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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक सांख्यिकी

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2800
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक सांख्यिकी - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? सह-सम्बन्ध के प्रकार तथा विभिन्न विधियाँ का उल्लेख कीजिये।

उत्तर -

सह-सम्बन्ध का अर्थ 

सांख्यिकी माध्यों के द्वारा प्रतिनिधि इकाई तथा अपकिरण व विषमता द्वारा मनकों में विचलन व समंक मालाओं की बनावट का पता लगता है। किन्तु जब समंक मालाओं का सम्बन्ध ज्ञात करना हो तो सह-सम्बन्ध का प्रयोग करना पड़ता है। सह-सम्बन्ध एक ऐसी व्याख्यात्मक सांख्यिकी माप है जो दो समूहों के बीच पाये जाने वाले फलनात्मक सम्बन्ध की व्याख्या प्रस्तुत करती है। विभिन्न तथ्यों के पारस्पारिक सम्बन्धों के विषय में हम सामान्यता प्रतिदिन अनुभव करते हैं कि किस प्रकार एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं तथा एक चर यदि परिवर्तित होता है तो दूसरा चर भी उस परिवर्तन से अप्रभावित नहीं रहता तथा परिवर्तित हो जाता है।

सह-सम्बन्ध की परिभाषा

"जब दो या दो से अधिक समूहों, वर्गों एवं समंक मालाओं के बीच एक निश्चित सम्बन्ध होता है तब ऐसे सम्बन्ध को सह-सम्बन्ध कहा जाता है।" - बोडिंग्टन

"सह-सम्बन्ध दो चल राशियों में पाये जाने वाले संयुक्त सम्बन्ध की ओर संकेत करता है। - लैथराप

"सह-सम्बन्ध वह अकेली संख्या है, जो यह बताती है कि दो वस्तुयें किस सीमा तक एक-दूसरे से सह-सम्बन्धित हैं तथा एक का परिवर्तन दूसरे के परिवर्तनों को किस सीमा तक प्रभावित करता है।' - गिलफोर्ड

"दो या दो से अधिक चल राशियों, घटनाओं या वस्तुओं के पारस्परिक सम्बन्ध को सह-सम्बन्ध कहते है।' - गैरेट

"सह-सम्बन्ध का उद्देश्य दो चल राशियों में पाई जाने वाली सम्बन्ध की मात्रा का पता लगाना होता है।"

 

 

सह-सम्बन्धी के प्रकार

सह-सम्बन्ध के प्रकार या भेद को निम्नलिखित चार्टों द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है-

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(I) मात्रात्मक सह-सम्बन्ध - मात्रात्मक सह-सम्बन्ध में व्यक्तियों की क्षमताओं या विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन मात्रात्मक आधार पर किया जाता है। इनमें तीन भेद होते हैं।

1. ऋणात्मक सह-सम्बन्ध - जब एक चर में बढ़ोत्तरी मात्रा में घटोत्तरी होती है या एक चर में कमी होने से दूसरे चर की मात्रा में वृद्धि होती है तो दोनों चरों के इस प्रकार के विपरीत सम्बन्ध को ऋणात्मक सह सम्बन्ध कहते हैं। जब दो चलों या पदमालाओं में होने वाले परिवर्तनों की दिशा विपरीत होती है, दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि एक चल में वृद्धि अथवा कमी होने पर क्रमशः दूसरे में कमी अथवा वृद्धि होती है। तो इन दोनों चलों का इस प्रकार का सम्बन्ध ऋणात्मक सह-सम्बन्ध कहलाता है। यह निम्नलिखित दो प्रकार का होता है

(a) पूर्ण ऋणात्मक सह-सम्बन्ध
(b) सीमित ऋणात्मक सह-सम्बन्ध

 

2. धनात्मक सह सम्बन्ध - यदि एक चर के बढ़ने से दूसरे चर में भी वृद्धि होती है अथवा एक चर के घटने से दूसरे चर की मात्रा भी घटती है तो दोनों चरों के सम्बन्ध में एक रूपता को ही धनात्मक सह-सम्बन्ध कहते है। जब किन्हीं दो चलों अथवा पदमालाओं में होने वाले परिवर्तनों की दिशा एक ही होती है, दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि एक में वृद्धि अथवा कमी होने पर क्रमशः वृद्धि या कमी होती है, तो इन दोनों चलों अथवा पद मालाओं के इस प्रकार के सम्बन्ध को धनात्मक सह-सम्बन्ध कहा जाता है। यह निम्नलिखित दो प्रकार का होता है।

(a) पूर्ण धनात्मक सह-सम्बन्ध
(b) सीमित धनात्मक सह-सम्बन्ध

3. शून्य सह-सम्बन्ध - जब एक चर की वृद्धि या कमी दूसरे चर में कोई अंतर उत्पन्न न करें अर्थात दोनों चरों का एक-दूसरे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है तब इन दोनों चरों में शून्य सह-सम्बन्ध माना जाता है।

(II) गुणात्मक सह-सम्बन्ध - इसमें व्यक्तियों की क्षमताओं या विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन या विश्लेषण गुणों के आधार किया जाता है तो उसे गुणात्मक सह-सम्बन्ध कहा जाता है। इसके दो भेद होते हैं-

1. रेखीय सह सम्बन्ध -  जब दो ऐसे चरों के मध्य सह-सम्बन्ध पाया जाता है। जिसमें निरंतरता पायी जाती है एवं जिसके मध्य होने वाले सम्बन्ध को एक सरल रेखा द्वारा व्यक्त किया जा सके। ऐसे सह-सम्बन्ध को रेखीय सह-सम्बन्ध कहा जाता है। इस प्रकार का सह-सम्बन्ध ज्ञात करने के लिए केवल उन्हीं चरों का चयन किया जाता है जिनका मापन अंतराल या अनुपात मापनी द्वारा संभव होता है।

2. वक्रात्मक सह-सम्बन्ध - यह वह सह-सम्बन्ध है जिसमें एक विशेष सीमा तक दो चरों में सह-सम्बन्ध धनात्मक होता है और इस सीमा के बाद सह-सम्बन्ध ऋणात्मक हो जाता है। निम्न ग्राफ में इस सह-सम्बन्ध को दिखाया गया है

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उपरोक्त चित्र से स्पष्ट होता है कि आयु और स्मरण व्यक्ति के ऋणात्मक सह-सम्बन्ध है, क्योंकि आयु के बढ़ने के साथ-साथ स्मरण शक्ति एक निश्चित आयु तक ही बढ़ती है तथा इसके बाद आयु तो बढ़ती जाती है तथा स्मरण शक्ति बढ़ने की बजाय घटती जाती है। इसलिए ग्राफ में यह दोनों चर जहाँ तक बढ़ते है वहाँ तक तो धनात्मक सह-सम्बन्ध है और जिस बिंदु से आयु बढ़ती है किंतु स्मरण शक्ति घटना प्रारंभ हो जाती है उस बिंदु से आगे तक ऋणात्मक सह-सम्बन्ध है।

सह-सम्बन्ध की विधियाँ सह-सम्बन्ध की गणना के लिए मुख्य रूप से तीन विधियों का प्रयोग किया जाता है-

1. क्रम अंतर विधि
2. प्रोडक्ट मोमेन्ट विधि तथा
3. प्राप्ति विधि।

1. क्रम अंतर विधि - इस विधि का प्रयोग सर्वप्रथम स्पीयरमैन ने किया था। इस विधि द्वारा प्राप्त सह-सम्बन्ध गुणांक 'P' (Rho) से प्रदर्शित किया जाता है।

इस विधि द्वारा सह-सम्बन्ध ज्ञात करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे व्यक्तियों की तुलना में स्थान दिया जाता है। इसमें अधिक अंक को पहले उसके कम को दूसरे स्थान पर फिर उससे कम को तीसरे स्थान पर और अंत में सबसे कम अंक रखा जायेगा। इसमें प्राप्तांकों को अवरोही क्रम में रखा जाता है। फिर क्रम से एक-एक अंक लेकर उनके क्रमों का अंतर (R1 R2) ज्ञात कर लेते हैं। अंतर ज्ञात करके उनका वर्ग बना लेते हैं और फिर वर्गों के योग से P (Rho) की गणना करते हैं।

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क्रम अंतर विधि के गुण - यह निम्न प्रकार है-

1. इसकी गणना सरलता से होती है।
2. इसकी गणना केवल क्रमों से ही की जा सकती है।
3. इसे सुगमता से समझा जा सकता है।
4. यह छोटे प्राप्तांकों के प्रयोग में उपयोगी होता है।
5. विषम जातीय प्रदत्तों में यह उपयोगी है।
6. इस विधि में वास्तविक अंक की शुद्धता की आवश्यकता नहीं रहती।

दोष - यह निम्न प्रकार है-

1. क्रमों से वास्तविक ज्ञान नहीं होता है। यदि क्रम ही दिये गये हो तो वास्तविक अंकों के बिना भी सह-सम्बन्ध की गणना संभव है।

2. इस विधि द्वारा ज्ञात किया जाने वाला सह-सम्बन्ध प्रोडक्ट मोमेन्ट विधि द्वारा ज्ञात किये गये r की अपेक्षा कम निकलता है।

3. अधिक संख्याओं वाले चरों पर इसका प्रयोग संभव नहीं हो पाता।

4. इस विधि द्वारा व्यक्ति के वास्तविक प्राप्तांकों का मापन न करके केवल क्रमों की ही माप संभव होती है।

2. प्रोडक्ट मोमेन्ट विधि - पिर्यसन ने प्रोडक्ट मोमेन्ट सह-सम्बन्ध का सबसे पहले प्रयोग किया। प्रोडक्ट मोमेन्ट विधि सह-सम्बन्ध गुणांक एक प्रकार का वह अनुपात है जो कि एक चर के पारस्परिक या स्वतंत्र परिवर्तन को दूसरे चर की ओर अग्रसर करने की सीमा को व्यक्त करता है। 

सह-सम्बन्ध गुणांक ज्ञात करने की प्रोडक्ट मोमेन्ट विधि के अंतर्गत कई विधियाँ आती है। सभी विधियों से शुद्ध परिणाम प्राप्त किये जा सकते है। यह विधियाँ अव्यवस्थित अंक सामग्री का सह-सम्बन्ध गुणांक ज्ञात करने में प्रयोग की जाती है। इन विधियों से प्राप्त सह सम्बन्ध गुणांक को संकेत से प्रदर्शित करते हैं।

मान्यताएँ - यह निम्न प्रकार है-

1. सह सम्बन्ध को यदि ग्राफ द्वारा प्रदर्शित किया जाता है तो ग्राफ रेखीय सह सम्बन्ध प्रदर्शित करता है।

2. इस सह सम्बन्ध से सम्बन्धित आँकड़ों के प्रामाणिक विचलन के आकार (size of SD) को परिवर्तित किया जाता है तो सह-सम्बन्ध में भी परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है। अतः प्रामाणिक विचलन का आकार इस सह-सम्बन्ध का मुख्य प्रभावित करने वाला कारक है।

3. इस सह-सम्बन्ध की गणना उस समय सबसे अधिक उपयोगी होती है जब दिये गये प्राप्तांकों का विवरण सामान्य हो।

4. व्यवस्थित अंक सामग्री के सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना में यदि N का मान कम है तथा वर्गान्तरों का आकार बड़ा है तथा वर्गान्तरों की संख्या भी अधिक हो तो सह सम्बन्ध गुणांक का मान कम होगा परन्तु यदि वर्गान्तरों का आकार और संख्या सामान्य होती है तो सह सम्बन्ध गुणांक का मान अधिक शुद्ध होता है।

5. जब N का आकार बड़ा होता है तो सह-सम्बन्ध गुणांक का मान अपेक्षाकृत कम तो अवश्य होता है परंतु इसकी शुद्धता अधिक होती है।

विशेषतायें - यह निम्न प्रकार है

1. इस सह सम्बन्धी गुणांक की गणना चूँकि M तथा SD पर आधारित होती है। अतः यह गुणांक अपेक्षाकृत अधिक शुद्ध होता है।

2. इस गुणांक की गणना की सहायता से मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की विश्वसनीयता भी ज्ञात की जाती है।

3. इसका उपयोग पूर्व कथन के लिए (Regression Equation) को सहायता से किया जा सकता है।

4. विभिन्न चरों के सम्बन्ध विश्लेषण में भी इसका उपयोग है।

उपयोग की शर्ते-

1. जब प्राप्तांकों का वितरण सामान्य हो तो इसका उपयोग करना चाहिए।
2. जब प्रतिदर्श (sample) बड़ा हो।
3. जब दोनों चरों के प्राप्तांकों का विचलन लगभग समान हो।
4. जब पंक्तिगत सह-सम्बन्ध को आवश्यकता हो।

सह-सम्बन्ध गुणांक एक सूचक अंक (Index Number) है। यह न वास्तविक माप है और न ही आनुपातिक माप (Ratio Scale) है। सह-सम्बन्ध गुणांक से दो चरों के पारस्परिक कारणात्मक अनुपात का ज्ञान नहीं होता है। उदाहरण लिए यदि आयु का शारीरिक लंबाई में 0.60 सह-सम्बन्ध गुणांक प्राप्त होता है तो उसका अर्थ नहीं है आयु और शारीरिक लंबाई में 60% का अनुपात है।।

3. प्राप्ति विधि - इस विधि का प्रतिपादन कार्ल पिर्यसन के द्वारा सन 1896 में फ्रांसिस गाल्टन के द्वारा विकसित विचारों के आधार पर किया गया था। इस विधि से गुणनफल-आघूर्ण सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना करते समय प्राप्तांकों के लिए मध्यमान तथा मानक विचल ज्ञात करने को आवश्यकता नहीं होती है। इस विधि में मूल प्राप्तांकों की सहायता से क्या भाव ज्ञात कर लेते है। प्राप्तांकों को छोटे होने अथवा मध्यमान व मानक विचलन के दशमलव संख्या में आने अथवा गणना यंत्र के उपलब्ध होने पर इस विधि का प्रयोग उचित है।

सूत्र -

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सांख्यिकी की परिभाषा दीजिए तथा इसकी प्रकृति और क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- सांख्यिकी की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- सांख्यिकी के प्रमुख कार्य क्या हैं?
  4. प्रश्न- सांख्यिकी के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
  5. प्रश्न- सांख्यिकी का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- सांख्यिकी की सीमाओं की विवेचना कीजिए।
  7. प्रश्न- सांख्यिकी के विभिन्न प्रकारों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  8. प्रश्न- शिक्षा में सांख्यिकी का क्या महत्व है?
  9. प्रश्न- सांख्यिकी के उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- सांख्यिकी के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- सांख्यिकी के प्रतीक पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- निम्न अंकों से वर्गान्तरों की संख्या ज्ञात कीजिए एवं आवृत्तियां भी ज्ञात कीजिए।
  13. प्रश्न- दत्त और सांख्यिकी में क्या सम्बन्ध है? दत्तों के विभिन्न वर्गीकरण का विस्तार से उल्लेख कीजिए।
  14. प्रश्न- आवृत्ति बंटन से आपका क्या आशय है? इसके प्रकार व लाभ बताइए। आप किस प्रकार से खण्डित आवृत्ति बंटन करेंगे?
  15. प्रश्न- आवृत्ति वितरण के लाभ बताइए।
  16. प्रश्न- मूल प्रदत्तों को व्यवस्थित करने की विधियों पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- 'चर' से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार बताइए।
  18. प्रश्न- संचयी बारम्बारता से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार समझाइये।
  19. प्रश्न- योग संचालन से आप क्या समझते हैं?
  20. प्रश्न- वर्ग सीमाओं के आधार पर वर्गान्तरों के निर्धारण की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?
  21. प्रश्न- निम्न आँकड़ों से संचयी आवृत्ति सारणी बनाइये।
  22. प्रश्न- प्रदत्तों के आलेखीय चित्रण से आप क्या समझते हैं? शिक्षा में रेखाचित्रों के विभिन्न कार्यों का वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "रेखा का विचरण मस्तिष्क पर प्रभाव डालने वाले सारणित कथन की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होता है। यह उतनी शीघ्रता से, जितनी आँख कार्य करने की क्षमता रखती है, प्रकट करता है कि क्या हो रहा है और क्या होने वाला है।' वॉडिंगटन के इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  24. प्रश्न- दण्ड चित्र से आप क्या समझते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं इनका विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- आँकड़ों के रेखीय चित्रण के सामान्य सिद्धांत बताइए।
  26. प्रश्न- सांख्यिकी में रेखीय प्रदर्शन में प्रयुक्त वृत्त चित्र विधि का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- निम्नलिखित सारणी का संचयी आवृत्ति वक्र चित्र बनाइये।
  28. प्रश्न- समंकों के बिन्दुरेखीय प्रदर्शन का महत्व बताइये। उसके विभिन्न लाभ एवं दोष क्या हैं?
  29. प्रश्न- समंकों के बिन्दुरेखीय प्रदर्शन के क्या लाभ हैं?
  30. प्रश्न- समंकों के बिन्दुरेखीय प्रदर्शन के क्या दोष हैं?
  31. प्रश्न- आवृत्ति वक्र से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- बहुभुज एवं स्तम्भाकृति अंकित करने का तर्काधार दीजिए।
  33. प्रश्न- तोरण किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- स्तम्भाकृति का एक उदाहरण दीजिए।
  35. प्रश्न- बहुभुज किसे कहते हैं? समझाइए।
  36. प्रश्न- 50 अंकों की शिक्षाशास्त्र की एक परीक्षा में 40 छात्रों के प्राप्तांकों की आवृत्ति वितरण तालिका में नीचे दी गयी है। इन समंकों से आवृत्ति बहुभुज की रचना कीजिए।
  37. प्रश्न- आवृत्ति आयत चित्र पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- निम्न समंकों को आवृत्ति आयत चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए
  39. प्रश्न- निम्नलिखित आँकड़ों को त्रिदण्ड चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
  40. प्रश्न- भारत में चीनी उत्पादन के निम्नलिखित समंकों को सरल दण्ड चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
  41. प्रश्न- अग्रलिखित प्रमुख उत्पादन सम्बन्धी आँकड़ों को त्रिदण्ड चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
  42. प्रश्न- मध्यमान से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व एवं विधियों की व्याख्या कीजिए।
  43. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मध्यमान का उपयोग एवं महत्व बताइये।
  44. प्रश्न- मध्यमान ज्ञात करने की प्रत्यक्ष विधि का उल्लेख उदाहरण सहित कीजिए।
  45. प्रश्न- मध्यमान ज्ञात करने की लम्बी विधि (Long Method) को उदाहरण सहित समझाइये।
  46. प्रश्न- मध्यमान् ज्ञात करने की सरल विधि उदाहरण सहित बताइये।
  47. प्रश्न- मध्यमान ज्ञात करने के लिए किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
  48. प्रश्न- बहुलांक से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व एवं विधियों का उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में बहुलांक की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- बहुलांक ज्ञात करने की विधियों का उल्लेख कीजिए।
  51. प्रश्न- नीचे दिये गये आँकड़ों से मध्यमान एवं मध्यांक की गणना कीजिए :
  52. प्रश्न- मध्यांक से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व एवं विधियों का उल्लेख कीजिए।
  53. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मध्यांक के महत्व की विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- मध्यांक ज्ञात करने की विधियों का उल्लेख कीजिए।
  55. प्रश्न- केन्द्रीय प्रवृत्ति के मापक कौन-कौन से हैं? इसकी परिभाषायें लिखिए।
  56. प्रश्न- केन्द्रीय प्रवृत्ति की मापों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  57. प्रश्न- केन्द्रीय प्रवृत्ति के मानों के प्रयोग का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- सापेक्षिक स्थिति के मापों में प्रतिशतांक मान का वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- मध्यमान एवं माध्यिका में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- मध्यमान एवं बहुलक में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- निम्नलिखित अव्यवस्थित समंकों से मध्यमान ज्ञात कीजिए -7, 10, 13, 15, 20
  62. प्रश्न- निम्नलिखित अव्यवस्थित संमकों से मध्यमान ज्ञात कीजिए - 7, 10, 8, 15, 9, 11
  63. प्रश्न- निम्नलिखित अव्यवस्थित संमकों से बहुलक ज्ञात कीजिए - 4, 6, 3, 4, 5, 7, 4, 8
  64. प्रश्न- निम्नलिखित अव्यवस्थित समंकों के मध्यमान ज्ञात कीजिए : 4, 6, 7, 5, 8, 6
  65. प्रश्न- निम्नलिखित अव्यवस्थित समंकों से माध्यिका ज्ञात कीजिए - 6, 8, 7, 10, 9, 12, 11
  66. प्रश्न- निम्नलिखित अव्यवस्थित समंकों से बहुलांक ज्ञात कीजिए : 3, 7, 4, 5, 3, 9, 3, 7, 3
  67. प्रश्न- निम्नलिखित का बहुलांक बताइये - 2, 2, 4, 6, 8, 10, 2, 5, 4, 2
  68. प्रश्न- केन्द्रीय प्रवृत्ति से क्या आशय है?
  69. प्रश्न- केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप का अर्थ एवं परिभाषा स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- निम्नलिखित का बहुलांक बताइये - 4, 6, 7, 5, 8, 6
  71. प्रश्न- मध्यांक का क्या अर्थ है? इसका प्रयोग कब करना चाहिए।
  72. प्रश्न- बहुलांक के क्या उपयोग हैं?
  73. प्रश्न- निम्न वितरण से समान्तर माध्य, मध्यका और बहुलक ज्ञात कीजिए।
  74. प्रश्न- (अ) निम्नलिखित आवृत्ति बंटन में यदि समान्तर माध्य का मान 18 हो तो अज्ञात आवृत्ति ज्ञात कीजिये?
  75. प्रश्न- निम्न समंकों से अज्ञात पद ज्ञात कीजिए।
  76. प्रश्न- निम्नलिखित संचयी आवृत्ति वितरण से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए :
  77. प्रश्न- निम्नलिखित समंकों से भूयिष्ठिक एवं मध्यिका ज्ञात कीजिए।
  78. प्रश्न- निम्नलिखित प्राप्तांकों का मध्यांक एवं बहुलांक ज्ञात कीजिए - 15, 23, 22, 17, 22, 18, 19, 22, 18, 24
  79. प्रश्न- निम्न सारणी को संशोधित कर मध्यका ज्ञात कीजिए -
  80. प्रश्न- निम्नलिखित अव्यवस्थित समंकों से बहुलांक ज्ञात कीजिए - 3, 7, 4, 2, 3, 9, 3
  81. प्रश्न- एक कक्षा के 20 विद्यार्थियों की आयु के समंक निम्नलिखित हैं। बहुलक ज्ञात कीजिए - 15, 17, 18, 20, 21, 22, 24, 15, 16, 17, 21, 22, 22, 23, 17, 22, 18, 22, 19, 20.
  82. प्रश्न- निम्नलिखित जूतों के आकार संख्या से भूयिष्ठिक ज्ञात कीजिए - जूतों की आकार की संख्या 3, 4, 2, 1, 7, 6, 6, 7, 5, 6, 8, 9, 5
  83. प्रश्न- निम्नलिखित आँकड़ों से बहुलक की गणना कीजिए.
  84. प्रश्न- निम्नलिखित सारणी से मध्यांक ज्ञात कीजिए -
  85. प्रश्न- निम्नलिखित सारणी से मध्यमान ज्ञात कीजिए :
  86. प्रश्न- निम्नलिखित सारिणी से मध्यांक ज्ञात कीजिए -
  87. प्रश्न- निम्नलिखित सारणी से मध्यमान ज्ञात कीजिए।
  88. प्रश्न- शतांशीय मान से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व एवं विधियों का उल्लेख कीजिए।
  89. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में शतांशीय मान के उपयोग एवं महत्व को बताइये।
  90. प्रश्न- प्रतिशतांक क्रमांक का क्या अर्थ है? प्रतिशतांक व प्रतिशतांक क्रमांक में सम्बन्ध को समझाइये।
  91. प्रश्न- नीचे दिये गए व्यवस्थित प्राप्तांकों से यह ज्ञात करें कि उस विद्यार्थी का PR क्या होगा जिसका 15 और 41 प्राप्तांक है।
  92. प्रश्न- एम. ए. की 50 छात्राओं की कक्षा को परीक्षा में उपलब्धि पर क्रमांकित किया गया तथा उसमें पूजा को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ तो उसका प्रतिशतांक क्रमांक क्या होगा?
  93. प्रश्न- यदि किसी विद्यार्थी का क्रमांक 5 है तो प्रतिशतांक क्रम क्या होगा?
  94. प्रश्न- विचलनशीलता के मापन से आप क्या समझते हैं? विचलनशीलता के मापन में प्रयुक्त विभिन्न विधियों की सूत्र संकेत सहित व्याख्या कीजिए।
  95. प्रश्न- विस्तार से आप क्या समझते हैं? इसको ज्ञात करने की विधियाँ बताइये।
  96. प्रश्न- प्रामाणिक विचलन से आप क्या समझते हैं? इसको ज्ञात करने की विधियाँ बताइये।
  97. प्रश्न- माध्य विचलन को परिभाषित कीजिए। ये किस प्रकार प्रमाप विचलन से भिन्न हैं?
  98. प्रश्न- माध्य विचलन और प्रमाप विचलन में अन्तर बताइए
  99. प्रश्न- प्रमाप विचलन से आप क्या समझते हैं? इसकी गणना कैसे की जाती है?
  100. प्रश्न- प्रमाप विचलन का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- अन्तर चतुर्थक विस्तार से आप क्या समझते हैं?
  102. प्रश्न- शतमक विस्तार से आप क्या समझते हैं?
  103. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में विचलन मापनों का क्या उपयोग होता है?
  104. प्रश्न- विचलन की विभिन्न मापों की विशेषताओं की तुलना कीजिए।
  105. प्रश्न- धनात्मक तथा ऋणात्मक वैषम्यताओं की तुलना चित्र खींचकर कीजिए।
  106. प्रश्न- मानक विचलन के उपयोग बताइये।
  107. प्रश्न- विस्तार का क्या अर्थ है?
  108. प्रश्न- विस्तार के गुण बताइये।
  109. प्रश्न- विस्तार के दोष बताइये।
  110. प्रश्न- दिये गये अंकों से माध्य विचलन गुणांक की गणना कीजिए। 22, 25, 20, 18, 16, 21, 29, 26, 19, 24
  111. प्रश्न- प्राप्तांकों के निम्नलिखित वितरण के लिए मानक विचलन तथा चतुर्थक विचलन की गणना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राप्तांकों के निम्नलिखित वितरण के लिए मानक विचलन तथा चतुर्थक विचलन की गणना कीजिए।
  113. प्रश्न- मानक विचलन क्या है? प्राप्तांकों के निम्नलिखित वितरण के लिये मानक विचलन की गणना कीजिए -
  114. प्रश्न- मानक विचलन क्या है? प्राप्तांकों के निम्नलिखित वितरण के लिए मध्यमान तथा मानक विचलन की गणना कीजिए
  115. प्रश्न- मानक विचलन से आप क्या समझते हैं? निम्नलिखित आवृत्ति वितरण से संक्षिप्त विधि द्वारा मानक विचलन की गणना कीजिए
  116. प्रश्न- प्रसार एवं शतमक से आप क्या समझते हैं? निम्नलिखित अंकों का चतुर्थांक विचलन (Q.D.) ज्ञात कीजिए : 31, 30, 22, 27, 32, 17, 26, 34, 21, 24, 19
  117. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के क्षेत्र में इसका उपयोग कब किया जाता है?
  118. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में सह-सम्बन्ध का उपयोग कब किया जाता है?
  119. प्रश्न- दो चर श्रेणियों के मध्य सह-सम्बन्ध की गणना के लिए संगामी विचलन रीति को उदाहरण सहित समझाइये।
  120. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? सह-सम्बन्ध के प्रकार तथा विभिन्न विधियाँ का उल्लेख कीजिये।
  121. प्रश्न- सह-सम्बन्ध का क्या अर्थ है? सहसम्बन्ध के प्रकार व उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- कोटि अन्तर सह-सम्बन्ध की गणना करने के लिये किसके द्वारा निर्मित सूत्र का प्रयोग किया जाता है? सूत्र भी लिखिये।
  123. प्रश्न- सह-सम्बन्ध ज्ञात करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है?
  124. प्रश्न- सम्भाव्य विभ्रम तथा प्रमाप विभ्रम में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- धनात्मक व ऋणात्मक सह-सम्बन्ध में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? स्पीयरमैन सहसम्बन्ध गुणांक का सूत्र बताइये और उसमें प्रयुक्त संकेताक्षरों की व्याख्या कीजिए।
  127. प्रश्न- सह-सम्बन्ध गुणांक की परिभाषा बताइये। इसके गुणों का उल्लेख कीजिए।
  128. प्रश्न- सह-सम्बन्ध कितने प्रकार का होता है? निम्नांकित अंकों के आधार पर स्पीयरमैन की कोटि अन्तर विधि से सह-सम्बन्ध ज्ञात कीजिए।
  129. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? निम्नांकित अंकों के आधार पर स्पीयरमैन को कोटि अन्तर विधि से सहसम्बन्ध ज्ञात कीजिए।
  130. प्रश्न- निम्नलिखित दस विद्यार्थियों के विज्ञान और गणित में प्राप्तांक दिये गये हैं। पियर्सन सहसम्बन्ध गुणांक निकालिए :
  131. प्रश्न- निम्नांकित अंकों के आधार पर कोटि अन्तर विधि से सहसम्बन्ध गुणांक ज्ञात कीजिए :
  132. प्रश्न- निम्नांकित अंकों के आधार पर कोटि अन्तर विधि से सहसम्बन्ध गुणांक ज्ञात कीजिए।
  133. प्रश्न- निम्नांकित अंकों के आधार पर स्पीयर मैन की कोटि अंतर विधि से सह-सम्बन्ध ज्ञात कीजिए।
  134. प्रश्न- अग्रलिखित आँकड़ों से कोटि अन्तर विधि द्वारा सहसम्बन्ध गुणांक की गणना कीजिए :
  135. प्रश्न- निम्न अंकों के आधार पर कोटि अन्तर विधि से सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना कीजिए।
  136. प्रश्न- सामान्य सम्भावना वक्र क्या है? तथा इसमें कौन-सी विशेषताएँ पायी जाती हैं?
  137. प्रश्न- सामान्य प्रायिकता वक्र में कौन-कौन सी विशेषताएँ पायी जाती है?
  138. प्रश्न- सामान्य संभावना वक्र से क्या समझते हैं? इसके स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- सामान्य प्रायिकता वक्र के क्या उपयोग है?

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