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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2789
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- वृद्धावस्था की विशेषताएँ लिखिए। 

अथवा
वृद्धावस्था में व्यक्तित्व परिवर्तन की संक्षेप में विवेचना कीजिए ।

उत्तर -

प्रौढ़ावस्था के विशिष्ट लक्षणों के कारण इन्हें जीवन विस्तार की विभिन्न अवस्थाओं से अलग पहचान प्रदान की जा सकती है। यह अवस्था शारीरिक व मानसिक शक्तियों के क्षय होने की अवस्था है जब मनोवैज्ञानिक तरीके से व्यक्ति 'जरण' की तरफ बढ़ते हैं। हालांकि जरण की प्रक्रिया में व्यक्तिगत भिन्नतायें देखी जा सकती हैं फिर भी कुछ परिवर्तन सामान्य होते हैं, जैसे- व्यक्ति की भूमिका में परिवर्तन, व्यक्ति का दृष्टिकोण अधिक रूढ़िवादी हो जाना, समाज में अल्प-समूह का स्तर व स्वयं को पुनः चुस्त व प्रसन्न रखने की इच्छा आदि।

उपरोक्त परिवर्तन के अलावा कुछ विशेषताएँ प्रत्येक व्यक्ति में देखी जा सकती हैं जिन्हें निम्नानुसार वर्णित किया गया है-

1. ह्रास का काल (Period of Decline ) - प्रथम दृष्टया यह अवस्था मानसिक एवं शारीरिक योग्यता के क्षय की अवस्था है जिसकी क्षतिपूर्ति व्यक्ति अपने जीवन के पुराने अनुभवों तथा ज्ञान के उपयोग द्वारा करता है। जरण के साथ व्यक्ति की शक्ति में कमी तथा प्रतिक्रिया या प्रत्युत्तर की गति में कमी स्पष्टतः देखी जाती है, परंतु कुछ व्यक्ति कौशलों के विकास के द्वारा इस कमी की पूर्ति कर लेते हैं।

व्यक्ति की क्षमता या योग्यता में जब क्रमिक रूप से गिरावट शुरू होती है एवं व्यक्ति इसकी पूर्ति करने के योग्य रहता है, उस अवधि को जरत्व कहते हैं। व्यक्ति जीवन के पचासवें वर्ष में जरत्व की स्थिति में आ जाता है या साठ वर्ष से पहले या बाद के समय में भी यह स्थिति प्राप्त करता है। यह परिवर्तन प्रत्येक व्यक्ति की वैयक्तिक विशेषताओं अर्थात् उसकी शारीरिक व मानसिक शक्ति के क्षय होने की गति पर निर्भर करता है।

जरत्व के विपरीत जरावस्था वह अवस्था है जिसे वृद्धावस्था कहते हैं। उस समय व्यक्ति में अधिक या कम मात्रा में शारीरिक क्षय व मानसिक गड़बड़ियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, जैसे- व्यक्ति का लापरवाह होना, खोया रहना, सामाजिक अलगाव व कुसमायोजन से ग्रस्त होना आदि। अधिकतर व्यक्ति जरत्व की अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त कर लेते हैं। अतः जरावस्था तक नहीं पहुँचते । जरावस्था को प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की संख्या समाज में कम होती है। जरण की अवस्था में समायोजन एक कठिन कार्य माना जाता है क्योंकि व्यक्ति जीवन की प्रक्रिया से अवगत रहता है व अपने पिछले ज्ञान तथा अनुभव का उपयोग करता है, जबकि जरावस्था में व्यक्ति को अनुभव ही नहीं होता कि वह कितनी तत्परता के साथ टूटता जा रहा है।

ह्रास के कारण (Causes of Decline ) - जैसा कि पूर्व में बताया गया है कि ह्रास आंशिक रूप से शारीरिक व आंशिक रूप से मनोवैज्ञानिक कारकों के कारण होता है। शरीर के ऊतकों की संरचना में परिवर्तन तीव्रता के साथ होने का कारण कोशिकाओं के अंदर के द्रव पदार्थ में कमी व पोषक तत्वों का कोशिकाओं को प्राप्त न होना तथा अनुपयोगी पदार्थ का बाहर निष्कासन न होकर वहीं जमा रहना होता है। इस प्रकार कोशिकाओं का टूटना शारीरिक ह्रास को निर्मित करता है।

इस अवस्था में कोशिकाओं में परिवर्तन का दूसरा कारण व्यक्ति में होने वाले कोई रोग विशेष न होकर जरण की प्रक्रिया हैं। इस समय कोशिकाओं में परिवर्तन दो प्रकार से देखे जा सकते हैं-

1. क्रमिक रूप से कोशिकाओं का शुष्क होना ।
2. क्रमिक रूप से कोशिका विभाजन की प्रक्रिया में न्यूनता उत्पन्न होना ।

फलस्वरूप कोशिकाओं की वृद्धि के साथ-साथ कोशिकाओं की टूट-फूट होने पर उसके स्थान पर नई कोशिकाओं के निर्माण की शक्ति में भी मंदता आ जाती है। शरीर में ऑक्सीकरण की क्रिया की गति में धीमापन आ जाता है, जिसके कारण कोशिकाओं की रचना में गिरावट – जैसे ऊतकों में लचीलेपन का अभाव, शरीर के संयोजी ऊतकों में कमी, तंत्रिकातंत्र का धीमी गति से काम करना, कोशिकाओं के आंतरिक वातावरण को सामान्य बनाए रखने की प्रक्रिया में मंदता का होना आदि परिवर्तन ह्रास की दिशा को इंगित करते हैं। इसके अलावा कोशिकाओं के द्रव्य में लौह तत्व व कैल्शियम जैसे तत्वों के जमा होने से जरण की प्रक्रिया और द्रुत गति से होने लगती है जिसके परिणामस्वरूप कोशिका द्रव्य के पोषक पदार्थों एवं उत्सर्जित पदार्थों को अपने आर-पार जाने देने की क्षमता घट जाती है।

कर्टिस के अनुसार - जरण एक जैविक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत व्यक्ति में रोगधारण करने की क्षमता बढ़ जाती है । जैसे-जैसे शरीर के ऊतक जरण प्रक्रिया के दौर से गुजरना प्रारंभ करते हैं वे विशेष बीमारियों के लिये अनुकूल वातावरण तैयार कर देते हैं, जैसे- कैंसर रोग ।

2. मनोवैज्ञानिक जरण (Psychological Aging ) - वृद्धावस्था में होने वाले मनोवैज्ञानिक जरण जरूरी नहीं हैं कि व्यक्ति के शारीरिक जरण के समानांतर परिवर्तित हों। इस प्रकार का जरण किसी व्यक्ति में जल्दी या देर से होगा, यह मुख्यतया उसकी मानसिक क्षमता के उपयोग व दशा पर निर्भर करता है। व्यक्ति का स्वयं के प्रति, दूसरों के प्रति एवं अपने व्यवसाय के प्रति प्रतिकूल दृष्टिकोण जरण की ओर जाने की स्थिति को दर्शाते हैं जिसका प्रमुख कारण मस्तिष्क के ऊतकों में तीव्रता के साथ परिवर्तन होना है। ऐसे व्यक्ति जिन्हें सेवानिवृत्ति के बाद जीवन के प्रति कोई रुचि नहीं रहती हैं, वे इस अवस्था के दौरान काफी बीमार व स्वयं को असंगठित या अस्त-व्यस्त महसूस करते हैं। इस प्रकार वे स्वयं को शारीरिक व मानसिक रूप से टूटा हुआ समझने लगते हैं एवं शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त करते हैं।

अध्ययनों से ज्ञात होता है कि इस अवस्था में अधिकतर व्यक्ति मस्तिष्क की बीमारी की अपेक्षा मस्तिष्क की कार्यशैली में गिरावट के कारण परेशान रहते हैं।

ऐसे व्यक्ति जो वृद्धावस्था के दौरान अपनी भूमिका के साथ स्वयं को समायोजित नहीं कर पाते हैं वे शीघ्रता से जरावस्था में पहुँच जाते हैं। एक व्यक्ति जीवन में कितने तनाव व तूफान झेलता है, उस पर उसकी जरण (Aging) निर्भर करती है। हेविंग हर्स्ट के अनुसार, किसी व्यक्ति में जरण का आगमन इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी शारीरिक संरचना कैसी है व किस प्रकार का जीवन वह व्यतीत कर रहा है।

ह्रास के अंतर्गत व्यक्ति की प्रेरणा अहम् भूमिका निभाती है। सेवानिवृत्ति के पश्चात् व्यक्ति अपने खाली समय का सदुपयोग, रुचि व कौशल का प्रयोग कितना व किस प्रकार से करता है, इस पर मानसिक हास निर्भर करता है। घर की जिम्मेदारियों के प्रति व्यक्ति की रुचि उसे जिंदादिल बनाये रखती है, परंतु वे व्यक्ति जो इसे बोझ, बोरियत या फालतू का काम समझने लगते हैं, उनमें जरण (Aging) शीघ्र प्रारंभ होता है।

व्यक्ति की उपलब्धियों (शारीरिक एवं मानसिक) व उसके वास्तविक निष्पादन स्तर में अंतर का मुख्य कारण प्रेरणा का अभाव माना जाता है। अतः ऐसे व्यक्ति जो जीवन के इस स्तर पर स्वयं को प्रेरित करने में असमर्थ होते हैं, अक्सर 'जरण' को शीघ्र गले लगाते हैं।

प्रश्न यह उठता है कि क्यों व्यक्ति अपनी शारीरिक व मानसिक उपलब्धियों को प्राप्त करने में असफल होता है ? इसका उत्तर हरलॉक ने देने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा है कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि वंशानुक्रम के अनुसार व्यक्ति ऐसा नहीं करते हैं बल्कि वे अपनी योग्यताओं को ढूँढ़ने में असफल रहते हैं। उन्हें विश्वास नहीं रहता है कि वे उपलब्धियों को प्राप्त करने के योग्य या सक्षम हैं।

3. जरण का प्रभाव तथा व्यक्तिगत भिन्नताएँ - निवास की गति अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग होती है। उसी प्रकार इस अवस्था में भी समान आयु के व्यक्तियों में जरण का आगमन अलग-अलग समय पर देखा जाता है। सिसरो ने अपने ग्रंथ 'डि सेनेक्टयस' में इस बात का उल्लेख किया है कि वयोवृद्ध लोगों के साथ रहना मुश्किल होता है। उन्होंने व्यक्ति के स्वभाव में कड़वाहट की तुलना पुरानी शराब से करते हुए कहा कि समय बीतने के साथ शराब खट्टी नहीं होती है। वैसे ही आयु वृद्धि के साथ जरावस्था में पहुँचने वाले सभी व्यक्ति स्वभाव से कड़वे नहीं होते हैं।

विकास के प्रतिमान जिस प्रकार सभी लोगों पर लागू नहीं होते हैं, वैसे ही ह्रास का प्रतिमान सभी वृद्धों पर लागू हो जरूरी नहीं है। इस अवस्था के लक्षण जरूरी नहीं कि सभी वृद्धों में पाये जाएँ और यह भी आवश्यक नहीं कि वे प्रारंभिक लक्षण कहे जा सकें। आयु वृद्धि का प्रभाव अलग-अलग व्यक्ति पर अलग-अलग प्रकार से होता है तथा स्त्री-पुरुषों में इसकी गति भी अलग-अलग होती है। इसके अलावा व्यक्ति की अनुवांशिकता, सामाजिक, आर्थिक स्थिति एवं शैक्षणिक पृष्ठभूमि में भिन्नता होने के कारण आयु वृद्धि के प्रभाव में भिन्नता आ जाती है।

जरण की अवस्था में व्यक्ति की संवेदनाएँ, जैसे- दृष्टि, श्रवण एवं पेशी बल, प्रतिक्रिया काल, मानसिक जटिल प्रक्रियायें, कार्य निष्पादन की क्षमता या दुर्घटना से जुड़े क्षेत्रों में व्यक्तिगत भिन्नता देखी जाती है। अतः व्यक्ति विशेष को प्रारंभिक वृद्धि अथवा किसी लक्षण को वृद्धों का लक्षण कहना उचित नहीं है।

जरण की प्रक्रिया एक निश्चित क्रम में होने के बावजूद व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक लक्षणों के लिये यह क्रम भिन्न-भिन्न होता है। आयु वृद्धि के साथ यह गति धीमी हो जाती है। यह व्यक्ति विशेष की दशा पर निर्भर करता है कि उसका मानसिक जरण पहले होगा या शारीरिक जरण । ऐसे व्यक्ति जो स्वयं को वृद्ध स्वीकार करने लगते हैं उनमें मानसिक जरण शीघ्र प्रारंभ हो जाता है। क्रियाशील व सक्रिय व्यक्ति में जरण कम प्रभावशील होता है।

4. अल्पसंख्यक - समूही स्तर - अमेरिका में वृद्धों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने के बावजूद वहाँ वृद्धों को अल्पसंख्यक समूह का स्तर प्रदान किया जाता है। यह ऐसा स्तर है जिसके अंतर्गत वृद्ध व्यक्ति दूसरे समूह से अन्तःक्रिया नहीं करते हैं तथा समाज इन्हें या तो बहुत कम अधिकार देता है या बिल्कुल भी नहीं देता।

इसी प्रकार का दृष्टिकोण भारतवर्ष में आजकल देखने को मिलता है। इसका प्रमुख कारण वृद्धों के प्रति अनुकूल सामाजिक दृष्टिकोण का न होना तथा रूढ़िवादी दृष्टिकोण का परिवार द्वारा चलन है।

वृद्धों को आधुनिक समाज द्वितीय श्रेणी का नागरिक मानता है । समाज यह मानता है कि एक आयु के बाद स्वास्थ्य, आर्थिक दशा व शारीरिक दशा के कमजोर हो जाने से व्यक्ति परिश्रम नहीं कर सकता है। अतः व्यावहारिक समस्यायें उनके लिये चुनौतियां बन जाती हैं जिनका सामना करने की शक्ति वृद्धों में नहीं रहती। समाज द्वारा उन्हें 'द्वितीय श्रेणी' प्रदान करने से उनके मन में सुरक्षा से जुड़े कई सवाल उत्पन्न होते हैं जिनका उनके व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। वे अपनी सुरक्षा से जुड़े क्षेत्रों के लिये सतर्क हो जाते हैं। फलस्वरूप जीवन के 'स्वर्णिम' अवसरों से वे दूर होते जाते हैं एवं समाज के अन्य प्रौढ़ सदस्यों द्वारा उन्हें कई स्थितियों में उत्पीड़ित या प्रताड़ित किया जाता है। ऐसी स्थिति भारतीय परिवारों में अक्सर देखने को मिलती हैं।

विश्व के सभी देश वृद्धों को सम्मानीय दृष्टि से देखने की अपील करते हैं परंतु यदि वास्तव में देखें तो उन्हें अल्पसंख्यक मानकर तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है।

5. पुनर्यौवन की इच्छा - समाज द्वारा अल्पसंख्यक समूह का दर्जा देने पर अधिकतर बुजुर्गों में पुनर्यौवन प्राप्त करने की इच्छा प्रबल होती देखी जाती है। जरण की शुरुआत से ही ये लोग स्वयं को जवान दिखाने के लिये स्वास्थ्य, वस्त्र, पोशाक, खान-पान के प्रति अधिक सचेत देखे जाते हैं। उस समय उनकी एकमात्र इच्छा जहाँ तक संभव हो जवान बने रहने की देखी जाती है। आज का वृद्ध व्यक्ति जरावस्था को दूर करने के लिये दवाइयों का सेवन करना पसंद करता है, जैसे-अधिकतर व्यक्तियों द्वारा लिंग-हार्मोन चिकित्सा प्रारंभ करना क्योंकि वे मानते हैं कि शरीर में लिंग-हार्मोन की कमी से जरण की प्रक्रिया जल्दी शुरू होती है। अतः पुनर्यौवन की प्राप्ति के लिये वे लिंग-हार्मोन चिकित्सा लेना पसंद करते हैं। वर्तमान शोध प्रक्रिया से देखा गया है कि व्यक्ति में किसी भी प्रकार की चिकित्सा प्रणाली से पुनर्यौवन प्राप्त करना या जरण की गति को धीमा करना असंभव है। कुछ हद तक हार्मोन्स व्यक्ति के स्वास्थ्य को उत्तम बनाने में मदद कर सकते हैं जिससे जरण की गति में मंदता आ जाए।

चिकित्सकों का मानना है कि 'जरण' से बचने के लिये जरूरी है स्वयं को स्वस्थ बनाये रखना तथा जीवन शैली को आयु के अनुसार बनाना। खान-पान, आदतें तथा नींद के प्रति सचेत रहना आवश्यक है तभी व्यक्ति का जीवन सुखी हो सकता है एवं उसका शरीर स्फूर्ति युक्त होगा।

6. जरण एवं शारीरिक परिवर्तन - उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुछ शारीरिक लक्षण इतने स्पष्ट होते हैं कि उन्हें पहचानने में व्यक्ति किसी प्रकार का धोखा नहीं खा सकता है, जिन्हें मनोवैज्ञानिक अर्थों में आयु वृद्धि सूचक कहा गया है। शरीर के बाह्य परिवर्तनों से समाज यह समझ जाता है कि व्यक्ति वृद्ध हो रहा है क्योंकि अच्छे से अच्छे सौंदर्य प्रसाधन भी उन्हें छिपाने में असमर्थ होते हैं। सबसे पहले चेहरे पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है, गालों एवं गले की त्वचा में झुर्रियां, पलकों का फूलना, आँखें चमकहीन व धुंधली हो जाती हैं, दाँतों का गिरना फलस्वरूप बोलने में दोष जैसे लक्षण प्रमुख हैं।

त्वचा में परिवर्तन सबसे तीव्र गति से होता है। शरीर के अंग में पीलापन ज्यादा दिखाई देता है। त्वचा में लचीलापन् प्रायः समाप्त होने की स्थिति में आ जाता है तथा शुष्कता दिखाई देती है। सिर के बाल कम व रंग में परिवर्तन देखा जाता है जैसे ज्यादातर बाल सफेद हो जाते हैं। पुरुषों में गंजापन एक लक्षण माना जाता है । व्यक्ति का कद छोटा होना शुरू हो जाता है व साथ ही आंतरिक अवयवों में परिवर्तन होता है।

7. जरण एवं लैंगिक परिवर्तन - जरण की अवस्था में व्यक्ति की लैंगिक क्षमता में ह्रास देखा जाता है। स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा काम - इच्छा में कमी पहले देखी जाती है। मध्य प्रौढ़ावस्था में अण्डग्रंथियों का ह्रास होने लगता है। वैसे ही पुरुषों में परिवर्तित काल में कामेच्छाओं में कमी आना प्रारंभ हो जाता है। उन्हें पुरुषतत्व के ह्रास की चिंता होने लगती है।

इस समय वृद्धों में कई संवेगात्मक व शारीरिक लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे—अधीरता, संवेगात्मक अस्थिरता, मानसिक व शारीरिक शिथिलता, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में विघ्न, अनिद्रा आदि । उत्तर प्रौढ़ावस्था में कामेच्छाओं में परिवर्तन से तात्पर्य काम प्रवृत्ति में ह्रास एवं इसका प्रमुख कारण सांस्कृतिक प्रभाव है। लॉटन का कहना है कि सफलता के साथ वृद्ध होने के लिए बड़ी आयु के व्यक्ति के अंदर यह भावना बनी रहनी चाहिए कि वह अब भी पुरुष या स्त्री है। कुछ सांस्कृतिक कारणों से वृद्ध का लैंगिक जीवन असंतोषजनक हो जाता है। लैंगिक समायोजन वृद्धावस्था में इस बात पर निर्भर करता है कि विवाह के पश्चात् व्यक्ति का लैंगिक समायोजन कैसा था ?

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- विकास सम्प्रत्यय की व्याख्या कीजिए तथा इसके मुख्य नियमों को समझाइए।
  3. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में अनुदैर्ध्य उपागम का वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमायें बताइये।
  4. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में प्रतिनिध्यात्मक उपागम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में निरीक्षण विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  6. प्रश्न- व्यक्तित्व इतिहास विधि के गुण व सीमाओं को लिखिए।
  7. प्रश्न- मानव विकास में मनोविज्ञान की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- मानव विकास क्या है?
  9. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ बताइये।
  10. प्रश्न- मानव विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन की व्यक्ति इतिहास विधि का वर्णन कीजिए
  12. प्रश्न- विकासात्मक अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन विधि के महत्व पर प्रकाश डालिए?
  13. प्रश्न- चरित्र-लेखन विधि (Biographic method) पर प्रकाश डालिए ।
  14. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में सीक्वेंशियल उपागम की व्याख्या कीजिए ।
  15. प्रश्न- प्रारम्भिक बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य पर टिप्पणी लिखिये।
  16. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी है ? समझाइए ।
  17. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से है। विस्तार में समझाइए।
  18. प्रश्न- नवजात शिशु अथवा 'नियोनेट' की संवेदनशीलता का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है ? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये ।
  20. प्रश्न- क्रियात्मक विकास की विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए।
  21. प्रश्न- क्रियात्मक विकास का अर्थ एवं बालक के जीवन में इसका महत्व बताइये ।
  22. प्रश्न- संक्षेप में बताइये क्रियात्मक विकास का जीवन में क्या महत्व है ?
  23. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से है ?
  24. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए।
  25. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल के क्या उद्देश्य हैं ?
  26. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास क्यों महत्वपूर्ण है ?
  27. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
  28. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल की कमी का क्या कारण हो सकता है ?
  29. प्रश्न- प्रसवपूर्ण देखभाल बच्चे के पूर्ण अवधि तक पहुँचने के परिणाम को कैसे प्रभावित करती है ?
  30. प्रश्न- प्रसवपूर्ण जाँच के क्या लाभ हैं ?
  31. प्रश्न- विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन हैं ?
  32. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  33. प्रश्न- शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
  34. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- शैशवावस्था में बालक में सामाजिक विकास किस प्रकार होता है?
  36. प्रश्न- शिशु के भाषा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  38. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  39. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएँ क्या हैं?
  40. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  41. प्रश्न- शैशवावस्था में सामाजिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
  42. प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते है ?
  43. प्रश्न- सामाजिक विकास की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ?
  44. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।
  45. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं? समझाइये |
  47. प्रश्न- संवेगात्मक विकास को समझाइए ।
  48. प्रश्न- बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख संवेगों का वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |
  50. प्रश्न- नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से हैं? विस्तार पूर्वक समझाइये?
  51. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास क्या है? बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है?
  53. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  54. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें ।
  55. प्रश्न- बाल्यकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  56. प्रश्न- सामाजिक विकास की विशेषताएँ बताइये।
  57. प्रश्न- संवेगात्मक विकास क्या है?
  58. प्रश्न- संवेग की क्या विशेषताएँ होती है?
  59. प्रश्न- बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ क्या है?
  60. प्रश्न- कोहलबर्ग के नैतिक सिद्धान्त की आलोचना कीजिये।
  61. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?
  62. प्रश्न- बालक के संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  63. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की विशेषताएँ क्या हैं?
  64. प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
  65. प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
  66. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  67. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है एवं किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए?
  68. प्रश्न- किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के दौरान नैतिक विकास की विवेचना कीजिए।
  70. प्रश्न- किशोरवस्था में पहचान विकास से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
  72. प्रश्न- अनुशासन युवाओं के लिए क्यों आवश्यक होता है?
  73. प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
  74. प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन-से हैं?
  75. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- आत्म विकास में भूमिका अर्जन की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- स्व-विकास की कोई दो विधियाँ लिखिए।
  78. प्रश्न- किशोरावस्था में पहचान विकास क्या हैं?
  79. प्रश्न- किशोरावस्था पहचान विकास के लिए एक महत्वपूर्ण समय क्यों है ?
  80. प्रश्न- पहचान विकास इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
  81. प्रश्न- एक किशोर के लिए संज्ञानात्मक विकास का क्या महत्व है?
  82. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है ? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं ?
  84. प्रश्न- एक वयस्क के कैरियर उपलब्धि की प्रक्रिया और इसमें शामिल विभिन्न समायोजन को किस प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता है?
  85. प्रश्न- जीवन शैली क्या है? एक वयस्क की जीवन शैली की विविधताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- 'अभिभावकत्व' से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  88. प्रश्न- विविधता क्या है ?
  89. प्रश्न- स्वास्थ्य मनोविज्ञान में जीवन शैली क्या है?
  90. प्रश्न- लाइफस्टाइल साइकोलॉजी क्या है ?
  91. प्रश्न- कैरियर नियोजन से आप क्या समझते हैं?
  92. प्रश्न- युवावस्था का मतलब क्या है?
  93. प्रश्न- कैरियर विकास से क्या ताप्पर्य है ?
  94. प्रश्न- मध्यावस्था से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
  95. प्रश्न- रजोनिवृत्ति क्या है ? इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियों के संबंध में व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान होने बाले संज्ञानात्मक विकास को किस प्रकार परिभाषित करेंगे?
  97. प्रश्न- मध्यावस्था से क्या तात्पर्य है ? मध्यावस्था में व्यवसायिक समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- मिडलाइफ क्राइसिस क्या है ? इसके विभिन्न लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  100. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  101. प्रश्न- मध्य वयस्कता के कारक क्या हैं ?
  102. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान कौन-सा संज्ञानात्मक विकास होता है ?
  103. प्रश्न- मध्य वयस्कता में किस भाव का सबसे अधिक ह्रास होता है ?
  104. प्रश्न- मध्यवयस्कता में व्यक्ति की बुद्धि का क्या होता है?
  105. प्रश्न- मध्य प्रौढ़ावस्था को आप किस प्रकार से परिभाषित करेंगे?
  106. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष के आधार पर दी गई अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  107. प्रश्न- मध्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- क्या मध्य वयस्कता के दौरान मानसिक क्षमता कम हो जाती है ?
  109. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60) वर्ष में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
  110. प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
  111. प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये ।
  112. प्रश्न- वृद्धावस्था में नाड़ी सम्बन्धी योग्यता, मानसिक योग्यता एवं रुचियों के विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- सेवा निवृत्ति के लिए योजना बनाना क्यों आवश्यक है ? इसके परिणामों की चर्चा कीजिए।
  114. प्रश्न- वृद्धावस्था की विशेषताएँ लिखिए।
  115. प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
  116. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए ।
  118. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  119. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  120. प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
  121. प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
  122. प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  123. प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
  125. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  126. प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।

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