बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 2
मानदण्ड
(Norms)
प्रश्न- परीक्षण मानक को विस्तार से समझाइये।
उत्तर -
(Test Norms)
मानक किसी प्रतिनिधि प्रतिदर्श का परीक्षण पर एक औसत प्राप्तांक है। किसी मनोवैज्ञानिक या शैक्षिक परीक्षण पर एक औसत प्राप्तांक है। किसी मनोवैज्ञानिक या शैक्षिक परीक्षण पर एक व्यक्ति को प्राप्त होने वाला अंक मूल प्राप्तांक कहलाता है। इनका अपने आप में कोई अर्थ नहीं होता है और न इनके आधार पर किसी प्रकार की व्याख्या की जा सकती है। अर्थात जब किसी उपलब्धि परीक्षण में किसी छात्र को शून्य अंक प्राप्त होता है, तो इसका अर्थ यह नहीं होता है कि उस विषय में छात्र का ज्ञान शून्य है, इसका अर्थ केवल इतना होता है कि उस परीक्षण के प्रश्नों को हल करने में छात्र पूर्णतया असफल रहा है।
व्यक्ति के शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक गुणों की माप अप्रत्यक्ष विधियों द्वारा की जाती है। इनकी कोई मापन इकाई नहीं होती है। इसलिए इसका वास्तविक अर्थ नहीं निकाला जा सकता हैं और न ही इनकी तुलना की जा सकती है। उदाहरणार्थ- व्यक्ति के भार की इकाई कि.ग्रा. होती है। यदि मोहन का भार 50 कि. ग्रा. और सोहन का भार 25 कि. ग्रा. हो तो यह कहा जा सकता है कि मोहन का भार सोहन के भार से दोगुना है, किंतु इस प्रकार का कथन हम शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक मापों के लिए नहीं कर सकते हैं। यदि किसी उपलब्धि परीक्षण में मोहन को 50 अंक और सोहन को 25 अंक प्राप्त होते हैं, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि मोहन को इस विषय में योग्यता सोहन की योग्यता से दो गुनी है। यह दो गुनी से अधिक भी हो सकती है और कम भी। किसी बाह्य संदर्भ या मानवीकृत समूह के परीक्षण परिणामों पर उस विशिष्ट समूह का औसत अंक 30 आता है तो यह 30 इस परीक्षण का मानक होगा। इसी को परीक्षण मानक भी कहा जा सकता है। विभिन्न विद्वानों ने इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया है इबेल के अनुसार, “किसी परीक्षण के मानक बताते हैं कि किसी विशेष संदर्भ समूह के सदस्य परीक्षण पर किस प्रकार के अंक प्राप्त करते हैं। फीमैन ने लिखा है कि, "मानक एक विशिष्ट जीव संख्या द्वारा किसी विशेष परीक्षण पर प्राप्त औसत या विशेष अंक होता है।'
मानक परीक्षण वह परीक्षण है, जिसमें विषय-वस्तु का चयन अनुभव के आधार पर किया गया हो। जिसके मानक ज्ञात हो। जिसके प्रशासन की समरूप विधियों को विकसित किया गया हो तथा जिसका फलांकन वस्तुनिष्ठ विधि से किया गया हो।
भौतिक मापों की ही तरह शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक मापों में वास्तविक शून्य की संकल्पना नहीं की जा सकती। जैसे तापमान किसी दिन वास्तविक शून्य हो सकता है, किसी दिन शून्य से कम और किसी दिन वास्तविक शून्य से अधिक हो सकता है। किंतु शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक मापों में ऐसा कभी नहीं होता। न तो किसी छात्र की बुद्धि शून्य अथवा शून्य से कम हो सकती है और न ही उसका व्यक्तित्व शून्य या शून्य से कम हो सकता है। जब किसी उपलब्धि परीक्षण में किसी छात्र में किसी छात्र को शून्य अंक प्राप्त होता है तो इसका अर्थ यह नहीं होता है कि उस विषय में छात्र का ज्ञान शून्य है। उसका सिर्फ उतना अर्थ है कि उस परीक्षण के प्रश्नों को हल करने में छात्र पूर्ण रूप से असफल रहा है।
शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक गुणों का मापन अप्रत्यक्ष विधियों से किया जाता है इनकी कोई मापन इकाई नहीं होती है। अतः इसका वास्तविक अर्थापन नहीं किया जा सकता है और इनकी तुलना भी नहीं की जा सकती है। शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक मापों की इकाई न होने के कारण शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक मापें अर्थहीन होती है। इनकों अर्थयुक्त बनाने के लिए संदर्भ बिन्दुओं की खोज की गयी है, ऐसे संदर्भ बिन्दुओं को ही मानक कहा जाता है। इन मानकों की सहायता से ही छात्रों को किसी परीक्षण पर वास्तविक उपलब्धि की व्याख्या की जा सकती है। प्रायः किसी परीक्षण के मानक का निर्धारण उस परीक्षण पर प्राप्त प्राप्तांकों से ही किया जाता है। ये प्राप्तांकों के संक्षिप्त रूप होते हैं अथवा इन्हें कुछ परविर्तित रूप में प्रस्तुत किया जाता है। मानक वास्तव में व्यक्ति या व्यक्तियों की समूह की वास्तविक उपलब्धि को व्यक्त करते हैं ये पूर्व निर्धारित न होकर वर्तमान स्थिति के सापेक्ष परिवर्तित होते हैं।
परीक्षण मानक निर्धारण की आवश्यकता-
1. मूल आँकड़ों को इस योग्य बनाना जिससे उसे दूसरे आँकड़ों में जोड़ा जा सकें।
2. मूल आँकड़ों को तुलना योग्य बनाना।
3. मूल आँकड़ों को और अधिक सार्थक बनाने के लिए इसके अतिरिक्त मानकों को इस प्रकार व्यवस्थित करना कि परीक्षण में सहायक सिद्ध हो सकें। जिससे व्यक्तियों की असफलताओं तथा कमजोरियों का पता लगाया जा सकें।
विशेषतायें - किसी भी परीक्षण के मानकों में निम्नलिखित आवश्यक गुणों का होना अत्यंत महत्वपूर्ण हैं
1. नवीनता (Upto date) - मानक काफी समय पुराने नहीं होने चाहिए। उदाहरणस्वरूप यदि 1970 में बुद्धि परीक्षण के लिए विकसित मानकों की सहायता से यदि वर्तमान समय के छात्रों द्वारा प्राप्त अंकों की व्याख्या की जायेगी तो वह व्याख्या छात्रों की वास्तविक योग्यता का वर्णन नहीं कर सकेगी। अतः मानकों में समय-समय पर परिवर्तन करते रहना चाहिए जिससे कि वे नवीन बन सके।
2. प्रतिनिधित्व (Representativeness) - मानकों का विकास उन्हीं छात्रों के प्रतिविधि समूह समूह से प्राप्त आँकड़ों से किया गया है जिनकों की प्राप्तांकों की व्याख्या की जानी है, अतः यदि कक्षा 9 के विद्यार्थियों की किसी योग्यता की व्याख्या की जानी है तो मानकों का विकास भी कक्षा 9 के विद्यार्थियों के प्राप्तांकों की सहायता से ही किया जाना चाहिए। साथ ही ये विद्यार्थी अन्य गुणों में भी उन विद्यार्थियों के समान होने चाहिए जिनके गुणों की व्याख्या की जानी है। परीक्षण मानकों का निर्माण किसी बड़े समूह के छात्रों द्वारा प्राप्त अंकों आधार पर ही किया जाना चाहिए।
3. सार्थकता (Meaning Fulness) - विकसित किये गये मानकों को परीक्षण उद्देश्यों तथा मापन किये जाने वाले गुणों पर निर्भर करना चाहिए। जैसे जहाँ गुणों में बुद्धि आयु के साथ वहाँ आयु मानक या श्रेणी मानक व्यक्तित्व मापन के साथ शतांशीय मानक या प्रमाणिक अंक मानक, शरीरिक अथवा शैक्षिक उपलब्धि के साथ आयु या श्रेणी मानक किसी बड़े समूह के छात्र की स्थिति ज्ञात करना ही शंताशादि मानक या प्रमाणिक मानक हैं।
4. तुलनीयता (Comparibility) - परीक्षण के मानक आपस में तुलनीय होने चाहिए तभी उन मानकों की सहायता से विभिन्न छात्रों की तुलना की जा सकती है। उसके साथ ही मानक पर्याप्त रूप से वर्णित होने चाहिए अर्थात परीक्षण के विभिन्न संदर्भ बिन्दुओं के अर्थ को स्पष्ट रूप से वर्णन करना चाहिए ताकि छात्रों की योग्यता का शाब्दिक वर्णन स्पष्ट ढंग से किया जा सके।.
सावधानियाँ - मानक निर्धारित करते समय निम्न सावधानियाँ रखनी चाहिए-
1. मानक ज्ञात करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला प्रतिदर्श समस्त जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाला होना चाहिए।
2. परीक्षण मानक सावधानीपूर्वक ज्ञात करने चाहिए। इसके लिए एक परीक्षार्थी के विभिन्न परीक्षाओं में प्राप्त अंकों को देखना चाहिए न कि उसके एक ही परीक्षण में प्राप्त अंकों का।
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