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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2789
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 4

बाल्यावस्था में विकास

(Childhood Developmenet)

प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. संवेग को परिभाषित कीजिए।
2. संवेग से आप क्या समझते है।
3. संवेग की दशाएँ।

उत्तर -

संवेग
(Emotion)

'संवेग' शब्द अंग्रेजी भाषा के 'Emotion' का हिन्दी रूपान्तर है | Emotion लैटिन भाषा के 'Emover ' शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है 'To move' To stirred up, To arouse, to excited" अर्थात् “ हिला देना”, “उत्तेजित रकना”, “भड़क उठना" या "उद्दीप्त होना” । अतः जब संवेगों की उत्पत्ति होती है तो व्यक्ति का शरीर उत्तेजित व उद्वेलित हो जाता है। इस उद्वेलित/उत्तेजित अवस्था को ही 'संवेग' कहते हैं और इस उत्तेजना का प्रकटीकरण व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही व्यवहारों में परिलक्षित होता है। उत्तेजना के कारण शरीर की आंतरिक एवं बाह्य दोनों ही दशाओं में व्यापक परिर्तन हो जाता है जैसे― चेहरे के रंग एवं भाव में परिवर्तन, हाथों एवं पैरों में परिवर्तन, नाड़ी गति एवं रक्तचाप में परिवर्तन, साँस की क्रिया में तेजी होना, व्यक्ति का मन उद्विग्न होना आदि ।

संवेग व्यक्ति को झकझोर कर रख देता है। एक क्रोधित व्यक्ति का अवलोकन करें तो पायेंगे कि उसका चेहरा क्रोध से लाल, दाँत किटकिटाते हुए होंठ फड़फड़ाते हुए, मुट्ठियाँ भींची हुई, हाथ एवं पैर तने हुए तथा सम्पूर्ण शरीर इतना अधिक उत्तेजित एवं उद्वेलित दिखाई देता है कि वह व्यक्ति क्रोध में न जाने क्या कर देगा? इसी प्रकार एक प्रसन्नचित व्यक्ति का अवलोकन करें तो पायेंगे कि उसका चेहरा खुशी से झूमता हुआ, आँखों में आकर्षण, होंठ मीठी बोल के लिए आतुर, हाथ स्वागत-सत्कार के लिए तत्पर एवं सम्पूर्ण शरीर से खुशियाँ प्रस्फुटित होता हुआ प्रतीत होता है। उसके रोम-रोम में खुशी का समावेश होता हुआ दिखाई देता है। इसी प्रकार दुख से पीड़ित व्यक्ति संवेग के कारण इतना अधिक शांत, स्तम्भित एवं अवाक् रह जाता है कि वह सामान्य क्रियाएँ भी सम्पन्न नहीं कर पाता है। उसकी नींद, भूख प्यास सभी कुछ गायब हो जाती है। उदाहरण - जवान बेटे की मृत्यु के बाद माँ-बाप को जो पुत्र शोक होता है, और भरी जवानी में पति की मृत्यु के उपरांत पत्नी को जो शोक होता है, वह इसका ज्वलंत उदाहरण है। रामायण में भी, संवेगों के विविध उदाहरण देखने को मिलते हैं। राम के वनवास की बात सुनकर ही अयोध्या नरेश दशरथ पुत्र शोक के संवेग से इतना अधिक विचलित हो गये थे कि उन्होंने अपना प्राण ही त्याग दिये। उपरोक्त विवेचन के आधार पर निसंकोच कहा जा सकता है कि “व्यक्ति के भावों की उद्वेलित अवस्था ही संवेग कहलाती है।"

संवेग की परिभाषाएँ ( Definitions of Emotions)

विभिन्न विद्वानों ने संवेग को अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नानुसार हैं-

(1) English & English के अनुसार - “संवेग एक जटिल भावना की अवस्था है। इसमें क्रियात्मक एवं ग्रंथीय क्रियाएँ होती हैं। अथवा संवेग वह जटिल व्यवहार है जिसमें आंतरिक अवयवों की क्रियाएँ महत्वपूर्ण होती हैं। "

(2) पी० टी० यंग के अनुसार - "संवेग व्यक्ति का तीव्र मनोवैज्ञानिक उपद्रव है जिसकी उत्पत्ति मनोवैज्ञानिक कारणों से होती है तथा इसमें व्यवहार, चेतन, अनुभूति, अनुभव और आंतरिक अवयवों की क्रियाएँ सम्मिलित रहती है।"

(3) जेम्स ड्रेवर के अनुसार - “संवेग शरीर की वह जटिल अवस्था है जिसमें साँस लेने, नाड़ी गति, ग्रंथिल उत्तेजना, मानसिक दशा, अवरोध आदि की अनुभूति पर प्रभाव पड़ता है तथा उसी के अनुसार मांसपेशियाँ व्यवहार करने लगती हैं।"

( 4 ) H.J. Eysenck एवं साथियों के अनुसार - “संवेग एक जटिल अवस्था है जिसमें व्यक्ति किसी चीज या परिस्थिति को अधिक बढ़ा हुआ प्रत्यक्षीकरण करता है। इसमें वृहत् स्तर पर शारीरिक परिवर्तन होते हैं, जिससे व्यक्ति का व्यवहार approach या withdrawl की ओर संगठित होता है तथा अनुभूति आकर्षण या विकर्षण की सूचना देता है। "

(5) Mc Dugall के अनुसार - “Emotion is the mode of experience that accompanies the working of an instinctive impulse, An emotion which is accompanied with the working of instants is known as a primary emotion and all other types of emotions are secondary."

(6) Munn के अनुसार - “ Emotions are accurate disturbances of the individual as a whole. psychological in origin, involving behaviour. consions experiences and verbal functioning."

उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन से संवेग के सम्बन्ध में निम्न बातें दृष्टिगोचर होती हैं-

(1) संवेग अचानक हुई बाह्य एवं आंतरिक उद्दीपकों के फलस्वरूप प्रकट होते हैं।

(2) संवेग, तंत्रिका तंत्र एवं मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं।
(3) व्यक्ति के सम्पूर्ण शरीर एवं चेहरे पर संवेगों का भाव परिलक्षित होता है।
(4) व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक दशाओं में परिवर्तन हो जाता है।

(5) व्यक्ति में विकट से विकट परिस्थिति में कार्य करने की क्षमता प्रकट हो जाती है, और वह असंभव कार्य को भी संभव कर दिखाता है।

(6) संवेग मानव व्यवहार का असामान्य ढंग है। सरल शब्दों में संवेग को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-

"संवेग व्यक्ति की वह जटिल अवस्था है जिसकी उत्पत्ति आंतरिक एवं बाह्य उद्दीपकों एवं मनोवैज्ञानिक कारणों से होती है तथा इसके कारण व्यक्ति के व्यवहार चिन्तन, चेतनता, अनुभव, अनुभूति, प्रत्यक्षीकरण आदि में परिवर्तन हो जाते हैं जो व्यक्ति के चेहरे के हाव-भाव एवं शरीर के सम्पूर्ण भावों के द्वारा परिलक्षित होते हैं। इन्हीं भावों को संवेग कहते हैं।'

परन्तु यह न भूलें कि "संवेग व्यक्ति को आकस्मिक परिस्थितियों से निपटने का साहस, धैर्य एवं बल भी प्रदान करता है, जिससे वह अपनी सुरक्षा विषम-से-विषम परिस्थिति में भी कर लेता है। संवेगों की उपस्थिति के कारण थायरॉइड ग्रंथि से थायरॉक्सिन हारमोन का अत्यधिक मात्रा में स्त्रावण होने लगता है जिससे उसकी क्रियाशीलता बढ़ जाती है और व्यक्ति 'Fly' या 'Fight' की नीति अपनाकर खतरनाक परिस्थितियों से अपनी रक्षा कर लेता है। "

संवेग की दशायें
(Conditions of Emotions)

(1) बाह्य शारीरिक दशायें (External Physical Conditions) - संवेग की इस स्थिति में शरीर के बाह्य दशाओं में परिवर्तन आ जाता है, जैस- चेहरे का हाव-भाव बदल जाना, हाथ- -पैरों को पटकना, मट्टियाँ भिच जाना, आवाज बदल जाना, आँखें क्रोध से लाल हो जाना या फिर प्यार के लिए आतुर होना, होंठ फड़फड़ाना, माथे पर बल/ लकीरें पड़ जाना, भौंहे तन जाना, आँखों से आँसू निकलना, शरीर का काँपना, चेहरा लाल हो जाना आदि ।

(2) आंतरिक शारीरिक दशायें (Internal Physical Conditions ) - संवेग की इस स्थिति में, बाह्य शारीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ आंतरिक अंगों में भी परिवर्तन आ जाते हैं जैसे- नाड़ी गति बढ़ जाना, साँस का तेज-तेज चलना, रक्तचाप में परिवर्तन, रक्त की रासायनिक संगठन में परिवर्तन, शरीर की होमियोस्टैसिस (Homeostasis) में परिवर्तन, अंत: स्रावी ग्रंथियों (Endocrine glands) तथा पाचक रसों (Digestive Juices) की क्रियाओं में परिवर्तन आदि ।

बालकों के संवगों का महत्व
( Importance of Children's Emotions)

बालकों के जीवन में संवेगों का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि बालक ही समय परिवर्तन के साथ पल - बढ़कर युवा व्यक्ति बनते हैं जिसके कंधों पर भारत का भविष्य टिका रहता है। संवेग बालक के सर्वांगीण विकास में सहायक होते हैं। व्यक्तित्व विकास एवं सामाजिक समायोजन में संवेगों की अग्रणी भूमिका होती है। बालकों के जीवन में संवेगों का महत्व निम्नानुसार है-

(1) हर्ष एवं आनंद की अनुभूति (Feeling of Joy and Happiness ) - संवेगों में बालकों को हर्ष, खुशी, आनंद, उल्लास एवं उत्साह की अनुभूति होती है। फलतः उसमें सकारात्मक गुणों का विकास होता है। वह बहुमुखी प्रतिभा का धनी व्यक्ति बनता है। उसका व्यक्तित्व सुन्दर, सजीला एवं आकर्षक होता है। याद रहे। सकारात्मक संवेगों की अनुभूति से जहाँ बालकों को सुख, शांति एवं प्रसन्नता मिलती है, वहीं वह नकारात्मक संवेगों को प्रकट कर वह अपने भीतर छिपे हुए क्रोध, ईर्ष्या, आक्रोश, जलन आदि को बाहर निकाल देता है। फलतः वह तनावमुक्त होकर आनंदमय जीवन जीता है। अतः स्पष्ट है कि संवेगों से, बालकों को हर्ष, खुशी एवं आनंद की अनुभूति होती है।

वैज्ञानिक भी इस बात से शत-प्रतिशत सहमत हैं कि आनंद एवं सुख की स्थिति में शरीर की सभी पेशियाँ तनावमुक्त हो जाती हैं जिससे शरीर को आराम पहुँचता है। उसकी पेशियों के भीतर विद्यमान लैक्टिक अम्ल सहित सभी दूषित पदार्थ बाहर निकल जाते हैं । फलतः उसका रोम-रोम हर्षित हो जाता है। और ये भाव उसके चेहरे की खुशी के माध्यम से प्रकट होते हैं। चेहरे की मुस्कराहट अथवा खिलखिलाकर हँसना इसका द्योतक होता है।

(2) सामाजिक समायोजन में सहायक (Helpful in Social Adjustment) - संवेग बालकों को सामाजिक समायोजन स्थापित करने में भी अमूल्य भूमिका निभाता है। यदि बालक आनंददायक संवेगों को जीवन में अपनाकर अच्छी आदतों का निर्माण कर लेता है तो उसका समायोजन स्कूल के साथियों आस-पड़ोस के बालकों एवं समाज के साथ अच्छा होता है । परन्तु यदि बालक अपने जीवन में कष्टदायी एवं नकारात्मक संवेगों को अपनाते हैं। तो उन्हें सामाजिक समायोजन में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

(3) आदतों के निर्माण में सहायक (Helpuful in Habits Formation ) - संवेग से बालकों में अच्छी आदतों का निर्माण होता है। जब बालकों को सकारात्मक संवेगों की अभिव्यक्ति से सुख की अनुभूति होती है, दूसरे लोग उसकी प्रशंसा करते हैं, माता-पिता एवं शिक्षक बालक को प्रोत्साहित करते हैं तो बालक उस संवेगात्मक अनुक्रियाओं की पुनरावृत्ति बार-बार करता है जो बाद में चलकर उसकी आदत में परिणत (बदल) हो जाता है और बालक अच्छी आदतों को सीखकर उसे जीवन में अपना लेता है।

(4) भाषा विकास में सहायक (Helpful in Language Development ) - संवेगों से शरीर की क्रियाशीलता बढ़ जाती है जिससे उसकी आवाज में परिवर्तन आ जाता है। वह किसी भी चीज को, चाहे वह कविता हो या कहानी अथवा सामान्य बातचीत ही, जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगता है जिससे उसकी गला, स्वरयंत्र, जीभ, होंठ एवं जबड़ों की मांसपेशियाँ परिपक्व होती हैं और भाषा विकास में सहायक होती हैं। इसके ठीक विपरीत यदि बालक अपनी शारीरिक क्रियाशीलता से घुटन पैदा करता है जिससे उसका भाषा विकास तो प्रभावित होता ही उसका व्यक्तित्व भी कुंठित हो जाता है। उसके भीतर नकारात्मक गुणों का साम्राज्य हो जाता है जो व्यक्तित्व विकास में बाधा पहुँचाता है।

(5) संप्रेषण में सहायक (Helpful in Communication ) - संवेग संप्रेषण में भी बहुमूल्य भूमिका निभाता है। बालक अपने विचारों को, भावों को, शब्दों के माध्यम से तो व्यक्त करते ही हैं। साथ ही वे अपने चेहरे के हाव-भाव तथा 'Body Language' के माध्यम से भी व्यक्त करते हैं। दूसरे लोग बालक के विचारों, तर्कों एवं भावों से कितना अधिक एवं किस हद तक सहमत या असहमत हैं उसे भी वह उनके चेहरे के हाव-भाव एवं Body language को देखकर समझ जाता है और उसी के अनुसार सुधार भी करता है ।

( 6 ) आत्म- मूल्यांकन एवं सामाजिक मूल्यांकन में सहायक (Helpful in Self and Social Evaluation ) - बच्चे संवेगों के माध्यम से अपना स्वयं का आत्म-मूल्यांकन तथा दूसरो का अर्थात् सामाजिक मूल्यांकन करते हैं। वे बच्चे जो दूसरों के ममक्ष सुखदायक संवेगों की अभिव्यक्ति अधिक मात्रा में करते हैं, समाज उन्हें पसंद करता है, उसका आदर करता है। फलतः वे लोकप्रिय होते हैं। खेल एवं विद्यालय के साथी उसे अपना नेता (Leader) मानता है। इसके विपरीत जो बालक दुखदायक संवेगों की अभिव्यक्ति अधिक मात्रा में करता है, उन्हें खेल के साथी-भी ही कम पसंद करते हैं। समाज में भी उस बालक की निंदा होती है। समाज के लोग बालक को कितना अधिक पसंद / नापसंद करते हैं इस आधार पर बालक अपना स्वयं का मूल्यांकन करता है।

(7) संवेग शारीरिक क्रियाशीलता को बढ़ाते हैं (Emotions increase Physical Activities) - संवेग के कारण बालकों की शारीरिक क्रियाशीलता बढ़ जाती है। सकारात्मक संवेग के कारण हृदय की धड़कनें बढ़ जाती हैं। नाड़ी गति बढ़ जाती है। मांसपेशियों की थकान कम हो जाती है। यकृत से अधिक मात्रा में ग्लाइकोजन (Carbohydrate) निकलने लगता है। थाएरॉइड ए एड्रीनल ग्रंथियों से हारमोन का अधिक स्रावन होने लगता है। फलतः बालक क्रियाशील हो जाता है। परन्तु यदि बालक इस बढ़ी हुई क्रियाशीलता का उपयोग सृजनात्मक कार्यों के निर्माण में नहीं कर पाता है तो वह उदास, निराश, चिड़चिड़ा, एवं नर्वस (Nervous ) हो जाता है। उसमें कई प्रकार के व्यवहारात्मक दोष उत्पन्न हो जाते हैं जैसे- अँगूठा चूसना, नाखून चबाना, बात-बात पर क्रोधित होना, बिस्तर पर पेशाब करना, दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ऊटपटांग हरकतें करना आदि।

(8) संवेग मानसिक क्रियाओं में बाधा पहुँचाते हैं (Emotions Interferes Mental Activities) - तीव्र नकारात्मक संवेगों जैस- ईर्ष्या, क्रोध, भय आदि के कारण बालक उद्वेलित हो जाता है। फलतः उसमें सीखने, सोचने, समझने, तर्क करने, स्मरण करने एकाग्रता, ध्यान लगाने आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस कारण वह अपनी क्षमता एवं बुद्धिलब्धि (I. Q.) की तुलना में बहुत ही कम अभिव्यक्त कर पाता है। परिणामतः वह शैक्षणिक एवं सह-शैक्षणिक गतिविधियों में अन्य बालकों की तुलना में काफी पीछे रह जाता है। वह व्यवहार कुशल भी नहीं हो पाता है। जो बालक सदैव ही ईर्ष्या, क्रोध, भय व चिन्ता से ग्रस्त रहता है वह पढ़ाई में कमजोर हो जाता है।

(9) संवेग बहुत से कार्यों के प्रेरक होते हैं (Emotions are Motivatiers for Many Activity ) - बहुत से संवेग ऐसे होते हैं जो दुश्मनों के प्रति घृणा एवं क्रोध उत्पन्न करते हैं तथा देश एवं समाज के लिए हँसते हुए सर्वस्व न्योछावर कर देने की प्रेरणा देते हैं। आजादी की लड़ाई में देश का बच्चा-बच्चा अपना बलिदान देने के लिए तत्पर था। क्रांतिकारियों ने संवेग के कारण ही फाँसी के फंदे को भी हँसते हुए चूम लिया।

(10) संवेग बालकों के जीवन में रंग भरते हैं (Emotions Colour Children's Outlooks on Life ) - सकारात्मक संवेगों की अभिव्यक्ति से बालकों को खेल के साथियों एवं समाज के लोगों द्वारा प्रशंसा मिलती है। फलतः वह सकारात्मक संवेगों को बार-बार दुहराने के लिए प्रेरित होता है और अपने जीवन को आनंदमय बनाता है। उसके कई अच्छे दोस्त बन जाते हैं जिनके बीच वह अपनी खुशियों को बाँटकर आनंदित होता है। अतः संवेग बालकों के जीवन में रंग भरते हैं तथा सरसता एवं आकर्षण उत्पन्न करते हैं। यदि बालक स्वस्थ रहता है तो उसका जीवन सुखदायक बनता है । परन्तु यदि बालक समाज में नकारात्मक संवेगों जैसे-दुख, चिन्ता, क्रोध, ईर्ष्या आदि की अभिव्यक्ति अधिक करता है तो उसे खेल के साथी एवं समाज के लोग कम ही पसंद करते हैं।

( 11 ) संवेग सामाजिक अन्तःक्रियाओं को प्रभावित करते हैं (Emotions Affect Social Interaction ) - सभी प्रकार के संवेग चाहे वे नकारात्मक हों या सकारात्मक, सामाजिक अंतः क्रियाओं को प्रभावित करते ही हैं। स्नेह, प्यार, दुलार एवं खुशी संवेगों से बालक का सामाजिक विकास अच्छा होता है। जो बालक निराश, उदास, दुःखी एवं खिन्न रहता है उसका सामाजिक विकास अच्छा नहीं होता है। अतः बालक आसानी से समझ जाता है कि किन-किन संवेगों की अभिव्यक्ति से उसे प्रशंसा एवं लोकप्रियता मिलती है और किन-किन से निन्दा | इस आधार पर वह स्वयं के व्यवहार में परिवर्तन लाता है।

(12) संवेग मनोवैज्ञानिक वातावरण को प्रभावित करते हैं (Emotions Affect the Psychological climate ) - चाहे घर हों, स्कूल हों या आस-पड़ोस, यदि बच्चे आनंदित, हर्षित एवं खुश रहते हैं तो सम्पूर्ण वातावरण ही लुभावना एवं खुशनुमा हो जाता है। स्वस्थ्य बच्चे आँगन में खेलते-कूदते और किलकारियाँ भरते नजर आते हैं। सम्पूर्ण वातावरण गुलाब की क्यारियों की तरह महक उठता है। परन्तु यदि बालक नकारात्मक संवेगों जैसे—- क्रोध, डर, ईर्ष्या, चिन्ता आदि से ग्रस्त है तो न केवल घर का, बल्कि स्कूल एवं आस-पड़ोस का वातावरण भी खराब हो जाता है । सर्वत्र उदासी छा जाती है। माता-पिता और दूसरे लोग भी ऐसे बालक को बहुत ही कम पसंद करते हैं और ऐसा बालक 'Unhappy child' या 'Unwanted child' की श्रेणी में गिना जाता है।

(13) संवेगों की अभिव्यक्ति चेहरे से स्पष्ट झलकती है (Emotions Leave Their Mark on Facial Expressions ) - संवेग चाहे सकारात्मक हों या नकारात्मक इसकी अभिव्यक्ति चेहरे पर स्पष्ट दिखाई देती है । हर्ष, आनंद एवं खुशी संवेगों की अभिव्यक्ति से बालक का चेहरा हँसता - मुस्कराता नजर आता है। उसकी आँखों में एक विशेष प्रकार का आकर्षण होता है। हँसते समय दाँत मोतियों की माला की भाँति चमकते हुए दिखाई पड़ते हैं। उसके रोम-रोम से खुशियाँ प्रस्फुटित होती हुई नजर आती हैं। उसका चेहरा सुन्दर एवं आकर्षक दिखता है। फलतः लोग स्वतः ही ऐसे बालक के प्रति आकर्षित हो जाते हैं और उसे प्यार करने लगते हैं। परन्तु यदि बालक तुनकमिजाजी है और बात-बात पर गुस्सा करता है या रोता है तो ये भाव भी उसके चेहरे पर स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, जिसे बहुत कम लोग ही पसंद करते हैं।

( 14 ) संवेगात्मक तनाव गत्यात्मक दक्षता में अवरोध उत्पन्न करते हैं (Emotional Tensions Disrupts Motor Skills) - संवेगात्मक तनाव से कार्य सीखने एवं करने की क्षमता में काफी कमी आ जाती है।

संवेगात्मक तनाव के कारण बालक किसी भी काम को दक्षतापूर्वक नहीं कर पाता है। जैसे ही वह काम करना चाहता है, उसके मन के भीतर इतना अधिक डर व्याप्त हो जाता है कि चीजें उसके हाथ से छूटकर गिर जाती हैं। फलतः बालक सहम जाता है। इस कारण उसे फूहड़ बालक की संज्ञा दी जाती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- विकास सम्प्रत्यय की व्याख्या कीजिए तथा इसके मुख्य नियमों को समझाइए।
  3. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में अनुदैर्ध्य उपागम का वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमायें बताइये।
  4. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में प्रतिनिध्यात्मक उपागम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में निरीक्षण विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  6. प्रश्न- व्यक्तित्व इतिहास विधि के गुण व सीमाओं को लिखिए।
  7. प्रश्न- मानव विकास में मनोविज्ञान की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- मानव विकास क्या है?
  9. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ बताइये।
  10. प्रश्न- मानव विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन की व्यक्ति इतिहास विधि का वर्णन कीजिए
  12. प्रश्न- विकासात्मक अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन विधि के महत्व पर प्रकाश डालिए?
  13. प्रश्न- चरित्र-लेखन विधि (Biographic method) पर प्रकाश डालिए ।
  14. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में सीक्वेंशियल उपागम की व्याख्या कीजिए ।
  15. प्रश्न- प्रारम्भिक बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य पर टिप्पणी लिखिये।
  16. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी है ? समझाइए ।
  17. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से है। विस्तार में समझाइए।
  18. प्रश्न- नवजात शिशु अथवा 'नियोनेट' की संवेदनशीलता का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है ? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये ।
  20. प्रश्न- क्रियात्मक विकास की विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए।
  21. प्रश्न- क्रियात्मक विकास का अर्थ एवं बालक के जीवन में इसका महत्व बताइये ।
  22. प्रश्न- संक्षेप में बताइये क्रियात्मक विकास का जीवन में क्या महत्व है ?
  23. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से है ?
  24. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए।
  25. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल के क्या उद्देश्य हैं ?
  26. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास क्यों महत्वपूर्ण है ?
  27. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
  28. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल की कमी का क्या कारण हो सकता है ?
  29. प्रश्न- प्रसवपूर्ण देखभाल बच्चे के पूर्ण अवधि तक पहुँचने के परिणाम को कैसे प्रभावित करती है ?
  30. प्रश्न- प्रसवपूर्ण जाँच के क्या लाभ हैं ?
  31. प्रश्न- विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन हैं ?
  32. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  33. प्रश्न- शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
  34. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- शैशवावस्था में बालक में सामाजिक विकास किस प्रकार होता है?
  36. प्रश्न- शिशु के भाषा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  38. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  39. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएँ क्या हैं?
  40. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  41. प्रश्न- शैशवावस्था में सामाजिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
  42. प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते है ?
  43. प्रश्न- सामाजिक विकास की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ?
  44. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।
  45. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं? समझाइये |
  47. प्रश्न- संवेगात्मक विकास को समझाइए ।
  48. प्रश्न- बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख संवेगों का वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |
  50. प्रश्न- नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से हैं? विस्तार पूर्वक समझाइये?
  51. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास क्या है? बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है?
  53. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  54. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें ।
  55. प्रश्न- बाल्यकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  56. प्रश्न- सामाजिक विकास की विशेषताएँ बताइये।
  57. प्रश्न- संवेगात्मक विकास क्या है?
  58. प्रश्न- संवेग की क्या विशेषताएँ होती है?
  59. प्रश्न- बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ क्या है?
  60. प्रश्न- कोहलबर्ग के नैतिक सिद्धान्त की आलोचना कीजिये।
  61. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?
  62. प्रश्न- बालक के संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  63. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की विशेषताएँ क्या हैं?
  64. प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
  65. प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
  66. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  67. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है एवं किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए?
  68. प्रश्न- किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के दौरान नैतिक विकास की विवेचना कीजिए।
  70. प्रश्न- किशोरवस्था में पहचान विकास से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
  72. प्रश्न- अनुशासन युवाओं के लिए क्यों आवश्यक होता है?
  73. प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
  74. प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन-से हैं?
  75. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- आत्म विकास में भूमिका अर्जन की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- स्व-विकास की कोई दो विधियाँ लिखिए।
  78. प्रश्न- किशोरावस्था में पहचान विकास क्या हैं?
  79. प्रश्न- किशोरावस्था पहचान विकास के लिए एक महत्वपूर्ण समय क्यों है ?
  80. प्रश्न- पहचान विकास इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
  81. प्रश्न- एक किशोर के लिए संज्ञानात्मक विकास का क्या महत्व है?
  82. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है ? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं ?
  84. प्रश्न- एक वयस्क के कैरियर उपलब्धि की प्रक्रिया और इसमें शामिल विभिन्न समायोजन को किस प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता है?
  85. प्रश्न- जीवन शैली क्या है? एक वयस्क की जीवन शैली की विविधताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- 'अभिभावकत्व' से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  88. प्रश्न- विविधता क्या है ?
  89. प्रश्न- स्वास्थ्य मनोविज्ञान में जीवन शैली क्या है?
  90. प्रश्न- लाइफस्टाइल साइकोलॉजी क्या है ?
  91. प्रश्न- कैरियर नियोजन से आप क्या समझते हैं?
  92. प्रश्न- युवावस्था का मतलब क्या है?
  93. प्रश्न- कैरियर विकास से क्या ताप्पर्य है ?
  94. प्रश्न- मध्यावस्था से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
  95. प्रश्न- रजोनिवृत्ति क्या है ? इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियों के संबंध में व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान होने बाले संज्ञानात्मक विकास को किस प्रकार परिभाषित करेंगे?
  97. प्रश्न- मध्यावस्था से क्या तात्पर्य है ? मध्यावस्था में व्यवसायिक समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- मिडलाइफ क्राइसिस क्या है ? इसके विभिन्न लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  100. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  101. प्रश्न- मध्य वयस्कता के कारक क्या हैं ?
  102. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान कौन-सा संज्ञानात्मक विकास होता है ?
  103. प्रश्न- मध्य वयस्कता में किस भाव का सबसे अधिक ह्रास होता है ?
  104. प्रश्न- मध्यवयस्कता में व्यक्ति की बुद्धि का क्या होता है?
  105. प्रश्न- मध्य प्रौढ़ावस्था को आप किस प्रकार से परिभाषित करेंगे?
  106. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष के आधार पर दी गई अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  107. प्रश्न- मध्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- क्या मध्य वयस्कता के दौरान मानसिक क्षमता कम हो जाती है ?
  109. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60) वर्ष में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
  110. प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
  111. प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये ।
  112. प्रश्न- वृद्धावस्था में नाड़ी सम्बन्धी योग्यता, मानसिक योग्यता एवं रुचियों के विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- सेवा निवृत्ति के लिए योजना बनाना क्यों आवश्यक है ? इसके परिणामों की चर्चा कीजिए।
  114. प्रश्न- वृद्धावस्था की विशेषताएँ लिखिए।
  115. प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
  116. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए ।
  118. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  119. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  120. प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
  121. प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
  122. प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  123. प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
  125. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  126. प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।

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