बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मानक कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर -
(Types of Norm)
प्रायः चार प्रकार के मानकों का प्रयोग किया जाता है, जो कि निम्नलिखित हैं-
(1) कक्षा मानक
(3) शताशीय मानक
(2) आयु मानक
(4) प्रमापीकृत प्राप्तांक मानक।
इनका विस्तृत विवेचन निम्न प्रकार किया जाता है-
(1) कक्षा मानक (Grade Norm) - कक्षा मानक से आशय विभिन्न कक्षा के छात्रों के औसत प्राप्तांकों से होता है अर्थात् इसके लिये विभिन्न कक्षाओं के छात्रों का औसत प्राप्तांक ज्ञात किया जाता है। यह मानक तैयार करने हेतु परीक्षण को विभिन्न कक्षा के छात्रों के प्रतिनिधित्व प्रतिदर्श पर प्रशासित किया जाता है और विभिन्न कक्षाओं के छात्रों द्वारा प्राप्त अंकों का अलग- अलग औसत ज्ञात कर लिया जाता है। विभिन्न कक्षाओं के लिए औसत प्राप्तांक ही कक्षा मानक कहलाते हैं। शैक्षिक परिस्थितियों में इनका विशेष महत्व है इनका प्रयोग छात्रों की उन विशेषताओं के सन्दर्भ में किया जाता है, जो एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाने पर परिवर्तित होती रहती हैं।
इन मानकों की सारणी रूप अथवा मानक रेखा के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। इनकी सारणी विभिन्न कक्षा मानक रेखा तथा विभिन्न कक्षाओं की औसत उपलब्धि बिन्दुओं के गुजरने वाली रेखा है।
(2) आयु मानक (Age Norm) - विभिन्न वर्गों के छात्रों द्वारा उस परीक्षण पर प्राप्त औसत प्राप्तांकों को आयु मानक कहा जाता है। इसे ज्ञात करने के लिए प्रत्येक आयु वर्ग के लिए औसत प्राप्तांक की गणना की जाती है और परीक्षण को विभिन्न आयु के प्रतिनिधित्व प्रतिदर्शो पर प्रशासित किया जाता है। किसी छात्र द्वारा उस परीक्षण पर प्राप्त अंकों की व्याख्या करने के लिए उस प्राप्तांक की तुलना उस छात्र की आयु के सापेक्ष मानक से की जाती है। छात्र के प्राप्तांक मानक से अधिक होने पर उसे सामान्य से अधिक योग्य छात्र कहा जाएगा और उसके प्राप्तांक कम होने पर उसे सामान्य से कम योग्य छात्र कहा जाएगा। उसके प्राप्तांक मानक के बराबर होने की स्थिति में उसे औसत योग्यता वाला छात्र कहा जाता है।
इस प्रकार आयु मानकों की सहायता से छात्रों की परीक्षण से मापी जा रही विशेषता के सन्दर्भ में आयु भी ज्ञात की जा सकती है, इसे आयु परीक्षण कहा जाता है जोकि छात्र की वास्तविक आयु से भिन्न हो सकती है।
उदाहरणार्थ- किसी छात्र का भार 10 वर्ष के बालकों के औसत भार के बराबर होने पर उसकी भार आयु 10 वर्ष कही जाएगी। ठीक इसी प्रकार बुद्धि परीक्षण या किसी बालक के प्राप्तांक 6 वर्ष के बालकों के औसत के बराबर होने पर उसकी मानसिक आयु 6 वर्ष कही जाएगी।
प्रायः आयु मानकों को सारणी या मानक रेखा के रुप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है। यह सारणी विभिन्न आयु के बालकों के लिए परीक्षण पर प्राप्त अंकों के औसतों को प्रस्तुत करती है। मानक रेखा वह रेखा है जो विभिन्न आयु वर्गों के बालकों के औसत प्राप्ताकों से गुजरती है।
आयु मानक के सम्बन्ध में प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं-
(i) आयु मानक निकालने की विधि समान गति से विकसित होने वाले गुणों के लिए ही उपयुक्त होती है। ऐसे किसी भी गुण के लिए जिसका आयु के साथ-साथ सामान्य विकास नहीं होता है, तो इसे आयु के इकाइयों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है जैसे दृष्टि की तीक्ष्णता।
(ii) मानसिक आयु मानकों का प्रयोग उन परीक्षणों में किया जा सकता है, जिनका वर्गीकरण आयु स्तरों में नहीं किया गया है। इस स्थिति में सर्वप्रथम परीक्षार्थी के फलांक का निर्धारण किया जाता है। प्रत्येक आयु के बालकों द्वारा प्राप्त मध्यमान वास्तविक फलांक उस परीक्षण के आयु मानक हुए जैसे 12 वर्ष की आयु के बालकों द्वारा प्राप्त मध्यमान वास्तविक फलांक 12 वर्ष का मानक हुआ।
(iii) आयु की इकाई किशोरावस्था एवं युवावस्था में योग्यता के स्तर को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त नहीं है। ये केवल प्रारम्भिक आयु के व्यक्तियों के लिए ही उपयुक्त है। दैहिक गुण जिनका विकास आयु पर निर्भर है, आयु मानकों पर भली-भाँति व्यक्त किए जा सकते हैं जैसे - लम्बाई, वजन, बुद्धि एवं कुछ अन्य मनोवैज्ञानिक गुण आदि।
(iv) कुछ गुणों में मानसिक विकास नहीं होता है जैसे- शाब्दिक भण्डार का विकास 20 वर्ष की अवस्था के बाद भी होता रहता है पर पथजाल अंकन में सीखने की प्रगति निरन्तर नहीं होती, बल्कि किशोरावस्था में ही रुक जाती है। अतः इन दो विभिन्न परीक्षणों पर आयु फलांक की तुलना करना सम्भव नहीं है। यही बात कुछ अन्य परीक्षणों के सम्बन्ध में भी है।
(v) मानसिक आयु की इकाइयाँ आगे की अवस्था में संकीर्ण हो जाती हैं अतः वे आयु बढ़ाने पर भी स्थिर नहीं रहती हैं। जैसे 4-5 वर्ष की अवस्था में जो मानसिक विकास होता है वह 10-11 वर्ष के मानसिक विकास से तीन गुना होता है, क्योंकि प्रारम्भिक मानसिक तथा शारीरिक दोनों प्रकार के विकास की गति अपेक्षाकृत अधिक होती है।
(vi) आयु मानकों के प्रयोग में अनेक व्यावहारिक कठिनाइयाँ सामने आती हैं। किसी दी हुई आयु के व्यक्तियों का प्रतिनिधिकारी न्यायदर्श प्राप्त करना अत्यन्त कठिन कार्य है। जैसे - 20 वर्ष के व्यक्तियों का न्यायदर्श लेने के लिए कुछ व्यक्ति स्कूल से, कुछ कालेज से, कुछ सेना से व कुछ संस्थाओं से लेने पड़ेगें। यह एक प्रकार स्तरीय चयन भी है।
(3) शतांशीय मानक (Percentile Norm) - परीक्षण पर छात्रों के किसी प्रतिनिधित्व प्रतिदर्श के द्वारा प्राप्त अंकों के विभिन्न शतांशों को शतांशीय मानक कहा जाता है। कोई शतांश वह प्राप्तांक है जिसके नीचे दिए गए प्रतिशत के बराबर छात्र अंक प्राप्त करते हैं।
उदाहरणार्थ - P20 का आशय वह प्राप्तांक है, जिससे कम अंक पाने वाले छात्रों का प्रतिशत 20 है। शतांशीय मानक 99 हो सकते हैं। लेकिन आसानी के लिए इन सभी 99 शतांशों को न ज्ञात करके कुछ चुने हुए शतांशों जैसे P10, P20 P30, P40, P50, P60, P70, P80 व P90 ज्ञात कर लेते हैं।
इन मानकों को भी सारणी द्वारा या मानक रेखा द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। इनकी सारणी में विभिन्न शंताशों के सापेक्ष प्राप्तांक उपलब्ध होते हैं जबकि शतांशीय मानक रेखा वह रेखा होती है जो किसी समूह के लिए विभिन्न शतांशीय मानों के बिन्दुओं से होकर गुजरती है। ये मानक उन परिस्थितियों में अधिक उपयोगी हैं, जहाँ पर आयु और योग्यता साथ-साथ परिवर्तित न हो रहे हों। व्यक्तित्व परीक्षण, बुद्धि लब्धि परीक्षण, अभिवृत्ति परीक्षण, रुचि परीक्षण आदि के लिए साधारणतः शतांशीय मानक ज्ञात किए जाते हैं।
(4) प्रमापीकृत प्राप्तांक मानक (Standardized Scores Norm) - प्रमापीकृत प्राप्तांक विभिन्न प्रकार के होते हैं जैसे Z T, C एवं स्टेनाइन आदि। इनका उपयोग भी मानकों की भाँति ही किया जाता है। इसके लिए मूल प्राप्तांकों को मध्यमान तथा मानक विचलन की सहायता से प्रमापीकृत प्राप्तांकों में परिवर्तित कर लिया जाता है।
उदाहरणार्थ- जब किसी परीक्षण के लिए मध्यमान तथा मानक विचलन क्रमशः M तथा Q हों, तब किसी प्राप्तांक X के सापेक्ष विभिन्न प्रमापीकृत प्राप्तांक निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकते हैं:
X - M
सूत्र - Z = -------------
σ
T = 50 + 10Z
C = 5 +2Z
स्टेनाइन = 5 + 1.96Z
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- प्रश्न- निबन्धात्मक परीक्षाओं के दोषों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वस्तुनिष्ठ परीक्षण का अर्थ स्पष्ट कीजिए। इसके उद्देश्य, गुण व दोषों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वस्तुनिष्ठ परीक्षण के उद्देश्य बताइए।
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- प्रश्न- व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण की सीमायें बताइये।
- प्रश्न- सामूहिक बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- सामूहिक बुद्धि परीक्षण की सीमाएँ बताइए।
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