बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान होने बाले संज्ञानात्मक विकास को किस प्रकार परिभाषित करेंगे?
अथवा
मानव विकास में मध्य वयस्कता के अन्तर्गत मानसिक अभिवृत्तियों की व्याख्या कैसे करेंगे ?
उत्तर -
वयस्क ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपना विकास पूरा कर लिया है और अन्य वयस्कों के साथ समाज में अपनी वयस्क स्थिति को मानने के लिए तैयार है। जैसे-जैसे दीर्घायु बढ़ती गई, वयस्कता की पूर्ण जीवन काल में सबसे लंबी अवधि हो गई है। हालाँकि कुछ भौतिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों के पूर्वानुमान के आधार पर, वे फिर से प्रारम्भिक, मध्यम, और बिलंबित (जरावस्था) वयस्कता में विभाजित हो जाते है।
संज्ञान शब्द से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसके माध्यम से सूचना एकत्रित, संग्रहीत और उपयोग की जाती है। मध्यवयस्कता की अवस्था में संज्ञान के चार प्रमुख आयाम होते है शक्ति, ज्ञानार्जन, एकाग्रता और बुद्धि बढ़ती उम्र।
(1) स्मरण शक्ति - स्मरणशीलता संज्ञान के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्षों में से एक है। स्मरणशीलता से अभिप्राय सूचनाओं को बाद में प्रयोग के लिए संग्रहीत करने और ऐसी सूचनाओं को पुनः प्रयुक्त करने की प्रक्रिया समझा जाता है।
बढ़ती उम्र के साथ स्मरण क्षमता पर अनेक कारणों से प्रभाव पड़ता है उनमें से कुछ महत्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं-
(i) स्मरण क्षमता के संबंध में धारणा - अपनी स्मरण क्षमता के प्रति वृद्ध व्यक्तियों की धारणा और ज्ञान के प्रभाव का पता चलता है। मध्यवयस्क व्यक्तियों को युवाओं की अपेक्षा स्मरण शक्ति से जुड़ी ज्यादा समस्या होती है।
(ii) स्मरण संबंधी नीतियों का प्रयोग - स्मरण संबंधी नीतियों के सही प्रयोग से व्यक्ति अपनी स्मरण क्षमता बढ़ा सकता है। स्मरण नीति का एक उदाहरण है जिन चीजों को आप खरीदना चाहते हैं, उनसे संबंधित किसी जानी-पहचानी चीज को स्वयं के साथ दोहराते रहना।
(iii) वयस्कावस्था में जीवन शैलियाँ - वयस्क प्रतिदिन जिस प्रकार के क्रिया-कलाप करते हैं, उनका भी स्मरण शक्ति पर प्रभाव पड़ता है। संज्ञान प्रदर्शन क्षमता पर प्रभाव डालने वाली जीवन शैली का एक अन्य आयाम है रोजमर्रा के जीवन में नियमितता होना। सोने का निर्धारित समय, नियमित व्यायाम, दिन-प्रतिदिन के कार्यों की एक नियमित समय सारणी के माध्यम से व्यक्ति की बौद्धिक क्रिया विधि बनाए रखने में सहायता मिलती है।
(iv) ज्ञान अर्जन - ज्ञान अर्जन में नए संबंधों का निर्माण सम्मिलित है। यह माना जाता है कि ज्ञान अर्जित करने की क्षमता प्रारम्भिक प्रौढ़ावस्था की अपेक्षा मध्य प्रौढ़ावस्था में ज्यादा खराब होती है।
मध्य वयस्कावस्था में ज्ञान अर्जन क्षमता में कोई कमी नहीं आती। यदि अवसर मिलता है तो वह युवाओं के समकक्ष ही ज्ञान अर्जन क्षमता का प्रदर्शन कर सकते हैं।
(v) एकाग्रता - एकाग्रता शब्द उस प्रक्रिया को संबोधित करता है जिस प्रक्रिया में हम किए गए कार्यों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं तथा अलग-अलग व्यक्तियों का एकाग्रता फलक भिन्न होता है। यदि एकाग्रता फलक छोटा है तो बहुत सारी सूचनाएँ छूट जाती है। एकाग्रता फलक की दृष्टि से संभव है कि प्रशिक्षण के माध्यम से एकाग्रता में सुधार सम्भव है।
बुद्धि - वयस्कावस्था और बढ़ती उम्र में बुद्धि का संबंध विभिन्न प्रकार की चुनौतियों से परिपूर्ण दिन-प्रतिदिन के कार्यों और घटनाओं से जूझने की व्यक्ति की क्षमता से जोड़ा जाता है। वयस्क व्यक्ति दबाव के अभाव में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। व्यक्ति के स्वास्थ्य को भी ध्यान में रखना आवश्यक है । स्वस्थ व्यक्ति और खुशहाल व चुस्त जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्तियों में बढ़ती उम्र की शून्यता और बहुत कम बौद्धिक क्षमता का ह्रास होता है।
मौखिक क्षमताओं, स्थानिक तर्क, सरल गणित क्षमताओं और अमूर्त तर्क कौशल सभी में मध्य आयु में सुधार है जबकि स्मरण कौशल और अवधारणात्मक गति दोनों युवा वयस्कता में कम होने लगती है।
रुचियों में परिवर्तन - मध्यावस्था में पुरुषों तथा महिलाओं की रुचियों में भी परिवर्तन होता है। इस अवस्था में रुचियों का विस्तार न होकर रुचियों में कमी या संकीर्णता आती है। इस अवस्था में रुचियों का समारोपण सुन्दर पोशाकों की तरफ होता है। वे इसे अवस्था में अच्छे-अच्छे फैशनेबुल कपड़े पहनना चाहते है जिससे युवा लग सकें। इस अवस्था में रुचियों का समारोपण धन की तरफ भी होता है। मध्यावस्था की महिलाओं की रुचियाँ पुरुषों की अपेक्षा धन की तरफ ज्यादा होती उन्हें आत्म सुरक्षा भी प्रदान करता है। बहुत सारे प्रौढ़ मध्यावस्था में धर्म तथा धार्मिक क्रियाओं में रुचि रखते हैं।
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