BA Semester-5 Paper-2 Fine Arts - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2804
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 1
मध्यकालीन भारतीय पेंटिंग :
पाल शैली, जैन शैली, अपभ्रंश शैली
Medieval Indian Painting :
Pal Style, Jaina Style, Apbhransha Style

प्रश्न- पाल शैली पर एक निबन्धात्मक लेख लिखिए। 

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. पाल शैली का प्रारम्भ कब हुआ?
2. पाल शैली के लघु चित्रों की चर्चा कीजिए।

उत्तर -

पाल शैली आठवी शती में प्रारंभ हुई बौद्ध धर्म के अनुसार गोपाल नाम के एक सेनानायक ने 730 ईसवी में एक राजवंश की स्थापना की जो पाल राजवंश के नाम से जाना गया इसके पश्चात् इस राजवंश के क्रमशः धर्मपाल, देवपाल, नारायणपाल, महिपाल जैसे महत्वपूर्ण शासक हुए और पाल काल में कला की भारी उन्नति हुई। रामपाल पाल राजवंश का अंतिम शासक था इसको सामंत सेन ने पराजित कर इस राज्य पर अधिकार कर लिया।

पाल शैली के चित्रों में अजन्ता शैली की विशेषताएँ मिलती हैं। यह अजन्ता शैली की एक विकृत शैली का ही रूप है यहाँ पर चित्र 22.25 x 2.25 इंच के ताड़पत्र पर बने हैं पोथी में चित्र आयताकार या वर्गाकार अन्तराल में अंकित किए गए थे चित्रों का विषय महायान ओर वज्रायन बौद्ध ग्रंथो की विषयवस्तु रही है पाल शैली के अधिकांश पोथियां बंगाल बिहार नेपाल आदि केन्द्रों पर चित्र की नई पाल पत्रों के मध्य में बने चित्रों का विषय महायान के देवी-देवताओं से संबंधित रहा है जबकि समकाय पत्रों के दोनों ओर के पदों पर आलेखन व जातक कथाओं का सुन्दर चित्रण किया गया।

पाल कलाकारों को तांबे की मूर्तियाँ बनाने में भी महारत हासिल थी धर्मपाल देवपाल व महिपाल के काल में इस कला शैली की विशेष उन्नति हुई इस शैली में अपभ्रंश शैली के चित्रों के लक्षण मुख्य रूप से प्रकट नहीं हुए इसकी मुख्य विषय वस्तु बौद्ध शैली से सम्बन्धित थी तथा पाल शैली को राज्य से संरक्षण प्राप्त हुआ।

पाल शैली से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

1. पाल शैली का मुख्य उद्देश्य बौद्ध ग्रंथों का प्रतिबिंबित ग्रंथो के रूप में विकसित करना था।

2. पाल शैली में चित्र पोथियां लगभग में 24 है जिन्हें अष्टसंघिका रूप में विकसित करना था।

3. पाल शैली की चित्र पोथियों में लगभग 24 में से अष्टसंघिका प्रज्ञापरमिता करणदेवगुहा पंचशिखा बोधिचर्यवृत्त प्रमुख है।

चित्रों में महायान देवी भगवान की आकृतियां बनाई गई थी वह एक समान दिखाई पड़ती

4. पाल शासको के समय पट पेटिंग भी प्रचलित था जो लोक कला के रूप में बंगाल क्षेत्र में आज भी जीवित या प्रचलित है यह पट चित्र लोक जीवन और हिंदू धार्मिक ग्रंथो के -आधार पर चित्रित किए गए इस विधा के चित्रकारों में नीलमणि दास, वाल दास गोपाल दास आदि के नाम प्रमुख हैं।

पाल की शैली विशेषताएँ

1. अधिकाश मानव आकृतियों के चेहरे सवा चश्म है जिनमें आंखे बड़ी अधिक लंबी नासिकों और हाथ पैर की मुद्रा में अकड़न है पालपोथी शैली के चित्रों को दृष्टान्त चित्रों के रूप में अंकित किया गया है।

2. चित्रों में वरीयता लाल सफेद और काले रंग का इस्तेमाल किया गया है सुनहरे और बेंगनी रंगों का प्रयोग नही किया गया है चित्रों की रेखाएं कठोर हैं किन्तु अलंकारिकता का पर्याप्त समावेश है।

3. पाल चित्रों की अधिकांश पोथियां एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल में सुरक्षित है।
4. हेलन रुवेंसो जे ने पाल शैली को बिहार शैली के नाम से पुकारा है
5. धर्मपाल ने विहार में बौद्ध अध्ययन केंद्र विक्रमशिला और सोमपुरा विहार स्थापित किया

6. इस शैली के चित्र बिहार और बंगाल में तेरहवीं शताब्दी में बनाने बंद हो गए लेकिन नेपाल में 16 वीं शताब्दी तक निर्जीव रूप में रही।

7. पाल काल में ही नालंदा और ओदंतपुरी जैसे नव बौद्ध विहारों की स्थापना हुई।

प्रारंभिक लघुचित्र

सूक्ष्म सूक्ष्मदर्शी वाले छोटे चित्र, लघुचित्र कहलाते हैं। इनमें कागजों, ताड़ों के पत्रों, कपड़ों के अन्य नष्टप्राय गोदामों पर चित्रों और कासलों को चित्रित किया गया था। लगभग विशाल संरचनाओं की प्रतिक्रियास्वरूप विकसित लघुचित्रों का विकास 8वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य में हुआ। इन संरचनाओं के विकास के लिए पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों को श्रेय दिया जा सकता है। इस प्रकार लघुचित्रों की कला में दो लघुचित्रों का निर्माण किया जा सकता है-

1. कला की पाल शैली
2. कला की अपभ्रंश शैली।

कला की पाल शैली (Pala Style of Art)

चित्रकला की इस शैली का विकास 750 ईस्वी से 1150 ईस्वी के मध्य हुआ। सामान्यतः ये लघुचित्र पाहुलिपियाँ अंग के रूप में प्राप्त हुई हैं। अधिकांशतः इन साज-सज्जा को ताड़पत्रों एवं चर्मपत्रों पर चित्रित किया गया था। इन संघठनों का प्रयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा किया गया था। उनके धर्म में संपूर्ण सार्वभौम के प्रति अहिंसा का व्यवहार किया जाता था, चित्रों को उकेरने के लिए केवल केले एवं नारियल के पत्तों का प्रयोग किया जाता था।

इन संरचनाओं की प्रमुख विशेषताएं लहरदार रेखाएं एवं शांत पृष्ठभूमि है। पाल कला के इन संयोजनों में अधिकतर एकल चित्र प्राप्त हुए हैं और कदाचित ही समूह चित्र प्राप्त हुए हैं। इन रचनाओं की रचना करना बहुत आसान है। बौद्ध धर्म के विकास के लिए कई शासकों द्वारा इस शैली के लघुचित्रों का संरक्षण प्रदान किया गया। बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा द्वारा इन ग्रंथों का प्रयोग। साथ ही उन्होंने इन संरचनाओं को संरक्षित किया। धिम्मना और विटपला नामक दो चित्रकार पाल शैली के महत्वपूर्ण चित्रकार थे।

कला की अपभ्रंश शैली

यह शैली अपना मूल रूप राजस्थान और गुजरात के मेवाड क्षेत्र में पाई जाती है। यह शैली 11वीं से 15वीं शताब्दी के दौरान भारत के पश्चिमी क्षेत्र की सर्वप्रमुख शैली बनी रही। इन संग्रहालयों का सामान्य विषय जैन धर्म था। इसके अतिरिक्त अन्य विषय वैष्णव पंथ से संबंधित थे। वैष्णव धर्म के सिद्धांत इन रचनाओं में गीत गोविंद और दार्शनिक प्रेम की अवधारणा लाये गए। इसके अलावा सभी विषयों में जैन ग्रंथों से प्रेरणा रहे।

प्रारंभिक चरण में अपभ्रंश शैली के संयोजन को ताड़पत्रों पर चित्रित किया गया था। आगे की तरफ कागज पर चित्रित किया गया है। सामान्यतः इन चित्रों को सचित्र विद्वानों के चित्रों के रूप में प्रयोग किया जाता था। इससे संबंधित किसी नवींन शैली का विकास नहीं हुआ, बल्कि ये आयाम वाले आकृति चित्र ही थे। इन संयोजनों के रंग-बिरंगे अर्थ बताने वाले होते थे। सामान्यतः चित्रों के रंग के रूप में लाल, पीला और गेरू रंग का प्रयोग किया जाता था। आगे के चरण में उजाले और सोने के रंग का प्रयोग होने लगा।

अपभ्रंश शैली के इन चित्रों में चित्रित मानव आकृतियों में मछली जैसी उभरी हुई आंखें, तीखी नाक और दोहरी ठुड्डी है। तीसरी और चौथी प्रोफाइल में कृष्णकाय चेहरे बनाने की कोशिश की गई है। ये चित्र आम तौर पर कठोर थी, लेकिन इन्हें सावधानीपूर्वक सजाया गया है। पशु-पक्षियों को खिलौने के रूप में दर्शाया गया है। इन चित्रों के सबसे प्रसिद्ध उदाहरण 15वीं शताब्दी के कल्पसूत्र और कालकाचार्य कथा हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पाल शैली पर एक निबन्धात्मक लेख लिखिए।
  2. प्रश्न- पाल शैली के मूर्तिकला, चित्रकला तथा स्थापत्य कला के बारे में आप क्या जानते है?
  3. प्रश्न- पाल शैली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- पाल शैली के चित्रों की विशेषताएँ लिखिए।
  5. प्रश्न- अपभ्रंश चित्रकला के नामकरण तथा शैली की पूर्ण विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- पाल चित्र-शैली को संक्षेप में लिखिए।
  7. प्रश्न- बीकानेर स्कूल के बारे में आप क्या जानते हैं?
  8. प्रश्न- बीकानेर चित्रकला शैली किससे संबंधित है?
  9. प्रश्न- बूँदी शैली के चित्रों की विशेषताओं की सचित्र व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- राजपूत चित्र - शैली पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  11. प्रश्न- बूँदी कोटा स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग क्या है?
  12. प्रश्न- बूँदी शैली के चित्रों की विशेषताएँ लिखिये।
  13. प्रश्न- बूँदी कला पर टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- बूँदी कला का परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- राजस्थानी शैली के विकास क्रम की चर्चा कीजिए।
  16. प्रश्न- राजस्थानी शैली की विषयवस्तु क्या थी?
  17. प्रश्न- राजस्थानी शैली के चित्रों की विशेषताएँ क्या थीं?
  18. प्रश्न- राजस्थानी शैली के प्रमुख बिंदु एवं केन्द्र कौन-से हैं ?
  19. प्रश्न- राजस्थानी उपशैलियाँ कौन-सी हैं ?
  20. प्रश्न- किशनगढ़ शैली पर निबन्धात्मक लेख लिखिए।
  21. प्रश्न- किशनगढ़ शैली के विकास एवं पृष्ठ भूमि के विषय में आप क्या जानते हैं?
  22. प्रश्न- 16वीं से 17वीं सदी के चित्रों में किस शैली का प्रभाव था ?
  23. प्रश्न- जयपुर शैली की विषय-वस्तु बतलाइए।
  24. प्रश्न- मेवाड़ चित्र शैली के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  25. प्रश्न- किशनगढ़ चित्रकला का परिचय दीजिए।
  26. प्रश्न- किशनगढ़ शैली की विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए।
  27. प्रश्न- मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग पर एक लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मेवाड़ शैली के प्रसिद्ध चित्र कौन से हैं?
  29. प्रश्न- मेवाड़ी चित्रों का मुख्य विषय क्या था?
  30. प्रश्न- मेवाड़ चित्र शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।
  31. प्रश्न- मेवाड़ एवं मारवाड़ शैली के मुख्य चित्र कौन-से है?
  32. प्रश्न- अकबर के शासनकाल में चित्रकारी तथा कला की क्या दशा थी?
  33. प्रश्न- जहाँगीर प्रकृति प्रेमी था' इस कथन को सिद्ध करते हुए उत्तर दीजिए।
  34. प्रश्न- शाहजहाँकालीन कला के चित्र मुख्यतः किस प्रकार के थे?
  35. प्रश्न- शाहजहाँ के चित्रों को पाश्चात्य प्रभाव ने किस प्रकार प्रभावित किया?
  36. प्रश्न- जहाँगीर की चित्रकला शैली की विशेषताएँ लिखिए।
  37. प्रश्न- शाहजहाँ कालीन चित्रकला मुगल शैली पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- अकबरकालीन वास्तुकला के विषय में आप क्या जानते है?
  39. प्रश्न- जहाँगीर के चित्रों पर पड़ने वाले पाश्चात्य प्रभाव की चर्चा कीजिए ।
  40. प्रश्न- मुगल शैली के विकास पर एक टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- अकबर और उसकी चित्रकला के बारे में आप क्या जानते हैं?
  42. प्रश्न- मुगल चित्रकला शैली के सम्बन्ध में संक्षेप में लिखिए।
  43. प्रश्न- जहाँगीर कालीन चित्रों को विशेषताएं बतलाइए।
  44. प्रश्न- अकबरकालीन मुगल शैली की विशेषताएँ क्या थीं?
  45. प्रश्न- बहसोली चित्रों की मुख्य विषय-वस्तु क्या थी?
  46. प्रश्न- बसोहली शैली का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- काँगड़ा की चित्र शैली के बारे में क्या जानते हो? इसकी विषय-वस्तु पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- काँगड़ा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  49. प्रश्न- बहसोली शैली के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- बहसोली शैली के लघु चित्रों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  51. प्रश्न- बसोहली चित्रकला पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  52. प्रश्न- बहसोली शैली की चित्रगत विशेषताएँ लिखिए।
  53. प्रश्न- कांगड़ा शैली की विषय-वस्तु किस प्रकार कीं थीं?
  54. प्रश्न- गढ़वाल चित्रकला पर निबंधात्मक लेख लिखते हुए, इसकी विशेषताएँ बताइए।
  55. प्रश्न- गढ़वाल शैली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की व्याख्या कीजिए ।
  56. प्रश्न- गढ़वाली चित्रकला शैली का विषय विन्यास क्या था ? तथा इसके प्रमुख चित्रकार कौन थे?
  57. प्रश्न- गढ़वाल शैली का उदय किस प्रकार हुआ ?
  58. प्रश्न- गढ़वाल शैली की विशेषताएँ लिखिये।
  59. प्रश्न- तंजावुर के मन्दिरों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- तंजापुर पेंटिंग का परिचय दीजिए।
  61. प्रश्न- तंजावुर पेंटिंग की शैली किस प्रकार की थी?
  62. प्रश्न- तंजावुर कलाकारों का परिचय दीजिए तथा इस शैली पर किसका प्रभाव पड़ा?
  63. प्रश्न- तंजावुर पेंटिंग कहाँ से संबंधित है?
  64. प्रश्न- आधुनिक समय में तंजावुर पेंटिंग का क्या स्वरूप है?
  65. प्रश्न- लघु चित्रकला की तंजावुर शैली पर एक लेख लिखिए।

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