बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- आकलन प्रक्रिया के सोपान कौन-कौन से हैं?
उत्तर -
किसी शैक्षिक आकलन प्रक्रिया के लिए यह आवश्यक है कि वह विद्यार्थियों के व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों का ठीक ढंग से आकलन कर सके। आकलन एक सतत् प्रक्रिया है, इसलिए इसमें अनेक क्रियाओं का होना स्वाभाविक है। विभिन्न विषय के शिक्षण के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैं तथा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अलग-अलग प्रकार की अधिगम क्रियाओं के फलस्वरूप विद्यार्थियों के व्यवहारों में होने वाले परिवर्तनों का मापन करना सामान्य प्रक्रिया नहीं है। इसलिए आकलन प्रक्रिया को विभिन्न सोपानों में बाँटा जाता है। ये सोपान मुख्यतः तीन हैं। उद्देश्यों का निर्धारण करना, अधिगम क्रियाओं का आयोजन तथा आकलन, आकलन की प्रक्रिया के तीनों सोपानों तथा उपसोपानों को निम्नानुसार क्रमबद्ध रूप में बाँटा जा सकता है।
1. उद्देश्यों का निर्धारण-
(i) सामान्य उद्देश्यों का निर्धारण करना। -
(ii) विशिष्ट उद्देश्यों का निर्धारण करना व परिभाषीकरण करना।
2. अधिगम क्रियाओं का आयोजन-
(iii) शिक्षण बिन्दुओं का चयन करना।
(iv) उपयुक्त अधिगम क्रियाओं का आयोजन करना।
3. आकलन-
(v) विद्यार्थियों के व्यवहार परिवर्तन को ज्ञात करना।
(vi) प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर आकलन करना।
(vii) परिणामों को पृष्ठ पोषण के रूप में प्रयुक्त करना।
आकलन प्रक्रिया का पहला कदम यह ज्ञात करना है कि किसका करना है। अर्थात् शैक्षिक उद्देश्य कौन-से हैं जिनकी प्राप्ति की वांछनीयता को ज्ञात करना है। शैक्षिक उद्देश्यों को शिक्षण के सामान्य उद्देश्य कहा जाता है। निश्चय ही ये उद्देश्य व्यापक तथा शिक्षा के अन्तिम लक्ष्य होते हैं जिनकी प्राप्ति किसी शिक्षक का एक सामान्यतया दूरगामी लक्ष्य होता है तथा इन्हें लम्बी अवधि में प्राप्त किया जाना सम्भव होता है। परन्तु दैनिक शिक्षण कार्य करते समय शिक्षक के मस्तिष्क में अवश्य ही कुछ तात्कालिक प्राप्य उद्देश्य रहते हैं।
यही विशिष्ट उद्देश्य विद्यार्थियों में लाये जाने वाले व्यवहार परिवर्तन को इंगित करते हैं तथा सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति की ओर उन्मुख होते हैं। सामान्य उद्देश्यों की अपेक्षा विशिष्ट उद्देश्य कुछ संकुचित प्रत्यक्ष तथा कार्यपरक होते हैं। ये व्यवहारिकता पर आधारित होते हैं तथा अल्प अवधि में इन्हें प्राप्त किया जा सकता है।
आकलन प्रक्रिया के तीसरे सोपान में उन शिक्षण बिन्दुओं को निर्धारित किया जाता है जिनके द्वारा विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है। पाठ्यवस्तु के छोटे-छोटे भाग जो अपने आप में शिक्षण की एक संक्षिप्त परन्तु पूर्ण इकाई होते हैं शिक्षण बिन्दु कहलाते हैं। इन शिक्षण बिन्दुओं का अनुसरण करके ही शिक्षक अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है। ये शिक्षण बिन्दु शिक्षक को शिक्षण योजना बनाने में भी अत्यधिक सहायक होते हैं। शिक्षण बिन्दुओं का चयन करने के बाद शिक्षक का कार्य वास्तविक रूप से अधिगम क्रियाओं का आयोजन करना है। अधिगम क्रियाएँ अनेक प्रकार से विद्यार्थियों के सम्मुख प्रस्तुत की जा सकती हैं तथा इन्हीं क्रियाओं के फलस्वरूप विद्यार्थियों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन होते हैं। ये क्रियाएँ कक्षा शिक्षण, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, रेडियो, दूरदर्शन, जनसंचार साधनों, चलचित्र, भ्रमण आदि के रूप में प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अधिगम क्रियाओं के परिणामस्वरूप विद्यार्थियों के व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों को ज्ञात करना आकलन का पाँचवा सोपान है। इसके लिए कुछ ऐसे परीक्षणों या अन्य युक्तियों का प्रयोग करना होता है जो अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन की सीमा का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ज्ञान प्रदान कर सके। अलग-अलग प्रकार के व्यंवहार परिवर्तनों को मापने के लिए अलग-अलग युक्तियों या उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। जैसे सम्प्राप्ति परीक्षण, व्यक्तित्व परीक्षण, बुद्धि परीक्षण, निदानात्मक परीक्षण, साक्षात्कार, प्रश्नावली, समाजमिती, प्रायोगिक परीक्षण, विद्यालयी संचयी अभिलेख आदि का प्रयोग करके विद्यार्थियों के व्यवहार में आये परिवर्तनों को ज्ञात किया जा सकता है। व्यवहार परिवर्तनों का ज्ञात करने के उपरान्त इन व्यवहार परिवर्तनों की वांछनीयता के सापेक्ष व्याख्या की जाती है। इसके अन्तर्गत विद्यार्थियों में आये हुए परिवर्तनों की तुलना अपेक्षित व्यवहार परिवर्तनों में की जाती है। यदि आये हुए परिवर्तन अपेक्षित व्यवहार परिवर्तनों के काफी निकट होते हैं तो शिक्षण कार्य को सन्तोषप्रद कहा जा सकता है। परन्तु यह ध्यान रखने की बात है कि विद्यार्थियों के व्यवहार में शत-प्रतिशत वांछित परिवर्तन लाना तथा शत-प्रतिशत विद्यार्थियों में लाना एक असम्भव कार्य है। इसलिए व्यवहार परिवर्तनों की प्राप्ति के सम्बन्ध में न्यूनतम स्तर निर्धारित किया जा सकता है। यह न्यूनतम स्तर दो प्रकार का हो सकता है कक्षा न्यूनतम स्तर तथा विद्यार्थी न्यूनतम स्तर।
आकलन प्रक्रिया का अन्तिम सोपान प्राप्त परिणामों को पृष्ठपोषण के रूप में प्रयोग करना है। यदि शिक्षक को आकलन से ज्ञात होता है कि शिक्षण विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हुई है तो प्राप्त परिणामों के आधार पर अपने शिक्षण कार्य में सुधार करता है, अधिगम क्रियाएँ आयोजित करता है, से व्यवहार परिवर्तनों का मापन करता है तथा आकलन करता है। यह क्रिया चक्रीय क्रम में तब तक चलती है जब तक अपेक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हो जाती है। इस प्रकार से आंकलन के परिणाम शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक पृष्ठपोषण प्रदान करते हैं तथा अन्ततः उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होते हैं।
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- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन का अर्थ स्पष्ट कीजिए !
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- प्रश्न- सामूहिक बुद्धि परीक्षण की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- सामूहिक बुद्धि परीक्षण की सीमाएँ बताइए।
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