्थिरता नहीं रख पायेगा।
मोच का बचाव व प्रबन्धन-
(1) मोच से बचाव के लिए पूर्ण रूप से शरीर को गर्माना चाहिए।
(2) चोटग्रस्त अंग को आरामदायक स्थिति में रखना चाहिए।
(3) ठण्डे पानी या बर्फ का प्रयोग तुरन्त ही 20 से 30 मिनट तक करना चाहिए। बर्फ या ठण्डे पानी का प्रयोग प्रतिदिन 6 से 8 बार अवश्य करना चाहिए।
(4) घायल जोड़ को सुविधाजनक स्थिति तक ऊपर उठा दिया जाए और कोई हरकत न होने दी जाय।
(5) घायल अंग पर क्रेप की पट्टी बाँध दी जाए।
(6) डॉक्टर से मोच की जाँच करवा कर एक्स-रे करवाना चाहिए।
(7) चोटग्रस्त अंग या हिस्से को थोड़ा ऊँचा रखना चाहिए।
(8) मालिश नहीं करनी चाहिए।
(9) दर्द हो तो दर्दनाशक छिड़काव का प्रयोग करें।
(10) चलते हुए दर्द होता है तो सहारा लेकर धीरे-धीरे चलना चाहिए। शरीर का अधिक भार न डाला जाय।
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- प्रश्न- उपचारिक व्यायामों का प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिरोधी व्यायाम से आप क्या समझते हैं? प्रतिरोधी व्यायाम की तकनीक को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मुक्त व्यायाम की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पुनर्वास क्या है इसकी आवश्यकता किन रोगों में होती है?
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- प्रश्न- ताड़ासन का संक्षेप में वर्णन कीजिये?
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