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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - ८

आस्तिक दर्शन :
न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा एवं वेदान्त

प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।

अथवा
'सृष्टि का विकास कैसे हुआ?' इस विषय में भारतीय दार्शनिक मतों की विवेचना कीजिए।

उत्तर - 

मानव को कभी-कभी यह जिज्ञासा अवश्य होती है कि यह सृष्टि जिसमें वह रहता है सुखों व दुःखों को उठाता है तथा जन्म धारण करते हुए और मृत्यु को प्राप्त करने वाले अनेक जीवों को देखता है यह कहाँ से प्रारम्भ हुई? इसका कर्त्ता कौन है? यह कब तक रहेगी? प्रायः धार्मिक ग्रन्थ संसार को अनादि और अन्तरहित कह देते हैं। साथ ही यह भी कह देते हैं कि प्रलय होने पर संसार का विनाश हो जाएगा? परन्तु पुनः जिज्ञासा होती है कि प्रलय क्यों होती है? यदि प्रलय से संसार का विनाश हो जाता है तो पुनः किस प्रकार इसकी रचना होती है? यदि अनेक प्रश्न सृष्टि के विषय में मानव-मन में अनादिकाल से उत्पन्न होते रहे हैं। भारतीय षड्दर्शनों में इस विषय पर भी पर्याप्त विचार हुआ है। जो इस प्रकार है-

(क) सांख्य दर्शन में सृष्टि - सांख्य दर्शन में संसार के मूल में दो तत्व माने हैं - १. प्रकृति २. पुरुष अर्थात् संसार अचेतन व चेतन की क्रीड़ा-स्थली है। इन दोनों से संसार का सृजन हुआ है। प्रकृति एक है और पुरुष अनेक है। जिस प्रकार किसी वन में आग लग जाने पर अंधा व लंगड़ा व्यक्ति एक-दूसरे की सहायता से अपनी रक्षा कर लेते हैं उसी प्रकार प्रकृति पुरुष के अभाव में अन्धी है तथा पुरुष प्रकृति के अभाव में पंगु है। जिस प्रकार चुम्बक लोहे को अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है उसी प्रकार सक्रिय प्रकृति निष्क्रिय पुरुष को भी अपने वश में कर लेता है। पुरुष और प्रकृति का संसर्ग प्रकृति में गुणों की विषमता आ जाती है। सांख्य दर्शन में ये दो तत्व प्रकृति और पुरुष - मिलकर १५ तत्वों में परिवर्तित हो जाते हैं जो मूलतः प्रकृति के ही विकार हैं। पुरुष में कोई भी विकार नहीं आता है। सृष्टि के इस विकास को इस प्रकार रखा जा सकता है -

प्रकृति के विकास की प्रक्रिया
(पुरुष के सहयोग से)

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इसी कारण 'सांख्यकारिका' में कहा गया है-

प्रकृतेर्महास्ततोऽकारस्तस्माद्गणश्च षोडशकः। तस्मादपि षोडषकात् पञ्चभ्यः पञ्चभूतानि।

पञ्चमहाभूतों से दो प्रकार के शरीर उत्पन्न होते हैं-

१. सूक्ष्म शरीर २. स्थूल शरीर।

सूक्ष्म शरीर सृष्टि के प्रारंभ में उत्पन्न होता है। अठारह तत्वों से बना रुकावट रहित उपभोग रहित तथा आठ प्रकार के भावों से रहित होता है। यही शरीर स्थूल शरीर में प्रवेश करता है।

जब पञ्चमहाभूत अपने स्थूल रूप में आ जाते हैं तो भौतिक सर्ग की उत्पत्ति होती है। ईश्वर कृष्ण ने 'सांख्यकारिका' में सम्पूर्ण सृष्टि को तीन भागों में विभक्त किया है।

१. देव सर्ग - सप्त में आठ प्रकार के देवता रहते हैं।

२. तिर्यम् सर्ग - जिसमें पशु-पक्षी आदि पाँच प्रकार के जीव रहते हैं।

३. मनुष्य सर्ग - जिसमें मानव रहते हैं तथा तब तक संसार के दुःखों की भोगते रहते हैं जब तक मुक्ति नहीं होती है। प्रलय के समय सृष्टि का विनाश होता है तथा प्रत्येक तत्व अपने कारणों में विलीन होते जाते हैं और अन्त में प्रकृति और पुरुष अपने-अपने मूल में रह जाते हैं।

(ख) वेदान्त दर्शन में सृष्टि - वेदान्त दर्शन में केवल एक ही तत्व माना गया है वह है - ब्रह्म। वही जगत (सृष्टि) का निमित्त कारण भी है और उपादान कारण भी। जिस प्रकार मकड़ी जाल बनाने में अपनी प्रधानता से निमित्त कारण होती है और अपने शरीर की प्रधानता से उपादान कारण होती है ('यथा लूता तन्तुकार्य प्रति स्वप्रधानतया विमित्तम् स्वशरीरप्रधानतयोपादानं च भवति।)

उसी प्रकार संसार की रचना में एक ओर तो चैतन्य कारण है दूसरी ओर अज्ञान। अर्थात् अज्ञान से उपहित चैतन्य अपनी प्रधानता से संसार का निमित्त कारण है तथा अपनी उपाधि या अज्ञान की प्रधानता से निमित्त कारण है। वस्तुतः संसार माया का ही विलास मात्र है। माया की दो शक्तियाँ होती है -

१. आवरण २. विक्षेप।

आवरण के द्वारा सत्य रूप ब्रह्म को ढक दिया जाता है तथा विक्षेप शक्ति से भ्रम रूप में वस्तु को माना विस्तार दिखाई पड़ते है। जिस प्रकार गोबर में बिच्छू आदि के चेतन शरीर पैदा होते हैं। वैसे ही माया से संसार का विकास होता है। इस सृष्टि विकास को व्यवहार रूप में इस प्रकार दिखाया जा सकता है-

सूक्ष्मरूप में उत्पन्न अज्ञान से उपहित चैतन्य होते हैं

यह संसार ही व्यवहारिक सत्ता है। देखने में लगता है कि यह संसार ब्रह्म से बना है। परन्तु यह व्यवहारिक संसार प्रतीति मात्र है वस्तुतः यह संसार असत्य है। शंकराचार्य के अनुसार-

'ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या ब्रह्मैव नापर:'

( ब्रह्म ही सत्य है जगत झूठा है जीव और ब्रह्म एक ही है अलग-अलग नहीं है।) शंकर का दृष्टिकोण है कि समस्त संसार विवर्त रूप है। जिस प्रकार रस्सी को सर्प का भ्रम हो जाता है अथवा सूर्य को रस्सी का विवर्त कहते हैं उसी प्रकार समस्त संसार भी ब्रह्म का विवर्त है। जैसे जादूगर अपनी जादूगरी से स्वयं प्रभावित नहीं होता उसी प्रकार ब्रह्म भी माया की शक्ति प्रदर्शित करके भी स्वयं उससे प्रभावित नहीं होती। इस प्रकार शंकर के अनुसार विश्व का आधार ब्रह्म है। जो यथार्थ है। जिसका आधार सत्य होता है। वह असत्य नहीं हो सकता। यह जगत् भी वास्तविक रूप में ब्रह्म है। जगत् ब्रह्म का प्रतीत रूप है जो सत्य है।

(ग) वैशेषिक दर्शन में सृष्टि - वैशेषिक दर्शन संसार का निर्माण परमाणुओं से मानता है। संसार में चार प्रकार के परमाणु है जो क्रमशः पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि से सम्बन्ध रखते हैं। ये परमाणु अविनाशी हैं न बनते है और न नष्ट होते हैं। इनको खण्डित या टुकड़ों में विभाजित भी नहीं किया जा सकता। मूल रूप से ये परमाणु गतिहीन है। इनको गति प्रदान करने वाला ईश्वर है। ईश्वर के अनुसार ही संसार की सृष्टि व प्रलय होते हैं। ईश्वर संसार के निर्माण में निमित्त कारण है तथा उपादान कारण परमाणु है। ये परमाणु परस्पर मिलते हैं। दो परमाणुओं के मिलने से द्वयणुक तीन परमाणुओं के मिलने से त्र्यूणक। इस प्रकार परमाणु जब मिलते जाते हैं तो छोटे पदार्थ उत्पन्न होते हैं। परिणामस्वरूप स्थूल आदि पञ्चमहाभूत उत्पन्न हो जाते हैं।

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यद्यपि सृष्टि की रचना परमाणुओं से होती है परन्तु संसार में क्रम व व्यवस्था दिखाई पड़ती है। अदृष्ट नियम से प्रभावित ईश्वर सृष्टि का कार्य उत्पन्न करता है। जीवात्मा अपने कर्म के अनुसार ही फल- भोक्ता होते हैं। प्रत्येक जीव भौतिक नियमों के अधीन नहीं हैं बल्कि कर्मों के अधीन है। परमाणुओं के अतिरिक्त सृष्टि में ईश्वर के अनुसार ही जीवात्मा कर्मों के फल भोगते हैं। परमाणुओं के अतिरिक्त सृष्टि में ईश्वर के अनुसार ही जीवात्मा कर्मों के फल भोगते हैं। अर्थात् केवल चेतन की सत्ता ईश्वर के अधीन है। परमाणुओं का संयोग (संघटन) ईश्वर की इच्छा व अदृष्ट पर ही आधारित हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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