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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 13

हिन्द-यवन मुद्राएँ: कुषाणकालीन मुद्राएँ

(Indo-Greek Coins : Kushan's Coins)

प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।

अथवा
कुषाणकालीन मुद्राओं पर प्रकाश डालिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. कुजुल कडफिसेस के सिक्कों के विषय में बताइए।
2. विम कडफिसेस के सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
3. कनिष्क के ताम्र व स्वर्ण मुद्राओं पर प्रकाश डालिए, हुविष्क की मुद्राओं के विषय में आप क्या जानते हैं?

उत्तर-

कुषाण कालीन सिक्के - कुषाण कालीन भारत में जिन सिक्कों का चलन था। यूनानी और रोम के सिक्कों की नकल के रूप में बनाया गया। इस प्रकार के सिक्कों के अग्रभाग में हर्मियस का चित्र तथा यूनानी लिपि में उसका नाम और उपाधियाँ हैं और पृष्ठ भाग में खरोष्ठी लिपि तथा आकृति भाषा में कुजुल कडफिसेस का नाम है। इस राजा ने अपने शासनकाल में स्वर्ण सिक्के रोमन मानक की भाँति बनवाये। कुछ सिक्कों पर शिव का चित्र बना हुआ है। कनिष्क प्रथम के शासनकाल में जो सिक्के चलाये गए, उसका अग्रभाग एक समान है।

वासुदेव प्रथम के शासनकाल के सिक्के पर महादेव की प्रतिमा बनी हुई नजर आती है। कुषाण राजाओं के शासनकाल के सिक्के अफगानिस्तान, सीस्तान और पंजाब में प्राप्त हुए है जो सोने, चाँदी के बने हुए हैं। इन सिक्कों की बनावट अच्छी नहीं है। मुद्राशास्त्र के विद्वानों ने इन सिक्कों के दो भागों में बाँटा है-

1. अरदोक्षों देवी वाले सिक्के
2. शिवनंदी वाले सिक्के।

कुजुल कडफिसेस के सिक्के - कुषाणवंश के संस्थापक सम्राट कुजुल कडफिसेस के केवल ताँबे के सिक्के ही मिलते हैं। मार्शल का तक्षशिला की खुदाई से उसके बहुसंख्यक सिक्के मिलते हैं। ये दो प्रकार के हैं- काबुल के यवन नरेश हर्मियस तथा कुजुल दोनों का उल्लेख मिलता है। इसका विवरण इस प्रकार है

मुख भाग - बेसिलियस बेसिलिन हरमेआय।
पृष्ठ भाग -खरोष्ठी में कुजुल कसस कुषाण युवगस।

1. कुजुल कडफिसेस के सिक्के - कुजुल ने स्वतंत्र शासक बनने के बाद जो सिक्के प्रचलित करवाये उनका विवरण निम्नलिखित है

मुख भाग- यूनानी भाषा में उपाधि सहित नाम कोसानो कोजोलौ कडफिजाय उत्कीर्ण है।

पृष्ठ भाग - खरोष्ठी लिपि में कुजुल कसस कुषण यवुगसधमिथइदस अंकित मिलता है।

धमधिदस अर्थात् धर्म में स्थित से ऐसा निष्कर्ष निकाला जाता है, कि कुजुल कंडफिसेस ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। कुजुल कडफिसेस के सिक्कों का वजन 30 ग्रेन के लगभग था।

2. विम कडफिसेस के सिक्के - सर्वप्रथम स्वर्ण सिक्कों का प्रचलन इसी शासक ने करवाया था। यद्यपि उसके ताम्र तथा रजत सिक्के भी मिले हैं तथापि स्वर्ण सिक्कों की संख्या अधिक है।

(i) स्वर्ण सिक्के - स्वर्ण सिक्कों का विवरण इस प्रकार है।

मुख भाग - टोप धारण किये हुए राजा की आकृति है। वह अपने दायें हाथ में वज्र ग्रहण किये हुए है, तथा उसके कंधे से अग्नि की लपटें निकल रही हैं। यूनानी भाषा में मुद्रालेख सिलियस बेसिलियन ओमो कडफिसेस उत्कीर्ण है।

पृष्ठ भाग - त्रिशूलधारी शिव की आकृति है, जो नंदी के सामने हैं। साथ में खरोष्ठी मुद्रालेख महरजस रजदिरजस सर्वलोग इश्वरस महिश्वरस विम कडफिशस त्रतरस ( महाराज राजाधिराज सर्वलोकेश्वर विम कडफिसेस) उत्कीर्ण है।

इन स्वर्ण सिक्कों का वजन 124 ग्रेन है। विम कडफिसेस का 20 ग्रेन वजन का एक स्वर्ण सिक्का मिला है। इसके मुख भाग पर चौखट में राजा का सिर है, तथा यूनानी लेख उत्कीर्ण है। पृष्ठ भाग पर महाराज राजाधिराज विम कडफिसेस मुद्रालेख अंकित है। त्रिशूल की आकृति भी बनी हुई है।

(ii) ताम्र सिक्के - ताम्र सिक्के का विवरण इस प्रकार है-

विम कडफिसेस के जो ताम्र सिक्के मिलते हैं, उनको वजन 270-65 ग्रेन है। इनका विवरण इस प्रकार है-

मुख भाग - राजा की खड़ी मूर्ति बनी है। वह वेदी पर आहुति दे रहा है। उसका बाईं ओर त्रिशूल की आकृति तथा मुद्रा लेख बेसिलियस बेसिलियन सोटर मेगास वोमो कैडफिसेस अंकित है।

पृष्ठ भाग - शिव की आकृति है। वह दायें हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए हैं तथा बायाँ हाथ नदी के ऊपर टिका हुआ है। खरोष्ठी में मुद्रालेख जैसा ही है।

विम के सिक्कों पर उत्कार्ण चिह्न पूर्णतया भारतीय है। शिव, नंदी, त्रिशूल की आकृतियाँ तथा महेश्वर की उपाधि से उसका नैष्ठिक शैव होना सूचित होता है।

3. कनिष्क के सिक्के - कनिष्क के बहुसंख्यक स्वर्ण एवं ताम्र सिक्के पश्मिोत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा के विभिन्न स्थानों से प्राप्त किये गये हैं। स्वर्ण सिक्के तौल में रोमन सिक्कों (124 ग्रेन) के बराबर हैं।

(i) स्वर्ण सिक्के - स्वर्ण सिक्कों का विवरण इस प्रकार है-

मुख भाग - खड़ी मुद्रा में राजा की आकृति है। वह लम्बी कोट, पायजामा, नुकीली टोपी पहने हुये हैं। उसके बायें हाथ में माला है, तथा दायें हाथ से हवन कुंड में आहुति दे रहा है। ईरानी उपाधि के साथ यूनानी लिपि में शाओ नानो शाओ कनिष्की कोशानो मुद्रालेख अंकित है।

पृष्ठ भाग - विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियाँ उत्कीर्ण मिलती हैं। ये यूनानी, भारतीय तथा ईरानी देव समूह से लिये गये हैं। प्रत्येक सिक्के पर एक ही देवता तथा नीचे उसका नाम उत्कीर्ण है।

कुछ सिक्कों के पृष्ठ भाग पर चतुर्भुजी शिव की आकृति तथा यूनानी भाषा में आइसो (शिव) अंकित हैं। हाथ में त्रिशूल, बकरा, डमरू तथा अंकुश है। किसी-किसी सिक्के पर प्रभामंडलयुक्त खड़ी मुद्रा में बुद्ध प्रतिमा तथा उसके नीचे यूनानी लिपि में वोडो (बुद्ध) खुदा हुआ है।

(ii) ताम्र सिक्के - ये गोलाकार हैं। इनका विवरण इस प्रकार है-

मुख भाग - कनिष्क की आकृति तथा मुद्रालेख बेसिलियस बेसेलियन उत्कीर्ण है। यह यूनानी उपाधि है, जिससे तात्पर्य राजाओं का राजा से है।

पृष्ठ भाग - यूनानी, ईरानी अथवा भारतीय देवी-देवता की आकृति तथा यूनानी भाषा में उसका नाम उत्कीर्ण है।

कुछ ऐसे ताम्र सिक्के मिले हैं, जिनके ऊपर बैठी हुई मुद्रा में राजा की आकृति बनी हुई है। इन पर राजा का नाम नष्ट हो गया है। इनमें से चार का वजन 68 ग्रेन है।

4. हुविष्क के सिक्के - हुविष्क ने भी बहुत से स्वर्ण एवं ताम्र सिक्कों का प्रचलन करवाया था।

(i) स्वर्ण सिक्के - स्वर्ण सिक्कों की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-

मुख भाग - राजा के आधे शरीर की आकृति बनी हुई है। वह गोलाकार टोप, अलंकृत कोट पहने हुए है। उसके दायें हाथ में दंड तथा बायें हाथ में अंकुश है। मुद्रालेख में शाओ नानो शाओ ओइशकी कोशानो उत्कीर्ण है।

पृष्ठ भाग - विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियों तथा यूनानी लिपि में उनके नाम मिलते हैं।

(ii) ताम्र सिक्के - ये गोल आकार के हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है-

मुख भाग - प्रभामंडल से युक्त राजा अंकुश, भाला के साथ हाथी पर सवार है। कुछ सिक्कों पर पलंग पर झुके हुये अथवा गद्दे पर वज्रासन में बैठे हुए राजा की आकृति है। उसके बायें हाथ में दंड है और वह अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाए हुए है।

पृष्ठ भाग - विभिन्न देवी देवताओं की आकृतियाँ तथा यूनानी भाषा में उनके नाम खुदे हुए हैं।

5. वासुदेव के सिक्के - वासुदेव के स्वर्ण ताम्र सिक्के प्राप्त हुए हैं। सभी गोलाकार हैं तथा तौल में रोमन सिक्कों के बराबर हैं। सिक्कों पर शिव तथा उनके प्रतीक का अंकन प्रमुखता से किया गया है। इनका विवरण निम्न प्रकार है

(i) स्वर्ण सिक्के - इनकी विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं-

मुख भाग - प्रभामंडल युक्त राजा की खड़ी आकृति है। वह लंबी टोप तथा पायजामा पहने हुए हैं। उसके बायें हाथ में त्रिशूल है तथा दायें हाथ से अग्निकुण्ड में आहुति दे रहा है। मुद्रालेख शाओ नानो शाओ बोजैडो वासुदेव कोशानो उत्कीर्ण है।

पृष्ठ भाग - त्रिशूल तथा पाश लिये हुये दो भुजी शिव की आकृति है। शिव के पीछे नंदी तथा यूनानी भाषा ओएशो (शिव) उत्कीर्ण है। कुछ ताम्र सिक्कों के पृष्ठ भाग पर सामने की ओर देवी (उमा) सिंहासन पर बैठी हुई हैं। उसके दायें हाथ में फीता तथा बायें हाथ में समृद्धिश्रृङ्ग है।

(ii) ताम्र सिक्के - ये गोल आकार के हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है-

मुख भाग - प्रभामंडल से युक्त राजा अंकुश, भाला के साथ हाथी पर सवार है। कुछ सिक्कों पर पलंग पर झुके हुये अथवा गद्दे पर वज्रासन में बैठे हुए राजा की आकृति है। उसके बायें हाथ में दंड है और वह अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाए हुए हैं।

पृष्ठ भाग - विभिन्न देवी देवताओं की आकृतियाँ तथा यूनानी भाषा में उनके नाम खुदे हुए हैं।

कुछ ताम्र सिक्कों के मुख भाग पर ब्राह्मी लिपि में वासु उत्कीर्ण है तथा पृष्ठ भाग पर वासुदेव का मोनोग्राम मिलता है। अल्तेकर ने वासुदेव के एक नये प्रकार के सिक्के का उल्लेख किया है, जिसके पृष्ठ भाग पर शिव का हाथी के साथ चित्रण किया गया है। यह गजासुर का वध करते हुए शिव का चित्रण प्रतीत होता है।

इस प्रकार सभी कुषाण राजाओं के सिक्कों के अग्रभाग पर ईरानी वेष-भूषा में शासक की आकृति तथा उपाधि के साथ उसका नाम मिलता है। मुद्रालेख सदा यूनानी भाषा में है।

परवर्ती कुषाण राजाओं के सिक्के

परवर्ती कुषाण राजाओं के सिक्के दो प्रकार के थे-

1. शिव तथा नंदी प्रकार।
2. सिंहासनासीन देवी प्रकार।

सिक्कों के मुख भाग पर कवच तथा ऊँची टोपी धारण किये हुए राजा की आकृति है। वह दायें हाथ से आहुति दे रहा है तथा उसके बायें हाथ में लंबा त्रिशूल है। मुद्रालेख यूनानी तथा ब्राह्मी दोनों में है। पृष्ठ भाग पर शिव, नंदी तथा देवी की आकृतियाँ मिलती हैं। कुछ सिक्कों के पृष्ठ भाग पर सिंहवाहिनी देवी का चित्रण है। वह पाश दंड धारण किये हुए हैं। कुषाण सिक्कों की देवी को गुप्तकाल में लक्ष्मी के रूप में ग्रहण कर लिया गया।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

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