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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 14

गुप्तकालीन मुद्राएँ

( Gupta's Coins)

प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।

अथवा
गुप्तकालीन मुद्राओं की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
अथवा
गुप्तकालीन स्वर्णमुद्राओं की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
गुप्त शासकों की रजत मुद्राओं की प्रमुख विशेषताओं एवं प्रकारों की विवेचना  कीजिए।
अथवा
गुप्त स्वर्ण मुद्रा की उत्पत्ति का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
अथवा
गुप्तकालीन सिक्कों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्रा की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. समुद्रगुप्त के सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
2. समुद्रगुप्त के सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइये।
3. गुप्तकालीन सिक्कों के प्रकार बताइए।
4. गुप्तकालीन सिक्कों की दो विशेषताएँ बताइए।

अथवा
गुप्तकाल के स्वर्ण सिक्के की सामान्य विशेषतायें संक्षेप में लिखिये।
5. व्याघ्रहन्ता प्रकार की मुद्रा के विषय में बताइए।
6. टिप्पणी लिखिए - (1) रामगुप्त के ताम्र सिक्के, (2) कॉच के स्वर्ण सिक्के, (3) चन्द्रगुप्त द्वितीय के स्वर्ण सिक्के।

उत्तर-

गुप्तकालीन सिक्के ( मुद्राएँ)

प्राचीन भारत का गुप्तकाल 'स्वर्णयुग' के नाम से भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है। इस काल में भारतीयता की वृद्धि सभी क्षेत्रों में हुई। मुद्रा के प्रचलन में गुप्त राजाओं के नये विधान को समाविष्ट किया, किन्तु आरम्भ में गुप्तों ने पूर्व प्रचलित सिक्कों का अनुकरण ही किया। प्रथम दो महाराजा श्री गुप्त तथा घटोत्कच सामन्त थे। अतः उन्हें सिक्के प्रचलन स्यात् अधिकार न था, किन्तु उनके पश्चात् सभी शासकों ने सिक्का चलाया, तीसरा नरेश प्रथम चन्द्रगुप्त ने स्वतन्त्र होकर महाराजाधिराज की पदवी धारण की तथा गुप्त सम्वत् का भी शुभारम्भ किया। इसी शासक ने गुप्त सिक्कों का आरम्भ किया। पश्चिमी विद्वान इससे सहमत नहीं हैं। प्रथम चन्द्रगुप्त का राज्य सीमित ही था, किन्तु उसके पुत्र समुद्रगुप्त ने साम्राज्य की सीमा बढ़ाई। प्रयाग प्रशस्ति में उसके दिग्विजय का वृतांत भरा पड़ा है। उस युद्ध गाथा के अध्ययन से अनेक विषयों पर प्रकाश पड़ता है। राजनीति के पंडित समुद्रगुप्त ने कई नीतियों से काम लिया। उत्तर पश्चिम में पिछले कुषाण को पराजित किया। उनके सम्पर्क के कारण पिछले कुषाण सिक्कों का प्रभाव दिखायी पड़ता है। समुद्रगुप्त का दण्ड धारी सिक्का उस प्रभाव को व्यक्त करता है।

कुषाण शासन में ही स्वर्ण मुद्राएँ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के निमित्त ही प्रचारित किए गए थे। उसी आर्थिक नीति का अवलम्बन कर गुप्त नरेशों ने सोने के सिक्के सर्वप्रथम प्रचलित किये। उस युग में उत्तर पश्चिम भारत में मध्य एशिया तक व्यापार होता था। अतएव उसके लिए स्वर्ण मुद्रा ( अन्तर्राष्ट्रीय विनिमय) का प्रचार आवश्यक ही था। फाह्यान उसी मार्ग से होकर भारत आया था। ईसवीं पूर्व सदी में भारतीय यूनानी स्टेटर (स्वर्ण मुद्रा ) भी प्रचलित किये गये थे। अतः भारतीय व्यापार की अभिवृद्धि के लिए स्वर्ण मुद्राएँ गुप्त काल में प्रचलित हुई। समुद्रगुप्त ने पूर्वी सीमा (समतत डवाक ढाका आदि) को जीतकर दक्षिण पूर्व एशिया से व्यापार बढ़ाया था। स्वर्ण द्वीप से सोने का आयात होने लगा। यही कारण है कि गुप्त शासकों का ध्यान स्वर्ण मुद्रा की ओर आकृष्ट हुआ। उन लोगों के सामने नागवंशी सिक्के भी थे। नाग राजाओं को समुद्रगुप्त ने पराजित किया था, परन्तु उनका आर्थिक महत्व न था। अतः गुप्तों ने नाग सिक्कों का अनुकरण नहीं किया। समुद्र के पश्चात् द्वितीय चन्द्रगुप्त ने राज्य सीमा बढ़ाई। गुजरात, काठियावाड़ तथा मालवा को जीता। उस भू-भाग में शक क्षत्रय नरेशों के चाँदी के सिक्के प्रचलित थे।

इस बात से आश्चर्य होता है कि इतने प्रतापी तथा पराक्रमी गुप्तों ने स्वतन्त्र रूप से मुद्रा नीति स्थिर न की। यह सामयिक राजनीति का प्रभाव था।

समुद्रगुप्त के सिक्के

समुद्र गुप्त का पहला सोने का ( दण्डधारी प्रकार का ) सिक्का पिछले किदार कुषाण सिक्कों की तुलना में अधिक सदृश है। इस परिस्थिति में एलन समुद्रगुप्त को गुप्त सिक्कों का जन्मदाता मानते हैं। यह निर्विवाद है कि पिछले कुषाण सिक्कों का अनुकरण गुप्त शासकों ने किया था। यह तभी सम्भव हुआ जिस समय समुद्रगुप्त ने दिल्ली तक के भू-भाग को जीतकर पंजाब में किंदार कुषाणों को पद्दलित किया। कुषाणों ने समुद्रगुप्त की राजाज्ञा स्वीकृत की। विष्णु पुराण में निम्न रूप में वर्णित गुप्त राज्य सीमा को ध्यान में रखते हुए लिखा है.

"अनुगंगा प्रयागंच साकेत मागधान् तथा एतान जननपदान् सर्वान् भोक्ष्यन्ते गुप्त वंशजाः " यह स्वीकार करना पड़ेगा कि समुद्रगुप्त द्वारा पराजित होकर ही पिछले कुषाण सम्पर्क में आए। अतएब गुप्त मुद्रा नीति में उसका अनुकरण संदेह रहित हो जाता है। का इसका यह अर्थ कदापि नहीं माना जा सकता कि समुद्रगुप्त के सभी सिक्कों पर कुषाण प्रभाव है। अश्वमेघ तथा वीणा प्रकार के सिक्के नवीनता लिए समुद्र गुणों का वर्णन करते हैं।

समुद्रगुप्त ने जितने प्रकार की स्वर्ण मुद्राएँ प्रचलित की उससे अधिक नवीनता लिए द्वितीय चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपने पिता समुद्रगुप्त के सिक्कों पर विदेशी कुषाणों का प्रभाव देखा और अपनी मुद्राओं पर उस छाप को मिटा दिया।

गुप्त सेनापति वीर सेन विदिसा यानी मालवा पर विजय प्राप्त करके राजा (द्वितीय चन्द्रगुप्त ) के साथ गया था। उस समय ( ई. सं. 401) काठियावाड़ में क्षत्रपों के अन्तिम शासक रुद्रसिंह तृतीय राज्य करता था। इसको गुप्त नरेश ने पराजित किया और मालवा एवं काठियावाड़ को राज्य में मिला लिया। द्वितीय चन्द्रगुप्त को उस स्थान की जनता का विश्वास लाभ करना था। अतएव राजा ने क्षत्रप सिक्कों के समान गुप्त रजत सिक्के प्रचलित किये। चाँदी के गुप्त सिक्कों पर गुप्त लिपि में शासक की पदवी एवं नाम सहित मुद्रालेख अंकित मिलते हैं।

परमभागवत महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य

अतएव अभिलेखों तथा रजत सिक्कों के प्रमाण पर सिद्ध होता है कि चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय गुप्त साम्राज्य का विस्तार काठियावाड़ तक हो गया था। कहा जाता है कि इस सुदूर प्रांतों पर शासन के लिए द्वितीय चन्द्रगुप्त ने उज्जैनी को दूसरी राजधानी निश्चित की। इतना ही नहीं परिश्रमी भाग को सुरक्षित रखने के लिए अपनी पुत्री प्रभावती गुप्ता का विवाह बाकाटक नरेश से सम्पन्न किया। कवि कालिदास को दक्षिण भारत के कुंतल नरेश के राजसभा में दूत बना कर भेजा। इस प्रकार द्वितीय चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने राज्य की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए सांस्कृतिक उत्थान में हाथ बँटाया। व्यावसायिक उन्नति के साथ सोने तथा चाँदी के सिक्के अधिक मात्रा में प्रचलित किये। सोने के सिक्कों के परीक्षण से राजा के गुणों का परिज्ञान हो जाता है। उसकी कीर्ति तथा वैभव का अनुमान लगा सकते हैं। शासक की धार्मिक भावना की भी अभिव्यक्ति हो जाती है।

द्वितीय चन्द्रगुप्त का पुत्र प्रथम कुमारगुप्त पाँचवीं सदी के मध्य में सिंहासन पर बैठा। उसके सामरिक वृतांतों का पता नहीं। चौदह प्रकार की स्वर्ण मुद्राएँ तथा अनेक प्रकार के रजत सिक्के कुमारगुप्त के शासन सम्बन्धी सुख एवं शान्ति के द्योतक हैं। प्रथम कुमार गुप्त के मंदसोर की प्रशस्ति में व्यापारिक संस्था श्रेणी का वर्णन मिलता है, जो लाट (गुजरात) से आकर दशपुर ( मालवा ) में अपना व्यवसाय आरम्भ कर दिया (लाट - विषयान्नगावृत शैलाञ्जगति प्रथितशिल्पाः )। इससे प्रगट होता है कि प्रथम कुमारगुप्त का पूर्वाद्ध जीवन तथा शासन सुखमय रहा। धन-धान्य से राज्य पूर्ण था। उसके पुत्र स्कन्दगुप्त के भीतरी स्तम्भ लेख के वर्णन से ज्ञात होता है कि प्रथम कुमारगुप्त के अन्तिम समय में बाहरी शत्रुओं के ( हूणों) आक्रमण का भय हो गया था। उसे असंतुलित तथा युद्ध के वातावरण में गुप्त साम्राज्य की नींव हिलने लगी, किन्तु स्कन्द गुप्त ने शत्रुओं पर विजय पाई

(अ) पितरि दिवभुपेते विप्लुतां वंश लक्ष्मी भुज बल विजातारिर्य्यः प्रतिष्ठाय भूयः।

(ब) विचलित कुल लक्ष्मी स्तम्भनायोघतेन क्षितितल शयनीये मेन नीला त्रियाया समुद्रित बल कोशान्युष्यमित्रांश्च जित्वे क्षितिव चारणपीठे स्थापितो दामपाद। (भितरी स्तम्भ - लेख )।

प्रथम कुमारगुप्त के उत्तराधिकारी स्कन्दगुप्त की वीरता का परिचय उपरि युक्ति श्लोकों से मिलता है कि उसने शत्रुओं को पराजित कर अपने वंश की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित किया। हूणों का आक्रमण गुप्त साम्राज्य की आर्थिक स्थिरता का घोतक था। प्रथम कुमारगुप्त के चौदह प्रकार की स्वर्ण मुद्राओं से यह बात परिलक्षित नहीं होती, किन्तु उसके कुछ ऐसे सिक्के प्राप्त हुए हैं, जिन पर चाँदी के पानी का लेंप दिखायी पड़ता है। विद्वानों की धारणा है कि उस समय रजत सिक्कों का अभाव सा हो गया था। इस कारण राजा ने आवश्यकता की पूर्ति के लिए चाँदी के पानी वाला सिक्का प्रचलित किया।

(1) धनुर्धारी प्रकार
(2) राजा-रानी प्रकार।

इसके सिक्कों में शुद्ध धातु (सोने) की कमी दिखायी पड़ती है। स्यात् मिश्रित धातु वाला भारी तौल के सिक्के संकटमय युद्ध के परिणाम थे। सोने के सिक्कों में मिश्रण तथा संख्या (प्रकार) की कमी को देखते हुए गुप्त शासन की आर्थिक कठिनाइयों का अनुमान लगाया जा सकता है। युद्ध में कोष का खाली होना स्वाभाविक है। उस विषम परिस्थिति में अधिक प्रकार के स्वर्ण मुद्रा का प्रचलन असम्भव था। स्कन्दगुप्त ने इसका सामाधान किया। पूर्ववत् तौल माप (रोमन तौल) को हटाकर सुवर्ण तौल को अपनाया और सिक्कों की धातु में मिलावट की वृद्धि की। कहने का तात्पर्य यह है कि सिक्कों के आधार पर राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति का अध्ययन किया जा सकता है। समुद्रगुप्त के छः प्रकार की स्वर्ण मुद्रा के पश्चात् प्रथम कुमार गुप्त चौदह प्रकार के सोने के सिक्के प्रचलित किये थे।

प्रथम कुमारगुप्त के उत्तराधिकारी गुप्त इतिहास में प्रथम कुमारगुप्त के पश्चात् उत्तराधिकार का प्रश्न महत्वपूर्ण समझा जाता है। गुप्त सम्राट स्कन्दगुप्त के समस्त लेखों में जो वंशावली दी गई है, उसमें प्रथम कुमारगुप्त का पुत्र तथा उत्तराधिकारी स्कन्दगुप्त कहा गया है

इसके अतिरिक्त द्वितीय कुमारगुप्त के भीतरी मुद्रा लेख में पुरुगुप्त प्रथम कुमारगुप्त का पुत्र एवं उत्तराधिकारी ( तत्पादानुध्यातो) कहा गया है तथा उसकी माता पिता अत्यन्त देवी महारानी कहीं गयी हैं। तात्पर्य यह है कि पुरुगुप्त की माता कुमारगुप्त की महारानी थी ! स्कन्धगुप्त की माता के विषय में कोई उल्लेख नहीं मिलता है। यही समस्या है जिस कारण प्रथम कुमारगुप्त के पश्चात् वास्तविक उत्तराधिकार का प्रश्न सम्मुख आता है। यदि स्कन्धगुप्त स्वाभाविक उत्तराधिकारी था तो उसकी माता का नामोल्लेख क्यों नहीं किया गया, दूसरा सम्बन्धित प्रश्न यह है कि पुरुगुप्त को प्रथम कुमारगुप्त का उत्तराधिकारी क्यों न माना जाए, जब कि अनन्तदेवी तथा अन्य महारानी के सदृश प्रथम कुमारगुप्त की महारानी कहीं गयी हैं।

इस समस्या के यानी वास्तविक उत्तराधिकारी का सामाधान दो प्रकार से किया गया है-

1. प्रथम कुमारगुप्त के पश्चात् स्कन्दगुप्त सिंहासन पर बैठा। भीतरी स्तम्भ लेख में उल्लिखित तीनों शासक पुरु गुप्त, पुत्र नरसिंहगुप्त तथा पौत्र कुमारगुप्त द्वितीय क्रमशः शासन करते रहे। उनकी कुल अवधि दस वर्षों से भी कम थी। तदनन्तर यानि स्कन्दगुप्त के पश्चात् पुरुगुप्त शासक हुआ।

2. प्रथम कुमारगुप्त के पश्चात् गुप्त साम्राज्य को दो भागों में विभक्त कर दिया गया। पाटलिपुत्र के पश्चिमी भारत, मालवा, काठियावाड़ तक स्कन्दगुप्त राज्य करता रहा और पूर्वी भारत (बंगाल) में राज्य का भार पुरुगुप्त को सौंपा गया था। इस निष्कर्ष पर पहुँचने पर गुप्त शासकों का सहारा लेना पड़ता है। सिक्कों के अध्ययन से जंटिल प्रश्न को सुलझाया जा सकता है। पूर्वी बंगाल कालीघाट से गुप्त सिक्कों का ढेर मिला है, जिसमें पुरुगुप्त तथा वंशजों द्वारा प्रचलित सिक्के मिले हैं। यानी निम्न बातों के आधार पर-

(अ) मिश्रित सोना (50%),
(ब) भद्दी बनावट
(स) सुवर्ण तौल से अधिक भारी (151 ग्रेन),
(द) केवल धनुर्धारी प्रकार,
(य) सीमित क्षेत्र में प्रचलित (पूर्वी भारत )।

यह परिणाम निकलता है कि कालीघाट के सिक्के स्कन्दगुप्त के शासन काल के अनन्तर मुद्रित किये गये थे। प्रथम विचार के पोषक विद्वान यह मानते हैं कि ई.स. 467 स्कन्दगुप्त की अन्तिम तिथि तथा ई.स. 477 ( बुद्धगुप्त की प्रारम्भिक तिथि) के मध्य, पुरुगुप्त, नरसिंह तथा द्वितीय कुमारगुप्त ने शासन किया होगा क्योंकि बुद्धगुप्त के लेख एरण तथा सारनाथ से मिले हैं। उत्तरी बंगाल से प्राप्त दामोदर ताम्रपत्र का एक लेख बुद्धगुप्त के समय में खोदा गया। अतएव कालीघाट ढेर के राजाओं का शासन बुद्धगुप्त से पहले (यानी ई.स. 477 से पहले) समाप्त हो गया होगा। सिक्कों के आधार पर राज्य विभाजन का सिद्धान्त अमान्य नहीं हो सकता।

अभिलेखों में कुमारगुप्त के बाद भी उत्तराधिकारियों के नाम मिलते हैं। सिक्कों से भी उनकी पुष्टि होती है। गुप्त सम्राट का स्कन्दगुप्त ही अन्तिम शासक था, जिसका शासन कठियावाड़ (जूनागढ़ लेख ) से बंगाल तक विस्तृत था। हूणों का आक्रमण आरम्भ हो गया था। कोष खाली हो रहा था। सोने की कमी के कारण मिश्रित धातु के सिक्के प्रचलित किये गये। जनता को भ्रम में डालने के लिए सिक्कों की तौल 144 ग्रेन से अधिक बढ़ा दी गयी। ये सिक्के विषम परिस्थिति को व्यक्त करते है। स्कन्दगुप्त के बाद पश्चिमी भारत शैली के रजत सिक्के नहीं मिलते और न कोई अभिलेख ही उपलब्ध हुआ है। इससे प्रकट होता है कि स्कन्द गुप्त के बाद पश्चिमी भारत गुप्तों के हाथ से निकल गया, जो सोने के भद्दे सिक्के मिले हैं, वह पूर्वी भारत से मगध में सोने के सिक्कों का निर्माण प्रायः बन्द हो गया। पुरुगुप्त के उत्तराधिकारी येन केन प्रकार से शासन करते रहे, किन्तु बुद्धगुप्त का प्रभाव फैला, पुरु के वंशज के सोने की भद्दी मुद्रायें भी मिली हैं, रजत सिक्के अभी तक उपलब्ध नहीं हैं। बुद्धगुप्त का सोने का सिक्का (स्थान अज्ञात) तथा मध्य देश शैली के चाँदी के सिक्के शासक के प्रताप, शक्ति, तथा प्रभाव के घोतक हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

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