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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2789
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |

उत्तर -

बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व
(Importance of Moral Development in Children's Life)

जीवन में सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, धन, दौलत, यश - नाम सुख व आनंद की प्राप्ति में नैतिकता का असीम योगदान है। नैतिक गुणों से विभूषित व्यक्ति के चरणों में धन-दौलत, यश-नाम स्वयं ही लोटने लगता है। यहाँ तक कि स्वर्ग से उतरकर स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, महेश उसकी समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने हेतु इस धरा पर उतर आते हैं, तभी तो कहा गया है-

"खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा आकर तुमसे पूछे, बता तेरी रजा क्या है"

अतः स्पष्ट है कि नैतिकता के विकास से बालकों के आचरण एवं व्यवहार में शुद्धता आती है जिससे बालक का सुन्दर ढंग से व्यक्तित्व विकास होता है। बालकों के जीवन में नैतिकता का क्या - क्या महत्व है, इसे निम्न बिन्दुओं से समझाने का प्रयास किया गया है-

(1) चरित्र निर्माण में सहायक (Assist in Character Formation ) - नैतिक मूल्यों से बालकों के सुन्दर चरित्र का निर्माण होता है। जैसे - ईमानदारी, आज्ञापालन, राष्ट्रभक्ति, सत्यवादिता, सहिष्णुता, दया, करूणा, क्षमाशीलता, त्याग आदि मानवीय गुणों का विकास। ये गुण ही बालक में सुन्दर चरित्र का निर्माण करते हैं। इन गुणों से सुसज्जित बालक परोपकारी और दयालु बनता है। "गुरूनानक" में ये सभी गुण बचपन से ही मौजूद थे जो उन्हें संत / गुरू की श्रेणी में लाकर खड़ा किया। इसी प्रकार गौतम बुद्ध में परोपकारिता, त्याग एवं दयालुता की भावना थी जिसके कारण वे घर-परिवार छोड़कर संसार को एक नई दिशा देने, एक नई राह दिखाने के लिए 'बुद्ध' (Budha) बन गये। अतः नैतिकता चरित्र निर्माण में अमूल्य भूमिका निभाता है।

(2) जागरुकता के विकास में (In the Development of Awareness) - नैतिकता बालकों में जागरुकता लाती है। नैतिकता का विकास हो जाने पर, बालक समाज विरोधी कार्यों को करने से डरता है । वह दुराचार के बारे में कल्पना में भी नहीं सोच पाता है। अब वह भली-भाँति समझने लगता है कि अनुचित एवं गलत कार्यों से उसे व उसके माता-पिता एवं परिवार को बदनामी एवं अपयश ही मिलेगा। अतः बालक जीवन में उच्च आदर्शों एवं मूल्यों को अपनाता है। जागरूकता उत्पन्न हो जाने पर बालक किसी भी प्रकार के प्रलोभन का शिकार नहीं बनता है और जीवन पर्यन्त वह नैतिक आचरण ही करता है।

(3) व्यक्तित्व के विकास में सहायक (Helpful in Personality Development ) - व्यक्तित्व के विकास में नैतिकता का असीम योगदान है। नैतिक गुण व्यक्तित्व के विभिन्न शीलगुणों का निर्धारण करते हैं, जैसे- सत्यता, ईमानदारी, सहनशीलता क्षमाशीलता, दया, करुणा, कर्त्तव्यनिष्ठा, आज्ञापालन आदि विभिन्न नैतिक मूल्य चरित्र के ही अभिन्न भाग हैं और व्यक्तित्व का प्रमुख अंग । इन सद्गुणों के पालन से सुन्दर चरित्र के साथ ही बहुमुखी व्यक्तित्व का निर्माण होता है। नैतिक गुणों से परिपूरित व्यक्ति को समाज में श्रेष्ठ और ऊँचा स्थान मिलता है। फलत: समाज में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है और वह बहुमुखी व्यक्तित्व का धनी व्यक्ति बनता है।

(4) सामाजीकरण में सहायक (Helpful in Socialization) - बालकों के ‘सामाजीकरण’ (Socialization) में नैतिकता का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे कदापि नकारा नहीं जा सकता। जब बालक अपने जीवन में नैतिक आचरणों को अपनाता है, सत्य बोलता है। कर्त्तव्यनिष्ठ होकर कार्य करता है। दूसरों की मदद करता है । परोपकारी, उदार व दयालु बनता है तो समाज के लोग उसे पसंद करने लगते हैं और उसकी प्रशंसा करते हैं। उसे सामाजिक मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा मिलती है। इससे बालक का सामाजिक दायरा बढ़ता है। अतः स्पष्ट है कि नैतिकता बालक के सामाजीकरण में सहयोग देता है।

(5) सुरक्षा की भावना के विकास में सहायक (Helpfull in The Development of Feeling of Security ) - नैतिकता से बालकों में सुरक्षा की भावना का विकास होता है। वे बालक जो अपने जीवन में नैतिक मूल्यों को अपनाते हैं, उनमें सुरक्षा की भावना कूट-कूटकर भरी रहती है। वह न तो घबराता है और न ही किसी व्यक्ति से डरता है। क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता है कि उसका कार्य नैतिक नियमों/ आचरणों के विरूद्ध नहीं है। अतः वह विषम-से-विषम परिस्थिति में भी सही निर्णय दे सकता है। इसके ठीक विपरीत जो बालक नैतिकता के विरूद्ध आचरण करता है, वह हमेशा डरा-डरा, सहमा सहमा रहता है। वह अपनी एक गलती को छिपाने के लिए हजार बहाने बनाता है और गलती पर गलती करते जाता है। इसके बावजूद उसकी सच्चाई नहीं छिपती और अंततः उसे शर्मिन्दगी महसूस होती है। सामाजिक उलाहनाएँ सुनना पड़ता है, कभी-कभी उसे कठोर दंड भी भुगतना पड़ता है।

(6) सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास (Development of Right Decision Making Capacity ) - नैतिकता से बालकों में सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है— नैतिक मूल्यों एवं उच्च आदर्शों के कारण बालक का आत्मविश्वास एवं आत्मचेतना मजबूत रहती है। वह श्रेष्ठ भावनाओं से सराबोर रहता है। उसके अंतःकरण में सच्चाई का बोलबाला रहता है। अतः वह समस्या के समाधान हेतु सही समय पर, सही निर्णय ले लेता है। साथ ही वह अपने द्वारा लिये गये निर्णय पर अडिग एवं अटल रहता है। इसके ठीक विपरीत जिन बालकों में नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों का अभाव रहता है वे इसी मानसिक उलझन एवं अन्तर्द्वन्द में फँसे रहते हैं कि क्या करें, क्या नहीं करें, यदि मैंने ऐसा किया तो वैसा हो जाएगा और वैसा किया तो ऐसा हो जाएगा। फलतः वे सही निर्णय पर नहीं पहुँच पाते हैं। वह भावनाओं एवं इच्छाओं (दिल एवं दिमाग) के अन्तर्द्वन्द्वों व संघर्षों में फंसा रहता है तथा सही समय पर सही निर्णय लेने से चूक जाता है।

(7) अभिवृत्तियों के विकास में (In The Development of Attitudes ) - अभिवृत्तियों के विकास में भी नैतिक मूल्यों का अति महत्वपूर्ण स्थान है। बालक की अभिवृत्तियों के विकास में भी नैतिक मूल्यों का अति महत्वपूर्ण स्थान है। बालक की अभिवृत्तियाँ किस प्रकार की होंगी, इसमें नैतिक मूल्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उच्च नैतिक मूल्यों से बालक में धनात्मक अभिवृत्तियों का निर्माण होता है। अतः माता-पिता एवं शिक्षकों का परम दायित्व है कि वे बालक को नैतिक मूल्यों की शिक्षा दें तथा उनमें धनात्मक अभिवृत्तियों का बीजारोपण करें और उसे पुष्पित - पल्लवित होने में उनकी मदद करें।

(8) आचरणों के निर्धारण में सहायक (Helpful in the Determination of Behaviour) - नैतिक मूल्य बालकों के आचरण व व्यवहार को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बालक उन्हीं कार्यों को करने के लिए प्रेरित होता है जो सामाजिक अपेक्षाओं एवं प्रत्याशाओं के अनुरूप होते हैं। जब बालक छोटे होते हैं तो उनमें उतना अधिक बौद्धिक विकास नहीं हुआ रहता है। इस कारण वे नैतिक मूल्यों को समझ नहीं पाते हैं तथा दंड से बचने के लिए अथवा डर के कारण झूठ बोल देते हैं। परन्तु जब वे ही बालक बड़े हो जाते हैं, तब वे नैतिक मूल्यों के बारे में जान जाते हैं। नैतिक मूल्य उनके रग-रग में निवास करते हैं, इस कारण वे अनुचित, गलत एवं बुरे कार्यों को करने से डरते हैं। अब वे दंड अथवा डाँट फटकार से बचने के लिए झूठ का सहारा नहीं लेते हैं बल्कि अपनी गलती को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- विकास सम्प्रत्यय की व्याख्या कीजिए तथा इसके मुख्य नियमों को समझाइए।
  3. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में अनुदैर्ध्य उपागम का वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमायें बताइये।
  4. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में प्रतिनिध्यात्मक उपागम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में निरीक्षण विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  6. प्रश्न- व्यक्तित्व इतिहास विधि के गुण व सीमाओं को लिखिए।
  7. प्रश्न- मानव विकास में मनोविज्ञान की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- मानव विकास क्या है?
  9. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ बताइये।
  10. प्रश्न- मानव विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन की व्यक्ति इतिहास विधि का वर्णन कीजिए
  12. प्रश्न- विकासात्मक अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन विधि के महत्व पर प्रकाश डालिए?
  13. प्रश्न- चरित्र-लेखन विधि (Biographic method) पर प्रकाश डालिए ।
  14. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में सीक्वेंशियल उपागम की व्याख्या कीजिए ।
  15. प्रश्न- प्रारम्भिक बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य पर टिप्पणी लिखिये।
  16. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी है ? समझाइए ।
  17. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से है। विस्तार में समझाइए।
  18. प्रश्न- नवजात शिशु अथवा 'नियोनेट' की संवेदनशीलता का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है ? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये ।
  20. प्रश्न- क्रियात्मक विकास की विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए।
  21. प्रश्न- क्रियात्मक विकास का अर्थ एवं बालक के जीवन में इसका महत्व बताइये ।
  22. प्रश्न- संक्षेप में बताइये क्रियात्मक विकास का जीवन में क्या महत्व है ?
  23. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से है ?
  24. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए।
  25. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल के क्या उद्देश्य हैं ?
  26. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास क्यों महत्वपूर्ण है ?
  27. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
  28. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल की कमी का क्या कारण हो सकता है ?
  29. प्रश्न- प्रसवपूर्ण देखभाल बच्चे के पूर्ण अवधि तक पहुँचने के परिणाम को कैसे प्रभावित करती है ?
  30. प्रश्न- प्रसवपूर्ण जाँच के क्या लाभ हैं ?
  31. प्रश्न- विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन हैं ?
  32. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  33. प्रश्न- शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
  34. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- शैशवावस्था में बालक में सामाजिक विकास किस प्रकार होता है?
  36. प्रश्न- शिशु के भाषा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  38. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  39. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएँ क्या हैं?
  40. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  41. प्रश्न- शैशवावस्था में सामाजिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
  42. प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते है ?
  43. प्रश्न- सामाजिक विकास की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ?
  44. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।
  45. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं? समझाइये |
  47. प्रश्न- संवेगात्मक विकास को समझाइए ।
  48. प्रश्न- बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख संवेगों का वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |
  50. प्रश्न- नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से हैं? विस्तार पूर्वक समझाइये?
  51. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास क्या है? बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है?
  53. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  54. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें ।
  55. प्रश्न- बाल्यकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  56. प्रश्न- सामाजिक विकास की विशेषताएँ बताइये।
  57. प्रश्न- संवेगात्मक विकास क्या है?
  58. प्रश्न- संवेग की क्या विशेषताएँ होती है?
  59. प्रश्न- बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ क्या है?
  60. प्रश्न- कोहलबर्ग के नैतिक सिद्धान्त की आलोचना कीजिये।
  61. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?
  62. प्रश्न- बालक के संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  63. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की विशेषताएँ क्या हैं?
  64. प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
  65. प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
  66. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  67. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है एवं किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए?
  68. प्रश्न- किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के दौरान नैतिक विकास की विवेचना कीजिए।
  70. प्रश्न- किशोरवस्था में पहचान विकास से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
  72. प्रश्न- अनुशासन युवाओं के लिए क्यों आवश्यक होता है?
  73. प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
  74. प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन-से हैं?
  75. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- आत्म विकास में भूमिका अर्जन की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- स्व-विकास की कोई दो विधियाँ लिखिए।
  78. प्रश्न- किशोरावस्था में पहचान विकास क्या हैं?
  79. प्रश्न- किशोरावस्था पहचान विकास के लिए एक महत्वपूर्ण समय क्यों है ?
  80. प्रश्न- पहचान विकास इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
  81. प्रश्न- एक किशोर के लिए संज्ञानात्मक विकास का क्या महत्व है?
  82. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है ? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं ?
  84. प्रश्न- एक वयस्क के कैरियर उपलब्धि की प्रक्रिया और इसमें शामिल विभिन्न समायोजन को किस प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता है?
  85. प्रश्न- जीवन शैली क्या है? एक वयस्क की जीवन शैली की विविधताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- 'अभिभावकत्व' से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  88. प्रश्न- विविधता क्या है ?
  89. प्रश्न- स्वास्थ्य मनोविज्ञान में जीवन शैली क्या है?
  90. प्रश्न- लाइफस्टाइल साइकोलॉजी क्या है ?
  91. प्रश्न- कैरियर नियोजन से आप क्या समझते हैं?
  92. प्रश्न- युवावस्था का मतलब क्या है?
  93. प्रश्न- कैरियर विकास से क्या ताप्पर्य है ?
  94. प्रश्न- मध्यावस्था से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
  95. प्रश्न- रजोनिवृत्ति क्या है ? इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियों के संबंध में व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान होने बाले संज्ञानात्मक विकास को किस प्रकार परिभाषित करेंगे?
  97. प्रश्न- मध्यावस्था से क्या तात्पर्य है ? मध्यावस्था में व्यवसायिक समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- मिडलाइफ क्राइसिस क्या है ? इसके विभिन्न लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  100. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  101. प्रश्न- मध्य वयस्कता के कारक क्या हैं ?
  102. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान कौन-सा संज्ञानात्मक विकास होता है ?
  103. प्रश्न- मध्य वयस्कता में किस भाव का सबसे अधिक ह्रास होता है ?
  104. प्रश्न- मध्यवयस्कता में व्यक्ति की बुद्धि का क्या होता है?
  105. प्रश्न- मध्य प्रौढ़ावस्था को आप किस प्रकार से परिभाषित करेंगे?
  106. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष के आधार पर दी गई अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  107. प्रश्न- मध्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- क्या मध्य वयस्कता के दौरान मानसिक क्षमता कम हो जाती है ?
  109. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60) वर्ष में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
  110. प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
  111. प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये ।
  112. प्रश्न- वृद्धावस्था में नाड़ी सम्बन्धी योग्यता, मानसिक योग्यता एवं रुचियों के विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- सेवा निवृत्ति के लिए योजना बनाना क्यों आवश्यक है ? इसके परिणामों की चर्चा कीजिए।
  114. प्रश्न- वृद्धावस्था की विशेषताएँ लिखिए।
  115. प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
  116. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए ।
  118. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  119. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  120. प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
  121. प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
  122. प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  123. प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
  125. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  126. प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।

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