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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2797
आईएसबीएन :0

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समाजशास्त्रीय चिन्तन के अग्रदूत (प्राचीन समाजशास्त्रीय चिन्तन)

प्रश्न- ज्ञानोदय से आप क्या समझते हैं। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञाकि पद्धति के प्रयोग का वर्णन कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्ल
प्रश्न - ज्ञानोदय अथवा समाज विज्ञान का अर्थ स्पष्ट कीजिये।

उत्तर -

ज्ञानोदय अथवा समाज विज्ञान का बोध

कार्ल पियर्सन ने ठीक ही कहा है कि "सत्य तक पहुँचने के लिए कोई संक्षिप्त पथ नहीं है। विश्व के विषय में ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें वैज्ञानिक पद्धति के द्वार से ही गुजरना पड़ेगा।" इसका अर्थ यह है कि वैज्ञानिक पद्धति किसी भी प्रकार काल्पनिक एवं मनगड़न्त धरणाओं से मुक्त है और इस अर्थ से वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किसी भी प्रकार की घटना चाहे वह भौतिक हो या सामाजिक, किया जा सकता है। काम्टे के अनुसार, समस्त ब्रह्माण्ड स्थिर प्राकृतिक नियमों द्वारा व्यवस्थित तथा निर्देशित होता है और यदि इन नियमों को हमें समझना है तो विज्ञान की विधि अर्थात् वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा ही समझा जा सकता है। यूरोप के आधुनिक युग का पुनर्जागरण अथवा नवजागरण माना जाता है। पुनर्जागरण की शुरूआत इटली में 14वीं शताब्दी में हुई थी। समृद्धि के वातावरण में इटली के निवासियों में अपनी उपलब्धियों के प्रति गौरव बढ़ा, जीवन के लिये उत्साह जागा और कला, संगीत एवं स्थापत्य कला में उन्होंने नये-नये कीर्तिमान खड़े किये हैं। विचार भी जीवन तथ्य होते हैं। एक बार जब वे जन्म ले लेते हैं तो उनमें स्वयं के बनाये रखने एवं संशोधित करने की अद्भुत क्षमता होती है।

पुनर्जागरण एवं ज्ञानोदय के विकास की प्रक्रिया को कुछ चरणों में बाँटा जा सकता है

1. प्रोटेस्टैण्ट विद्रोह ( Protestant revolt : 1520-1560 ) - चर्च की रुढ़िवादी विचारधारा के प्रति प्रतिरोध मार्टिन लूथर (Martin Luther) से प्रारम्भ हुआ। 31 अक्टूबर, 1517 को इस ईसाई संन्यासी ने, जो विटनवर्ग के विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी था, लूथर ने चर्च के सत्ता-सोपान और पोप की सत्ता को अस्वीकार किया था। उनका कहना था कि ईश्वर एक निष्ठुर जज नहीं है जो निःसहाय आत्माओं को उनके पाप के अनुपात में दण्ड प्रदान करता है, वह तो न्याय और प्रेम की मूर्ति है जो मनुष्य को बचाना चाहता है, वह दयालु है। मुक्ति ईश्वर और विश्वास करने वाले के बीच सीधा मामला है, पादरी उसके बीच नहीं है। राजा चर्च के प्रशासन से मुक्त होना चाहिये। उसकी अपनी निजी सत्ता और कार्य क्षेत्र है।

2. वैज्ञानिक क्रान्ति (The scientific revolution) - सभ्यताओं के भी बोने और काटने के मौसम होते हैं। मैक्सी (Maxey) का कहना है कि यूरोप में 17वीं शताब्दी में वैज्ञानिक तर्कवाद का जन्म और शैशवकाल बीता और 18वीं शताब्दी में वह ज्ञानोदय के रूप में प्रौढ़ता को प्राप्त हुआ। यह वैज्ञानिक क्रान्ति भी 200 वर्ष के पुनर्जागरण का ही स्वाभाविव परिणाम थी। पुनर्जागरण ने मानव चिन्तन को लौकिक संसार की ओर मोड़ दिया था। चर्च प्रभावों का ह्रास हुआ था और नई दुनिया की खोज की प्रेरणा दी थी। 17वीं शताब्दी से पह घटनाओं के अध्ययन में निगमन (Deductive) प्रणाली का प्रयोग किया जाता था। साक्ष्यों या प्रमाणों का कोई अर्थ नहीं था। परन्तु 17वीं शताब्दी में तर्क और प्रयोगवाद ज्ञान की पद्धति के रूप में पूर्णतया प्रतिष्ठित हो गये। तथ्यों के अवलोकन, वर्गीकरण एवं विश्लेषण के आधार पर सामान्यीकरण पर पहुँचने की प्रक्रिया वैज्ञानिक अनुसन्धान की आगमन ( Inductive) प्रणाली कहलाती है।

रेने डेकार्ट (Rene Descartes : 1596-1650) - उसी में विश्वास करता था जिसे वह प्रयोग के द्वारा सिद्ध करके दिखा सकता था।

वैज्ञानिक तर्कवाद ने अनेक आविष्कारों और खोजों को जन्म दिया। इस विकास का चरम रूप हमें सर आइजक न्यूटन (Sir Isaac Newton : 1642-1727) में देखने को मिलता है जिनकी खोजों ने विज्ञान के क्षेत्र में नये कीर्तिमान स्थापित किये। उनकी प्रसिद्ध कृति प्राकृतिक दर्शन का गणितीय सिद्धान्त (Mathematical Principle of Natural Philosophy) 1687 ई. में विज्ञान के अध्ययन को एक नयी दिशा प्रदान की। उस समय विज्ञानवाद का कितना प्रभाव था इसका वर्णन करते हुये मैक्सी लिखते हैं कि, “वैज्ञानिक जिज्ञासा की सभी सीमाएँ लाँधी गयी थी। प्रयोग - विधि उन सभी के लिये व्यवसाय बन गयी थी जो तनिक भी अपने को विवेकी होने का दावा करते थे।

3. ज्ञानोदय का युग (The age of enlightenment) - भावनाओं और विचारों का प्रौढ़ रूप में यूरोप में अठारहवीं सदी में देखने को मिलता है। इसे यूरोप के इतिहास में 'ज्ञानोदय का युग' कहा जाता है। वास्तव में, यह वैज्ञानिक क्रान्ति की स्वाभाविक परिणति थी। पहले से चले आ रहे दृष्टिकोण से सर्वथा भिन्न थी। इस ज्ञानोदय का प्रारम्भ भी फ्रांस में ही हुआ। इसका स्वरूप एक 'बौद्धिक आन्दोलन' के रूप में उभर कर सामने आया। इस आन्दोलन के प्रावर्तक बुद्धिजीवियों ने सामाजिक और राजनीतिक चिन्तन को एक नई दिशा प्रदान की। इतना ही नहीं, उनकी कृतियाँ यूरोपीय राष्ट्रों में राज्य क्रान्तियों का आधार बन गयीं। फ्रांस की राज्य - क्रान्ति में इन कृतियों का विशेष योगदान है। फ्रांस में ऐसे विद्वानों को फिलोसोफे (Philosophes) कहा जाता था।

वॉल्टेयर (Voltaire : 1664-1778) - इन बुद्धिजीवियों में एक विशिष्ट स्थान रखता है। उसने अपने व्यंगात्मक लेखों और उपन्यासों द्वारा सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में व्याप्त असमानता के प्रति जनता को जागरूक किया।

इस श्रेणी में मॉण्टेस्क्यू (Montesquieu : 1689-1755) का नाम अवस्मिरणीय है। उन्होंने अपनी कृति The Spirit of Laws के द्वारा नियम की प्रकृति और सामाजिक संस्थाओं की तुलनात्मक व्याख्या प्रस्तुत की। उनका विचार था कि सामाजिक प्रघटनाएँ भी, प्राकृतिक घटनाओं की भाँति सामान्य नियमों द्वारा संचालित होती हैं।

ज्ञानोदय युग के सन्दर्भ में सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का वर्णन किया जाना आवश्यक है। इस सिद्धान्त के साथ तीन विद्वानों के नाम जुड़े हुये हैं - थॉमस हॉब्स (Thomas Hobbes : 1588-1679), जॉन लॉक (John Locke: 1632-1704) तथा रूसो (Rousseau : 1712-1778)। इनमें प्रथम दो विद्वान् अंग्रेज थे और तीसरे फ्रांसीसी थे। इन विद्वानों के अनुसार, मानव समाज में एक समय ऐसा था जब राज्य नहीं था। परन्तु तीनों वेद्वानों में प्रमुख मतभेद तीन विषयों को लेकर था प्रथम, राज्य पूर्व सामाजिक स्थिति में नव जीवन की दिशा कैसी थी? लॉक तथा रूसो के मतानुसार, मानव का जीवन सुखी,नन्दमय और बन्धनों से रहित था, जबकि हॉब्स के अनुसार, उस अवस्था में मानव जंगली पशु ब भाँति जंगल के नियमों से संचालित था और जीवन पशुवत्, खूनी, परस्पर मार-धाड़ भरा लघु था। द्वितीय, किस उद्देश्य को लेकर सामाजिक समझौते द्वारा राज्य की स्थापना की आश्यकता हुई? कड़े नियन्त्रण की आवश्यकता थी। इस नियन्त्रण ने ही मानवीय सभ्यता के विवास में सहायता दी।

रूसो हॉब्स के विपरीत दूसरे चरम बिन्दु पर स्थित है। उनके मतानुसार, सरकार का स्वभाव ही धीरे-धीरे भ्रष्ट हो जाना है। सत्ता निरंकुशता की ओर ले जाती है।

सामाजिक समझौते के चिन्तकों ने यह सिद्ध कर दिया कि राज्य या राजा की दैवीय उत्पत्ति नहीं है। नागरिकों के कुछ मौलिक और प्राकृतिक अधिकार हैं। राज्य की प्रभुसत्ता का आधार जन संकल्प है। यह एक क्रान्तिकारी विचारधारा थी। रूसो अत्यधिक क्रान्तिकारी थे। उनकी पुस्तक The Social Contract का प्रारम्भ भी इस वाक्य से होता है। "मानव स्वतन्त्र पैदा हुआ है और वह सर्वत्र जंजीरों से जकड़ा हुआ है। रूसो के सम्बन्ध में कहा जाता है कि यदि वह न होता तो फ्रांस की क्रान्ति नहीं हुई होती।" रचनात्मक दृष्टि से यह ज्ञानोदय असफल ही कहा जायेगा।

4. उन्नीसवीं शताब्दी की बौद्धिक सृजनात्मकता (Intellectual creativity of the nineteenth century) - विचारों की कभी मृत्यु नहीं होती। वे संशोधित रूप में विकसित होते रहते हैं। पुनर्जागरण की आत्मा, जो विज्ञानवाद और ज्ञानोदय के माध्यम से विकसित हुई, उन्नीसवीं शताब्दी में नई विचारधाराओं (Idelogies) के रूप में प्रस्फुटित हुयी। 19वीं शताब्दी र्क प्रमुख विचारधाराएँ निम्नलिखित हैं-

1. रूढ़िवाद (Conservatism ) - रूढ़िवादी वे विद्वान् थे जो सामन्तशाही और अभिजात वर्ग पर आधारित सीमित राजतन्त्रों के समर्थक थे। उनके अनुसार, समय धीरे-धीरे अपने आप उन संस्थाओं को समाप्त कर देता है, जो समय के साथ नहीं चल पातीं और उन्हें बनाये रखता है ज मूल्यवान होती हैं। इसलिये मनुष्य को स्वयं परिवर्तन का प्रयास नहीं करना चाहिये।

2. उदारवाद (Liberalism) - रूढ़िवादी विचारधारा का विरोधी उदारवाद था, जिसके समर्थकों का विश्वास था कि मानव अधिकारों की दृष्टि से समान हैं। राज्य राजा या शासक शासन करने का अधिकार जनता से प्राप्त करता है इसलिये उसे जनता के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिये। उनका यह भी विश्वास था कि मानव का इतिहास सतत् प्रगति का इतिहास है। पहले उन्होंने इस प्रगति को व्यक्ति की राजनीतिक स्वतन्त्रता की वृद्धि के रूप में परिभाषित किया तो बाद में आर्थिक समृद्धि के रूप में। उदारवादी लिखित संविधान और प्रतिनिधि सरकार के शासन के पक्ष में थे। वर्ग को सीधे और स्पष्ट क्रान्तिकारी विचार सम्प्रदाय की आवश्यकता थी।

3. राष्ट्रवाद (Nationalism) - ज्ञानोदय ने चर्च और राज्य के प्रति निष्ठा के आधार को नष्ट कर दिया था। व्यक्ति को अपने से महान् किसी तथ्य के साथ अस्मिता महसूस करने के आधार पर शून्यता आ गयी थी। हीगल के अनुसार, मानव सच्ची स्वतन्त्रता और आत्म-पूर्ति एक पूर्ण राज्य के अन्तर्गत ही प्राप्त कर सकता है। उनका विश्वास था कि द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया के द्वारा विचार उसी निरपेक्ष एवं पूर्ण राज्य की अवधारणा की प्राप्ति की ओर बढ़ रहा है।

4. समाजवाद (Socialism) - उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में समाजवादी विचारधारा विकसित हुई। इस विचारधारा के अनुसार, उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियन्त्रण होना चाहिये और एक केन्द्रीय सत्ता के निर्देशन में उत्पादन योजनाबद्ध तरीके से किया जाना चाहिये। वितरण इस प्रकार किया जाये कि सभी को विकास के समान अवसर प्राप्त हों। समाजवाद अनेक रूपों में विकसित हुआ जैसे इंग्लैण्ड में फेबियन समाजवाद, फ्रांस में सिंडीकालिज्म अथवा सुधारवादियों का स्वर्णिम नगर की कल्पना पर आधारित समाजवाद। इस विचारधारा ने नियन्त्रित समाजवाद के विकास में तथा सामाजिक और आर्थिक न्याय के आधार पर प्रजातन्त्र के विकास में सहायता प्रदान की।

5. मार्क्सवाद (Marxism ) - उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरा का सबसे शक्तिशा विचार दर्शन मार्क्सवाद है। इसके प्रणेता कार्ल मार्क्स हैं। उनका विश्वास था कि अब तक मानव का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है। इतिहास के प्रत्येक युग में सम्पत्तिशाली सम्पत्तिविहीन वर्ग होते आये हैं। सम्पत्तिशाली वर्ग सम्पत्तिविहीन वर्ग का शोषण करता है! पूँजीपति व्यवस्था भी सर्वहारा वर्ग के शोषण पर आधारित है। इस शोषण की व्यवस्था से द के लिये मुक्ति प्राप्त करने का एक मात्र उपाय सर्वहारा वर्ग द्वारा क्रान्ति करना है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति क्या है? इसके प्रमुख प्रभाव बताइए।
  5. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव बताइए।
  6. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक प्रभाव बताइये।
  7. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव बताइए।
  8. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या अच्छे प्रभाव हुए।
  9. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या बुरे प्रभाव हुए।
  10. प्रश्न- राजनीतिक व्यवस्था से क्या आशय है? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  11. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  12. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्तियों ने कैसे समाजशास्त्र की आधारशिला एक स्वतन्त्र अध्ययन के रूप में रखी? विवेचना कीजिए।
  13. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के क्या सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम हुये?
  14. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास को संक्षेप में समझाइये।
  15. प्रश्न- ज्ञानोदय से आप क्या समझते हैं। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञाकि पद्धति के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- "समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है।" विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
  18. प्रश्न- समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिये।
  19. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र का महत्व बताइये।
  20. प्रश्न- कॉम्ट के प्रत्यक्षवाद की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- कॉम्टे द्वारा प्रतिपादित चिन्तन की तीन अवस्थाओं के नियम की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  22. प्रश्न- कॉम्टे की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिये।
  23. प्रश्न- अगस्त कॉम्ट का जीवन परिचय दीजिए।
  24. प्रश्न- कॉम्ट के मानवता के धर्म का नैतिकता आधार क्या है?
  25. प्रश्न- संस्तरण के आधार अथवा सिद्धान्त बताइये।
  26. प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की मुख्य विशेषतायें कौन-कौन सी हैं?
  27. प्रश्न- कॉम्ट के विज्ञानों का वर्गीकरण प्रत्यक्षवाद से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  28. प्रश्न- कॉम्ट की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिए।
  29. प्रश्न- प्रत्यक्षवाद क्या है?
  30. प्रश्न- कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद को परिभाषित कीजिये।
  31. प्रश्न- तात्विक अवस्था क्या है?
  32. प्रश्न- सामाजिक डार्विनवाद से आपका क्या तात्पर्य है?
  33. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक उद्विकास' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का जीवन परिचय दीजिए।
  35. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर के 'सामाजिक नियन्त्रण के साधन' सम्बन्धी विचार बताइए।
  36. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित सावयवी सिद्धान्त की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- समाजशास्त्र के क्षेत्र में हरबर्ट स्पेन्सर के योगदान का उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अधिसावयव उद्विकास की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक एकता के सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- यान्त्रिक व सावयवी एकता से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्थाएं क्या हैं?
  41. प्रश्न- दुर्खीम के श्रम विभाजन सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को समझाइए।
  43. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइए।
  44. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।
  45. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा वर्णित आत्महत्या के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  48. प्रश्न- दुखींम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  49. प्रश्न- दुखींम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया, व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुखींम की देन की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- श्रम विभाजन समझाइये।
  54. प्रश्न- दुर्खीम ने यान्त्रिक तथा सावयवी एकता में अन्तर किस प्रकार किया है?
  55. प्रश्न- श्रम विभाजन के कारण बताइए।
  56. प्रश्न- दुखींम के अनुसार श्रम विभाजन के कौन-कौन से परिणाम घटित हुए? स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  58. प्रश्न- श्रम विभाजन, सावयवी एकता से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  59. प्रश्न- यान्त्रिक संश्लिष्टता तथा सावयविक संश्लिष्टता के बीच अन्तर कीजिए।
  60. प्रश्न- दुर्खीम के सामूहिक प्रतिनिधान के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  61. प्रश्न- दुर्खीम का पद्धतिशास्त्र पूर्णतया समाजशास्त्री है। विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- सामाजिक एकता क्या है?
  63. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या के कारणों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- सामाजिक एकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- सामाजिक तथ्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित 'समाजशास्त्रीय पद्धति' के नियम क्या हैं?
  69. प्रश्न- दुखींम की सामाजिक चेतना की अवधारणा का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  71. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  72. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- पैरेटो ने समाजशास्त्र को एक तार्किक प्रयोगात्मक विज्ञान नाम क्यों दिया? उनकी तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- "इतिहास कुलीन तन्त्र का कब्रिस्तान है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- पैरेटो की तार्किक एवं अतार्किक क्रियाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  79. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइए।
  80. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिए।
  81. प्रश्न- परेटो का समाजशास्त्र में योगदान संक्षेप में बताइए।
  82. प्रश्न- तार्किक और अतार्किक क्रिया की तुलना कीजिए।
  83. प्रश्न- पैरेटो के अनुसार शासकीय तथा अशासकीय अभिजात वर्ग की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
  84. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  85. प्रश्न- मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा क्या है? समझाइए।
  86. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  88. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  89. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  90. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  91. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  92. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- पूँजीवादी समाज में अलगाव की स्थिति तथा इसके कारकों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- संक्षेप में अलगाव के स्वरूपों को समझाइये।
  95. प्रश्न- मार्क्स ने पूँजीवाद की प्रकृति के विनाश के किन कारणों का उल्लेख किया है?
  96. प्रश्न- पूँजीवाद में ही वर्ग संघर्ष अपने चरम सीमा पर क्यों पहुँचा?
  97. प्रश्न- मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  100. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  102. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।
  103. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  104. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  105. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  106. प्रश्न- मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या किस तरह से की?
  107. प्रश्न- मार्क्स की सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या में प्रमुख कमियाँ क्या रहीं?
  108. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  109. प्रश्न- कार्ल मार्क्स का संक्षिप्त जीवन-परिचय तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  112. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  113. प्रश्न- वर्ग को लेनिन ने किस तरह से परिभाषित किया?
  114. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन सा स्वरूप पाया जाता था?
  115. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- सामंती समाज में वर्ग व्यवस्था का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  117. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति के महत्व एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के इतिहास दर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के अनुसार वर्ग की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- समाजशास्त्र के संघर्ष सम्प्रदाय में मार्क्स और डेहरनडार्फ की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- मार्क्स के विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
  123. प्रश्न- "हीगल ने 'आत्म-चेतना' के अलगाव की चर्चा की है जबकि मार्क्स ने श्रम के अलगाव की।" स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के आवश्यक लक्षणों की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए।
  126. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  127. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  128. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइये। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  130. प्रश्न- सत्ता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। सत्ता कितने प्रकार की होती है?
  131. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा वर्णित सत्ता के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
  133. प्रश्न- वेबर के धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइए।
  134. प्रश्न- आदर्श प्रारूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर के "पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
  136. प्रश्न- वेबर के समाजशास्त्र में योगदान पर एक लेख लिखिये।
  137. प्रश्न- मैक्स वेबर का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
  138. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  139. प्रश्न- मैक्स वेबर की प्रमुख रचनाएँ बताइए।
  140. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  142. प्रश्न- मैक्स वेबर के आदर्श प्रारूप पर टिप्पणी लिखिए।
  143. प्रश्न- प्रोटेस्टेण्ट आचार क्या है? व्याख्या कीजिए।
  144. प्रश्न- मैक्स वेबर के सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  145. प्रश्न- सामाजिक विचार के सन्दर्भ में मैक्स वेबर के योगदान का परीक्षण कीजिए।
  146. प्रश्न- शक्ति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  147. प्रश्न- दुर्खीम एवं वेबर के धर्म के सिद्धान्त की तुलना आप किस तरह करेंगें?
  148. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान की पद्धति के निर्माण में मैक्स वेबर के योगदान का वर्णन कीजिए।
  149. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक क्रिया' के वर्गीकरण का परीक्षण कीजिए।
  150. प्रश्न- अन्तः क्रिया का क्या अर्थ है? अन्तःक्रिया के प्रकारों का उल्लेख करिये।
  151. प्रश्न- प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद क्या है? प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ समझाइये।
  152. प्रश्न- जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद बतलाइये।
  153. प्रश्न- मीड का भूमिका ग्रहण का सिद्धान्त समझाइये।
  154. प्रश्न- प्रतीकात्मक का क्या अर्थ है?
  155. प्रश्न- प्रतीकात्मकवाद की विशेषताएँ बताइये।
  156. प्रश्न- प्रतीकों के भेद या प्रकार बताइये।
  157. प्रश्न- सामाजिक जीवन में प्रतीकों का क्या महत्व है?
  158. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  159. प्रश्न- टालकाट पारसन्स का "सामाजिक क्रिया" का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिये।
  160. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  161. प्रश्न- आर. के. मर्टन का संक्षिप्त जीवन परिचय व रचनाएँ लिखिए।
  162. प्रश्न- आर. के. मर्टन की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  163. प्रश्न- आर. के. मर्टन की बौद्धिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  164. प्रश्न- मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति को समझाइये।
  165. प्रश्न- आर. के. मर्टन का "प्रकट एवं अव्यक्त कार्य सिद्धान्त को समझाइये।
  166. प्रश्न- टॉलकाट पारसन्स के पैटर्न वैरियबल की चर्चा कीजिये।

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