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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2793
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का इतिहास प्रस्तुत कीजिए।

अथवा
स्त्री शिक्षा पर एक विस्तृत लेख लिखिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. प्राचीन काल में 'स्त्री शिक्षा' पर तर्कपूर्ण विवेचना कीजिए।
2. प्राचीन भारत में स्त्री शिक्षा पर एक टिप्पणी लिखिए।
3. प्राचीन भारत में स्त्री शिक्षा पर निबन्ध लिखिए।

उत्तर-

प्राचीन भारत में स्त्री-शिक्षा-

हमारे प्राचीन भारतीय समाज में ई०पू० 300 तक नारियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा। माता-पिता अपनी सन्तान चाहे वह पुत्र हो या पुत्री हो उन्हें एक समान शिक्षा दिलाते थे। लड़कियाँ 16 वर्ष तक की अवस्था तक जब उसके माता-पिता को उसका विवाह करने की चिन्ता सताने लगती थी। पुत्र के समान पुत्री के लिए भी उपनयन संस्कार के बाद 16 वर्ष तक उसको पढ़ाया जाता था ताकि उसका विवाह योग्य वर से हो सके। अथर्ववेद में कहा गया है कि नारी विवाहिता जीवन में पढ़ी-लिखी होने के कारण सफल हो सकती है। इसको जो शिक्षा दी जाती थी वह वैदिक साहित्य से संबंधित होती ताकि वह हवन, यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों में अपने पति के साथ भाग ले सके। ऋग्वेद में कुछ ऐसे भी मन्त्र हैं जिनकी रचना नारियों के द्वारा हुई है। इस पुस्तक में 20 कवयित्रियों की रचनायें हैं। ऐसी कवयित्रियों में विश्वधारा, सिकता, निवावरी, घोषा, रोमाशा, लोपामुद्रा, अपाला तथा उर्वशी के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यज्ञ करते समय पति तथा पत्नी को एक समान रूप से सक्रिय रहना पड़ता था।

छात्राओं के दो प्रमुख वर्ग - सद्यो वधू तथा ब्रह्मवादिनी छात्राओं के दो प्रमुख वर्ग थे। प्रथम वर्ग की छात्रा का जब तक विवाह नहीं हो जाता था, वह इस वर्ग के अंतर्गत पढ़ा-लिखा करती थी। इनको प्रार्थना तथा यज्ञ सम्बन्धी वैदिक मंत्र पढ़ाये जाते थे। साथ ही साथ संगीत तथा नृत्य की भी शिक्षा दी जांती थी। ब्रह्मवादिनी वर्ग के अंतर्गत युवतियाँ विशेष योग्यता प्राप्त करने के लिए तमाम उम्र विवाह न करके पढ़ती थीं।

पूर्व मीमांसा की शिक्षा - लड़कियों को वैदिक साहित्य के साथ-साथ पूर्व मीमांसा की शिक्षा भी दी जाती थी। यह एक कठिन विषय कहा जाता था। इसका संबंध हवन एवं यज्ञों की समस्याओं से था। काशकृत्सनी ने मीमांसा पर एक पुस्तक की रचना की जिसको उसी नाम से काशकृत्सनी का नाम दिया गया जो लड़कियाँ इस ग्रन्थ को पढ़ा करती थीं उन लड़कियों को काशकृत्सवा के नाम से पुकारा जाता था। मीमांसा अध्ययन करने वाली छात्राओं की संख्या कम नहीं थी। साहित्य तथा सांस्कृतिक शिक्षा जो छात्रायें पाती थीं उनकी संख्या भी कम नहीं थी।

उपनिषद काल में नारी शिक्षा - उपनिषद काल में नारी शिक्षा का तेजी के साथ प्रचार हुआ वे इस काल में भी पढ़ाई-लिखाई के पीछे नहीं रहीं। याज्ञवल्क्य की धर्म पत्नी मैत्रेयी एक ऐसी नारी थी, जो वस्त्राभूषण की अपेक्षा दर्शन की समस्याओं के हल करने में विशेष रूप से रुचि रखती थी। विदेह के शासक राजा जनक के यज्ञ के समय जो दार्शनिक शास्त्रार्थ हुआ, उसमें याज्ञवल्क्य से सबसे सूक्ष्म प्रश्न गार्गी ने पूछे थे। इससे इस बात का पता चलता है कि वह उच्चकोटि की न्यायिक तथा दार्शनिक थी।

जैन धर्म तथा बौद्ध धर्मकालीन भारत में नारी शिक्षा - जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म के जब नारियों को प्रवेश की अनुमति दे दी तब नारी शिक्षा की बड़ी तेजी के साथ उन्नति हुई। जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म सम्बन्धी शिक्षा छात्राओं को दी जाने लगी। दोनों धर्मों की शिक्षा ग्रहण करने से पूर्व उनको भी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ता था। इस कारण भी नारी शिक्षा की तेजी से उन्नति होने लगी। इन दोनों धर्मों के साहित्य से पता चलता है कि कुछ भिक्षुणियों ने साहित्य के विकास तथा शिक्षा के प्रसार ने बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान दिया। कुछ नारियाँ तो सिंहल देश भी गई थीं जहाँ उनकी शिक्षिकाओं के रूप में बड़ी ख्याति हुई। जैन साहित्य से पता चला है कि जयन्ती धर्म तथा दर्शन के प्यास को बुझाने हेतु तमाम उम्र बिन विवाही भिक्षुणी ही रहीं।

सुदीर्घ काल में नारी की शिक्षा - इस काल में नारियों की शिक्षा का उनका परिवार ही एकमात्र शिक्षण संस्था थी। उनके परिवार के सदस्य ही उनको पढ़ाते थे। इस काल में अधिक संख्या में नारियों ने उच्च शिक्षा प्राप्त करना शुरू कर दी थी तथा उनके योगदान से शिक्षा तथा साहित्य का अधिक रूप में विकास हुआ। इस समय कुछ नारियाँ अध्यापन का कार्य भी करने लगी थीं। संस्कृत साहित्य में उपाध्यायनी शब्दों की उपस्थिति हमारे इस कथन को सत्य करते हैं, एक विद्वान के शब्दों में, “उपाध्याय की पत्नी के लिए आदर सूचक शब्द है परन्तु इस काल में उपाध्याय शब्द का तात्पर्य तो नारी शिक्षिका से ही है। शब्द को नया गढ़ने की आवश्यकता इसलिए पड़ी होगी कि समाज में इनकी संख्या नहीं थी।

ई० पूर्व में नारी शिक्षा की उन्नति नहीं हुई क्योंकि इस समय में लड़कियों का विवाह कम उम्र में होने लगा। यदि यह कहा जाये कि बाल-विवाह के कारण नारी उच्च शिक्षा प्राप्त न कर सकी तो अनुचित न होगा। उच्च शिक्षा से उनका वंचित होना नारी शिक्षा के पतन का एक प्रमुख कारण बन गया। बाल विवाह के साथ-साथ एक-दूसरा कारण यह भी था कि लड़कियों के उपनयन पर प्रतिबन्ध लगने लगे थे। इस समय में यह संस्कार केवल एक रस्म के रूप में रह गया था और कुछ समय के पश्चात् इसका भी अन्त हो गया। मनु तथा याज्ञवल्क्य ने इसका कड़े शब्दों में विरोध किया। नारियों के उपनयन के समाप्त हो जाने का उनके धार्मिक अधिकारों पर बुरा प्रभाव पड़ा तथा वे भी शूद्रों के समान न तो वेदों के मंत्रों का उच्चारण सकती थी और न ही वे यज्ञों में भाग ले सकती थीं, इस काल में साधारण परिवार में समाज में नारी शिक्षा की अवनति अवश्य हुई परन्तु उच्च परिवारों में अब भी लड़कियों को उच्च शिक्षा दिलाने की परम्परा बनी रही। उनको अब वैदिक साहित्य तथा धर्म की शिक्षा नहीं दी जाती थी परन्तु साहित्य की उनको अच्छे रूप में शिक्षा दी जाती रही। नारियों ने संस्कृत तथा प्राकृत भाषाओं को पढ़ा और उनको समझने के लिए वे अच्छी योग्यता रखती थीं। वे संस्कृत तथा प्राकृत दोनों भाषाओं में पूर्ण रूप से माहिर हो गई थीं, दोनों भाषाओं को वे फर्राटे के साथ बोल तथा लिख सकती थीं। साथ ही साथ वे वेदों को भी पढ़ सकती थी। इस काल में लेखिकायें तथा कवयित्रियाँ थीं जिनकी रचनाओं से दोनों भाषाओं के साहित्य की उन्नति हुई, साथ ही साथ शिक्षा के विकास में भी तेजी से उन्नति हुई। हाल की गाथा में सात कवयित्रियों की रचनायें संग्रहीत हैं। शील भट्टारिका अपनी सरल एवं प्रसाद युक्त शैली एवं शब्द तथा अर्थ के सामंजस्य के लिए प्रसिद्ध थी। सर सुलेमान नकबी के शब्दों में- “देवी लाट प्रदेश की प्रसिद्ध कवयित्री थी। विदर्भ में विजयांका की कीर्ति की समता केवल कालिदास ही कर सकते थे। राजशेखर की थी। पत्नी कवयित्री तथा टीकाकार दोनों थी। कतिपय महिलाओं ने आयुर्वेद पर पाण्डित्यपूर्ण तथा प्रामाणिक रचनाएं की हैं जिनमें रूक्षों का नाम अधिक प्रसिद्ध है।"

प्राचीनकाल में नारी शिक्षा के पाठ्यक्रम में गृहविज्ञान तथा ललित कलाएं भी थीं जिनको कन्याओं को पढ़ाया जाता था। गृहविज्ञान सीखकर खाना पकाने, सजाने तथा उत्तम विधि से उसको खिलाने की कला वे सीख जाती थीं। साथ ही साथ घर की सजावट तथा दूसरे घरेलू काम करने में माहिर हो जाती थीं। जिनकी बदौलत उनके परिवारों में किसी प्रकार की नोक-झोंक तक उत्पन्न नहीं हो पाती थी। ललित कलाओं में लड़कियों को संगीत, नृत्य तथा चित्रकला आदि विषय सिखाये जाते थे। इनके साथ-साथ बागवानी तथा माल्य ग्राथक भी उनको सिखाया जाता था। धनीं परिवारों में ललित कलाओं तथा बागवानी सिखाने के लिए अध्यापक नियुक्त किये जाते थे। अग्नि मित्र के महलों में गणदास तथा सोमदास की नियुक्ति इन्हीं विषयों को सिखाने तथा पढ़ाने के लिए नियुक्ति हुई थी।

राजकुमारियों को प्राचीनकाल में पुस्तकों की शिक्षा के साथ-साथ शासन प्रबन्ध तथा युद्धकला की भी शिक्षा दी जाती थी। शासन प्रबन्ध की शिक्षा उनको इस कारण भी दी जाती थी यदि कभी वे शासिका बने तो बिना कठिनाई के शासन प्रबन्ध को सरलतापूर्वक चला सकें। यदि उनको किसी कारण युद्ध करना भी पड़े तो वह युद्ध लड़ते समय किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव न कर सकें। राजकुमारियों को साहित्य की शिक्षा के साथ-साथ ललित कलाओं की भी शिक्षा दी जाती थी। नृत्य, संगीत तथा चित्रकारी राजकुमारियाँ अपने गुरु से सीखा करती थीं जो उनको पढ़ाने तथा सिखाने शाही भवनों में आते थे। एक विद्वान के शब्दों में- “सातवाहन राजवंश की नयनिका (255 ई०पू०) तथा वाटक राजवंश की प्रभावती गुप्ता ( 390 ई०) अपने पुत्रों की अल्पवयस्कता में विशाल साम्राज्य पर शासन करती थीं। काश्मीर की अनेक रानियों ने युद्ध में सक्रिय भाग लिया तथा सुगंधा और जिद्दा ने तो अभिभाविकाओं के रूप में काश्मीर पर शासन भी किया "

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारतीय दर्शन में इसका क्या महत्व है?
  2. प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- जाति व्यवस्था के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए। इसने भारतीय
  4. प्रश्न- ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक काल की भारतीय जाति प्रथा के लक्षणों की विवेचना कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन काल में शूद्रों की स्थिति निर्धारित कीजिए।
  6. प्रश्न- मौर्यकालीन वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डालिए। .
  7. प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
  8. प्रश्न- पुरुषार्थ क्या है? इनका क्या सामाजिक महत्व है?
  9. प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
  10. प्रश्न- सोलह संस्कारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
  12. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
  13. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के अर्थ तथा उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए तथा प्राचीन भारतीय विवाह एक धार्मिक संस्कार है। इस कथन पर भी प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- परिवार संस्था के विकास के बारे में लिखिए।
  15. प्रश्न- प्राचीन काल में प्रचलित विधवा विवाह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का इतिहास प्रस्तुत कीजिए।
  18. प्रश्न- स्त्री के धन सम्बन्धी अधिकारों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- वैदिक काल में नारी की स्थिति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में पुत्री की सामाजिक स्थिति बताइए।
  21. प्रश्न- वैदिक काल में सती-प्रथा पर टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- उत्तर वैदिक में स्त्रियों की दशा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  23. प्रश्न- ऋग्वैदिक विदुषी स्त्रियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
  24. प्रश्न- राज्य के सम्बन्ध में हिन्दू विचारधारा का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- महाभारत काल के राजतन्त्र की व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- राजा और राज्याभिषेक के बारे में बताइये।
  28. प्रश्न- राजा का महत्व बताइए।
  29. प्रश्न- राजा के कर्त्तव्यों के विषयों में आप क्या जानते हैं?
  30. प्रश्न- वैदिक कालीन राजनीतिक जीवन पर एक निबन्ध लिखिए।
  31. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के प्रमुख राज्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- राज्य की सप्त प्रवृत्तियाँ अथवा सप्तांग सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत क्या है? उसकी विस्तृत विवेचना कीजिये।
  34. प्रश्न- सामन्त पद्धति काल में राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के उद्देश्य अथवा राज्य के उद्देश्य।
  36. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्यों के कार्य बताइये।
  37. प्रश्न- क्या प्राचीन राजतन्त्र सीमित राजतन्त्र था?
  38. प्रश्न- राज्य के सप्तांग सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- कौटिल्य के अनुसार राज्य के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- क्या प्राचीन राज्य धर्म आधारित राज्य थे? वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- मौर्यों के केन्द्रीय प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
  42. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  43. प्रश्न- अशोक के प्रशासनिक सुधारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- गुप्त प्रशासन के प्रमुख अभिकरणों का उल्लेख कीजिए।
  45. प्रश्न- गुप्त प्रशासन पर विस्तृत रूप से एक निबन्ध लिखिए।
  46. प्रश्न- चोल प्रशासन पर एक निबन्ध लिखिए।
  47. प्रश्न- चोलों के अन्तर्गत 'ग्राम- प्रशासन' पर एक निबन्ध लिखिए।
  48. प्रश्न- लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में मौर्य प्रशासन का परीक्षण कीजिए।
  49. प्रश्न- मौर्यों के ग्रामीण प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
  50. प्रश्न- मौर्य युगीन नगर प्रशासन पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- गुप्तों की केन्द्रीय शासन व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिये।
  52. प्रश्न- गुप्तों का प्रांतीय प्रशासन पर टिप्पणी कीजिये।
  53. प्रश्न- गुप्तकालीन स्थानीय प्रशासन पर टिप्पणी लिखिए।
  54. प्रश्न- प्राचीन भारत में कर के स्रोतों का विवरण दीजिए।
  55. प्रश्न- प्राचीन भारत में कराधान व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं?
  56. प्रश्न- प्राचीनकाल में भारत के राज्यों की आय के साधनों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- प्राचीन भारत में करों के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  58. प्रश्न- कर की क्या आवश्यकता है?
  59. प्रश्न- कर व्यवस्था की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- प्रवेश्य कर पर टिप्पणी लिखिये।
  61. प्रश्न- वैदिक युग से मौर्य युग तक अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व की विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- मौर्य काल की सिंचाई व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  63. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- भारत में आर्थिक श्रेणियों के संगठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  67. प्रश्न- श्रेणी तथा निगम पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- श्रेणी धर्म से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए
  69. प्रश्न- श्रेणियों के क्रिया-कलापों पर प्रकाश डालिए।
  70. प्रश्न- वैदिककालीन श्रेणी संगठन पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा की तुलना कीजिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के प्रमुख उच्च शिक्षा केन्द्रों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- "विभिन्न भारतीय दार्शनिक सिद्धान्तों की जड़ें उपनिषद में हैं।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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