बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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समाजशास्त्रीय चिन्तन के अग्रदूत (प्राचीन समाजशास्त्रीय चिन्तन)
प्रश्न- मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा क्या है? समझाइए।
उत्तर -
(Marxian Conception of Social Change)
मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या से बहुत कुछ स्पष्ट हो जाती है। मार्क्स के मतानुसार इतिहास के सभी परिवर्तन उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन के ही फलस्वरूप होते हैं। भौगोलिक परिस्थितियाँ, जनसंख्या की वृद्धि आदि कारकों का प्रभाव मानव-जीवन पर अवश्य ही पड़ता है, परन्तु ये सब सामाजिक परिवर्तन के निर्णायक कारण (determining cause) नहीं हैं। मार्क्स के अनुसार, जीवन के अस्तित्व के लिए आवश्यक भौतिक मूल्यों (भोजन, कपड़ा, मकान, उत्पादन के उपकरण आदि) की उत्पादन प्रणाली ही सामाजिक परिवर्तन की निर्णायक शक्ति है। व्यक्ति को जीवित रहने के लिए भौतिक मूल्यों (वस्तुओं) की आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु वह उत्पादन करता है और उत्पादन करने के लिए उसे 'उत्पादक शक्ति की आवश्यकता होती है। साथ ही, उत्पादन के सिलसिले में वह अन्य व्यक्तियों के साथ उत्पादन सम्बन्ध स्थापित करता है। दूसरे शब्दों में, उत्पादन की प्रणाली उत्पादन के कुछ निश्चित सम्बन्धों (जैसे, जमींदार और किसान, स्वामी और दास, पूँजीपति और मजदूर के बीच पाए जाने वाले उत्पादन सम्बन्ध) को उत्पन्न करती है। ये उत्पादन सम्बन्ध व्यक्ति की स्वेच्छा पर आश्रित नहीं होते, वरन् उत्पादक शक्तियों के अनुसार अनिवार्य होते हैं। ये उत्पादन सम्बन्ध किसी भी युग की सांस्कृतिक व्यवस्था उसके नैतिक, धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विचार एवं संस्थाओं का मुख्यतः निर्धारण करते हैं। जब समाज की उत्पादक शक्ति में कोई परिवर्तन होता है, तो उसी के साथ-साथ उत्पादन सम्बन्ध बदलता है और उत्पादन के सम्बन्धों में परिवर्तन होने से सामाजिक परिवर्तन घटित होता है। अतः संक्षेप में यही मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा है।
मार्क्स के अनुसार समस्त सामाजिक परिवर्तन उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन के फलस्वरूप होते हैं। इस उत्पादन प्रणाली के दो पक्ष होते हैं प्रथम, उत्पादक शक्ति (जोकि उत्पादन के उपकरण, श्रमिक और उत्पादन अनुभव श्रम- कौशल से मिलकर बनती है), और द्वितीय, उत्पादन के सम्बन्ध उत्पादन- प्रणाली की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह किसी भी अवस्था में अधिक समय तक स्थिर नहीं रहती, अपितु सदा परिवर्तन तथा विकास की दिशा में उन्मुख रहती है। साथ ही, उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन होने से सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था, विचारों, राजनीतिक मतों और राजनीतिक संस्थाओं में परिवर्तन अवश्यम्भावी हो जाता है, क्योंकि उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन होने से समग्र सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था का भी पुनः निर्माण अनिवार्य होता है।
उत्पादन प्रणाली की दूसरी विशेषता यह है कि इसमें परिवर्तन और विकास तभी होता है जब उत्पादक शक्तियों में परिवर्तन व विकास होता है और इससे भी पहले उत्पादन के उपकरणों (instruments of production ) - औजार, यन्त्र आदि में परिवर्तन व विकास होता है। इस प्रकार उत्पादन के उपकरणों में परिवर्तन व विकास सबसे पहले होता है जिसके फलस्वरूप उत्पादन - शक्तियों में भी परिवर्तन व विकास होता है। समाज की उत्पादक शक्तियों में परिवर्तन का परिणाम यह होता है कि इन उत्पादक शक्तियों से सम्बन्धित और इन पर आधारित मनुष्यों के उत्पादन सम्बन्धों में भी परिवर्तन हो जाता है। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उत्पादन सम्बन्ध का कोई प्रभाव उत्पादन-शक्ति के विकास पर नहीं पड़ता है, न ही इसका यह अर्थ है कि उत्पादक-शक्ति उत्पादन सम्बन्धों पर निर्भर नहीं है। यद्यपि उत्पादन सम्बन्धों का विकास उत्पादक शक्ति के विकास पर ही निर्भर है, फिर भी उत्पादन सम्बन्ध उत्पादन शक्ति पर अपना प्रभाव डालते ही हैं और वह इस अर्थ में कि उत्पादन सम्बन्ध उत्पादन - शक्ति के विकास की गति को धीमी या तीव्र करते हैं। ये दोनों एक-दूसरे से एक निश्चित ढंग से जुड़े हुए हैं और इनसे जुड़ा हुआ है मनुष्य का सम्पूर्ण सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन और सम्बन्ध। मार्क्स ने स्पष्ट ही लिखा है कि "सामाजिक सम्बन्ध उत्पादक शक्तियों से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। नई उत्पादक - शक्तियों के प्राप्त होने पर मनुष्य अपनी उत्पादन प्रणाली बदल देते हैं और अपनी उत्पादन प्रणाली तथा अपनी जीविका उपार्जन की प्रणाली बदलने से वे अपने समस्त सामाजिक सम्बन्ध को परिवर्तित करते हैं। जब हाथ की चक्की (hand-mill) थी तब सामन्तवादी समाज था, भाप से चलने वाली चक्की वह समाज बनाती है जिसमें प्रभुत्व औद्योगिक पूँजीपति का होता है। अतः उत्पादन प्रणाली में ही सामाजिक परिवर्तन का रहस्य छिपा हुआ है।
उत्पादन प्रणाली की तीसरी विशेषता यह है कि नवीन उत्पादक शक्तियों तथा उनसे सम्बन्धित उत्पादन के सम्बन्धों का उद्भव पुरानी व्यवस्था से पृथक् या पुरानी व्यवस्था के लोप (disappearance) हो जाने के बाद नहीं, बल्कि पुरानी व्यवस्था के अन्तर्गत ही होता है। दूसरे शब्दों में, नवीन व्यवस्था का बीज पुरानी व्यवस्था में ही अन्तर्निहित या छिपा होता है। अत: सामाजिक परिवर्तन एक अनोखी नहीं, वरन् एक स्वाभाविक घटना है: यही प्रकृति का नियम हैं सब कुछ अपने आन्तरिक स्वभाव द्वारा विकसित व परिवर्तित होगा। इतना ही नहीं, नवीन उत्पादक शक्तियों का जन्म मनुष्य की विचारपूर्वक तथा सचेत क्रिया के फलस्वरूप नहीं, बल्कि आप से आप या स्वतः (spontaneously) अचेत रूप में (unconsciously) तथा मानव-इच्छा से स्वतन्त्र रहकर होता है। ऐसा दो कारणों से होता है प्रथम तो यह कि जब नवीन पीढी का जन्म होता है तो वह एक विशेष प्रकार की उत्पादक शक्ति तथा उत्पादन- सम्बन्धों को मौजूद पाता है और अपनी जीविका उपार्जन या भौतिक मूल्यों के उत्पादन हेतु उसे उन्हीं को ग्रहण करना तथा उनसे अनुकूलन करना पड़ता है। दूसरा कारण यह है कि जब मनुष्य उत्पादन के किसी उपकरण को या किसी उत्पादक शक्ति को सुधारता है या नवीन आविष्कार करता है तो वह उससे होने वाले 'सामाजिक परिणामों' (social consequences) का अन्दाजा नहीं लगा पाता है। वह केवल इतना ही सोच पाता है कि इस सुधार के कारण अपनी जीविका उपार्जन के लिए उसे अब कम मेहनत करनी पडेगी। उदाहरणार्थ, जब हाथ से चलने वाले उत्पादन के उपकरणों के स्थान पर भाप या बिजली से चलने वाली मशीनों को उत्पादन कार्य में लगाया गया तो उस समय शायद ही किसी ने यह सोचा हो कि इस परिवर्तन का 'सामाजिक परिणाम यह होगा कि सम्पूर्ण सामन्तवादी व्यवस्था का ही धीरे-धीरे लोप हो जाएगा और उसके स्थापना पूँजीवाद व्यवस्था का होगा। सामाजिक परिवर्तन इसी प्रकार परिवर्तित उत्पादन प्रणाली का एक 'सामाजिक परिणाम होता है।
परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उत्पादन के सम्बन्धों में परिवर्तन या उत्पादन के पुराने सम्बन्धों का उत्पादन के नवीन सम्बन्धों में बदलना निर्विघ्नता से, बिना किस संघर्ष या बिना किसी उथल- पुथल के हो जाता है। इसके विपरीत, इस प्रकार का परिवर्तन साधारणतः क्रान्ति के द्वारा होता है। क्रान्ति के द्वारा पुरानी व्यवस्था या उत्पादन के सम्बन्धों को उखाड़ फेंका जाता है और उसके स्थान पर नवीन व्यवस्था या उत्पादन के सम्बन्धों को प्रतिष्ठित किया जाता है। कुछ समय तक तो उत्पादक शक्तियों का विकास तथा उत्पादन - सम्बन्धों में परिवर्तन स्वाभाविक गति से तथा स्वतन्त्रतापूर्वक होता रहता है, परन्तु यह तभी तक होता है जब तक कि नवीन तथा विकासोन्मुख उत्पादक शक्ति पूर्ण रूप से परिपक्व न हो जाए। इनके परिपक्व होते ही विद्यमान उत्पादन के सम्बन्ध तथा उनके प्रवर्तन अर्थात् शासक वर्ग, नवीन- वर्ग के लिए एक ऐसी अलंघनीय' बाधा बन जाती है जिसे कि बलपूर्वक क्रान्ति के द्वारा ही हटाया जा सकता है। इसी को हम दूसरे शब्दों में इस प्रकार समझा सकते हैं कि जैसे ही उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन होता है, उसके फलस्वरूप एक नवीन वर्ग का जन्म होता है। यह नया वर्ग पुराने वर्ग के द्वारा उत्पीड़ित होता है क्योंकि उत्पादन के सभी साधन उसी पुराने वर्ग के अधिकार में होते हैं। इस प्रकार पुराना वर्ग नए वर्ग की प्रगति को रोकता है और नाना प्रकार से उसका शोषण करता है। नवीन वर्ग की यह दयनीय दशा या उसका सामाजिक अस्तित्व उसमें विशिष्ट प्रकार की चेतना को जन्म देता है। इसलिए मार्क्स ने लिखा है कि- "मनुष्य की चेतना उसके अस्तित्व को निर्धारित नहीं करती, वरन् उसका सामाजिक अस्तित्व ही उसकी चेतना को निश्चित करता है। धीरे-धीरे नए वर्ग में यह चेतना दृढ़ होती जाती है कि वे बुराइयाँ, जिनके कारण उसका शोषण हो रहा है और उनकी प्रगति रुकी हुई है, पुरानी आर्थिक व्यवस्था का ही एक अभिन्न अंग है, और जब तक सम्पूर्ण पुरानी व्यवस्था या उस पुराने वर्ग को जोकि उसका उत्तरोत्तर शोषण करता जा रहा है, समाप्त न कर दिया जाए तब तक उन बुराइयों या उत्पीड़न से छुटकारा नहीं मिल सकता। इस प्रकार पुराने वर्ग (जिसके हाथों में उत्पादन के साधन अधिकाधिक केन्द्रीकृत होते जाते हैं) और नए वर्ग (जोकि पुराने वर्ग के शोषण का उत्तरोत्तर शिकार होते जाते हैं) के बीच तनाव पनपने लगता है। धीरे-धीरे इस संघर्ष का रूप स्पष्ट हो जाता है और नया वर्ग पुराने वर्ग को क्रान्ति के द्वारा बलपूर्वक उखाड़ फेंककर एक नवीन सामाजिक व्यवस्था को जन्म देता है। मार्क्स ने लिखा है, "बल नवीन समाज को गर्भ में धारण करने वाली प्रत्येक पुराने समाज की दाई है।' अर्थात् नवीन समाज को जन्म देने में बल ही पुराने समाज की सहायता करता है।
"सामाजिक परिवर्तन या प्रगति में विचारों, सिद्धान्तों, मतों और संस्थाओं का भी स्थान होता है। ये समाज के भौतिक जीवन पर तो अवश्य आश्रित होते हैं, किन्तु इनका सामाजिक- शक्तियों को समेटने और संगठित करने में महत्त्वपूर्ण स्थान है। नए विचार और सिद्धान्त नई भौतिक परिस्थितियों में उत्पन्न होते हैं। इनके द्वारा जन साधारण को भौतिक जीवन की त्रुटियों और आन्तरिक विरोधों का ज्ञान हो जाता है। जब ये विचार जनता की निधि बनते हैं, तो वे सामाजिक परिवर्तन के लिए अमूल्य हो जाते हैं। इनकी पृष्ठभूमि में ही जनता उन शक्तियों का विध्वंस कर सकती है जो समाज की प्रगति में बाधक है।'
मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा के सम्बन्ध में अब तक जो कुछ ऊपर कहा गया है, उसे स्वयं मार्क्स के शब्दों में निम्नवत् प्रस्तुत किया जा सकता है.
"जब मनुष्य अपने जीवन के सामाजिक उत्पादन में लगते हैं (अर्थात् जब मानव-जीवन के लिए आवश्यक भौतिक मूल्यों (वस्तुओं) के उत्पादन कार्य में क्रियाशील होते हैं) तब वे कुछ निश्चित सम्बन्धों को स्थापित करते हैं। ये सम्बन्ध अनिवार्य हैं और मनुष्य की इच्छा से स्वतन्त्र हैं। उत्पादन के ये सम्बन्ध उनके (मनुष्यों के) उत्पादन की भौतिक शक्तियों के विकास के एक निश्चित स्तर के अनुरूप होते हैं। उत्पादन के इन सम्बन्धों के सम्पूर्ण योग से ही समाज की आर्थिक संरचना का निर्माण होता है, जो वास्तविक नींव है और जिस पर वैधानिक तथा राजनीतिक अधिसंरचना खड़ी होती है और जिसके अनुरूप सामाजिक चेतना के निश्चित स्वरूप बनते हैं। भौतिक जीवन की उत्पादन प्रणाली सामान्यतः सामाजिक, राजनीतिक और बौद्धिक जीवन की प्रक्रियाओं को निश्चित करती है।"
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- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति क्या है? इसके प्रमुख प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या अच्छे प्रभाव हुए।
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- प्रश्न- राजनीतिक व्यवस्था से क्या आशय है? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
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- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के क्या सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम हुये?
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास को संक्षेप में समझाइये।
- प्रश्न- ज्ञानोदय से आप क्या समझते हैं। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञाकि पद्धति के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है।" विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिये।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र का महत्व बताइये।
- प्रश्न- कॉम्ट के प्रत्यक्षवाद की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कॉम्टे द्वारा प्रतिपादित चिन्तन की तीन अवस्थाओं के नियम की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कॉम्टे की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- अगस्त कॉम्ट का जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- कॉम्ट के मानवता के धर्म का नैतिकता आधार क्या है?
- प्रश्न- संस्तरण के आधार अथवा सिद्धान्त बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की मुख्य विशेषतायें कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- कॉम्ट के विज्ञानों का वर्गीकरण प्रत्यक्षवाद से किस प्रकार सम्बन्धित है?
- प्रश्न- कॉम्ट की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- प्रत्यक्षवाद क्या है?
- प्रश्न- कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद को परिभाषित कीजिये।
- प्रश्न- तात्विक अवस्था क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक डार्विनवाद से आपका क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक उद्विकास' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर के 'सामाजिक नियन्त्रण के साधन' सम्बन्धी विचार बताइए।
- प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित सावयवी सिद्धान्त की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के क्षेत्र में हरबर्ट स्पेन्सर के योगदान का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अधिसावयव उद्विकास की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक एकता के सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- यान्त्रिक व सावयवी एकता से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्थाएं क्या हैं?
- प्रश्न- दुर्खीम के श्रम विभाजन सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को समझाइए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम द्वारा वर्णित आत्महत्या के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुखींम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
- प्रश्न- दुखींम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया, व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कॉम्ट तथा दुखींम की देन की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- श्रम विभाजन समझाइये।
- प्रश्न- दुर्खीम ने यान्त्रिक तथा सावयवी एकता में अन्तर किस प्रकार किया है?
- प्रश्न- श्रम विभाजन के कारण बताइए।
- प्रश्न- दुखींम के अनुसार श्रम विभाजन के कौन-कौन से परिणाम घटित हुए? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- श्रम विभाजन, सावयवी एकता से किस प्रकार सम्बन्धित है?
- प्रश्न- यान्त्रिक संश्लिष्टता तथा सावयविक संश्लिष्टता के बीच अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के सामूहिक प्रतिनिधान के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम का पद्धतिशास्त्र पूर्णतया समाजशास्त्री है। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक एकता क्या है?
- प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या के कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक एकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक तथ्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित 'समाजशास्त्रीय पद्धति' के नियम क्या हैं?
- प्रश्न- दुखींम की सामाजिक चेतना की अवधारणा का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
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- प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पैरेटो ने समाजशास्त्र को एक तार्किक प्रयोगात्मक विज्ञान नाम क्यों दिया? उनकी तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रान्त-तर्क की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "इतिहास कुलीन तन्त्र का कब्रिस्तान है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पैरेटो की तार्किक एवं अतार्किक क्रियाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइए।
- प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- परेटो का समाजशास्त्र में योगदान संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- तार्किक और अतार्किक क्रिया की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- पैरेटो के अनुसार शासकीय तथा अशासकीय अभिजात वर्ग की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा क्या है? समझाइए।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
- प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
- प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
- प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
- प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
- प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पूँजीवादी समाज में अलगाव की स्थिति तथा इसके कारकों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- संक्षेप में अलगाव के स्वरूपों को समझाइये।
- प्रश्न- मार्क्स ने पूँजीवाद की प्रकृति के विनाश के किन कारणों का उल्लेख किया है?
- प्रश्न- पूँजीवाद में ही वर्ग संघर्ष अपने चरम सीमा पर क्यों पहुँचा?
- प्रश्न- मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
- प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
- प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
- प्रश्न- मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या किस तरह से की?
- प्रश्न- मार्क्स की सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या में प्रमुख कमियाँ क्या रहीं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स का संक्षिप्त जीवन-परिचय तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- वर्ग को लेनिन ने किस तरह से परिभाषित किया?
- प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन सा स्वरूप पाया जाता था?
- प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामंती समाज में वर्ग व्यवस्था का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
- प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति के महत्व एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के इतिहास दर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के अनुसार वर्ग की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के संघर्ष सम्प्रदाय में मार्क्स और डेहरनडार्फ की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- "हीगल ने 'आत्म-चेतना' के अलगाव की चर्चा की है जबकि मार्क्स ने श्रम के अलगाव की।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के आवश्यक लक्षणों की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइये। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
- प्रश्न- सत्ता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। सत्ता कितने प्रकार की होती है?
- प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा वर्णित सत्ता के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- वेबर के धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइए।
- प्रश्न- आदर्श प्रारूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वेबर के "पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वेबर के समाजशास्त्र में योगदान पर एक लेख लिखिये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
- प्रश्न- मैक्स वेबर की प्रमुख रचनाएँ बताइए।
- प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- मैक्स वेबर के आदर्श प्रारूप पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रोटेस्टेण्ट आचार क्या है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वेबर के सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विचार के सन्दर्भ में मैक्स वेबर के योगदान का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- शक्ति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम एवं वेबर के धर्म के सिद्धान्त की तुलना आप किस तरह करेंगें?
- प्रश्न- सामाजिक विज्ञान की पद्धति के निर्माण में मैक्स वेबर के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक क्रिया' के वर्गीकरण का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- अन्तः क्रिया का क्या अर्थ है? अन्तःक्रिया के प्रकारों का उल्लेख करिये।
- प्रश्न- प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद क्या है? प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ समझाइये।
- प्रश्न- जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद बतलाइये।
- प्रश्न- मीड का भूमिका ग्रहण का सिद्धान्त समझाइये।
- प्रश्न- प्रतीकात्मक का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- प्रतीकात्मकवाद की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- प्रतीकों के भेद या प्रकार बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक जीवन में प्रतीकों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- टालकाट पारसन्स का "सामाजिक क्रिया" का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- आर. के. मर्टन का संक्षिप्त जीवन परिचय व रचनाएँ लिखिए।
- प्रश्न- आर. के. मर्टन की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- आर. के. मर्टन की बौद्धिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति को समझाइये।
- प्रश्न- आर. के. मर्टन का "प्रकट एवं अव्यक्त कार्य सिद्धान्त को समझाइये।
- प्रश्न- टॉलकाट पारसन्स के पैटर्न वैरियबल की चर्चा कीजिये।