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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2804
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- राजस्थानी शैली के चित्रों की विशेषताएँ क्या थीं?

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. राजपूत लघु चित्रण का विषय विन्यास क्या था?
2. राजपूत शैली में वर्ण-संयोजन किस प्रकार का था ?

उत्तर-

राजपूत लघु चित्रण परम्परा का एक सुदीर्घ इतिहास विभिन्न पुस्तकों में दृष्टान्त रूप में अथवा वसली पर छिन्न चित्रों के रूप में दिखायी देता है जिसकी प्रेरणा कहीं मानव हृदय की गहनतम अनुभूतियों में छिपी थी।

मानव स्वभाव को बारीकी एवं उसका मनोवैज्ञानिक अभिव्यक्तिकरण राजस्थानी कला का मूल मंत्र रहा है जिसके पार्श्व में चित्रकार की भावात्मकता, पर्यवेक्षण शक्ति तथा कुशाग्र रचना प्रवृत्ति निहित है।

चित्रों में विषयवस्तु को महत्व दिया गया है जिसमें सामाजिक साहित्यिक दरबारी, ऐतिहासिक, धार्मिक आदि विषय चित्रण के प्रेरणा स्त्रोत है। साथ ही इन विषयों की अभिव्यक्ति एवं संयोजन में कलाकार ने जिस प्रविधि एवं तूलिका का आश्रय लिया वह भी सिद्धहस्त है।

राजस्थानी कलाकार ने अपनी कलाकृतियों को रमणीय कलात्मकता प्रदान करते हुए भावमय कोमल रेखाओं प्रखर वर्गों मौलिक रूपाकारों सूक्ष्म विवरण तथा आलंकारिक कलम का आश्रय लिया जिसके साथ अनुभूतिजन्य प्रतीकों का समन्वय कलाकार के अभिव्यञ्जना कौशल को प्रस्तुत करता है ।

वास्तव में राजस्थानी शैली का प्रत्येक चित्र मानवीय संवेदनाओं पात्रों की भावनाओं तथा सूक्ष्म अनुभूतियों को अपनी तूलिका के स्मणीय प्रकाश से मण्डित कर देता है। राजस्थानी शैली की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

रेखा सौष्ठव

ऐसा माना जाता है कि भारतीय चित्रकला रेखा प्रधान है जिसके माध्यम से कलाकार ने मानव हृदयस्थ भावनाओं को भाषा देने का सफल प्रयास किया है। इसी प्रकार विषय के अनुरूप प्रस्तुत रूपों को स्पष्ट करने हेतु राजस्थानी चित्रकारों ने विविध प्रकार की रेखाओं का आश्रय लेकर अभिव्यक्ति को सक्षम बनाया है।

सीधी एवं लयात्मक रेखाओं द्वारा वृक्षों पत्तों, पुष्पों, पशु-पक्षियों तथा मुख्य रूप से मानवाकृतियों के सुन्दर आकारों कों अलंकारिक शैली में प्रस्तुत किया है। कहीं हल्की, कही गहरी, कहीं मोटी, कहीं पतली रेखाओं के माध्यम से बारीकी से चित्रण किया गया है। प्रत्येक रेखा मूल होते हुए भी वाचाल है।

वर्ण नियोजन

राजस्थानी शैली में रंगों का उन्मुक्त प्रयोग हुआ है। अधिकाशतः तीव्र एवं चमकदार रंग हैं । प्राय लाल हरा, पीला, श्वेत आदि का अधिक प्रयोग हुआ है। वैसे प्रकृति के सभी रंगो को आधार बनाया गया है साथ ही प्राय उसमें प्रतीकात्मकता है जैसे कलाकारों ने प्राकृतिक उपादानों को ज्योतिषीय दृष्टि से विभाजित कर दिया जिसमें सूर्य को लाल शनि को नीला बृहस्पति को पीला चन्द्र एवं राहु को काला शुक्र को हल्का नीला तथा बुध को हरित वर्ण के माध्यम से दर्शाया गया है।

इसी प्रकार प्रातः काल के लिए पीला मध्यान्ह के लिए लाल एवं संध्या के लिए नीला रंग प्रतीक रूप में प्रयुक्त हुए हैं। रज, तम और सत्व को क्रमशः लाल, नीला और पीत रंगों से दर्शाया गया है। पंचतत्व क्षिति, जल, पावक, गगन एवं समीर को चित्रित करते समय भी प्रतीकात्मकता का ध्यान रखा गया है।

क्षिति का पीत, जल का श्वेत पावक का रक्त गगन को नीला और समीर श्याम वर्ण के माध्यम से दर्शाया गया है। किसी भी आकार को स्पष्ट करने हेतु पहले ह्यू अर्थात् झाई का प्रयोग किया गया है जिसमें हल्के रंग को गहरे रंग के साथ, पास-पास हल्के गहरे रखते हुए स्पष्ट किया गया है।

द्वितीय चरण में टोन्स अर्थात् गहरी व फीकी झाई से गहरी तान को सफेद रंग के ऊपर सलेटी रंग की रेखाओं को किया गया है। तृतीय चरण में क्रोम का प्रयोग हुआ है जिसमें तथाकथित रंग को एक सीमा तक प्रयुक्त किया जाता है और सेच्यूरेशन की रंग प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है।

रायकृष्ण दास के शब्दों में राजस्थानी शैली का चित्रकार प्रथमतः व्यवस्थान (पैटर्न) का प्रेमी है जिसका प्रयोग पृष्ठिका के वृक्षों आदि में पूरा-पूरा पाया जाता है। उतना ही उसे रंगों का प्रेम भी है। यद्यपि उसका वर्ण विधान सीमित है, पर उन वर्णों में आकर्षण है। रंग बिरंगे बादलों में आकर्षण होता है। यद्यपि उनमें कोई सुभग आकार नहीं होता कह सकते हैं राजस्थानी चित्रकार इसी रूप में ऐसे आकर्षक रंगों का प्रयोग करता है।

प्रकृति चित्रण

प्रकृति की अवर्णनीय एवं अनुपम छठा राजस्थानी लघुचित्रों में हमें स्थान-स्थान पर दिखायी देती है जिसे प्रस्तुत करने में कलाकारों का सौंदर्य से परिपूर्ण मानस एवं प्राकृतिक उपादानों के प्रति कलाकार की संवेदना महत्वपूर्ण है। इन संवेदनशील कलाकारों ने बहुरूपी पल्लवित पुष्पों, मंजरियों एवं लताओं से युक्त पेड़ पौधों को जहाँ सौन्दर्यात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है वहीं पृष्ठभूमि में उसे प्रतीकात्मक सहयोगी रूप में प्रस्तुत कर आकृतियों के साथ संतुलित भी किया है।

इन कलाकारों ने प्राकृतिक उपादानों को सर्वथा नए-नए बिन्दुओं से अध्ययन कर उनमें भावनात्मक एवं कलात्मक मूल्य भी प्रस्तुत किए हैं जिसके पार्श्व में यथार्थ अध्ययन तो है परन्तु प्रस्तुतीकरण यथार्थ न होकर कल्पना पर आधारित आलंकारिक है।

वृक्षों की एक-एक पत्ती पुष्पों तथा मंजरियों के साथ-साथ जल की लहरों को भी बारीकी से बनाने का सफल प्रयास जहाँ एक ओर कलाकार की सृजनात्मकता को प्रकट करता है वहीं कलाकार के धैर्य एवं तकनीक की कुशलता को भी प्रतिबिम्बित करता है।

वृक्षों को प्रायः समूह में बनाया गया है जो प्रफुल्ल, हरे-भरे तथा पुष्प गुच्छों से सुशोभित हैं। पर्वत तथा चट्टानों के अंकन में मुगल शैली का प्रभाव है। दिन के साथ-साथ कहीं-कहीं रात्रि के दृश्यों की भी परिकल्पना की गयी है जिसके लिए छाया प्रकाश के स्थान पर गहरी रंग की पृष्ठभूमि पर सफेद बिन्दु लगाकर तारों का आभास दिया गया है।

कहीं-कहीं चन्द्रमा का अंकन चित्र के सौंदर्य को द्विगुणित करता है । कहीं-कहीं आकाश इन्द्रधनुषी आभा लिए हुए विविध रंगों की छटा बिखेरता हुआ दिखायी देता है जैसे किशनगढ़ शैली के चित्रों में घटाओं के मध्य चाँद की क्रीड़ा, बादलों के मध्य कड़कती विद्युत रेखाएं, सूर्य की लालिमा, स्मणीय झरने, नायक-नायिकाओं की प्रेम क्रीड़ा को दर्शाते उद्यान, कल-कल करती नदियाँ, स्वच्छ सरोवर, सूखे वृक्ष के साथ नायिका आदि सभी प्रकृति के अवयव चित्रकार की तूलिका का स्पर्श पाकर राजस्थानी चित्रों की शोभा बढ़ाते हैं।

पशु-पक्षी चित्रण

राजस्थानी शैली के विभिन्न चित्रों में यथासम्भव पशु-पक्षियों का चित्रण मनोवैज्ञानिक रूप लिए है जिनमें मुख्य रूप से गाय, मोर, हाथी, बत्तख, ऊँट, कोयल चातक, हिरण आदि हैं। कहीं ये पशु-पक्षी मानवाकृतियों के व्यक्ति भावों के साथ सामंजस्य उत्पन्न करते हैं और कहीं पशुओं को देवता मान कर चित्रित किया गया है।

इन पशु-पक्षियों को प्रतीक मान कर भी चित्रित किया गया है। जैस हरिण गति एवं रति का प्रतीक है तो हंस यौवन का और घोड़ा शक्ति का तो गर्दभ मूर्खता का आर्य रामायण के एक चित्र में रावण के मानव शरीर पर गर्दभ का मुख लगाया गया है जो विद्वान होने पर भी सीताहरण के बुरे कर्म के कारण उसे मूर्ख सिद्ध करता है।

नारी चित्रण

नारियों के विविध रूपों के प्रस्तुतीकरण में राजपूत कला का सौन्दर्य सर्वोपरि है। अप्रतिम सौन्दर्य की देवी के रूप में नारी राजपूत चित्रों की शोभा बढ़ाती है। नारी को रानी दासी, देवी, गोपिका के अतिरिक्त नायिका भेद के विविध रूपों जैसे खण्डिता प्रोषित पतिका वासक सज्जा, अभिसारिका आदि रूप भी दिए गए हैं।

साहित्य में नारी के व्यक्तित्व के आधार पर जिस प्रकार का वर्णन मिलता है उससे भी अधिक गूढ़ नियोजन कर इन्हें पट पर प्रत्यक्ष कर दिया है। नारी के मुख मण्डल नेत्र, मुद्राएँ, भंगिमाएँ, वस्त्राभूषण आदि बाह्य तत्वों के साथ-साथ उसके यौवन, वात्सल्य, गौरव, वीरता एवं मदमस्तता आदि भावों को भी प्रस्तुत करने का राजपूत कलाकार हर सम्भव प्रयत्न करता है।

वाचस्पति गैरोला के शब्दों में शास्त्रीय निर्देशों के अनुसार नायिकाओं के विविध स्वरूपों को चित्रित करने में भी उन्होंने निपुणता दिखलायी है। नायिकाओं के प्रत्येक अवयव को उन्होंने इतना आकर्षक बना दिया है कि देखने वाला मोहित हो जाता है। उनके चित्रों में रीति-कालीन कवियों की कल्पना को साकार रूप में उपस्थित कर देने की पूरी क्षमता है। नायिकाओं की सुगठित मुखाकृति में विभिन्न भावो को ध्वनित करने वाले नयन नितम्ब प्रदेश को स्पर्श करके अपनी शोभा को विखेरता हुआ केश-कलाप यौवन की खुमारी से मदहोश अंग कुंवारे वक्षों पर झूलते हुए आभूषण और रक्त रजित अघर तथा हाथ पैर की अनुपम शोभा राजपूत शैली में देखने को मिलती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पाल शैली पर एक निबन्धात्मक लेख लिखिए।
  2. प्रश्न- पाल शैली के मूर्तिकला, चित्रकला तथा स्थापत्य कला के बारे में आप क्या जानते है?
  3. प्रश्न- पाल शैली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- पाल शैली के चित्रों की विशेषताएँ लिखिए।
  5. प्रश्न- अपभ्रंश चित्रकला के नामकरण तथा शैली की पूर्ण विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- पाल चित्र-शैली को संक्षेप में लिखिए।
  7. प्रश्न- बीकानेर स्कूल के बारे में आप क्या जानते हैं?
  8. प्रश्न- बीकानेर चित्रकला शैली किससे संबंधित है?
  9. प्रश्न- बूँदी शैली के चित्रों की विशेषताओं की सचित्र व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- राजपूत चित्र - शैली पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  11. प्रश्न- बूँदी कोटा स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग क्या है?
  12. प्रश्न- बूँदी शैली के चित्रों की विशेषताएँ लिखिये।
  13. प्रश्न- बूँदी कला पर टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- बूँदी कला का परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- राजस्थानी शैली के विकास क्रम की चर्चा कीजिए।
  16. प्रश्न- राजस्थानी शैली की विषयवस्तु क्या थी?
  17. प्रश्न- राजस्थानी शैली के चित्रों की विशेषताएँ क्या थीं?
  18. प्रश्न- राजस्थानी शैली के प्रमुख बिंदु एवं केन्द्र कौन-से हैं ?
  19. प्रश्न- राजस्थानी उपशैलियाँ कौन-सी हैं ?
  20. प्रश्न- किशनगढ़ शैली पर निबन्धात्मक लेख लिखिए।
  21. प्रश्न- किशनगढ़ शैली के विकास एवं पृष्ठ भूमि के विषय में आप क्या जानते हैं?
  22. प्रश्न- 16वीं से 17वीं सदी के चित्रों में किस शैली का प्रभाव था ?
  23. प्रश्न- जयपुर शैली की विषय-वस्तु बतलाइए।
  24. प्रश्न- मेवाड़ चित्र शैली के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  25. प्रश्न- किशनगढ़ चित्रकला का परिचय दीजिए।
  26. प्रश्न- किशनगढ़ शैली की विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए।
  27. प्रश्न- मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग पर एक लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मेवाड़ शैली के प्रसिद्ध चित्र कौन से हैं?
  29. प्रश्न- मेवाड़ी चित्रों का मुख्य विषय क्या था?
  30. प्रश्न- मेवाड़ चित्र शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।
  31. प्रश्न- मेवाड़ एवं मारवाड़ शैली के मुख्य चित्र कौन-से है?
  32. प्रश्न- अकबर के शासनकाल में चित्रकारी तथा कला की क्या दशा थी?
  33. प्रश्न- जहाँगीर प्रकृति प्रेमी था' इस कथन को सिद्ध करते हुए उत्तर दीजिए।
  34. प्रश्न- शाहजहाँकालीन कला के चित्र मुख्यतः किस प्रकार के थे?
  35. प्रश्न- शाहजहाँ के चित्रों को पाश्चात्य प्रभाव ने किस प्रकार प्रभावित किया?
  36. प्रश्न- जहाँगीर की चित्रकला शैली की विशेषताएँ लिखिए।
  37. प्रश्न- शाहजहाँ कालीन चित्रकला मुगल शैली पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- अकबरकालीन वास्तुकला के विषय में आप क्या जानते है?
  39. प्रश्न- जहाँगीर के चित्रों पर पड़ने वाले पाश्चात्य प्रभाव की चर्चा कीजिए ।
  40. प्रश्न- मुगल शैली के विकास पर एक टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- अकबर और उसकी चित्रकला के बारे में आप क्या जानते हैं?
  42. प्रश्न- मुगल चित्रकला शैली के सम्बन्ध में संक्षेप में लिखिए।
  43. प्रश्न- जहाँगीर कालीन चित्रों को विशेषताएं बतलाइए।
  44. प्रश्न- अकबरकालीन मुगल शैली की विशेषताएँ क्या थीं?
  45. प्रश्न- बहसोली चित्रों की मुख्य विषय-वस्तु क्या थी?
  46. प्रश्न- बसोहली शैली का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- काँगड़ा की चित्र शैली के बारे में क्या जानते हो? इसकी विषय-वस्तु पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- काँगड़ा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  49. प्रश्न- बहसोली शैली के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- बहसोली शैली के लघु चित्रों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  51. प्रश्न- बसोहली चित्रकला पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  52. प्रश्न- बहसोली शैली की चित्रगत विशेषताएँ लिखिए।
  53. प्रश्न- कांगड़ा शैली की विषय-वस्तु किस प्रकार कीं थीं?
  54. प्रश्न- गढ़वाल चित्रकला पर निबंधात्मक लेख लिखते हुए, इसकी विशेषताएँ बताइए।
  55. प्रश्न- गढ़वाल शैली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की व्याख्या कीजिए ।
  56. प्रश्न- गढ़वाली चित्रकला शैली का विषय विन्यास क्या था ? तथा इसके प्रमुख चित्रकार कौन थे?
  57. प्रश्न- गढ़वाल शैली का उदय किस प्रकार हुआ ?
  58. प्रश्न- गढ़वाल शैली की विशेषताएँ लिखिये।
  59. प्रश्न- तंजावुर के मन्दिरों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- तंजापुर पेंटिंग का परिचय दीजिए।
  61. प्रश्न- तंजावुर पेंटिंग की शैली किस प्रकार की थी?
  62. प्रश्न- तंजावुर कलाकारों का परिचय दीजिए तथा इस शैली पर किसका प्रभाव पड़ा?
  63. प्रश्न- तंजावुर पेंटिंग कहाँ से संबंधित है?
  64. प्रश्न- आधुनिक समय में तंजावुर पेंटिंग का क्या स्वरूप है?
  65. प्रश्न- लघु चित्रकला की तंजावुर शैली पर एक लेख लिखिए।

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