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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 राजनीति विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2796
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 राजनीति विज्ञान : लोक प्रशासन

प्रश्न- हरबर्ट साइमन के निर्णय निर्माण सम्बन्धी मॉडल की व्याख्या कीजिए।

अथवा
प्रशासन में निर्णय निर्माण प्रक्रिया पर हरबर्ट साइमन के विचारों की विवेचना करें।

सम्बन्धित लघु / अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. साइमन के निर्णय निर्माण मॉडल के मौलिक (आधारभूत) तत्वों पर प्रकाश डालिए।
2. साइमन द्वारा वर्णित निर्णयन की विभिन्न अवस्थाओं की विवेचना करें।
3. साइमन द्वारा वर्णित संयोजित व असंयोजित निर्णय को समझाइए।
4. संयोजित निर्णय और असंयोजित निर्णय।
5. नीति निर्माण के सम्बन्ध में हरबर्ट साइमन के विचार बताइये।

उत्तर -

निर्णय-निर्माण का साइमन का दृष्टिकोण

हरबर्ट साइमन का निर्णय निर्माण का मॉडल का सम्बन्ध द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की परिस्थितियों से है। उस समय पूँजीवाद में अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हुई थीं। इन समस्याओं के निराकरण के लिए नई प्रौद्योगिकी नई विधियों तथा नई तकनीकों की आवश्यकता थी जिनकी सहायता से पूरे विश्व में बड़े पूँजीवाद संगठन सफलतापूर्वक चलाये जा सकें। इन परिस्थितियों में किसी भी संगठन का भविष्य उसके अनेक पक्षों के सम्बन्ध में गम्भीरतापूर्वक सोचे गये सामाजिक निर्णयों पर ही निर्भर था। इन्हीं परिस्थितियों के बीच निर्णय निर्माण का सिद्धान्त उत्पन्न हुआ जिसके जन्मदाता नोबफल पुरस्कार प्राप्त हरबर्ट साइमन थे। इस सिद्धान्त में साइमन ने निर्णय करने वाले व्यक्ति के वातावरण को प्रज्ञप्तियों का एक ऐसा समुच्चय माना जिस पर निर्णय आधारित होते हैं। साइमन ने दो तरह की निर्णय प्रज्ञप्तियों का अन्तर बताया है। तथ्यपरक प्रज्ञप्तियाँ तथा मूल्यपरक प्रज्ञप्तियाँ।

तथ्यपरक प्रज्ञप्तियों को अनुभव के सहारे से परखना पड़ता है ताकि उनकी वैधता का फैसला हो सके। मूल्यपरक प्रज्ञप्तियों के साथ ऐसी परीक्षा नहीं करनी पड़ती है। पहले का सम्बन्ध साधनों के चयन से है तथा दूसरे का साध्यों में चयन से। इस व्यवहारवादी उपागम में कार्यवाही से पहले की प्रक्रिया को समझने का प्रयास किया जाता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को निर्णय लेने की प्रक्रिया भी कहते हैं। निर्णय लेने में देरी या निर्णय की आवश्यकता उस समय उत्पन्न होती है जब व्यक्ति के पास किसी कार्य को करने के लिए बहुत सारे विकल्प होते हैं परन्तु उन बहुत सारे विकल्पों में से व्यक्ति को छँटनी की प्रक्रिया के माध्यम से केवल एक विकल्प चुनना पड़ता है। इस प्रकार निर्णय निर्माण बहुत सारे विकल्पों को हटा कर एक विकल्प के चुनने की प्रक्रिया है तथा इसी रूप में परिभाषित किया गया है। मनुष्य की बुद्धिमत्ता तथा कार्यकुशलता इसमंभ है कि वह इस प्रकार के विकल्प का चुनाव करे जिससे उसे अधिकतम लाभ तथा न्यूनतम हानि हो।

साइमन के मॉडल के मौलिक तत्त्व

साइमन ने अपने मॉडल का वर्णन करने हुए एक स्थान पर लिखा है कि हर क्षण व्यवहारशील वस्तु अथवा ऐसे व्यक्तियों से बना हुआ संगठन अधिसंख्य वैकल्पिक व्यवहारों के साथ संघर्षरत रहता है। इनमें से कुछ चेतना में उपस्थिति रहते हैं तथा कुछ नहीं रहते हैं निर्णय करना एक प्रकार की प्रक्रिया है जिसमें हर क्षण के व्यवहार के लिए इनमें से किसी एक विकल्प का चुनाव उस पर अमल करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार की पूरी नीति को कार्यनीति कहते हैं।

निर्णय निर्धारण के तीन चरण होते हैं- 

(1) प्रत्येक वैकल्पिक कार्यनीतियों का सूचीकरण।
(2) हर कार्यनीति से होने वाले या हो सकने वाले परिणामों का निर्धारण।
(3) इन परिणामों का तुलनात्मक अध्ययन।

साइमन के निर्णय निर्धारण के मॉडल को तर्कसंगत समाविष्ट मॉडल का नाम भी दिया जाता है। होने वाले निर्णयों के परिणामों के सम्बन्ध में उसके उद्देश्यों, लक्ष्यों तथा प्राथमिकताओं पर पूर्ण समझौते की कल्पना इसमें की गई है। निर्णय करने सम्बन्धी सिद्धान्त के मौलिक तत्व निम्न हैं.

(1) किसी भी प्रकार की विद्यमान या उपस्थित स्थिति में कार्य करने के उपलब्ध अन्य वैकल्पिक मार्गों की पूर्ण जानकारी।

(2) यह अभिगम या सिद्धान्त इस अवधारणा पर आश्रित है कि निर्णय करने वाले की सभी आवश्यक सूचनाओं तक पहुँच है तथा वह इतनी योग्यता या सामर्थ्य भी रखता है कि उन सूचनाओं का विश्लेषण कर सकें।

(3) वर्तमान समय में यह आशा की जाती है कि किसी संगठन में उच्च प्रबन्धकीय पदों पर बैठे हुए लोग इतने योग्य तथा सक्षम हैं कि वे सभी निर्णय करते हैं तथा निर्णय करने के बाद उसे लागू करने के लिए पद सोपान के विभिन्न स्तरों पर भेज देते हैं।

साइमन के अनुसार - किसी भी संगठन में प्रबन्धक स्तर के व्यक्ति महत्वपूर्ण समझे जाते हैं। क्योंकि उन्हें विभिन्न स्तरों पर निर्णय लेने के महत्वपूर्ण कार्य करने पड़ते हैं। उन्हें संगठनात्मक लक्ष्यों तथा उद्देश्यों को प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है।

निर्णय लेने की विभिन्न अवस्थाएँ

साइमन के निर्णय प्रक्रिया में निम्न अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं-

(1) बौद्धिक क्रिया - बौद्धिक क्रिया के चरण में समस्याओं से जूझकर एक सही निर्णय लेने के अवसर खोजना शामिल है। इन सबके लिए उस संगठन के वातावरण को समझना तथा उसका विश्लेषण करना आवश्यक है। इस बौद्धिक क्रिया में उन परिस्थितियों की भी पहचान करने का क्रम शामिल है जिनमें निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।

(2) संरचना क्रिया - यह निर्णय लेने की प्रक्रिया का दूसरा चरण है। इस चरण में किसी कार्य विशेष को करने के लिए जो विकल्प सामने होते हैं उनका विकास शामिल होता है। निर्णय करने वाले व्यक्ति के गुण तथा दोष, उसके व्यवहार तथा निर्णय में सम्मिलित समस्याओं की पहचान करनी पड़ती है।

(3) चयन क्रिया - निर्णय निर्धारण में तीसरा तथा अन्तिम चरण चयन प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में निर्णय कर्त्ता को संगठन के लक्ष्यों को, उसके हितों को ध्यान में रखकर एक विकल्प चुनना पड़ता है।

साइमन के मतानुसार - बहुत सारे विकल्पों में से एक सही विकल्प को चुनना तथा उसे लागू करने के लिए संगठन के विभिन्न स्तरों पर जाना आदि कार्य निर्णय कर्त्ता के कार्य निष्पादन से सम्बद्ध होते हैं। इनका सम्बद्ध मूल्यों के प्रश्नों से होता है तथा मूल्य प्राथमिकता की अभिव्यक्ति होती है इसलिए यह तथ्य पर आधारित नहीं होती है। विकल्पों या निर्णयों में तथ्य तथा मूल्य दोनों सम्मिलित होते हैं।

निर्णय के प्रकार

साइमन ने अपने निर्णय निर्माण को दो भागों में विभक्त किया है-

(1) संयोजित निर्णय - संयोजित निर्णय वे निर्णय होते हैं जो पुनरावर्ती होते हैं अर्थात् स्वभाव से दुहराव वाले होते हैं। बार-बार निर्णय लेने के कारण वे दैनिक कार्यों में शामिल हो जाते हैं तथा इस प्रक्रिया में स्वयं ही योजित हो उठते हैं। संयोजित निर्णयों का प्रयोग अधिकतर अधिकांश संगठनों में दैनिक मामलों, मुआवजा नीति व वेतन से सम्बन्धित कार्यों को निपटाने के लिए होता है। संयोजित निर्णयों में आदतें, कार्यकुशलता, व्यवहार समस्या के विषय में सम्पूर्ण उपलब्ध जानकारी आदि महत्वपूर्ण होते हैं। इन परिस्थितियों में गणितीय मात्रक तथा कम्प्यूटर निर्णय करता को तार्किक निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं।

(2) असंयोजित निर्णय - असंयोजित निर्णय नये, गंभीर परिणाम वाले विशिष्ट तथा जटिल होते हैं। अधिकांशतः स्थापित नियम व प्रावधान नयी परिस्थितियों से निपटने में अक्षम होते हैं तथा संगठनों को नये सिरे से कदम उठाना पड़ता है तथा अपने हित के लिए अचूक निर्णय लेने पड़ते हैं। इन मसलों में पहले से तैयार कोई पद्धतियाँ उपलब्ध नहीं होती हैं तथा प्रत्येक समस्या पर अलग-अलग विचार करना पड़ता है। इस प्रकार असंयोजित निर्णयों में ज्यादा मौलिकता, परामर्श तथा जोखिम उठाने की आवश्यकता होती है।

साइमन के निर्णय निर्धारण मॉडल की सही परिस्थितियाँ

साइमन के मॉडल की वास्तविकता की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-

(1) संगठनों में कार्य करने वाले व्यक्ति सामान्यतः मूल उद्देश्यों, मूल्यों तथा इन सबसे उत्पन्न प्राथमिकताओं पर सहमत नहीं होते हैं।

(2) एक विशेष परिस्थिति यह भी होती है कि निर्णय करने वाले व्यक्ति सभी विकल्पों व उनके परिणामों को नहीं जानते हैं।

(3) प्रायः यह देखने में आता है कि प्रबन्धकों की समस्याओं के प्रति जो प्रतिक्रिया पूर्व स्थापित धारणाओं तथा आदतों की बनावट के आधार पर होती है।

(4) संगठन के निर्णय कर्त्ता के पास कभी भी पूर्ण सूचनाएँ नहीं होती हैं तथा जो सूचना उनके पास होती भी है उसका विश्लेषण करने की तकनीकी क्षमता तथा मनोवैज्ञानिक क्षमता सीमित होती है।

निष्कर्ष - कोई भी सिद्धान्त अपने आप में पूर्ण नहीं होता है। इसी प्रकार साइमन का निर्णय निर्धारण मॉडल भी अपने आप में कुछ त्रुटियाँ लिए हुए था। अनेक प्रकरणों में सरकारी प्रयासों की लागत खर्च तथा उसके परिणामों के मापन में समस्याओं का सामना करना पडता है। अधिकांश अवसरों पर प्रशासनिक कार्यों में गहन अन्वेषण की प्रक्रिया लाभदायक नहीं होती है तथा कई बार त्वरित निर्णय या कार्य करने पड़ते हैं तथा सोच-समझकर विचार कर कोई कार्य करने या निर्णय करने का अवकाश नहीं रहता है। साइमन इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि प्रशासनिक निर्णय करने का स्तर सीमित तर्कसंगत तथा विश्लेषणपरक है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- 'लोक प्रशासन' के अर्थ और परिभाषाओं की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- लोक प्रशासन की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- लोक प्रशासन के क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- लोकतांत्रिक प्रशासन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्रशासन' शब्द का प्रयोग सामान्य रूप से किन प्रमुख अर्थों में किया जाता है?
  6. प्रश्न- "लोक प्रशासन एक नीति विज्ञान है" यह किन आधारों पर कहा जा सकता है?
  7. प्रश्न- लोक प्रशासन का महत्व बताइए।
  8. प्रश्न- प्रशासन के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- लोक प्रशासन के क्षेत्र का 'पोस्डकोर्ब दृष्टिकोण' की व्यख्या कीजिये।
  10. प्रश्न- लोक प्रशासन को विज्ञान न मानने के क्या कारण हैं?
  11. प्रश्न- एक अच्छे प्रशासन के गुण बताइए।
  12. प्रश्न- विकासशील देशों में लोक प्रशासन की चुनौतियाँ बताइये।
  13. प्रश्न- 'लोक प्रशासन में सैद्धान्तीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति', टिप्पणी कीजिए।
  14. प्रश्न- कार्मिक प्रशासन के मूल तत्व क्या हैं?
  15. प्रश्न- राजनीतिज्ञ एवं प्रशासक के मध्य अन्तर लिखिए।
  16. प्रश्न- शासन एवम् प्रशासन में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  17. प्रश्न- अनुशासन से क्या तात्पर्य है? लोक प्रशासन में अनुशासन के महत्व को दर्शाइए।
  18. प्रश्न- भारत में लोक सेवकों के आचरण को अनुशासित बनाने के लिए किए गए प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- लोक सेवकों को अनुशासन में बनाए रखने के लिए उन पर लगाए गए प्रतिबन्धों का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- किसी संगठन में अनुशासन के योगदान पर टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- प्रशासन में अनुशासनहीनता को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारण कौन-कौन से हैं?
  22. प्रश्न- "अनुशासन में गिरावट लोक प्रशासन के लिए चुनौती" इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  23. प्रश्न- लोक प्रशासन से आप क्या समझते हैं? निजी प्रशासन लोक प्रशासन से किस प्रकार भिन्न है?
  24. प्रश्न- "लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन में अनेकों असमानताएँ होने के बावजूद कुछ ऐसे बिन्दू भी हैं जो उनके बीच समानताएँ प्रदर्शित करते हैं।' कथन का परीक्षण कीजिए।
  25. प्रश्न- निजी प्रशासन में लोक प्रशासन की अपेक्षा भ्रष्टाचार की सम्भावनाएँ कम है, कैसे?
  26. प्रश्न- निजी प्रशासन के नकारात्मक पक्षों पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- लोक प्रशासन की तुलना में निजी प्रशासन में राजनीतिकरण की सम्भावनाएँ न्यूनतम हैं, कैसे?-
  28. प्रश्न- निजी प्रशासन के दो प्रमुख लाभ बताइए।
  29. प्रश्न- लोक प्रशासन के महत्व पर विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- आधुनिक राज्यों में लोक प्रशासन के विभिन्न रूपों को स्पष्ट कीजिए।
  31. प्रश्न- विकासशील देशों में लोक प्रशासन की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- संगठन का अर्थ स्पष्ट करते हुए, इसके आधारों को स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- संगठन के आधारों को स्पष्ट कीजिए।
  34. प्रश्न- संगठन के प्रकारों को स्पष्ट कीजिए। औपचारिक संगठन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  35. प्रश्न- औपचारिक संगठन की विशेषताएँ बताइये।
  36. प्रश्न- अनौपचारिक संगठन से आप क्या समझते हैं? इनकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- संगठन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- संगठन के यान्त्रिक अथवा शास्त्रीय दृष्टिकोण (उपागम) को स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- पदसोपान प्रणाली के गुण व दोष बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  41. प्रश्न- संगठन के आदेश की एकता सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- आदेश की एकता सिद्धान्त के गुण बताते हुए इसकी समालोचनाओं पर भी प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- 'प्रत्यायोजन' से आप क्या समझते हैं? प्रत्यायोजन को परिभाषित करते हुए इसकी आवश्यकता एवं महत्व को बताइए।
  44. प्रश्न- प्रत्यायोजन के विभिन्न सिद्धान्तों एवं प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  45. प्रश्न- संगठन के सिद्धान्तों के विशेष सन्दर्भ में प्रशासन को लूथर गुलिक एवं लिंडल उर्विक के योगदान की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- लोक प्रशासन के क्षेत्र में एल्टन मेयो द्वारा प्रस्तुत मानव सम्बन्ध उपागम पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- हरबर्ट साइमन के निर्णय निर्माण सम्बन्धी मॉडल की व्याख्या कीजिए।
  48. प्रश्न- हर्बर्ट साइमन के निर्णय निर्माण सिद्धान्त का लोक प्रशासन में महत्व पर प्रकाश डालिए।
  49. प्रश्न- नौकरशाही का अर्थ बताइये और परिभाषाएँ दीजिए।
  50. प्रश्न- नौकरशाही की विशेषताएँ अथवा लक्षणों को बताइये।
  51. प्रश्न- निर्णयन का क्या अर्थ है? प्रशासन में निर्णयन प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- हेनरी फेयाफल द्वारा उल्लिखित किये गये संगठन के सिद्धान्तों को बताइए।
  53. प्रश्न- 'गेंगप्लांक' पर टिप्पणी कीजिये।
  54. प्रश्न- हरबर्ट साइमन द्वारा 'प्रशासन की कहावत' किन्हें कहा गया है और क्यों?
  55. प्रश्न- ऐल्टन मेयो को मानव सम्बन्ध उपागम के प्रवर्तकों में शामिल किया जाता है, क्यों?
  56. प्रश्न- निर्णयन के अवसरों का वर्णन कीजिए।
  57. प्रश्न- निर्णयन के लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- प्रतिबद्ध नौकरशाही की विवेचना कीजिए।
  59. प्रश्न- सूत्र एवं स्टाफ अभिकरण का आशय स्पष्ट कीजिए। सूत्र एवं स्टाफ अभिकरण में अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- सूत्र या पंक्ति अभिकरण से क्या आशय है एवं सूत्र (लाइन) या पंक्ति अभिकरणों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- प्रशासन में स्टाफ अभिकरण के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- स्टाफ अभिकरणों के कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  63. प्रश्न- स्टाफ अभिकरण के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- सहायक अभिकरण का अर्थ स्पष्ट कीजिए एवं स्टाफ अभिकरण से इनकी भिन्नता पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- मुख्य प्रशासक की प्रशासन में क्या स्थिति है? स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- बजट से आप क्या समझते हैं? इसे परिभाषित कीजिए। भारत में बजट कैसे तैयार किया जाता है?
  67. प्रश्न- बजट किसे कहते है? एक स्वस्थ बजट के महत्वपूर्ण सिद्धान्त बताइए।
  68. प्रश्न- भारत में केन्द्रीय बजट का निर्माण किस प्रकार होता है?
  69. प्रश्न- वित्त विधेयक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  70. प्रश्न- वित्त विधेयक के सम्बन्ध में राष्ट्रपति के विशेषाधिकार को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- बजट का महत्व बताइए।
  72. प्रश्न- भारत में बजट के क्रियान्वयन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- बजट के कार्य बताइये।
  74. प्रश्न- बजट के प्रकार लिखिए।
  75. प्रश्न- वित्त आयोग के कार्य बताइए।
  76. प्रश्न- योजना आयोग का प्रशासनिक ढाँचा क्या है?
  77. प्रश्न- शून्य आधारित बजट का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन से आप क्या समझते हैं? नवीन लोक प्रशासन के उदय के कारण बताते हुए इसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि का वर्णन कीजिए तथा नवीन लोक प्रशासन एवं दार्शनिक पृष्ठभूमि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  79. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य को स्पष्ट करते हुए इसके लक्षणों का परीक्षण कीजिए।
  81. प्रश्न- नवीन लोक प्रबन्ध के अभ्युदय कैसे हुआ? नवीन लोक प्रबन्ध की मुख्य विशेषताएँ बताते हुए इसके अंतर्गत सरकार की भूमिका में आए बदलावों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन की भावी सम्भावनाओं को व्यक्त कीजिए।
  83. प्रश्न- नव लोक प्रशासन का उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  84. प्रश्न- नवीन लोक प्रशासन के प्रमुख तत्व कौन से हैं?
  85. प्रश्न- 'नवीन लोक प्रबन्ध' दृष्टिकोण के हानिकारक पक्षों पर प्रकाश डालिए।
  86. प्रश्न- नव लोक प्रबन्ध की पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण के समर्थक क्या आलोचना करते हैं?
  87. प्रश्न- नव लोक प्रबन्ध की हरबर्ट साइमन द्वारा प्रस्तुत आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- प्रशासकीय कानून का क्या अर्थ है? प्रशासकीय कानून के विकास के प्रमुख कारण बतलाइए।
  89. प्रश्न- प्रशासकीय अधिनिर्णय का क्या अर्थ है? इसके विकास के प्रमुख कारणों का विवेचन कीजिए।
  90. प्रश्न- भारत में जन शिकायतों के निस्तारण हेतु ओम्बड्समैन की स्थापना हेतु किए गए प्रयासों की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- प्रशासन पर न्यायिक नियन्त्रण से क्या तात्पर्य है? कोई न्यायालय प्रशासन के कार्यों को किस प्रकार अवैध घोषित कर सकता है?
  92. प्रश्न- भारत में प्रशासन पर न्यायिक नियन्त्रण के विभिन्न साधनों का परीक्षण कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में प्रशासकीय न्यायाधिकरणों को कितने वर्गों में विभाजित किया गया है?
  94. प्रश्न- प्रशासकीय न्यायाधिकरणों से क्या लाभ हैं?
  95. प्रश्न- प्रशासकीय न्यायाधिकरणों की हानियाँ बताइए।
  96. प्रश्न- लोक प्रशासन के अध्ययन के आधुनिक उपागमों को बताइये तथा व्यवहारवादी उपागमन को सविस्तार समझाइये।
  97. प्रश्न- लोक प्रशासन के अध्ययन के व्यवस्था उपागम का वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- लोक प्रशासन के संरचनात्मक कार्यात्मक उपागम की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- लोक प्रशासन के अध्ययन के पारिस्थितिकी उपागम का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- सुशासन से आप का क्या आशय है? सुशासन की विशेषताएँ लिखिए।
  101. प्रश्न- भारतीय क्षेत्र में सुशासन स्थापित करने की प्रमुख चुनौतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- भारत में सुशासन की स्थापना हेतु किये गये प्रयासों पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- विकास प्रशासन से क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  104. प्रश्न- विकास प्रशासन से आप क्या समझते हैं? विकास प्रशासन के विभिन्न सन्दर्भों का उल्लेख करें।
  105. प्रश्न- विकास प्रशासन की धारणा के उद्भव व विकास को समझाते हुए विकास की विभिन्न रणनीतियों की विवेचना कीजिए।
  106. प्रश्न- विकास प्रशासन के विभिन्न तत्वों की विवेचना कीजिए।
  107. प्रश्न- विकास प्रशासन की प्रकृति एवं साधन बताइए।
  108. प्रश्न- विकास प्रशासन के सामान्य अभिप्राय के सम्बन्ध में प्रमुख विवादों (भ्रमों) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  109. प्रश्न- विकासात्मक नीतियों को लागू करने में विकास प्रशासन कहाँ तक उपयोगी है?
  110. प्रश्न- विकास प्रशासन की प्रमुख समस्याएँ बताइए।
  111. प्रश्न- विकास प्रशासन के 'स्थानिक आयाम' को समझाइए।
  112. प्रश्न- विकास प्रशासन की धारणा के विकास के दूसरे चरण में विकास सम्बन्धी कि मान्यताओं का उदय हुआ?
  113. प्रश्न- विकास प्रशासन के समय अभिमुखी आयाम पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- विकास प्रशासन और प्रशासनिक विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- राजनीतिक और स्थायी कार्यपालिका से आप क्या समझते हैं और उनके मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  116. प्रश्न- भारतीय प्रशासन के विकास का विश्लेषणात्मक वर्णन कीजिए।
  117. प्रश्न- राजनीति क्या है? मानव सामाजिकता में राजनीतिक भूमिका लिखिए।
  118. प्रश्न- वर्तमान भारतीय प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।

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