बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शनसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
अथवा
आरण्यक ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
वन में ब्रह्मचर्य में रत होकर ऋषियों ने जिस गम्भीर चिन्तनपूर्ण विद्या का अध्ययन किया, उसे आरण्यक कहते हैं। सायण ने ऐतरेय आरण्यक भाष्य में कहा है कि "आरण्य में पढ़ाये जाने के योग्य होने के कारण इसे आरण्यक कहते हैं। तैत्तिरीय आरण्यक भाष्य में सायण ने कहा है कि -
"अरण्याध्ययनादेतदारण्यकमितीर्यते। अरण्ये तदधीयीतेष्येवं वाक्यं प्रचक्ष्यते ॥'
"जिस विधा को अरण्य में पढ़ा या पढ़ाया जाय, उसे आरण्यक कहते हैं। इस प्रकार आरण्यकों के अध्ययन, मनन एवं चिन्तन के लिए अरण्य का एकान्त शान्त वातावरण ही उपयुक्त समझा जाता था। ग्राम्य का वातावरण उनके लिए किसी भी प्रकार से उपयुक्त नहीं था। ओल्डनवर्ग का कथन है कि 'आरण्यक ग्रन्थ' वे हैं, जिनका प्रतिपाद्य विषय सूक्ष्म अध्यात्मवाद होने के कारण वे गुरु के द्वारा अरण्य के एकान्त वातावरण में अधिकारी शिष्य को दिये जा सकते थे। नगर का वातावरण आरण्यकों में प्रतिपादित गूढ़ विद्या की प्राप्ति के लिए योग्य नहीं समझा जाता था।
आरण्यकों का मुख्य सिद्धान्त ब्रह्म विद्या का विवेचन तथा यज्ञों के गूढ़ रहस्य का प्रतिपादन करना है। आरण्यकों में यज्ञों के आध्यात्मिक एवं तात्विक स्वरूप का विवेचन किया गया है। आरण्यकों के अनुसार यह जगत् यज्ञमय है। यज्ञ ही समस्त विश्व का नियन्ता है। प्राण विद्या का विषय ही आरण्यकों का विशिष्ट विषय है। इसके अध्ययन एवं उपासना के लिए अरण्य का एकान्त शान्त स्थान ही उपादेय समझा जाता था। आरण्यकों के अनुसार प्राण ही समस्त विश्व का आधार है। यह सारा जगत् प्राण से ही आवृत्त है। आरण्यकों में वर्णाश्रम धर्म का पूर्ण विकास देखा जाता है।
ऐतरेय आरण्यक - यह ऐतेरेय ब्राह्मण का ही परिशिष्ट भाग है। ऐतरेय आरण्यक में पाँच भाग हैं जिन्हें आरण्यक कहा जाता है। प्रथम आरण्यक में पाँच अध्याय, द्वितीय में सात, तृतीय में दो, चतुर्थ में एक और पंचम आरण्यक में तीन अध्याय हैं। इस प्रकार कुल १८ अध्याय हैं। इस आरण्यक के प्रथम आरण्यक में महाव्रत का वर्णन किया गया है। द्वितीय आरण्यक के प्रथम तीन अध्यायों में उक्थ, प्राण, विद्या और पुरुष का वर्णन है। चार से लेकर छः अध्यायों में ऐतरेय उपनिषद् है। तृतीय आरण्यक संहितोपनिषद् है जिसमें संहिता, क्रम एवं पद पाठों का वर्णन तथा स्वर व्यंजन के स्वरूप का उल्लेख किया गया है। चतुर्थ आरण्यक में महाव्रत के पाँचवें दिन में प्रयुक्त होने वाली कुछ महानाम्नी ऋचाएँ संकलित की गयी हैं।
शांखायन आरण्यक - यह ऋग्वेद का दूसरा आरण्यक है। इसे कौषीतकि आरण्य भी कहा जाता है। १६२२ में श्रीधर पाठक ने सम्पूर्ण शांखायन ब्राह्मण को प्रकाशित किया है। इसमें कुल १५ अध्याय और १३७ खण्ड हैं। इसके प्रथम दो अध्यायों को ब्राह्मण का भाग माना जाता है। तीन से लेकर छः अध्याय तक कैषीतकि उपनिषद कहा जाता है। इसके वर्व्य विषय सामान्यतः ऐतरेय आरण्यक के समान हैं। इसके छठे अध्याय में कुरुक्षेत्र, मत्स्य, उशीनर, काशी, पाञ्चाल, विदेह आदि देशों का उल्लेख है।
वृहदारण्यक - शतपथ ब्राह्मण की मोध्यन्दिन और काण्व दोनों शाखाओं के अन्तिम छः अध्यायों को वृहदारण्यक कहते हैं। इसका प्रथम प्रकाशन १८८६ ई. में किया गया। यह आरण्यक एवं उपनिषद् दोनों का मिश्रण है। इसमें बीच-बीच में यज्ञों के रहस्यात्मक वर्णन का उल्लेख मिलता है। माध्यन्दिन एवं दोनों शाखाओं के वृहदारण्यकों में याज्ञवल्क्य और जनक का संवाद तथा मैत्रेयी एवं गार्गी दोनों ब्रह्मवादिनी नारियों का आख्यान वर्णित है।
तैत्तिरीय आरण्यक - इसमें कुल दस प्रपाठक या परिच्छेद हैं प्रत्येक प्रपाठक में कई अनुवाक् हैं। अनुवाकों की संख्या कुल १७० है। सप्तम् से लेकर नवम् प्रपाठक तक को 'तैत्तिरीयोपनिषद' कहते हैं और दशम् प्रपाठक को 'महानारायणीयोपनिषद्' कहा जाता है जिसे तैत्तिरीय आरण्यक का परिशिष्ट माना जाता है। इसके प्रथम प्रपाठक में अग्नि की उपासना और इष्टका चयन का वर्णन है। द्वितीय प्रपाठक में स्वाध्याय तथा पञ्च महायज्ञों का वर्णन किया है। तृतीय प्रपाठक में प्रवर्ण्य के उपयोगी मन्त्रों का वर्णन है और इसी में अनेक अभिचारपरक मन्त्र भी वर्णित हैं। पञ्चम प्रपाठक में यज्ञीय संकेत प्राप्त होते हैं। षष्ठ प्रपाठक में पितृमेध सम्बन्धी मन्त्रों का वर्णन है। तैत्तिरीय आरण्यक में कुरुक्षेत्र खाण्डव, पाञ्चाल, मस्त्य, काशी आदि भौगोलिक नामों का वर्णन मिलता है। इसमें श्रमण शब्द का प्रयोग तपस्वी के अर्थ में किया गया है। बौद्ध भिक्षु के अर्थ में इसका प्रयोग करते हैं। इसमें यज्ञोपवीत का प्रथम उल्लेख मिलता है। तैत्तिरीय आरण्यक में जल के चार रूप बताये गये हैं मेघ, विद्युत, गर्जन और वृष्टि तथा जल के छः प्रकार बताये गये हैं वृष्टि का जल, कूप का जल, तड़ागजल, नद्यादिजल पावजल और झरने का जल। इस आरण्यक में एक ऐसे रथ का वर्णन किया गया है जिसमें एक हजार धुरे और कई चक्र हैं। इस रथ में एक हजार घोड़े जुतते हैं।
मैत्रायणी आरण्यक - यह कृष्ण यजुर्वेद की मैत्रायणी शाखा की है। इसको मैत्रायणी उपनिषद् भी कहा जाता है। इसमें सात प्रपाठक हैं। पाचवें प्रपाठक से 'कैत्सायनी स्रोत' का प्रारम्भ होता है। इसमें आरण्यक और उपनिषद् दोनों का अंश मिश्रित है। इसमें परमात्मा को अग्नि और प्राण कहा गया है। इसमें अश्वपति, हरिश्चन्द्र, अम्बरीष, शर्याति, ययाति, युवनाश्व आदि राजाओं का उल्लेख है।
तवल्कार आरण्यक - सामवेद की जैमिनीय शाखा से सम्बन्धित आरण्यक 'तल्वकार आरण्यक' है। इसी को 'जैमिनीयोपनिषद् ब्राह्मण भी कहते हैं। उसका प्रकाशन १९३१ ई. में एच. अर्टल ने किया था। इसमें चार अध्याय है। प्रत्येक अध्याय में कई अनुवाक् या खण्ड हैं। इसमें साम मन्त्रों की सुन्दर व्याख्या की गयी है। इस आरण्यक के चतुर्थ अध्याय को केनोपनिषद् कहते हैं।
|
- प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
- प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
- प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
- प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
- प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
- प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
- प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
- प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
- प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
- प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
- प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
- प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
- प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
- प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
- प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
- प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
- प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
- प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
- प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
- प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
- प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
- प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
- प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
- प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
- प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
- प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
- प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
- प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
- प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
- प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
- प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
- प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।