प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- गुप्त प्रशासन के प्रमुख अभिकरणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
गुप्तकालीन प्रशासन के विभिन्न पक्षों के विषय में जानकारी समकालीन साहित्यिक ग्रंथों, अभिलेखों तथा मुद्रा सम्बन्धी साक्ष्यों से मिलता है। गुप्तकालीन प्रशासन की मुख्य विशेषता सत्ता का विकेन्द्रीकरण तथा सम्पूर्ण साम्राज्य में एक जैसी व्यवस्था का न होना है। ये दोनों ही विशेषताएँ प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर दिखाई देती हैं।
केन्द्रीय शासन - प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था। सिद्धान्ततः राज्य की सारी प्रशासनिक शक्तियाँ उसी में केन्द्रित थी। वह कार्यपालिका, न्यापालिका एवं सैनिक मामलों का प्रधान था, लेकिन उसे कानून बनाने का अधिकार नहीं था। वह धर्मप्रवर्तक या कानून का पालक माना जाता था। जनता की सुरक्षा करना, वर्णव्यवस्था एवं धर्म की रक्षा करना उसका मुख्य कर्त्तव्य था। गुप्त शासकों ने गौरवपूर्ण उपाधियों द्वारा जनता पर अपना प्रभाव स्थापित किया। इन उपाधियों से विदित होता है किं गुप्त शासकों के अधीन अनेक छोटे राजा थे तथा गुप्त राजा देवता के सदृश था। गुप्त राजाओं की तुलना सूर्य, अग्नि, यम, कुबेर, विष्णु आदि से की गई है। राजा, युवराज, मंत्रिपरिषद् एवं नौकरशाही की सहायता से शासन करता था। कालिदास ने मंत्रिपरिषद् का उल्लेख किया है। मंत्री सामान्यतः उच्च वंश से नियुक्त किए जाते थे। इनका पद बहुधा वंशगत होता था। इनका मुख्य कार्य विभिन्न विभागों की देखभाल करना एवं राजा को मंत्रणा देना था। कभी-कभी एक ही मंत्री को एक से अधिक विभाग सौंपे जाते थे। समुद्रगुप्त की प्रयाग- प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि हरिषेण एक ही साथ कुमारामात्य, सांधिविग्रहिक एवं महादण्डनायक का कार्य करता था।
गुप्तों की नौकरशाही मौर्यों जितनी विशाल या सुसंगठित नहीं थी। इस नौकरशाही को अमात्य के नाम से भी जाना जाता है। अमात्य का पद अधिकतर ब्राह्मणों के लिए सुरक्षित रहता था; परंतु अन्य वर्ण के व्यक्तियों की भी इस पद पर नियुक्ति होती थी। गुप्तकाल में अधिकारियों का पद वंशानुगत बन गया। उन्हें वेतन के रूप में नकद राशि से ज्यादा भूमि दी जाती थी। गुप्तकालीन प्रमुख अधिकारियों में महासेनापति, रणभांडागारिक, महाबलाधिकृत, दण्डपाशिक, महादण्डनायक, महासन्धिविग्रहिक, विनयस्थितिस्थापक, महाभंडगाराधिकृत, महाअक्षपटलिक, सर्वाध्यक्ष, महाप्रतिहार, ध्रुवाधिकर एवं अग्रहारिक इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है। केन्द्रीय शासन के विभिन्न विभाग अधिकरण होते थे, जिनकी अपनी मुद्राएँ होती थीं। कुमारामात्य के पदों पर राजवंश से सम्बद्ध व्यक्ति नियुक्त किए जाते थे। गुप्त शासकों का अपना सैनिक संगठन विस्तृत नहीं था। युद्ध के मौके पर सामंत एवं अधीनस्थ शासक उन्हें सैनिक सहायता देते थे। मौर्यो की तरह गुप्तों का अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण एवं उनके रखने पर राज्य का नियंत्रण या एकाधिकार नहीं था। इस समय की न्याय-व्यवस्था अच्छी थी। राजा के न्यायालय के अतिरिक्त पूग, श्रेणी एवं कुल न्यायालय भी मुकदमों का निपटारा करते थे। दंडविधान कठोर न होने के बावजूद अपराध कम होते थे। राज्य की आमदनी का मुख्य स्रोत भूमिकर था। राज्य सामान्यतः उपज का 1/6 भाग कर के रूप में लेता था। जुर्माना, उपहार, शुल्क इत्यादि से भी राज्य को आमदनी होती थी। राजस्व का एक बड़ा भाग राजपरिवार के सदस्यों, अधिकारियों एवं दान-पुण्य के कामों में व्यय होता था।
प्रांतीय शासन - गुप्त साम्राज्य प्रशासकीय सुविधा के लिए विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों में विभक्त था। केन्द्र द्वारा शासित क्षेत्र की सबसे बड़ी प्रशासनिक इकाई देश या राष्ट्र कहलाती थी। अभिलेखों में सौराष्ट्र एवं सुकुली का उल्लेख देश के रूप में हुआ है। इसका शासक गोप्ता होता था। देश भुक्ति में बंटा था। अभिलेखों में पुंड्रवर्धन भुक्ति, वर्धमान भुक्ति, वीरभुक्ति, मालवा भुक्ति, कौशांबी भुक्ति, सौराष्ट्र, मगध या श्रीनगर भुक्ति इत्यादि के नाम मिलते हैं। भुक्ति का प्रधान उपरिक कहलाता था। भुक्ति से छोटी इकाई विषय थी, जिसका शासक विषयपति था। अभिलेखों में लाट, एरिकिन, अंतर्वेदी विषय का उल्लेख किया गया है। विषयपति विषयपरिषद् की सहायता से शासन करता था। इस परिषद् के सदस्य नगर श्रेष्ठि, सार्थवाह, प्रथम कुलिक एवं प्रथम कायस्थ होते थे। विषय को वीथियों में बांटा गया था। वीथि की समिति में भू-स्वामियों एवं सैनिक कार्यों से संबंद्ध व्यक्तियों को रखा गया था। गुप्तों ने पहली बार इतनी व्यवस्थित प्रांतीय शासन की व्यवस्था दी थी।
स्थानीय शासन - प्रांतीय शासन की तरह गुप्तों की स्थानीय व्यवस्था भी सुसंगठित थी। वीथि से छोटी इकाई पेठ थी। पेठ अनेक ग्रामों के समूह को कहा जाता था। सबसे छोटी इकाई गाँव थी। ग्रामपति या ग्रामिक महत्तर, अण्टकुलाधिकारी, कुटुंबी, तलवारक इत्यादि अधिकारियों की सहायता से गाँवों की व्यवस्था देखता था। नगरों का प्रशासन नगरपति, नगर सभा की सहायता से करता था। नगरों के प्रशासन में व्यापारी एवं शिल्पी संघ भी प्रमुख हिस्सा लेते थे। वैशाली से प्राप्त मुहरों से इस बात की पुष्टि होती है कि तत्कालीन वैशाली के नगर प्रशासन में कुलिकों, श्रेष्ठियों तथा सार्थवाहों की भी मुख्य भूमिका होती थी।
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