बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- शिशु के भाषा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
अथवा
नवजात शिशु में वास्तविक भाषा के पूर्व की अभिव्यक्तियों का वर्णन कीजिए
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. कूडंग और बबलाना किसे कहते हैं ?
2. शिशु में क्रन्दन कब प्रारम्भ हो जाता है ?
उत्तर -
शिशु में भाषा-विकास की कई अवस्थाएँ हैं। इसमें से कुछ अवस्थाएँ भाषा के. विकास से पूर्व सम्प्रेषण से सम्बन्धित हैं तथा कुछ अवस्थाएँ वास्तविक वाणी- विकास से सम्बन्धित हैं।
वास्तविक भाषा के पूर्व की अभिव्यक्तियाँ - इनका वर्णन निम्नलिखित किया जा रहा है-
1. क्रन्दन - शिशु के जन्म से ही क्रन्दन प्रारम्भ हो जाता है जो उसकी भाषा का प्रारम्भिक रूप है। लगभग दो सप्ताह तक बालक जब क्रन्दन या रोना प्रारम्भ करते हैं तो बिना रुके कई-कई मिनट तक रोते रहते हैं। कई बार इनके इस प्रकार रोने के कुछ या कई कारण होते हैं और कई बार इनके रोने का कोई भी कारण नहीं होता है। इस आयु के बच्चे सोते-सोते भी रोने लग सकते है। तीसरे सप्ताह से चौथे माह तक रोना अपेक्षाकृत कम रहता है।
2. कूडंग और बबलाना - आयु बढ़ने के साथ-साथ बच्चों का क्रन्दन कुछ समय पश्चात् कूडंग और बबलाने में परिवर्तित हो जाता है। छींकते समय, जमहाई लेते समय, खाँसते समय बालक कुछ विस्फोटक ध्वनियाँ बोलता है। इन ध्वनियों को खेल युक्त क्रियाओं की संज्ञा दी जा सकती हैं जो बालकों को आनन्द प्रदान करती है। ये ध्वनियाँ कूडंग कहलाती हैं। इनमें से कुछ ध्वनियाँ बबलाने में परिवर्तित हो जाती हैं।
बबलाना बालकों में लगभग दो माह की आयु से प्रारम्भ होकर तेरह माह की अवस्था तक चलता है। बबलाने से बालकों के स्वर यन्त्र की परिपक्वता को बल मिलता है। बबलाने में बच्चा स्वरों को पहले और व्यंजनों को उसके साथ मिलाकर दुहराता है।
3. हाव-भाव - वास्तविक भाषा बोलने के पूर्व की अभिव्यक्तियों में एवं भाषा विकास में हाव-भाव का भी महत्वपूर्ण स्थान है। हाव-भावों के अन्तर्गत बालक के शरीर के विभिन्न अंगों की वे गतियाँ आती हैं जिनके द्वारा बालक कुछ कहता है या अपनी आवश्यकताओं को व्यक्त करता है । उदाहरण - भूख मिट जाने और सन्तुष्ट हो जाने पर वह अपना सिर निपिल की ओर से मोड़कर हटा लेता है। बालक में भाषा का विकास जैसे-जैसे बढ़ता जाता है, उसके हाव-भावों का प्रयोग कम होता जाता है।
वास्तविक भाषा की अभिव्यक्तियाँ
4. आकलन-शक्ति - आकलन शक्ति बालक की वह योग्यता है जिससे वह दूसरे व्यक्तियों की क्रियाओं और भाव-भंगिमाओं को समझाता है। हरलॉक (1974) का विचार हैं कि बालक शब्दों को बोलने से पहले उनका अर्थ मुख्यतः दूसरे व्यक्तियों के हाव-भाव तथा आवाज आदि से सीखता है।
5. उच्चारण - अध्ययनों में देखा गया है कि लगभग छह माह का बालक अनेक ऐसी ध्वनियाँ उच्चारित करता है जो अर्थपूर्ण नहीं होती हैं। लगभग एक वर्ष के बालक में शब्दों के अनुसार उच्चारण की तत्परता या योग्यता आ जाती है। इस आयु में वह अनेक ऐसी सरल ध्वनियों को उच्चारित कर सकता है जिनका उच्चारण उसने पहले कमी नहीं किया था। वह इस प्रकार का उच्चारण दूसरे व्यक्तियों के अनुकरण के द्वारा सीखता है। यद्यपि बालक लगभग एक वर्ष की आयु से दूसरे व्यक्तियों द्वारा बोले गए सरल शब्दों का अनुकरण कर उच्चारण करने लगता है । परन्तु अनुकरण की यह प्रक्रिया अति मन्द गति से बढ़ती हैं। बच्चे उन व्यक्तियों के द्वारा बोले गए शब्दों का उच्चारण करना और अनुकरण करना सीखते है जिससे वह अधिक सम्बन्धित होते हैं।
6. शब्द-भण्डार - बालक के शब्द भण्डार में वृद्धि उसकी आयु में वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती है। बालक के शब्द भण्डार में वृद्धि केवल नए शब्दों को सीखने से ही नहीं होती है बल्कि वह अनेक पहले सीखे गए शब्दों का नया अर्थ भी सीखता है।
7. वाक्य निर्माण - भाषा विकास की यह प्रमुख अवस्था है। इस अवस्था में वह अपने शब्द-भण्डार में से कुछ शब्दों का चुनाव करके वाक्यों का निर्माण कर अपने विचारों को व्यक्त करता है। दैनिक जीवन के निरीक्षणों में यह देखा जा सकता है कि बालक प्रारम्भ में एक शब्द वाला वाक्य बोलता है। दो वर्ष का बालक दो शब्दों को जोड़कर वाक्य बनाकर बोलता है। लगभग तीन वर्ष की अवस्था तक वह विशेषण शब्दों तथा अव्यय शब्दों का प्रयोग करना सीखा जाता है।
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