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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।

अथवा
जोर्वे-संस्कृति के भौगोलिक विस्तार पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-

महाराष्ट्र में स्थायी ग्राम्य जीवन का आरम्भ ताम्रपाषाणिक संस्कृतियों के साथ होता है। महाराष्ट्र में विदर्भ के कुछ हिस्सों तथा कोंकण को छोड़कर शेष सम्पूर्ण भाग से मालवा ताम्राश्म संस्कृति के अवशेष मिले हैं तथापि जोर्वे की ताम्रपाषाणिक संस्कृति महाराष्ट्र की विशिष्ट संस्कृति प्रतीत होती है।

जोर्वे संस्कृति के विषय में सर्वप्रथम जानकारी महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित जोर्वे नामक पुरास्थल के उत्खनन से हुई है, इसलिए इसको यह नाम दिया गया। इस पुरास्थल पर एक ही संस्कृति के पुरावशेष उपलब्ध हुये थे, अतएव यह निश्चित नहीं किया जा सका कि अन्य संस्कृतियों के सन्दर्भ में जो की क्या स्थिति रही होगी। नासिक के उत्खनन से जोर्वे संस्कृति के पुरावशेष आरम्भिक ऐतिहासिक काल के पुरावशेषों के नीचे मिले थे जिससे यह पता चला कि इस क्षेत्र में जोर्वे संस्कृति छठवीं पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व की आरम्भिक ऐतिहासिक युगीन संस्कृति से पहले विकसित हुई थी। जोर्वे तथा नासिक इन दोनों पुरास्थलों पर सीमित पैमाने पर उत्खनन होने के कारण इस संस्कृति के विभिन्न पक्षों के विषय में कोई उल्लेखनीय जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी थी। बीसवीं शताब्दी के विगत कतिपय दशकों में महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में ताम्रपाषाणिक संस्कृतियों के विषय में जो अन्वेषण एवं उत्खनन हुए हैं, उनसे जोर्वे संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं पर समुचित प्रकाश पड़ा है। जोर्वे संस्कृति से सम्बन्धित सबसे अधिक पुरास्थल तापी (ताप्ती नदी की घाटी में उसकी सहायक नदियों के तटों पर स्थित है। इसके पश्चात् संख्या की दृष्टि से जोर्वे संस्कृति के पुरास्थल गोदावरी की घाटी में स्थित हैं। भीमा नदी की घाटी में अत्यल्प संख्या में यत्र-तत्र जोर्वे संस्कृति के कतिपय गिने-चुने पुरास्थल विद्यमान हैं। तापी, गोदावरी तथा भीमा आदि बड़ी नदियों की अपेक्षा इनकी छोटी-छोटी सहायक सरिताओं मंजरा, कान, बरई, गोमय, अरुनावती, प्रवरा, गिरना, घोड़, चोड़, बहालुंगी आदि के किनारों पर अधिकांश पुरास्थल स्थित हैं। जोर्वे संस्कृति से सम्बन्धित अधिकांश पुरास्थल महाराष्ट्र की काली मिट्टी के ऊपर स्थित दिखलाई पड़ते हैं।

इस संस्कृति के अनेक पुरास्थलों का उत्खनन हो चुका है। इनमें से प्रकाश सावलदा तथा कौठे धुले जिले में और बहाल एवं टेकपाड़ा जलगाँव जिले में स्थित है। तुलजापुरगढ़ी अमरावती जिले में, दायमाबाद, नेवासा, नासिक, जोर्वे, सोनगाँव और अपेगाँव अहमदनगर जिले में तथा इनामगाँव, चन्दौली एवं वाड़की पुणे जनपद में पड़ते हैं। अधिकांश पुरास्थलों का आकार छोटा है। एक हेक्टेयर से लेकर दो-तीन हेक्टेयर तक क्षेत्रफल मिलता है। कतिपय पुरास्थल ऐसे हैं जिनका विस्तार 9 - 10 हेक्टेयर तक मिलता है। तापी तथा गोमरा के संगम पर स्थित प्रकाश का विस्तार लगभग 10 हेक्टेयर क्षेत्र में है। तापी नदी की घाटी में उसकी सहायक गिरना के तट पर स्थित बहाल एक अन्य विस्तृत क्षेत्रफल वाला पुरास्थल है जिसका विस्तार लगभग 15 हेक्टेयर में है।..

मृद्भाण्ड परम्पराएँ - जोर्वे संस्कृति में कई प्रकार की पात्र परम्पराएँ प्रचलित थीं जिनमें कुछ का आविर्भाव जोर्वे के साथ-साथ दिखलाई पड़ता है। कुछ पात्र परम्पराएँ पहले से ही आस्तित्व में थीं जिन्हें जोर्वे संस्कृति के लोगों ने ग्रहण कर लिया था। इस संस्कृति के परिवर्ती चरण मंे कुछ ऐसी पात्र परम्पराएँ दृष्टिगत होती हैं जो इस संस्कृति की पात्र परम्पराएँ न होकर किसी अन्य संस्कृति से सम्बन्धित थीं। जोर्वे संस्कृति के लोगों ने इन पात्र परम्पराओं को अपना लिया था।

वे पात्र परम्पराएँ जो जोर्वे संस्कृति के पहले ही अस्तित्व में आ चुकी थीं उनमें से मालवा पात्र परम्परा और दूधिया स्लिप वाली पात्र परम्परा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मालवा पात्र परम्परा मुख्यतः मालवा संस्कृति से सम्बन्धित है जिसके विषय में सर्वप्रथम जानकारी नवदाटोली के उत्खनन से हुई थी लेकिन इसका विस्तार पश्चिमी महाराष्ट्र प्रान्त में भी दिखलाई पड़ता है। इस क्षेत्र के प्रकाश, दायमाबाद, चन्दौली, सोनगाँव तथा इनामगाँव के उत्खननों से जोर्वे संस्कृति के निचले स्तरों से मालवा पात्र परम्परा उपलब्ध हुई। यह सुविदित है कि मालवा पात्र परम्परा के बर्तन हल्के लाल रंग के मिलते हैं जिनके ऊपर काले या स्लेटी रंग से चित्रण किए गए हैं। दूधिया स्लिप वाले मृद्भाण्ड चन्दौली से प्राप्त हुए हैं। लेकिन यह मृद्भाण्ड परम्परा घटिया किस्म की मालूम पड़ती है। मालवा पात्र परम्परा का प्रभाव दूधिया मृद्भाण्ड परम्परा के बर्तनों के प्रकार तथा चित्रण अभिप्रायों आदि पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है तथापि इन दोनों पात्र परम्पराओं के न मिलने पर भी जोर्वे संस्कृति के स्वरूप पर कोई विशेष अन्तर न पड़ता। ये दोनों पात्र परम्पराएँ संख्या में कम होने के साथ-साथ इस संस्कृति के निचले स्तरों से ही प्राप्त होती हैं। इन्हें जोर्वे संस्कृति के निर्णायक लक्षणों में अभिहीत नहीं किया जा सकता है।

जिस पात्र परम्परा के बिना जोर्वे संस्कृति आसानी से नहीं पहचानी जा सकती है, वह जोर्वे पात्र परम्परा है। इस पात्र परम्परा के पात्र प्रकार, चित्रण - अभिप्राय और निर्माण की एक विशिष्ट तकनीक है। पात्रों के ऊपर लाल रंग का प्रलेप मिलता है। कभी-कभी बर्तनों के ऊपर घिसकर चमकाने के भी साक्ष्य मिलते हैं। यद्यपि पात्रों का निर्माण अच्छी प्रकार से तैयार की गयी मिट्टी से किया जाता था तथापि इसकी मिट्टी में बालू का अच्छा खासा प्रतिशत दिखलाई पड़ता है। बर्तन पतली गढ़न के हैं। अधिकांश पात्र अच्छी तरह से पके हुए जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि इन बर्तनों को पकाने के लिए एक खास तरह के आर्य का निर्माण किया जाता था। यहीं नहीं इस संस्कृति के कुम्भकारों को इस बात की जानकारी थी कि बर्तनों को अच्छी तरह से पकाने के लिए कितने तापक्रम की आवश्यकता होगी। बर्तन प्रायः चाक पर बने हुए हैं लेकिन उनके कुछ हिस्सों, जैसे टोंटी आदि को हाथ से बनाया जाता था। इस पात्र परम्परा में कई तरह के पात्र प्रकार मिलते हैं जिनमें टोंटीदार बर्तन, कोणदार कटोरे, छोटी तथा बड़ी गर्दन वाले बर्तन, तसले, गहरे कटोरे आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त बड़े-बड़े मटकों तथा घडों आदि की भी गणना की जा सकती है। जोर्वे के पात्रों में थालियाँ अथवा तश्तरियाँ प्राप्त नहीं हुई हैं। जोर्वे पात्र परम्परा में कभी-कभी एक ऐसी साधार तश्तरी भी दृष्टिगत होती है जिसका आधार बहुत छोटा है। इस तरह के पात्र मेवासा, चन्दौली, सोनगाँव से भी उपलब्ध हुए हैं। मालवा संस्कृति के विशिष्ट साधार कटोरे जोर्वे पात्र प्रकारों में नहीं दिखलाई पड़ते हैं। कतिपय ऐसे पात्र दिखलाई पड़ते हैं जिनका सम्बन्ध दक्षिण भारत की नवपाषाणिक संस्कृति से है। इस तरह के पात्रों में भूरे रंग के अन्त्येष्टि कलश विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। लाल रंग की पात्र परम्परा में हाँडी तथा गोल बर्तन के बड़े ढक्कन भी जोर्वे संस्कृति में ठीक उसी तरह मिलतें हैं जैसे दक्षिण भारत की नवपाषाणिक संस्कृति में मिलते हैं। पेंदी के छेददार कटोरे तथा छोटे-छोटे पार्थ वाले पात्र भी जोर्वे संस्कृति में मिलते हैं। जिनके समरूप भी भारत की नवपाषाणिक संस्कृति में खोजे जा सकते हैं। जोर्वे पात्रों की निष्प्रभं लाल सतह पर काले रंग में चित्रण संजोये गए हैं। ये चित्रण - अभिप्राय आसानी से मिटाये नहीं जा सकते हैं। इस आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बर्तनों के पकाने के पहले ही चित्रण अभिप्राय संजोये गए थे। चित्रण अभिप्रायों के अवलोकन से यह पता चलता है कि इस संस्कृति के लोगों का झुकाव रेखिक तथा ज्यामितीय आकृतियों की ओर अधिक था। अधिकांश चित्रण प्रायः पड़ी रेखाओं के माध्यम से किये गये हैं। चतुर्भुज, टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ तथा त्रिभुज प्रमुख ज्यामितीय अलंकरण है। वनस्पति और फूल-पत्ती भी दिखलाई पड़ती है परन्तु इनकी संख्या बहुत कम है। जानवरों का चित्रण भी मिलता है। ऐसे चित्रण अधिकतर नेवासा से ही मिले हैं। चित्रित जानवरों में बारहसिंगा, कुत्ता आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

उत्तर-जोर्वे चरण के पात्र प्रकार प्रौढ़ जोर्वे की तरह के हैं लेकिन चित्रण-अभिप्रायों में कमी दिखलाई पड़ती है। इस स्तर से कृष्णलोहित पात्र भी मिलने लगते हैं जिनसे इंगित होता है कि इस चरण में जोर्वे संस्कृति के लोग दक्षिण भारत की वृहत्पाषाणिक संस्कृति के सम्पर्क में आए।

औजार उपकरण तथा अन्य पुरानिधियाँ - जोर्वे संस्कृति के लोग ताँबे के औजारों तथा उपकरणों के प्रयोग से परिचित थे लेकिन उनकी संख्या बहुत कम मिलती है। ताम्र उपकरणों में कुल्हाड़ियों, चाकू के फलकों, सुइयों, चूड़ियों, मनकों तथा अंजन शलाकाओं की गणना की जा सकती है।

एक किसान को दायमाबाद के टीले पर स्थित एक पेड़ की जड़ खोदते समय एक गैंडा, एक हाथी, एक भैंस तथा एक रथ जिसमें दो बैल जुते हुए हैं एवं उस पर खड़ी मुद्रा में एक व्यक्ति सवार है, मिले हैं। इनके नीचे लगभग 1.20 मीटर मोटा जोर्वे संस्कृति का पुरातात्विक जमाव था। ये सभी खिलौने ताँबे के बने हैं। इनको साँचे में ढालकर ठोस आकार में बनाया गया है। इन चारों का वजन लगभग 60 किग्रा. है। इन खिलौने के ताँबे में मिलावट नहीं है एवं आर्सेनिक की मात्रा मात्र 1% है।

जोर्वे संस्कृति से सम्बन्धित विभिन्न पुरास्थलों से लघु पाषाण उपकरण बहुत बड़ी संख्या में मिले हैं। दायमाबाद एवं इनामगाँव के उत्खनन से इस तरह के उपकरण प्रायः प्रत्येक घर से मिले हैं। इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि हर परिवार के लोग इनका निर्माण और प्रयोग करते थे।

प्रकाश, दायमाबाद, चन्दौली तथा इनामगाँव जोर्वे संस्कृति के स्तरों से कतिपय मानव एवं पशु मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। इनामगाँव से प्राप्त स्त्री तथा वृषभ की मूर्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। अनुमान लगाया जाता है कि स्त्री की मृण्मूर्ति मातृदेवी की और वृषभ उसका वाहन है। दोनों की पूजा अविछिन्न रूप से एक-दूसरे से जुड़ी हुई प्रतीत होती है। सिलखड़ी, तामड़ा पत्थर, पकी मिट्टी, ताम्र तथा सोने के बने मनके प्राप्त हुए हैं। नेवासा में एक बच्चे के कंकाल के गले में ताम्र के बने हुए मनकों का हार पड़ा हुआ मिला है।

आवास - जोर्वे संस्कृति के लोग एक स्थान पर स्थायी रूप से निवास करते थे। यह बहुत स्वाभाविक था कि ये लोग अपने रहने के लिए मकानों का निर्माण मिट्टी से करते थे। इनके मकान प्रायः चौकोर होते थे। इनामगाँव के उत्खनन से अनेक मकान प्रकाश में आये हैं। मकानों की दीवारों के कोने गोल बना दिये जाते थे। मकानों के छप्परों के सम्बन्ध में स्पष्ट जानकारी नहीं मिली है। मिट्टी की दीवारें और घास-फूस का छाजन होता था। कुछ मकानों के बीचों-बीच आँगन के भी साक्ष्य मिले हैं। मकानों के अन्दर तरह-तरह के मिट्टी के बर्तन मिले हैं जिनमें से प्रयोजन स्पष्टतः अनाज भण्डारण से तथा कुछ का प्रतिदिन के प्रयोग में आने वाले बर्तनों से था। बर्तनों के अतिरिक्त इनके मकानों में पत्थरों के सिल तथा बट्टे भी मिले हैं। अनुमान लगाया जाता है कि खाद्यान्नों को सिल बट्टों में पीस्कर प्रयोग में लाया जाता था।

इनामगाँव के उत्खनन से जोर्वे संस्कृति का एक ऐसा पक्ष उद्घाटित हुआ है जिसे हम उत्तरकालीन जोर्वे संस्कृति से जोड़ सकते हैं। उत्तरकालीन जोर्वे संस्कृति के इस स्तर से सम्बन्धित मकानों को देखने से यह पता चलता है कि अब लोगों ने चौकोर मकान बनाना छोड़ दिया था तथा गोल मकान बनाने लगे थे।

कृषि तथा पशुपालन - अहाड़ और मालवा के ताम्रपाषाणिक संस्कृतियों के लोगों की ही भाँति जोर्वे संस्कृति के लोग भी कृषि तथा पशुपालन करते थे। नेवासा के उत्खनन से इस बात के संकेत मिले हैं कि ये लोग सम्भवतः कपास की खेती करते थे। इनामगाँव के उत्खनन से जौ, गेहूँ, मटर, मसूर, मूँग तथा उड़द की खेती के साक्ष्य मिले हैं। झरबेर, जामुन, जंगली ताड़ तथा बहेड़ की गुठलियाँ भी इनामगाँव से प्राप्त हुई हैं।

पालतू पशुओं में गाय, बैल, भेड़ें, बकरी और कुत्ते प्रमुख थे। इनामगाँव के एक पात्र पर बैलगाड़ी में जुते हुए दो बैलों का चित्रण मिलता है। इससे स्पष्ट है कि बैल भारवाही प्रमुख पालतू पशु थे। जंगली पशुओं का शिकार भी करते थे।

अन्त्येष्टि संस्कार - जोर्वे संस्कृति के नेवासा, दायमाबाद, कौठे, चन्दौली, इनामगाँव इत्यादि पुरास्थलों से जो मानव कंकाल मिले हैं वे अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति में हैं। वुलजारपुरगढ़ी तथा वाड़की से जो कंकाल मिले हैं वे बच्चों के हैं। अपेगाँव से एक वयस्क का जबड़ा मिला है। टेकवाड़ा से भी मानव कंकाल मिले हैं। इनामगाँव से 176, कौठे से 37 तथा दायमाबाद से 5 मानव कंकाल प्राप्त हुए हैं। प्रकाश, सावलदा, बहाल, सोनगाँव, जोर्वे तथा नासिक के सीमित पैमाने पर शीर्षक उत्खनन हुए थे। इन उपर्युक्त पुरास्थलों से अभी तक मानव कंकाल नहीं मिले हैं। अस्थि-पंजर मकानों के फर्श के नीचे दफनाये हुए मिले हैं।

इस प्रकार हम यह देखते हैं कि सिन्धु सभ्यता की तरह जोर्वे संस्कृति में मुर्दों को आवास क्षेत्र से बाहर दफनाने की परम्परा नहीं थी। जोर्वे संस्कृति की यह विशिष्टिता नवपाषाणिक तथा वृहत्पाषाणिक संस्कृतियों से अनुप्रमाणित प्रतीत होती हैं। वयस्क लोगों को कब्रों में दफनाया जाता था। कब्रों में सिर प्रायः उत्तर दिशा की ओर मिलते हैं। मृतकों के साथ अन्त्येष्टि सामग्री के रूप में मिट्टी के बर्तन तथा आभूषण मिलते हैं। कुछ ऐसे भी साक्ष्य मिले हैं जिनमें कंकालों की टाँगें नहीं मिली हैं। दफनाने के पहले ही सम्भवतः टाँगें अलग कर दी जाती थीं। इस कार्य के पीछे क्या भावना रही होगी इस सम्बन्ध में कुछ विद्वानों का अनुमान है कि शायद इस परम्परा के पीछे जोर्वे संस्कृति के लोगों का अपने मृतकों के प्रति विशेष लगाव था। उन्हें इस बात का भय था कि मुर्दे कहीं भाग न जाएँ।

बच्चों को दफनाने के लिए बड़े आकार के अन्त्येष्टि कलश उपयोग में लाये जाते थे। इस कार्य के लिए लाल अथवा धूसर रंग के बर्तन प्रयोग किये जाते थे। एक बच्चे के शव को रखने के लिए ज्यादातर दो अन्त्येष्टि कलश काम में लाये जाते थे। इन कलशों को आपस में मुख से मुख मिलाकर क्षितिजाकार गड्डे में लिटाकर दफना दिया जाता था।

कभी-कभी एक अन्त्येष्टि कलश भी इस काम में लाया जाता था। अन्त्येष्टि कलशों में बच्चों के सिर उत्तर दिश की ओर तथा पैर दक्षिण दिशा की ओर करके दफनाये जाते थे। अन्त्येष्टि कलशों के साथ कटोरे तथा टोंटीदार बर्तन भी गड्डों में दफनाये हुए मिलते हैं।

कालानुक्रम जोर्वे की ताम्रपाषाणिक संस्कृति के तिथि क्रम के सम्बन्ध में हमें सापेक्ष तथा निरपेक्ष तिथियाँ प्राप्त हैं। स्तर विन्यास क्रम के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि जोर्वे संस्कृति मालवा संस्कृति के बाद की है क्योंकि प्रकाश, दायमाबाद तथा इनामगाँव में जोर्वे मालवा संस्कृति के स्तरों के ऊपर है। चन्दौली, सोनगाँव तथा बहाल में भी मालवा संस्कृति से सम्बन्धित पात्र परम्परा जोर्वे संस्कृति के नीचे स्तरों से उपलब्ध होती है। नवदाटोली में जोर्वे पात्र परम्परा मालवा संस्कृति के तीसरे चरण से मिलने लगती है। ये सभी साक्ष्य इस ओर इंगित करते हैं कि जोर्वे संस्कृति का विकास मालवा संस्कृति के बाद की घटना है। लेकिन इससे यह नहीं समझना चाहिए कि जब जोर्वे संस्कृति अस्तित्व में आयी तब तक मालवा संस्कृति अतीत की वस्तु बन चुकी थी। इसके विपरीत हमें इस बात के संकेत मिलते हैं कि शताब्दियों तक दोनों संस्कृतियाँ साथ-साथ चलती रहीं।

पुरातात्विक साक्ष्यों से हमें यह भी ज्ञात होता है कि जोर्वे संस्कृति आरम्भिक ऐतिहासिक युगीन संस्कृति से पहले की है क्योंकि नासिक, नेवासा आदि पुरास्थलों पर जोर्वे संस्कृति के स्तरों के ऊपर छठवीं - पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के आरम्भिक ऐतिहासिक युगीन पुरावशेष मिलते हैं। यद्यपि इन पुरास्थलों के उत्खननकर्ताओं ने प्रारम्भ में यह मत व्यक्त किया था कि जोर्वे संस्कृति के अन्तिम चरण और आरम्भिक ऐतिहासिक युगीन संस्कृति के प्रारम्भिक चरण के बीच समय का कोई अन्तराल नहीं था लेकिन इन पुरास्थलों से मिलने वाली रेडियो कार्बन तिथियों से इस धारणा की पुष्टि नहीं होती है।

जोर्वे संस्कृति से सम्बन्धित चन्दौली, सोनगाँव, नेवासा तथा इनामगाँव से कतिपय रेडियो कार्बन तिथियाँ उपलब्ध हैं। जिनके आधार पर इस संस्कृति का समय 1600 ई.पू. से 1000 ई.पू. के बीच निर्धारित किया गया है। एच. डी. सांकलिया और एम. के. धौलिकर उत्खनन से प्राप्त साक्ष्यों के आलोक में जोर्वे संस्कृति के अन्तिम चरण को 700 ई. पूर्व में रखने के पक्ष में है। वर्षा की कमी के कारण सूखे की स्थिति उत्पन्न होने पर जोर्वे संस्कृति का अंत हो गया।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

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