बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शारीरिक शिक्षा - खेलकूद चोटें एवं कायिक चिकित्सा बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शारीरिक शिक्षा - खेलकूद चोटें एवं कायिक चिकित्सासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शारीरिक शिक्षा - खेलकूद चोटें एवं कायिक चिकित्सा - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 12
उपचारिक व्यायाम
(Therapeutic Exercise)
प्रश्न- उपचारिक व्यायाम के क्षेत्र और वर्गीकरण की विवेचना कीजिए।
अथवा
उपचारिक व्यायाम के अवसर और वर्गीकरण को लिखिए।
उत्तर -
उपचारिक व्यायाम के क्षेत्र
आज के आधुनिक युग में उपचारिक व्यायामों का क्षेत्र काफी व्यापक है। उपचारिक व्यायाम न केवल चोटग्रस्त व्यक्ति व खिलाड़ियों को सुधारने में मदद करता है, बल्कि इसका कार्यक्षेत्र आजकल इतना बढ़ गया है कि कोई भी व्यक्ति व खिलाड़ी किसी भी छोटी से छोटी दुर्घटना के लिए इन व्यायामों का सहारा लेते हैं। थैरेपिक व्यायाम आज के युग में किसी भी प्रकार के कई रोगों को ठीक करने के लिए भी प्रयोग किए जाते हैं। आज के आधुनिक व वैज्ञानिक युग में ऐसा कोई भी खेल का क्षेत्र नहीं है जहाँ पर हर एक खेल के साथ एक कायिक चिकित्सक (फिजियो) न हो। इसके अलावा किसी भी चिकित्सालय में जहाँ पर अच्छी सुविधाएं रोगी को दी जाती हैं उन सभी चिकित्सालयों में भी उपचारिक व्यायाम या चिकित्सकीय व्यायामों का सहारा लिया जाता है।
आज प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीवन शैली को अच्छा स्वस्थ रखने के लिए कई प्रकार के व्यायामों का सहारा लेता है, अपने आप को तन्दुरुस्त तथा स्वस्थ रखने के लिए ठीक इसी तरह कई व्यक्ति कई रोगों को ठीक करने के लिए भी चिकित्सकीय व्यायामों का प्रयोग व उपयोग करते हैं। चिकित्सकीय व्यायाम भी कई तरह से लिए जाते हैं या किए जाते हैं जिस-जिस को जैसी भी इच्छा या रोग को दूर करने सम्बन्धी व्यायाम करने हों, वह चिकित्सक के परामर्श से कोई भी चिकित्सकीय व्यायाम कर सकता है। अतः हम यह कह सकते हैं कि चिकित्सकीय व उपचारिक व्यायाम का क्षेत्र व्यापक है या काफी ज्यादा बढ़ गया है क्योंकि उपचारिक व्यायाम केवल रोगी तक ही सीमित नहीं बल्कि यह प्रत्येक व्यक्ति व खिलाड़ियों तथा अन्य किसी भी प्रकार के रोगों को दूर करने या कम करने का एक अच्छा साधन है।
उपचारिक व्यायामों का वर्गीकरण - उपचारिक व्यायामों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है-
(1) सक्रिय गतियां
(2) निष्क्रिय गतियां
(1) सक्रिय गतियां - सक्रिय गतियां वे गतियां होती हैं जिससे चोटग्रस्त व्यक्ति व खिलाड़ी अपने शारीरिक अंगों को आसानी के साथ हिला-डुला सके, खासकर अपने लोअर लिंब आदि को और जोड़ों के विस्तार को आसानी से कर सके। इन क्रियाओं को करने में रोगी को पहले कुछ परेशानियां व दर्द हो सकता है लेकिन धीरे-धीरे दूर होती रहती है। सक्रिय गतियां करते समय चिकित्सक और रोगी को यह ध्यान रखना अति आवश्यक है कि रोगी को ज्यादा परेशानियां व दिक्कतों को न आने दें, क्योंकि ऐसा होने पर रोगी पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है, जिससे रोगी व खिलाड़ी के बजाए उसकी परिस्थिति बिगड़ सकती है। अतः सक्रिय गतियों को चिकित्सक की निगरानी में की जानी चाहिए।
सक्रिय गतियां भी मुख्यतः दो प्रकार की हैं-
(1) ऐच्छिक गतियां
(2) अनैच्छिक गतियां
(1) ऐच्छिक गतियां-
(a) मुक्त व्यायाम
(b) सहारे वाले व्यायाम
(c) सहारे वाले प्रतिरोधी व्यायाम
(d) प्रतिनिधि व्यायाम
(11) अनैच्छिक गतियां
(a) रिफ्लैक्स
सक्रिय गति - सक्रिय गति एथलीट व खिलाड़ियों द्वारा बिना किसी सहारे के सम्पन्न की जाती है। इस श्रेणी में आने वाले व्यायाम वही है जो सामान्य अनुकूलन तथा जख्मी भागों के उपचारों के लिए पुनः स्वस्थता अर्जित करने हेतु किए जाते हैं।
(1) ऐच्छिक या स्वैच्छिक गतियां - यह बाहरी बल के विरुद्ध कार्य करने वाली स्वैच्छिक गति को सम्पादित करने वाली अथवा नियंत्रित करने वाली गति होती है।
(a) मुक्त व्यायाम
कार्यशील पेशियाँ गतिय अथवा स्थापित भागों के ऊपर गुरुत्वीय बल के कार्य करने वाले विषय होते हैं। मुक्त व्यायाम वे हैं जोकि रोगी द्वारा बिना किसी बाहरी बल के प्रतिरोध अथवा किसी सहारे के स्वयम् भी पेशियों के प्रयास से किया जाता है। यह व्यायाम गुरुत्वाकर्षण के विपरीत किया जाता है। इनके प्रभावों में तथा लक्षणों में विविधताएँ होती हैं। यह व्यायाम का प्रभाव उसके द्वारा ही उत्पन्न किया जाता है। लयात्मक तथा दोलन प्रकार का व्यायाम कुछ रिलेक्शेषन को प्रेरित करता है। गति के अनुसार पेशीय तन्मयता बनाए रखी जा सकती है तथा ताकत भी बढ़ती है। व्यायाम की अवधि अंग पर लीवर का लाभ तथा गुरुत्वाकर्षण से गतिमान भाग का सम्बन्ध बना रहता है। समूह प्रक्रिया के लागू होने से समन्वय का प्राकृतिक ढाँचा प्रशिक्षित हो जाता है। संक्षिप्त प्रभावों की उपलब्धि हो सकती है यदि उपयुक्त चुनाव किया जाए। जिस ढंग से व्यायाम किया जाता है यह बहुत महत्त्वपूर्ण है।
(i) स्थान सीमित व्यायाम - ऐसे व्यायाम मुख्यतः कुछ विशिष्ट तथा स्थानीय प्रभाव पैदा करने के लिए संरचित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए किसी संधि विशेष को गतिशील बनाना अथवा किसी पेशिय गुच्छे को मजबूत बनाना आदि।
(ii) सामान्य व्यायाम - इसमें बहुत सी संधियाँ रहती हैं तथा इसमें शरीर की सभी पेशियाँ संलग्न रहती हैं। इसका प्रभाव क्षेत्र भी बड़ा होता है। जैसे- दौड़ना।
मुक्त व्यायाम की तकनीक
(i) अंगविन्यासीय क्षमता को सुनिश्चित करने के लिए प्रारम्भिक अवस्था को गति का आधार मानते हुए चयन करना तथा सावधानीपूर्वक सिखाना चाहिए।
(ii) निर्देशन इस ढंग से दिए जाने चाहिए कि रोगी में समन्वय तथा उसकी रुचि को जागृत किया जा सके ताकि उसमें व्यायाम का ढाँचा तथा उद्देश्य समझ में आ जाए।
(iii) जितने प्रभाव की जरूरत होती है उसी रफ्तार में व्यायाम का दिया जाना निर्भर करता है।
(iv) व्यायाम की समयावधि (अन्तराल) रोगी की क्षमता के पर अधिक निर्भर करती है। मुक्त व्यायामों के प्रभाव तथा फायदे-
मुक्त व्यायाम के फायदे तथा प्रभाव-
मुक्त व्यायाम के फायदे तथा असर उसके व्यायाम की प्रकृति तथा उसको करने की समयावधि पर निर्भर होती है।
(1) संधियों के घूमने के क्षेत्र में हायपरटॉनिक पेशियों को आराम पहुँचाने में लयात्मक व्यायाम मदद करता है।
(2) इस प्रकार का व्यायाम शिथिलता को प्रेरित कर पेशियों की व्यर्थ के तनाव को कम करता है जिससे संधियों की हलचल की रेंज के घटने को सीमित करता है तथा न्यूरोमस्क्युलर समन्वय में कार्यक्षमता को बढ़ाता है।
(3) पेशियों के समानुपातिक संकुचन एवं फैलाव को एक के बाद खोलने के लिए फैलाव की सामान्य अवस्था तथा गति को स्थिर रखने की जरूरत होती है।
(4) व्यायाम से संधियों की गति करने की क्षमता तथा रेंज पूरी ऊँचाई पर होती है तथा संधियों की सामान्य गति को बनाए रखा जा सकता है।
(5) व्यायाम पेशिय तन्मयता को तथा पेशिय ताकत को विकसित करता है।
(6) इस प्रकार के व्यायामों को दोहराने से न्यूरोमस्क्युलर समन्वय का विकास होता है। जिस व्यायाम में एकाग्रता की जरूरत पड़ती हो तथा उसके लिए अधिक प्रयास करने पड़ते हों तो ऐसा व्यायाम अपने आप कौशल प्राप्त करते हुए अभ्यास में आ जाता है।
(7) उद्देश्यीय व्यायामों तथा गतिविधियों को सम्पन्न करके रोगी अपने अन्दर विश्वास को पैदा करता है।
(8) मुक्त व्यायामों का उपयोग श्वसन को बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है। स्थानीय के साथ-साथ सामान्य संचार में तथा हृदय की पेशियों में भी व्यायाम द्वारा वृद्धि की जा सकती है।
(b) सहारे वाले व्यायाम - यह व्यायाम किसी जख्मी खिलाड़ी को सहारा देकर कराई जाने वाली गति है। इसमें गति को करने के लिए दूसरे व्यक्ति को सहारा देने की जरूरत पड़ती है। सहारा देने वाला का प्रवेग उतना मात्र ही होना चाहिए जोकि पेशीय गति को संचालित कर सके।
सहारा देकर करने वाले व्यायाम का कार्यक्रम इस तरह का होना चाहिए कि कमजोर पेशियों को उसके स्वयं के अधिकतम प्रयासों से मजबूती प्रदान करने को सुनिश्चित करने के लिए बना हों। सहारे वाले व्यायाम को करने के लिए निम्नलिखित तरीकों तथा तकनीकों को इस्तेमाल करना चाहिए।
(i) सहारे वाले व्यायाम को करने के लिए शरीर की सम्पूर्ण स्थिरता का पूरा ध्यान रोगी की गतियों तथा प्रयासों की ओर केन्द्रित होना चाहिए जो गतियां रोगी के द्वारा की जाती हैं।
(ii) इन व्यायामों की गतिय शैली रोगी की गति को जानने तथा समझानेवाली होनी अति आवश्यक है।
(iii) सहारे वाले व्यायामों में बल को गति की दिशा में लगाया जाना चाहिए।
(iv) इन व्यायामों को कमजोर पेशियों पर भार को घटाने के लिए गतिमान भाग को पूरा सहारा देने पर होगा तथा गुरुत्वबल के प्रभाव के विपरीत संतुलन बनाए रखना पड़ेगा, साथ ही इन व्यायामों को करने के लिए मानवीय सहारे की आवश्यकता भी लेनी चाहिए जो कि आवश्यकता के अनुसार समायोजित किया जा सकता है।
(v) सहारे वाले व्यायाम अस्थियों के उद्गम को पर्याप्त रूप में पक्का करने से उसके मुख्य गतिमान अंगों की क्षमता में सुधार किया जाता है। कमजोर पेशियों की क्षमता की भरपाई करने के लिए गतियों को साथ वाली संधियों की ओर स्थानान्तरित किया जाता है। इन संधियों की गति को मानवीय बल अथवा अन्य स्थिर साधनों की मदद से नियंत्रित किया जाता है ताकि गति को एक संधि की आवश्यक धुरी पर केन्द्रित किया जा सके।
(vi) कमजोर पेशी के आरम्भिक फैलाव से मायोटेरिक रिफ्लेक्स को बाहर निकालने से पेशी को सिकुड़ने का बलशाली उद्दीपन प्राप्त होत है।
(vii) इन व्यायामों के द्वारा पेशियों के तनाव को घटाने का प्रयास करना चाहिए।
(viii) इन व्यायामों में गति सरल, सहज तथा सम्पूर्ण होनी चाहिए।
(ix) कमजोरी उत्पन्न होने के कारण की जानकारी के अनुसार ही व्यायामों को करना चाहिए तथा दोहराने की प्रक्रिया को करना चाहिए
(x) इन व्यायामों को करने के लिए और अच्छे परिणामों को प्राप्त करने के लिए चोटग्रस्त व्यक्ति व खिलाड़ी का सहयोग होना आवश्यक है।
सहारे वाले व्यायामों के लाभ तथा प्रभाव-
(i) यह व्यायाम गति की योग्यता प्राप्त करने के विश्वास को स्थापित करता है।
(ii) सहारे वाले व्यायाम के द्वारा उन पेशियों को लाभ व प्रभाव पड़ता है। जिन पेशियों के सहारे के बिना कार्य करने में कठिनाई का अनुभव होता है। उन क्रियाओं को सहारा देकर धीरे-धीरे मजबूती प्रदान कराकर उसमें अतिवृद्धि हो जाती है लेकिन वे अपनी अयोग्यता को दूर करने के लिए अधिकतम प्रयासों को अमल में लाएं।
(iii) इन व्यायामों से प्रभावित संधियों की गतियों की रेंज तथा नियंत्रण को सहारे वाले व्यायामों द्वारा विस्तृत करना।
(iv) इन व्यायामों से न्यूरोमस्कुलर प्रशिक्षण में मदद मिलती है। जिन क्रियाओं व व्यायामों को रोगी बिना सहारे के सम्पन्न नहीं कर सकता, ऐसी क्रियाओं को करने के लिए सहयोगात्मक गतियों को उद्दीपत कर सच शैली के प्रति उसमें जागरुकता को भी बढ़ाया जाता है। ये व्यायाम समन्वयता के प्रशिक्षण में भी मददगार होते हैं।
(C) सहारे वाले प्रतिरोधी व्यायाम - इस प्रकार के व्यायाम एकल गति के दौरान सहारे तथा प्रतिरोधी के मध्य तारतम्यता को निर्मित करते हैं।
प्रतिरोधी व्यायाम
प्रतिरोधी व्यायाम वह गतिविधि है जिसमें खिलाड़ी प्रतिरोधी बल के विरुद्ध कार्य करता है। इस प्रकार के व्यायाम में बाहर की ओर बल को पेशीय संकुचन बल के विपरीत कार्य करने के लिए लगाया जाता है। प्रतिरोध के द्वारा पेशियों में तनाव पैदा हो जाता है तथा पेशिया अपनी हायपरट्रॉफी तथा शक्ति में हुई वृद्धि के द्वारा प्रतिदर्शित करती है। इसके परिणामस्वरूप पेशियों का तनाव बढ़ जाता है और इस प्रकार उनकी पेशियों की शक्ति तथा क्षमता में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है।
प्रतिरोधी व्यायाम की तकनीकें-
(i) इन व्यायामों में गति की शैली इस प्रकार होनी चाहिए कि पेशियों का संकुचन पूर्ण गति की रेंज तक हो सके।
(ii) व्यायाम की आरम्भ की स्थिति आरामदायक तथा स्थिर होनी चाहिए ताकि गतिविधियों के ढांचे पर सम्पूर्ण ध्यान एकाग्रता कायम की जा सके तथा प्रतिरोध को दूर करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
(iii) उद्गम की अस्थियों को व्यवस्थापित कर उनकी गति क्षमता में सुधार करना चाहिए।
(iv) प्रतिरोधी व्यायाम की गति सरल तथा नियंत्रित होनी चाहिए।
(v) इन व्यायामों में विशेष मरीज की अवस्था के अनुसार व्यायामों को दुहराया जाना चाहिए।
(vi) इन व्यायामों में कार्यशील पेशियों के संकुचन के प्रतिरोधन हेतु प्रतिरोधी बल को लगाया जाना चाहिए। इसमें मानवीय बल, भार, स्प्रिंग आदि को लगाया जा सकता है तथा बल को गति की दिशा में लगाया जाता है।
(vii) रोगी अपनी गति को स्वयं के भार के उपयोग कर प्रतिरोध कर सकता है।
(viii) सक्रिय प्रतिरोधी व्यायाम के लिए वजन के द्वारा प्रतिरोध उत्पन्न करना आसान तथा प्रभावी होता है। वजन के द्वारा प्रतिरोध बनाने को उन्नत प्रतिरोधी व्यायाम भी कहा जाता है।
(ix) स्प्रिंग तथा अन्य लचीले पदार्थों द्वारा भी प्रतिरोध उत्पन्न किया जाता है। इसे उपयोग की गई स्प्रिंग के प्रकार के अनुसार फैलाया दबाया जा सकता है।
(x) प्रतिरोध को पानी के तेज बहाव से भी पैदा किया जा सकता है तथा उसको चलने वाले हिस्से की सतह पर लगाया जा सकता है।
प्रतिरोधी व्यायामों के लाभ तथा प्रभाव-
(i) प्रतिरोधी व्यायाम शरीर में रक्त संचार को प्रभावित करता है तथा रक्त के संचार में वृद्धि व सुधार होता है।
(ii) ये कमजोर पेशियों तथा ऊतकों को पुनः निर्मित कर मांसपेशीय संतुलन को बनाए रखता
(iii) इन व्यायामों के द्वारा रक्तचाप में सामान्य बढ़ोत्तरी तेजी से समाहित हो जाती है।
(iv) कठोर पेशीय क्रियाओं द्वारा ऊष्मा पैदा होती है जो कि ऊष्मा संचालित केन्द्रों में उत्तेजना पैदा कर त्वचा का वाहन ( वास्को डायलेशन) को बढ़ा देता है।
(v) नये व्यायामों से रोगी व खिलाड़ियों की कार्य शक्ति को ओर अधिक ताकत व लचीलापन मिलता है।
(2) अनैच्छिक गति ( रिफ्लैक्स गति) - रिफ्लैक्स गति एक अनैच्छिक गति है, जिसे संवेदीय उद्दीपनों के प्रति गतिय प्रतिक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इन रिफ्लैक्स गतियों का सम्बन्ध गतियों की शैली से है जो कि आगे चलकर स्वचालित हो जाता है।
स्ट्रेच रिफ्लैक्स
यह वह गति है जो पेशियों के फैलाव के फलस्वरूप हुई स्पाइनल रिफ्लैक्स प्रतिक्रिया होती है। जब कोई उत्तेजना पैदा करने वाली पेशीय फैलती है तो यह तनाव के पैदा होने तथा सिकुड़ने के प्रत्युत्तर में फैलाव वाले बल के ऊपर पलट कर क्रिया करती है। यह उन पेशियों में अच्छा प्रभाव पैदा करने का साधन होती है जो पेशियों के स्वैच्छिक प्रयासों से अप्रभावित रहती है। प्रतिरोधी बल को लगाकर पेशी की सिकुड़ में तनाव को बढ़ाया जाता है तथा सिकुड़ने की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। रिफ्लैक्स आर्क उत्तेजना को वह मार्ग उपलब्ध कराता है जिससे रिफ्लैक्स गति बढ़ती है। इसमें दो न्यूरान्स होते हैं। एक एफ्रेन्ट न्यूरॉन संवेदना प्राप्त करने वाले अंगों से प्रारम्भ होकर सी. एन. एस. तथा एक एफ़ैन्ट न्यूरॉन सी. एन. एस. से प्रभावित अंग या पेशीय तंतुओं तक पहुँचता है। इनमें से अधिकतर में न्यूरान्स एफ्रेन्ट तथा एफ्रेन्ट न्यूरॉन के बीच में रहते हैं। रिफ्लैक्स गति को गति अथवा शरीर अंगविन्यास के व्यवस्थापन जैसे बहुत से साधनों से उत्तेजित किया जा सकता है।
रिफ्लैक्स गतियों के लाभ तथा प्रभाव-
(i) इन गतियों के दौरान प्राप्त की गई पेशीय संकुचन एवं संधियों की गति के कारण संचरण में भी सुधार आ जाता है।
(ii) रिफ्लैक्स गति, जब ऐच्छिक प्रयास बेअसर हो जाते हैं उस समय रिफ्लैक्स गतियों से शुरुआत करते हुए न्यूरोमस्कुलर मैकेनिजम को प्रोत्साहित करने वाली गति के रूप में रिफ्लैक्स गतियां एक सही साधन सिद्ध होती हैं।
(iii) जब कोई विशेष लकवे के कारण स्वैच्छिक गतियाँ करना असम्भव हो जाती है। उस समय सामान्य संधिगतियों तथा पेशियों के फैलाव का संचार इसी प्रकार की गतियों के द्वारा किया जाता है।
(iv) रिफ्लैक्स गतियों को दुहराने से स्वास्टिक पेशियों में अस्थाई फैलाव आ जाता है।
(v) रिफ्लैक्स की शैलियों को दोहराते हुए अंगविन्यासीय रिफ्लैक्स अवस्थाओं को संतोष प्रद ढांचे के रूप में पुनः पैदा किया जा सकता है।
(2) निष्क्रिय गतियाँ (पैसिव मूवमेन्ट्स ) -
निष्क्रिय गतियां वे होती हैं जो रोगी व चोटग्रस्त व्यक्ति व खिलाड़ी को दूसरे व्यक्ति व चिकित्सक के द्वारा बिना कोई गति या ऐच्छिक गति किए रोगी व खिलाड़ी को दी जाती है। जैसे- मसाज आदि। निष्क्रिय या अक्रिय गति में शरीर अंगों को व जोड़ों को बाहरी उपकरण या चिकित्सक द्वारा स्वयं रोगी को दी जाती है। इस क्रिया में रोगी भी अपने शरीर को कोई मूवमेंट नहीं करता है। यह चिकित्सा या निष्क्रिय व्यायाम रोगी तो तब दिया जाता है। जब रोगी के जोड़ों व पेशियों में कोई गतियां या सक्रिय गतिय व्यायाम करेने में असमर्थ होता है। जब रोगी या खिलाड़ी की पेशियां निष्क्रिय अथवा तुलनात्मक रूप से सुस्त व अक्रिय होती है तो बाहरी बल के लगाने से पैदा हुई गति को निष्क्रिय या अक्रिय गति कहा जाता है और ऐसी सक्रिय गति में हुए पेशीय संकुचन के परिणामस्वरूप होता है। निष्क्रिय या अक्रिय गति व्यायाम वह है जो कि रोगी व खिलाड़ियों के प्रयास के बिना, प्रभावित, भाग पर दूसरे साधन अथवा व्यक्ति द्वारा कराया जाता है। ये गतियां बाहरी बल द्वारा पेशियों की निष्क्रियता के दौरन पैदा की जाती हैं अथवा जब पेशीय गतियाँ अपने आप इतनी कम हो जाती हैं कि पेशियों को गति प्रदान किया जाना सम्भव न हो।
विश्राम ( आराम ) निष्क्रिय गतियाँ - विश्राम निष्क्रिय गतियाँ वे होती है जो कायिक चिकित्सक द्वारा नरमाई से तथा ठीक ढंग से सम्पन्न की जाती है। इसमें जोड़ों की रचना का ज्ञान होना अति आवश्यक है। ये गतियाँ सक्रिय गतियों के समान ही एक ही दिशा में तथा एक ही विस्तार (रेंज़) में सम्पन्न की जाती हैं। जोड़ मौजूदा मुक्त क्षेत्र या विस्तार में उस सीमा तक घूमता है। जिसमें दर्द पैदा न हो सके। इसके अलावा अतिरिक्त गतियों के द्वारा भी रोगी को लाभ पहुँचाया जाता है। अतिरिक्त गतियां वे गतियाँ होती हैं जो किसी भी सामान्य संधियों की गति के समान ही उत्पन्न होती हैं- लेकिन संधि की असामान्य अवस्थाओं में यह सीमित अथवा अनुपस्थिति होती हैं। इनमें ग्लाइडिंग अथवा सक्रिय गतियां होती हैं, जो कि स्वैच्छिक गतियों की जैसी एकांकी गति नहीं कर सकती परन्तु कायिक चिकित्सक द्वारा अलग की जा सकती हैं।
विश्रामजनक निष्क्रिय गतियों को कराए जाने के सिद्धान्त-
(i) जब गति को किसी विशिष्ट संधि तक सीमित किया जाता है तो जो अस्थि प्रोक्सिमल है उसे स्थिर करके गति को स्थायित्व प्रदान किया जाता है।
(ii) पेशीय अक्षम कार्यक्षमता के कारण जब सक्रिय गति करना सम्भव न हो तब कायनेस्थिक संवेदों के उत्तेजकों के द्वारा ये गतियां व्यायामी गतियों के ढांचे को स्मरण कराने में मदद करती हैं।
(iii) जब गति की पूरी रेंज असम्भव हो तब ये पेशियों की विस्तार क्षमता को बनाए राने में मदद करती हैं।
(iv) अतिरिक्त गतियों को संधियों की गतिशीलता तथा गति की खोई हुई रेंज को बढ़ाने के लिए सम्पन्न किया जाता है।
(v) अक्रिय गतियों को निरन्तर लयात्मक सहलाने के प्रभाव तथा प्रोत्साहन देते हुए विश्राम और सोने में मदद करते हैं।
(vi) गतियों से आस-पास की पेशियों में बिना दर्द पैदा किए गति के विस्तार को पूरी सीमा तक आसानी से बढ़ाया जा सकता है। जिससे पीड़ित व्यक्ति व खिलाड़ी शीघ्र अतिशीघ्र ठीक होने या रिक्वर हो जाता है।
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- प्रश्न- खिंचाव व मोच से आप क्या समझते हैं? इसकी विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक चिकित्सा में उपचार की प्राथमिकताओं का उल्लेख करते हुए इनके आवश्यक उपकरणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक चिकित्सा की परिभाषा एवं अर्थ स्पष्ट करते हुए एक अच्छे प्राथमिक चिकित्सक के गुणों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- प्राथमिक उपचार का अर्थ एवं परिभाषा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक सहायता से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक सहायता की आवश्यकता व महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक सहायता के क्षेत्र का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अस्थि भंग का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अस्थि-विस्थापन पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक चिकित्सक के गुणों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- आसन से आप क्या समझते हैं? अच्छे आसन की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अनुचित आसन के कारणों, प्रभावों एवं हानियों को विस्तार से समझाइये |
- प्रश्न- आसन सम्बन्धी विकृतियों से आप क्या समझते हैं? आसन सम्बन्धी विकृतियों के कारण तथा उनके उपचार का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- उचित आसन के क्या लाभ हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उचित आसन एवं अनुचित आसन से आप क्या समझते हैं? अनुचित आसन से हानियाँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अनुचित आसन के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अग्रकुब्जता या धँसी हुई कमर विकृति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणियाँ लिखिए
- प्रश्न- आसन को समझाते हुए आसनीय विकृतियों के नाम लिखिए।
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- प्रश्न- टैपिंग क्या है? इसके उद्देश्य, और सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- इलास्टिक चिकित्सीय टेप क्या है?
- प्रश्न- कायिक चिकित्सा' शब्द को परिभाषित कीजिए और इसके सहायक सिद्धान्तों को विस्तार से लिखिए।
- प्रश्न- शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में 'कायिक चिकित्सा' का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- कायिक चिकित्सा का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कायिक चिकित्सा के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिरोधी व्यायाम को स्पष्ट करते हुए इसकी तकनीकी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मालिश से क्या समझते हैं? मालिश के सामान्य विचारों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मालिश के प्रकार को दर्शाते हुए किन्हीं चार प्रकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मालिश के प्रभाव से आप क्या समझते हैं? शरीर के विभिन्न अंगों पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मालिश के निम्न प्रकारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
- प्रश्न- मालिश का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- मालिश के संक्षिप्त इतिहास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रगड़ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मालिश के रक्त संचरण व पेशी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव को लिखिए।
- प्रश्न- मालिश के सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए। मालिश के सिद्धान्त क्या हैं?
- प्रश्न- मालिश के प्रतिषेध से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- खेलों में मालिश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जल चिकित्सा का अर्थ एवं इसका उपयोग स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शीत चिकित्सा या क्रायोथ्रेपी से आप क्या समझते हैं? शीत चिकित्सा की उपचार तकनीक और इलाज में उपयोग एवं प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- थर्मोथैरेपी उपचार के परिचय और प्रदर्शन के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- थर्मोथैरेपी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सौना स्नान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ठंडा और गर्म स्नान पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'भंवर स्नान' चिकित्सा विधि का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भाप स्नान से आप क्या समझते हैं? इसके लाभ का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विद्युत चिकित्सा एवं अवरक्त चिकित्सा से आप क्या समझते हैं? इन्फ्रारेड किरणों के साथ चिकित्सा उपचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डायथर्मी चिकित्सा से आपका क्या अभिप्राय है? डायधर्मी के प्रकार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पराबैंगनी किरणों से आप क्या समझते हैं? परागबैंगनी किरणों के द्वारा उपचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विद्युत चिकित्सा पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अल्प तरंग डायथर्मी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- इन्फ्रारेड किरणों का लाभ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शार्ट वेव डायथर्मी के उपयोग को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उपचारिक व्यायाम के क्षेत्र और वर्गीकरण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उपचारिक व्यायाम को परिभाषित कीजिए और इसके सिद्धान्तों एवं नियमों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मांसपेशियों के पुनर्वास और मजबूती के लिये योग आसन के साथ चिकित्सीय महत्व का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- योग में पुनर्वास क्या है? समझाइये?
- प्रश्न- उपचारिक व्यायाम के विभिन्न उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उपचारिक व्यायामों का प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिरोधी व्यायाम से आप क्या समझते हैं? प्रतिरोधी व्यायाम की तकनीक को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मुक्त व्यायाम की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पुनर्वास क्या है इसकी आवश्यकता किन रोगों में होती है?
- प्रश्न- योग हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित करता है?
- प्रश्न- ताड़ासन का संक्षेप में वर्णन कीजिये?
- प्रश्न- कुक्कुटासन की विधि और लाभ वर्णन कीजिये।