प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- "विभिन्न भारतीय दार्शनिक सिद्धान्तों की जड़ें उपनिषद में हैं।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
उपनिषद पूर्णतया दार्शनिक ग्रन्थ है जिसका मुख्य ध्येय ज्ञान की खोज करना होता है। उपनिषद वैदिक साहित्य के अन्तिम भाग हैं जिन्हें 'वेदान्त' भी कहा जाता है। ये मुख्यतः ज्ञानमार्गी रचनायें होती हैं जिनमें हमें वैदिक चिन्तन की परिणति दिखाई देती है। उपनिषदों का मुख्य विषय ब्रह्म विद्या का प्रतिपादन है। उपनिषद वे साहित्य कहे जाते हैं जिनमें रहस्यात्मक ज्ञान एवं सिद्धान्त का संकलन होता है।
विश्वास क्या है? उसकी उत्पत्ति कैसी हुई? मनुष्य क्या है? उसके जीवन का उद्देश्य क्या है? आदि अनेक प्रश्नों को भारत के दार्शनिकों ने उपनिषदों के माध्यम से ही ढूँढ निकाला। उपनिषद किसी एक ऋषि के मस्तिष्क की उपज नहीं है और न उनकी विचारधारा ही पूर्णतः एक सी है, फिर भी उनके मूल सिद्धान्तों को समझना कठिन नहीं है। भारत के विभिन्न दार्शनिकों ने उपनिषदों के माध्यम से ही यह बताया कि जीवन का परम उद्देश्य जन्म-मरण के बन्धन से मुक्ति पाना और पुनः ब्रह्म में लीन हो जाना है। इसी का नाम मोक्ष है। उपनिषदों के माध्यम से ही भारतीय दर्शन का वास्तविक सूत्रपात होता है। आगे चलकर सांख्य, न्याय, वेदान्त आदि षट्दर्शनों का निर्माण उसी आधार पर हुआ जिसका इस युग के विचारकों ने निर्माण किया। अतः 'विभिन्न भारतीय दार्शनिक सिद्धान्तों की जुड़े उपनिषद में है।" यह कथन पूर्णतया सत्य है क्योंकि उपनिषदों के माध्यम से प्राचीन युग के विचारों के दर्शन होते हैं। यदि उपनिषद न होते तो ऐसा कदापि सम्भव न होता। इसीलिए इन्हें दार्शनिक ग्रन्थ कहा गया है। ये बहुदेववाद के स्थान पर परब्रह्म' की प्रतिष्ठा करते हैं। इसमें यज्ञीय कर्मकाण्डों तथा पशुबलि की निन्दा मिलती है तथा उनके स्थान पर ज्ञान यज्ञ का प्रतिपादन हुआ है। छन्दोग्योपनिषद में कहा गया है कि ब्रह्म ही सब कुछ है। यह कहकर अद्वैतवाद की प्रतिष्ठा की गयी है। सृष्टि का सारभूत तत्व 'ब्रह्मन' तथा व्यक्ति के शरीर का सारभूत तत्व 'आत्मन' है। उपनिषदों में इन दोनों का तादात्म्य स्थापित किया गया है। जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य आत्मा या ब्रह्म साक्षात्कार है। इसे प्राप्त करने का माध्यम उपनिषदों में बताया गया है। सांसारिक सुखों को महत्वहीन बताया गया है। उपनिषदों में ही सर्वत्र सत्य को खोजने का मार्ग दिखाया गया है। इसीलिए यह कहा जा सकता है कि दार्शनिक सिद्धान्तों की जड़ें उपनिषद ही हैं।
उपनिषदों के निर्माण में ब्राह्मण पुरोहित वर्ग के स्थान पर क्षत्रिय वर्ग का विशेष योगदान दिखाई देता है। ब्राह्मण ग्रन्थों में कुछ उल्लेख मिलते हैं जिनसे पता चलता है कि प्राचीन भारत के लोग यज्ञों के वास्तविक महत्व को ढूँढने के लिए अधिक उत्सुक एवं प्रयत्नशील रहते थे। उपनिषद दर्शन का विकास इन्हीं के प्रयासों के फलस्वरूप हुआ।
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- प्रश्न- मौर्यों के ग्रामीण प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
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- प्रश्न- प्राचीन भारत में कर के स्रोतों का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में कराधान व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं?
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- प्रश्न- प्रवेश्य कर पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- वैदिक युग से मौर्य युग तक अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- वैदिककालीन श्रेणी संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा की तुलना कीजिए।
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- प्रश्न- अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।