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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 7

प्राचीन भारत में लोहे का प्रमाण तथा
ऐतिहासिक विकास में इसके अनुप्रयोग

(Evidence of Iron in Ancient India and
Its Application in Historical Development)

प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?

अथवा
लौह उत्पत्ति ने किस प्रकार चौमुखी विकास को प्रशस्त किया?

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. भारत में लौह युग पर टिप्पणी लिखिए।
2. महाश्मीय संस्कृति की कार्बन तिथियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
3. विदर्भ की महाश्मीय संस्कृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
4. लोहा सर्वप्रथम किस रूप में प्राप्त हुआ?

उत्तर-

पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के बीच में लौह तकनीक के प्रादुर्भाव और प्रयोग ने अतिरिक्त उत्पादन द्वारा समाज में चौमुखी विकास का मार्ग खोल दिया। लौह अयस्कों की बहुलता के बिना केवल तकनीक का ज्ञान ही पर्याप्त नहीं था। ताम्र की अपेक्षा लौह की विशिष्टता उसकी कठोरता के कारण नहीं बल्कि प्रचुरता के कारण थी। हिट्टाइट साम्राज्य की शक्ति का आधार लौह धातुकर्म पर एकाधिकार था। उसी प्रकार मगध साम्राज्य की शक्ति का स्रोत राज्य द्वारा संचालित खानें तथा अयस्कों का शोधन तथा लौह व्यापार पर एकाधिकार भी था। लगभग 1200 ई. पू. हिट्टाइट साम्राज्य के टूटते ही लौह तकनीक बड़ी तेजी से पश्चिमी एशिया में फैल गयी। इस उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में लगभग 1000 ई. पू. में अल्प मात्रा में लोहा मिला है। लेकिन उत्तर-भारत में इसके पूर्ण प्रभाव को हम 600-500 ई. पू. में ही देखते हैं। दक्षिण भारत में लोहे का प्रादुर्भाव काफी पूर्ववर्ती लगता है।

(i) उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र - स्टाकुल के नेतृत्व में इटली के पुरातत्ववेत्ताओं तथा दानी ने स्वात तथा बाजौर घाटी के अनेक क्षेत्रों का उत्खनन किया। यहाँ से अधिकांशतः शवाधान तथा अंत्येष्टि सामग्री उपलब्ध हुयी, इसके आधार पर इताल्वी विद्वानों ने इन्हें तीन कालों में बाँटा पुरातन, मध्ययुग, अर्वाचीन।

इस क्षेत्र में गंधार शवाधान संस्कृति के मुख्य स्थल लोकवा, तीमरगढ़, बुटकारा, काटेलाई और गालीगाई हैं। स्टाकुल के मतानुसार चारसद्दा के सबसे प्रारम्भिक स्तर की तुलना भी गालीगाई के काल से की जा सकती है। इस काल की कब्रें खड़े पत्थरों व फर्श की बनी हैं। समकोण इमारतें, कुएँ, हस्तनिर्मित मृद्भाण्ड व मुख्यत: ताम्र उपकरण भी मिले हैं। लोहे का मिलना स्टाकुल अपवाद समझते हैं। इस काल में शवाधानों की अपेक्षा मुर्दे जलाये जाते थे। स्टाकुल ने उस काल की समानता हसानलू लौह युग के काल I प्रकाल 5 (लगभग 1300-1000 ई. पू.) और गालीगाई काल V से प्राप्त घुंडींदार पीठ वाले धूसर भाण्ड से की तथा काल VI की समानता हसानलू IV से की है। इस काल की बस्ती तथा कब्रें काल के सदृश हैं। लेकिन इस काल में मुर्दों को जलाने की अपेक्षा उन्हें दफनाने की प्रथा अधिक प्रचलित थी। विविध प्रकार के चाकनिर्मित उत्कृष्ट धूसर मृद्भाण्ड प्रचलित थे।

 

(ii) उत्तरी व पूर्वी भारत - पश्चिमी दोआब में लोहा चि. धू. मृद्भाण्ड के साथ बिहार तथा बंगाल में काले-लाल मृद्भाण्ड के साथ सर्वप्रथम प्राप्त हुआ। पश्चिमी एशिया से इनके कोई भी पुरातात्विक समतुल्य प्रमाण नहीं मिले। परन्तु चि. धू. मृद्भाण्ड को संभवतः हड़प्पा संस्कृति के अन्त तक पहुँचाने के लिये प्रत्येक अन्तराल को एक लम्बा समय दिया गया। इसमें तिथि निर्धारण निम्न प्रकार से किया गया-

(i) हस्तिनापुर की बाढ़ को महाभारत की घटनाओं से सम्बन्धित करना।
(ii) चि. धू. मृद्भाण्ड स्तर से लोहे का न मिलना।
(iii) चि. धू. मृद्भाण्ड तथा एन. बी. पी. के मध्य का अन्तराल।
(iv) एन. बी.पी. की प्रारम्भिक पूर्ववर्ती तिथि।

हस्तिनापुर में इस संस्कृति को महाभारत की घटनाओं से जोड़ना इस समय तक विवादास्पद ही है। टंडन को आलमगीर से, गौड़ को अतरंजीखेड़ा तथा लाल और पांडे को अपने ही बाद के उत्खनन से चि. धू, भाण्ड स्तरों से लोहा प्राप्त हुआ। अतः अब यह सर्वमान्य है कि चि. धू. भाण्ड एक लौहयुगीन संस्कृति थी। हड़प्पा तथा चि. धू. भाण्ड के मध्य एक लम्बा अन्तराल है। काले-लाल भाण्ड उत्तर प्रदेश में अभी भी एक पहेली है। लेकिन गौड़ द्वारा अंतरजीखेड़ा के उत्खनन से महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया कि एक विशिष्ट प्रकार के काले-लाल भाण्ड ने चि. धू. भाण्ड का स्थान ले लिया। चि. धू. भाण्ड के पश्चात एक बड़ी बाढ़ के निशान मिलते हैं। बाढ़ के प्रकोप के बाद एन. बी. पी. का काल प्रारम्भ होता है। जबकि अन्य स्थलों पर जैसे अंतरजीखेड़ा, श्रावस्ती आदि में चि. धू. भाण्ड और एन. बी.पी. की भाण्ड परम्परा के मध्य निरन्तरता मिलती है। अतः हस्तिनापुर के अन्तराल को केवल स्थानीय ही समझना चाहिये।

(iii) एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम - भारत में कार्बन तकनीक के प्रयुक्त होने से पूर्व यह समझा जाता था कि एन. बी. पी. भाण्ड लगभग 600 से 300 ई.पू. प्रचलित थे और ये प्रमाण पुरातात्विक कालानुक्रम के लिये प्रयुक्त होते थे। काल III के अंत के पश्चात काल IV में, लाल के अनुसार लगभग 200 ई.पू. मथुरा में मुद्रा प्रचलित हुई। काल III तथा IV के मध्य, लाल 100 वर्ष का अंतराल बताते हैं। हस्तिनापुर I में 1.5 से 2.7 और हस्तिनापुर II में 2.7 मीटर के निक्षेप के आधार पर वे काल III के छः प्रकाल निर्धारित करते हैं। परन्तु इन्हीं प्रमाणों का विश्लेषण करते हुये व्हीलर का कथन है कि चूँकि तक्षशिला का स्तर विन्यास पद्धति से उत्खनन नहीं हुआ था, अत: यह गहराइयाँ कोई खास मायने नहीं रखतीं। उनके विचार से एन. बी. पी. का काल 5 से 2 सदी ई.पू. निर्धारित होना चाहिये।

उपर्युक्त सर्वेक्षण से स्पष्ट होता है कि दोआब के पूर्वी प्राथमिक क्षेत्रों में ही वास्तविक एन. बी. पी. भाण्डों का प्रचलन था। एन. बी. पी. भाण्ड निश्चित ही पूर्व मौर्य व युद्धकालीन रहे होंगे। जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में यह मौर्य काल या उससे थोड़ा पहले प्रचलन में आये होंगे। दूरस्थ प्रदेशों में यह ईसा की प्रारम्भिक सदी तक प्रचलित रहे होंगे।

(iv) विदर्भ की महाश्मीय संस्कृति - पौनार और कौडियपुर के उत्खनन से लाल रंग से चित्रित काले भाण्ड मिले थे। उन्होंने नागपुर क्षेत्र में तकलाघाट तथा खापा का भी उत्खनन किया। ये सभी स्थल एक ही संस्कृति के भाग हैं। इन सब स्थलों की समान विशिष्टताएँ हैं। मृद्भाण्डों की बनावट और प्रकार ताम्र तथा लौह उपकरणों के आकार एक सी ही हैं।

(v) महाश्मीय संस्कृति की कार्बन तिथियाँ - वाराणसी जिलों में चन्द्रप्रभा घाटी के महाश्मों को उत्खनक ने ताम्राश्मीय संस्कृति के अन्तर्गत रखा है। काकोरिया के ऐसे ही महाश्मीय स्थल से संगोरा वृत्त और सिस्ट मिले। इन शवाधानों में मानवी हड्डियाँ और मृद्भाण्ड तथा एक कब्र में सोने की चूड़ी भी मिली। दक्षिणी में लौह के उपयोग का तिथि निर्धारण केवल हल्लूर की TF- 573 और 570 तिथियों पर निर्भर करता है।

(vi) भारत में लौह युग - उत्तर में लौह तकनीक का प्रसार ईरान से स्थल मार्ग से लगभग दो सौ साल में हुआ होगा। स्वात घाटी के काल में लोहे के साथ धूसर मृद्भाण्ड का चालन व इसी प्रकार भारत के चि. धू. भाण्ड के साथ लोहे का मिलना महत्वपूर्ण समझा जा सकता है। दक्षिण में महाश्मीय संस्कृति प्रबल थी परन्तु विभिन्न प्रकार के महाश्म हिमाचल प्रदेश, अल्मोड़ा, आगरा, इलाहाबाद व वाराणसी के जिलों से तथा आसाम से भी मिले हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

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