प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
अथवा
हिन्दू समाज के संस्कारों का महत्व बताइये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं?
2. संस्कार को परिभाषित कीजिए।
3. संस्कारों का उद्देश्य बताइए।
4. संस्कारों की संख्या बताइए।
उत्तर-
जब गहरी दृष्टि से भारतीय जन-जीवन का अध्ययन किया जाता है तब ज्ञात होता है कि भारतीय जीवन संस्कारों से बंधे रूप में देखने को मिलता है संस्कार व्यक्ति को संगठित तथा अनुशासित करने के विभिन्न उपाय थे। वह समाज में रहकर सुखमय जीवन व्यतीत कर सके। उनसे व्यक्ति तथा समाज दोनों का ही हित होता था। संस्कार धार्मिक तथा कर्मकाण्ड कार्यों के रूप में जन्म से मृत्युपर्यन्त किये जाते थे। जिनका प्रमुख उद्देश्य उसको शुद्ध करना भी था।
संस्कार शब्द का अर्थ - संस्कार शब्द की व्युत्पत्ति समपूर्वक कृत्र धातु से धतृ प्रत्यय करके की गई है। डॉ० कैलाश चंद्र जैन के शब्दों में “संस्कार शब्द का अन्य भाषा में यथातथ्य अनुवाद करना असंभव है। किन्तु अधिक उपयुक्त पर्याय अंग्रेजी का सेक्रामेन्ट शब्द है जिसका अर्थ है धार्मिक विधान या कृत्य जो आन्तरिक एवं आत्मिक सौन्दर्य का बाह्य तथा दृश्य प्रतीक माना जाता है।
डॉ० राजबली पांडेय के अनुसार - संस्कार शब्द का अनेक अर्थों में प्रयोग हुआ है। मीमांसा यद्यांगभूत पुरोऽश आदि की विधिवत् शुद्धि को अद्वैत वैदयन्ती जीव पर शारीरिक क्रियाओं के मिथ्या आरोप को तथा नैयायिक भावों को व्यक्त करने की आत्म व्यंजक शक्ति को संस्कार समझते हैं।"
संस्कृत साहित्य के अनुसार इस भाषा के साहित्य में संस्कार का प्रयोग जिन अर्थो में हुआ है वे इस प्रकार है शिक्षा, संस्कृति, प्रशिक्षण, सौजन्य, पूर्णता, व्याकरण सम्बन्धी शुद्धि, संस्करण, परिष्करण, शोभा, आभूषण, प्रभाव, स्वरूप, स्वभाव, क्रिया, ध्यान, स्मरण शक्ति, स्मरण शक्ति पर पड़ने वाला प्रभाव, शुद्ध क्रिया, धार्मिक-विधि, विधान, अभिषेक, विचार, भावना, धारणा कार्य का परिणाम तथा क्रिया की विशेषता। संस्कारों का अभिप्राय शुद्धि की धार्मिक क्रियाओं एवं व्यक्ति के दैहिक, मानसिक और बौद्धिक परिष्कार के लिए किये जाने वाले अनुष्ठानों में से है। जिनसे वह समाज का पूर्ण विकसित सदस्य हो सके। परन्तु हिन्दू समाज के संदर्भ में संस्कार का अभिप्राय इस क्रिया से है जिसमें शुद्धता प्राप्त हो तथा जिनके फलस्वरूप शिक्षा-दीक्षा के अनन्तर व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्णरूप से विकास भी हो। संस्कार प्रायः विश्व के समस्त समाजों में प्रचलित है। इस्लाम धर्म में सुन्नत तथा ईसाई धर्म में वधति स्मा संस्कार ही है। परन्तु हिन्दू समाज में संस्कारों की अपनी ही विशेषता है। ये व्यक्ति की आयु कर्म तथा आश्रम आदि से भी सम्बन्धित रहे हैं।
संस्कार की परिभाषा - विद्वानों ने अपने-अपने मत से संस्कार शब्द की व्याख्या की है। कुछ विद्वानों की परिभाषायें निम्न हैं-
1. जेमिनी की संस्कार की परिभाषा - संस्कार वह क्रिया है जिसके करने से कोई पदार्थ या व्यक्ति किसी कार्य योग्य हो जाता है।
2. तन्त्रवार्तिक की संस्कार की परिभाषा - “संस्कार वे क्रियायें तथा रीतियाँ हैं जिनसे योग्यता प्राप्त होती है।"
3. वीर मित्रोदय की संस्कार की परिभाषा - “संस्कार वह योग्यता है जो शस्त्र सम्मत क्रियाओं को करने से उत्पन्न हो। संक्षेप में संस्कार द्वारा व्यक्ति को अपने शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास का अवसर प्राप्त होता है।"
संस्कारों का उद्देश्य - मनुस्मृति के अनुसार शुद्धि कारक, हवन, चूड़ाकरण, मौज्जी बन्धन संस्कारों में गर्भ शास्त्र से उत्पन्न दोष दूर हो जाते हैं। हिन्दू संस्कार साधारण रूप में हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण अंग के रूप में हैं। क्योंकि धर्म का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति एवं समाज को प्रत्येक दृष्टिकोण से विकसित करना भी है।
संस्कारों का विस्तार - वैदिककाल में भी संस्कारों का उदय हो चुका था। समस्त इतिहासकार इस मत से सहमत हैं। परन्तु वेदों तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में इसका उल्लेख देखने को नहीं मिलता है। यह गृहसूत्रों के विषय क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं परन्तु यहाँ भी उनका प्रयोग वास्तविक अर्थ में उपलब्ध नहीं है। डॉ० जैन के शब्दों में “ वे समस्त गृह विधि विधानों का वर्गीकरण विविध यज्ञों के अंतर्गत करते हैं। दैहिक संस्कार पाक यज्ञों में सम्मिलित है।" पारस्कर गृह सूत्रों में पाक यज्ञों को हुत, आहुत, प्रहुत तथा प्राशित में विभक्त किया गया है। जब यज्ञ के समय आहुति दे दी जाती है तो उसे हुत कहते हैं। इसके अंतर्गत विवाह के संस्कार आते हैं। अग्नि में आहुति देने के पश्चात् जब ब्राह्मणों तथा अन्य व्यक्तियों की दान-दक्षिणा दी जाती है तो उसे प्रहुत कहा जाता है। इसमें जात कर्म से चौल पर्यन्त संपूर्ण संस्कारों का समावेश हो जाता है। जब कोई स्वयं अन्य व्यक्तियों से उपहार प्राप्त करता है तो इसे आहुत के नाम से पुकारा जाता है। उपनयन तथा समावर्तन संस्कार इनके अंतर्गत आते हैं। बाद में इनको संस्कार का रूप दिया गया।
संस्कारों की संख्या - वेदों में संस्कारों का उल्लेख देखने को नहीं मिलता है। धर्मशास्त्रों में भी इनके विषय में मतभेद देखने को मिलता है। आश्वलयन गृहसूत्र में 11, पारस्कर गृहसूत्र में 13, वौधयन गृहसूत्र में 11, बैसखानस गृहसूत्र में 18 संस्कारों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। महर्षि वाल्मीकि ने संस्कारों की संख्या चालीस बताई है, परन्तु आमतौर से इतिहासकार मानव के जन्म से मृत्यु तक 16 संस्कारों को स्वीकार करते हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं-
1. गर्भाधान संस्कार
2. पुंसवन संस्कार
3. सीमंतोनयन संस्कार
4. जातकर्म संस्कार
5. नामकरण संस्कार
6. निष्क्रमण संस्कार
7. अन्नप्रासन संस्कार
8. चूड़ाकर्म संस्कार
9. कर्णवेध संस्कार
10. विद्यारम्भ संस्कार
11. उपनयन संस्कार
12. वेदारम्भ संस्कार
13. केशानत संस्कार
14. समावर्तन संस्कार
15 विवाह संस्कार और
16. अन्त्येष्टि संस्कार
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