बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- 'बादामी गुफा के चित्रों' के सम्बन्ध में पूर्ण विवरण दीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. बादामी की चौथी गुफा क्यों विशेष है?
2. बादामी के चित्रों का प्रथम दृश्य किस पर आधारित है?
उत्तर -
चालुक्य वंश (छठी से आठवीं शती ई०) में पुलकेशिन प्रथम एक महत्त्वपूर्ण शासक था। वात्यपिपुरम् नामक स्थान का आधुनिक नाम बादामी है। बम्बई के आईहोल के निकट महाराष्ट्र प्रान्त में स्थित है। वर्तमान में यह स्थान कर्नाटक राज्य के बीजापुर जिले में है। चात्यपिपुरम् पर्वतों के बीच सुरक्षित रूप से बसा हुआ था और अपने तालाबों, मन्दिरों तथा झीलों के कारण किसी समय एक सुन्दर नगर रहा होगा। ये चार गुफा मन्दिर चालुक्य राजाओं के बनवाये हुए हैं। ये गुफाएँ शैव धर्म से सम्बन्धित हैं। इनका निर्माण 578ई० में राजा कीर्तिवर्मन के समय में हुआ था। लेकिन कीर्तिवर्मन का पुत्र पुलकेशिन द्वितीय प्रतापी राजा हुए। मंगलेश राजा कीर्तिवर्मन का छोटा भाई था लेकिन कीर्तिर्वमन के भतीजे पुलकेशिन द्वितीय ने युद्ध में मंगलेश को मार दिया और इस प्रकार अपने उत्तराधिकार की रक्षा की। वह भवन तथा कला प्रेमी शासक था। उसके राज्यकाल में बादामी की चौथी गुफा बनकर पूर्ण हुई।
बादामी की चौथी गुफा शिल्प-सज्जा, चित्रकारी तथा वास्तु के दृष्टिकोण से श्रेष्ठ हैं। बादामी गुफा का बाहरी आवरण अत्यन्त सादा है। लेकिन अन्दर की ओर कलात्मक शिल्प व चित्र बिखरे पड़े हैं। जिसका समय शाका 500 अर्थात् 578-579 ई० है। इस लेख के अनुसार विष्णु की प्रतिमा इस मुख्य मण्डप (चौथी गुफा) में स्थापित की गई और मन्दिर में पूजा-पाठ के लिए अनुदान स्वरूप 'लन्जीसवाड़ा' नामक ग्राम की जागीर इस मन्दिर के प्रबन्धन के लिए बाँधी गई थी। अनुमान है कि यह गुफा मंगलेश ने बनवाई थी।
यहाँ चार गुफाएँ हैं, तीन ब्राह्मण धर्म से सम्बन्धित हैं, तथा चौथी जैन धर्म से। ब्राह्मण गुफाओं का सर्वप्रथम उदाहरण यहाँ मिलता है। ब्राह्मण गुफाओं में चित्रण कार्य अजन्ता शैली पर मिलता है। अजन्ता में उत्कीर्ण लेखों से स्पष्ट है कि अजन्ता के चित्र वाकाटक राजाओं ने बनवाये। मंगलेश के दरबारी चित्रकारों ने अपने से पूर्व के वाकाटक कलाकारों की शैली को अपनाया। इस प्रकार का संकेत है कि 'दर्शकों को मंगलेश की कला का रसास्वादन करने के लिए गुफा की छत, दीवारों तथा मूर्तियों की ओर देखना चाहिए।
बादामी के चित्रों की खोज का श्रेय स्टेला क्रैमरिश को है, ऐसा कहा जाता है, पहले बर्गीज तथा बनर्जी ने इस गुफा के बाहरी भाग के चित्रों के अस्पष्ट चिह्न प्राप्त किये थे। बादामी गुफा के चित्रों में जो भव्य शिल्प तथा चित्रकारी के नमूने प्राप्त हैं, उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि मंगलेश ने कलाकारों को सहारा दिया। सबसे पहले स्टैला क्रैमरिश ने इन चित्रों का अध्ययन किया और चित्रों के विषय को धार्मिक व शिव विवाह से सम्बन्धित दृश्य बताया। आज यह चित्र बहुत खराब अवस्था में पाये जाते हैं।
बादामी के भित्ति चित्रों की प्रतिकृतियाँ ललित कला अकादमी के निमन्त्रण पर भारत के प्रसिद्ध चित्रकार स्व० एन० अहिवासी तथा उनके सहायकों ने तैयार की। यह प्रतिकृतियाँ राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली ने ललित कला अकादमी के प्रदर्शन हेतु मँगवायी और यहाँ वह जनता के लिए प्रदर्शित की गई श्री कार्ल खण्डालावाला ने 1983 ई० में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'इंडियन स्कल्पचर एण्ड पेंटिंग' के बादामी का एक रंगी चित्र प्रकाशित किया। बादामी गुफा के चित्रों का यह कार्य श्री कार्ल खण्डलावाला तथा श्री के०के० हैब्बर की देख-रेख में किया गया।
प्रथम दृश्य - यह दृश्य शिव विवाह पर आधारित है, और उनसे सम्बन्धित कई प्रसंग यहाँ पर चित्रित हैं। इस चित्र में इन्द्र की मुख्य आकृति नीलिमायुक्त हरे रंग की हैं और वह अपना एक पैर आसन पर रखे हैं तथा दूसरा पैरा पदपीठा पर रखे आसीन है। इस आकृति का सिर नष्ट हो गया है। इस आकृति की गर्दन में कम्बुकन्ठा तथा कन्धे पर मोतियों की लड़ियों से बनी यज्ञोपवीत दिखाया है।
इसके दाहिने हाथ की उंगलियाँ कत्तकामुख मुद्रा में और बाएँ हाथ की उंगलियाँ शिखरहस्त मुद्रा में बनायी गयी है। इस आसनाहीन आकृति के नीचे अनेक आकृतियाँ बैठी हैं। आकृति के बाएँ कान का एक पत्राकार कुण्डल शेष रह गया है।
इस मुख्य आकृति के बायीं ओर चित्र में नर्तक मण्डली अंकित की गई, इनमें दो मूल्य करती हुई आकृतियाँ बड़ी गतिपूर्ण मुद्रा में अंकित दिखाई पड़ती हैं। इन्द्र के पीछे पाँच - चंवर धारणियों के दल में केवल एक जटाधारी पुरुष आकृति है। बाकी सब स्त्रियाँ हैं। एक जगह दल के ऊपर के स्तम्भों पर आधारित दीर्घा में देवतागण राजसी ढंग से बैठे हैं।
इनमें से पुरुष नर्तक का मुख दर्शक की ओर है। यह नर्तक चतुरा मुद्रा में नृत्य कर रहा हैं और उसका बायाँ हाथ दण्ड हस्त मुद्रा में है और सीधा हाथ कत्तकामुख मुद्रा में उठा चित्रित किया गया है। स्त्री, नृतकी, जो नर्तक के सम्मुख है। दाहिना हाथ दण्डहस्त मुद्रा और बायाँ हाथ कत्तकामुख हस्त मुद्रा में चित्रित है। इन नर्तकों के समीप वाद्य मण्डली अनेक प्रकार के वाद्य यन्त्र बजा रही है, इस वाद्य मण्डली में सब स्त्रियाँ हैं। इनमें से दो बाँसुरी वादक हैं। एक ढोलक तथा एक अक्य-मृदंग बजाती आकृति है। एक मंजीरा बजाती स्त्री की आकृति चित्रित की गई है। इस चित्र में अनुमानत: स्त्री नर्तकी उर्वशी अप्सरा है जिसके पास काली पुरुष आकृति स्वयं ताँडू की आकृति है जो इन्द्र के सम्मुख अप्सरा के नृत्य कौशल का सुन्दर प्रदर्शन कर रहे हैं। पुरुष नर्तक के लाल जटाजूट आकार के हैं। उसके कानों में पत्र- कुण्डल चित्रित हैं और उसको विभिन्न प्रकार के आभूषण तथा वस्त्र माल्व, अनन्त, कड़े तथा घुटनों तक धोती पहने दिखाया गया है।
इनमें एक नटराज का चित्र है, जिसमें वे नृत्य कर रहे हैं। इन्द्र सभा में गायन-वादन का एक महत्त्वपूर्ण चित्र है। यहाँ इन्द्र एक सिंहासन पर बैठे हुए हैं तथा नृत्यांगनाएँ इन्द्र को आसक्त करने का प्रयत्न कर रही हैं। कुछ दर्शक इस रंगारंग कार्यक्रम को ऊपर झरोखों में से देख रहे हैं।
दूसरा दृश्य - दूसराचित्र एक राजमहल के कमरे का दृश्य है, इस दृश्य में अधिकांश आकृतियाँ अस्पष्ट हैं और नष्ट हो चुकी हैं। इस दृश्य में राजसी जोड़ों का अंकन है, राजसी पुरुष महाराज लाली मुद्रा में अपना दाहिना पैर पदपीठा पर तथा बायाँ हाथ घुटने पर है और दाहिना हाथ त्रिपताकं मुद्रा में है, उसने सामान्य आभूषण तथा सिर पर ऊँचा मुकुट पहना है, यज्ञोपवीत उसके दाहिने कन्धे से लहराकर लटक रहा है। उसके दाहिनी ओर मुकुट धारण किये अनेक युवराज जमीन पर बैठे इस भव्य राजसी पुरुष के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे चित्रित किये गये हैं।
रानी के पास ही राजकुमार भी चित्रित है। रानी नीचे एक आयताकार पीठ वाले आसन पर बैठी दिखाई गयी है। इस आसन में तकिये लगे हैं। इन आकृतियों के छोर पर एक स्त्री प्रतिहारी की आकृति है जो नीचे शरीर में टखनों पर अपादीना जैसे कपड़े पहने हैं तथा हाथ में दण्ड धारण किये हैं। इस राजसी आकृति के बाँयी ओर प्रसाधिकाएँ तथा परिचारिकाएँ रानी की सेवा में खड़ी हैं। जो इस रानी की सेवा में राजा के समान चँवर धारणिसाँ खड़ी हैं, जिनके बाल खुले रूप में बनाया। रानी की मुद्रा मनोरम है, उनका दाहिना पैर पदपीठा पर है और बायाँ पैर मुड़ा हुआ है और आसन पर रखा चित्रित है।
ऐसा विचार किया जाता है कि मंगलेश ने अपने भाई राजा कीर्तिवर्मन, जिसको वह बहुत प्रेम करता था अत: यह राजा कीर्तिवर्मन के परिवार का चित्र है। एक अन्य चित्र में कीर्तिवर्मन के परिवार का चित्र है। इस चित्र में लाल रंग का स्वस्थ राजसी पुरुष पल्लव नरेश कीर्तिवर्मन है, जिसको रानी के साथ चित्रित किया गया है। रानी का रंग सफेद है, इन दोनों के नीचे तीन सुरक्षाकर्मी बैठे हैं जिनमें एक गौर, ताम्र, हरे वर्ण का है। रानी की मुद्रा मनोरम है। उसका दाहिना पैर पदपीठा पर है और बायाँ पैर मुड़ा हुआ है और आसन पर रखा चित्रित किया है। उसका दाहिना हाथ आसन पर है परन्तु बायाँ हाथ सोच मुद्रा में दिखाया गया है।
तीसरा तथा चौथा दृश्य - बादामी के इन दो खण्डित दृश्यों में युगल विद्याधर के उड़ते हुए युगलों के दृश्य भी अंकित हैं, तीसरे दृश्य में विद्याधर तथा विद्याधरी अपने-अपने हाथ एक-दूसरे के गले में डाले हैं और उनके सिरे पर मुकुट हैं। विद्याधरी के बाल धमला ढंग से बँधे हैं और उसका रंग गहरा है परन्तु विद्याधर का रंग गौर दिखाया गया है।
इस चित्र में विद्याधर कानों में कुण्डल पहने हैं परन्तु विद्याधरी के कान में कुण्डल नहीं हैं, विद्याधर का केश विन्यास जटा ढंग का है और कमल पुष्प से युक्त है। विद्याधरी वीणा बजा रही है। दूसरे युगल में आकृतियाँ अधिक सुन्दर रूप में अंकित हैं। इस दृश्य में पुरुष आकृति गहने नीलिमा युक्त हरे वर्ण की तथा स्त्री आकृति गौर वर्ण की चित्रित की गई है।
एक चित्र में राजा-रानी सिंहासन पर बैठे हैं तथा नृत्य हो रहा है। इन गुफाओं के चित्र सब धार्मिक नहीं है। सामाजिक तथा ऐतिहासिक भी है। एक चित्र में चवंर डुलाती हुई सुन्दर स्त्री बनी है। इन चित्रों के अतिरिक्त क्षत-विक्षत किन्तु लावण्य से भरपूर चित्र यहाँ है। प्रसिद्ध कलाविद् शिवराम मूर्ति ने बादामी चित्रों की प्रशंसा में कहा है- " बादामी में कुछ ही चित्रावेश होते हुए भी चित्रकार की कुशलता, लगन व निपुणता के बहुत ही सुन्दर व लावण्यमय उदाहरण हैं।"
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