बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवाद बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवादसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवाद - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह का दमन करने में अंग्रेज किस प्रकार सफल हुए, वर्णन कीजिये?
अथवा
सन् 1857 ई. के विप्लव की असफलता का मूल कारण अंग्रेजों द्वारा किया गया क्रूर दमन था। विश्लेषण कीजिए।
अथवा
सन् 1857 ई. के विप्लव की असफता के कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
विद्रोह का दमन (Supression of Revolt) - परिस्थिति को गम्भीर देखकर लार्ड कैनिंग ने मद्रास तथा मुम्बई की प्रेसीडेन्सियों से सहायता मँगवाई। उसने पंजाब में जान लारेन्स तथा लखनऊ में हेनरी लारेंस को परिस्थिति के अनुसार कार्यवाही करने के सारे अधिकार दे दिये। समुद्री मार्ग से चीन जाती हुई विशाल सेना को भी उसने भारत बुला लिया। देशी पलटनों से हथियार लिये जाने लगे तथा हैदराबाद, ग्वालियर, पटियाला, नाभा, जीन्द, बड़ोदा, जयपुर इत्यादि रियासतों से सहायता ली गई। सिक्खों तथा गोरखों ने भी क्रान्ति के दमन में अंग्रेजों की सहायता की।
(i) दिल्ली - प्रधान सेनापति एन्सन को शिमला में दिल्ली पर आक्रमण करने की आज्ञा मिली। किन्तु वह मार्ग में ही हैजे से मर गया। अतः सेनापतित्व हैनरी बर्नार्ड को दिया गया। ब्रिगेडियर विल्सन भी इनसे आकर मिल गया। ये दोनों सेनाये मई के अन्त तक दिल्ली की समीपवर्ती पहाड़ी तक पहुँच गई। क्रांतिकारियों ने इस सेना को पीछे हटने के लिए बाध्य कर दिया, किन्तु वे इससे पूर्णतः पराजित न कर सके। अंग्रेजी सेना ने पुनः घेरा डाल दिया। इस समय क्रान्तिकारी सेनाओं में किसी सुयोग्य सेनापति का अभाव था। बहादुरशाह का पुत्र मिर्जा मुगल प्रधान सेनापति बनाया गया था, जिसमें सैन्य संचालन की क्षमता का सर्वथा अभाव था। जुलाई सन् 1857 ई. में सूबेदार बख्त खाँ दिल्ली आया। उसके अनुभव के कारण उसे क्रान्तिकारी सेनाओं का सेनापतित्व दिया गया। परन्तु इस समय अंग्रेजों का इलाहीबख्श नाम एक भेदिया मिल गया, जो बहादुरशाह का सम्बन्धी भी था। सितम्बर में अंग्रेज, गोरखा, सिक्ख, पंजाब तथा काश्मीरी पलटनों को लिए हुए निकल्सन दिल्ली आ गया। जीन्द का शासन भी अंग्रेजी सेना की सहायतार्थ आ गया था।
अंग्रेजों ने सम्पूर्ण सेना को पाँच भागों में विभक्त करके काश्मीरी दरवाजा, काबुली दरवाजा तथा सब्जी मण्डी की तरफ से दिल्ली पर आक्रमण किया। यद्यपि क्रान्तिकारियों ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया, किन्तु वे अंग्रेजों को भगाने में असमर्थ रहे। अन्ततः काश्मीरी दरवाजे तो तोड़कर अंग्रेज सेना दुर्ग में प्रविष्ट होने में सफल हो गई। 10 दिन के भयानक संघर्ष के बाद 24 सितम्बर को दिल्ली पर अंग्रेज अपना अधिकार करने में सफल हो गये।
16 दिसम्बर को बहादुरशाह ने बख्त खाँ को संघर्ष जारी रखने की सलाह दी किन्तु बख्त खाँ के बहकावे में आकर उसने आत्मसमर्पण की सोची। बख्त खाँ अपने सैनिकों सहित दिल्ली से चला गया। हुमायूँ के मकबरे में बख्त खाँ के विश्वासघात के कारण अंग्रेजों ने बहादुरशाह को बन्दी बना लिया। कप्तान हडसन ने सम्राट तथा सम्राज्ञी को बन्दी करके लाल किले भेज दिया। उसने उनके दो पुत्रों तथा एक पौत्र के सिरों को काटकर बहादुरशाह के सम्मुख प्रस्तुत किया। उस समय उनके मुख से ही यही शब्द निकले, "अल्हम्मुल्लिल्लिह' तैमूर की औलाद ऐसे ही सुखरु होकर बाप के सामने आती है।"
उन्हें आजीवन कारावास का दण्ड देकर रंगून भेज दिया गया। उसका वहीं सन् 1863 ई. में
देहान्त हो गया। दिल्ली की विजय में अंग्रेजों को खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त हो गयी।
(ii) बनारस तथा प्रयाग - उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में भी क्रान्ति की ज्वाला धधक रही थी। क्रान्ति के दमन के लिए यही जनरल नील को गवर्नर जनरल द्वारा भेजा गया। साथ में विविध अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित एक विशाल सेना भी थी। जनरेल नील ने सर्वप्रथम बनारस को अधिकार में करके हजारों की संख्या में स्त्री-पुरुषों को यातना देकर यमलोक पहुँचा दिया। गाँव के गाँव उजड़ गये तथा किसानों की फसलें नष्ट कर दी गयीं। बनारस के पश्चात् उसने इलाहाबाद में क्रान्ति के दमन के लिए प्रस्थान किया। उसने मार्ग में समस्त ग्रामों तथा बस्तियों को उजाड़कर नष्ट कर दिया। नगर पर अधिकार करने में उसे किसी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा। उसकी आतंकपूर्ण नीति के कारण जनता पहले ही भयाक्रान्त हो गयी थी। यहाँ आकर भी उसने आतंकपूर्ण नीति का परित्याग न किया। चौक बाजार में इमली एवं नीम के पेड़ों पर अनेक व्यक्तियों को लटका दिया। इस रीति से नगर के सहस्त्रों स्त्री-पुरुषों को निर्ममतापूर्ण ढंग से मार दिया गया।
(iii) लखनऊ (अवध) - लखनऊ के सम्पूर्ण नगर पर क्रान्तिकारियों का अधिकार हो चुका था। अंग्रेज स्त्री बच्चे सभी ने रेजीडेन्सी में शरण ली थी। अब इस सेना को भी क्रान्तिकारियों के अधिकार से छुड़ाने की समस्या थी। हजरतमहल ने अपने अवयस्क पुत्र ब्रिजिस कदर को सिंहासनारूढ़ कर दिया था और उसके नाम पर वह शासन कर रही थी। लखनऊ पर अधिकार करने के लिए जनरल हैवलाक को भेजा गया। उसे काफी विरोध का सामना करना पड़ा। अनेक जमींदारों तथा ताल्लुकेदारों की सेनाओं से उसे मोर्चा लेना पड़ा। मार्ग में उसे बीच-बीच में कई स्थानों पर रुकना पड़ा। इसी समय नाना साहब की सेना एकत्रित करके बिठूर पर अधिकार कर लिया तथा कानपुर पर भी आक्रमण की तैयारी की। जनरल नील इस समय अत्यन्त भयंकर स्थिति में था। उसने हैवलाक की सहायता के लिए लिखा। हैवलाक को लौटना पड़ा। कोलकाता से भी इस समय तक अंग्रेज सैनिक सहायता के लिए आ गये थे। 20 सितम्बर को जनरल हैवलाक ने पूनः लखनऊ के लिए प्रस्थान किया। 23 तारीख को वह आलमबाग पहुँचा और बड़ी कठिनाई से मार्ग के संकटों को पार करते हुए, 25 दिसम्बर को वह लखनऊ रेजीडेन्सी पहुँच गया। इस समय तक जनरल नील की मृत्यु हो चुकी थी। सर्वोच्च सेनापति सर हैनरी कैम्पबैल ने हैवलाक के घिरे जाने का समाचार सुनकर 27 अक्टूबर को कोलकाता से सहायता के लिए एक विशाल सेना लेकर प्रस्थान किया क्योंकि इस समय हैवलाक की सेना भी क्रान्तिकारी सेनाओं के मध्य घिर चुकी थी। इस समय तक जनरल ग्राण्ट तथा जनरल ग्रैटहेड भी कानपुर से आ पहुँचे। कैम्पबेल केवल थोड़ी-सी सेना पीछे छोड़कर शेष सेना अपने साथ लाया था।
9 नवम्बर को कैम्पबैल आलमबाग पहुँच गया। आलमबाग, सिकन्दर बाग तथा लखनऊ में क्रान्तिकारियों तथा अंग्रेजों की सेना में अनेक संघर्ष हुए। अन्त में क्रान्तिकारियों की सेना को परास्त करके वह हैवलाक से मिलने में समर्थ हो सका। 24 नवम्बर के युद्ध में हैवलाक मारा गया। इसी समय तात्याटोपे ने ग्वालियर को अपने पक्ष में करके कानपुर में जनरल विण्डम की सेनाओं को परास्त कर दिया। वहाँ पर उसने अब अपना अधिकार स्थापित कर लिया था।
जनरल कैम्पबैल को जैसे ही यह समाचार मिला कि वह लखनऊ से कानपुर चला गया। 1 दिसम्बर से 6 दिसम्बर तक गंगा के मैदान में युद्ध हुआ। तात्याटोपे अपनी सेना लेकर कालपी की ओर चला गया। इस प्रकार कानपुर पर कैम्पबर्थिक आधार बेस्थिपित हो गया। दिसम्बर सन् 1857 ई. में जंगबहादुर की संरक्षकता में एक विशाल सेना अंग्रेजों की सहायतार्थ कानपुर आ गयी। 23 फरवरी, सन् 1858 ई. को जनरल फ्रैंक की अध्यक्षता में अंग्रेज सेना तथा जंगबहादुर की गोरखा पलटन भी लखनऊ की ओर चल दी।
आउट्रम चार सहस्र सैनिकों के साथ आलमबाग में पहले से ही डटा हुआ था। मार्च, सन् 1858 ई.. में भीषण युद्ध हुआ, जिसमें बेगम हजरतमहल ने अपूर्व शौर्य का परिचय दिया। अंग्रेजों की विजय हुई और हजारों लखनऊ निवासी तलवार के घाट उतार दिये गये। मार्च में कैनिंग ने कुछ ताल्लुकेदारों की जागीरें जब्त करने का आदेश दिया जिसके फलस्वरूप सन् 1859 ई. तक अवध में अशान्ति छायी रही और कुछ स्थानों पर विद्रोह भी हुए। मई में बरेली पर भी अंग्रेजों ने अधिकार स्थापित कर दिया। नाना साहब, बाला साहब, बेगम हजरत महल आदि क्रान्तिकारी नेता नेपाल की पहाड़ियों की ओर चले गये।
(iv) झाँसी - झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने क्रान्ति की ज्वाला प्रज्ज्वलित करने में महत्त्वपूर्ण भाग लिया था। अतः मार्च सन् 1858 ई. में सर ह्यूमरोज ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। वह 8 दिन तक झाँसी के किले का घेरा डाले रहा, तब तात्याटोपे रानी की सहायतार्थ पहुँच गया। एक अप्रैल को अंग्रेजों की सेना ने तात्या की सेना को पराजित कर दिया। तीन अप्रैल को लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजी सेना को पीछे हटने के लिए बाध्य कर दिया।
रानी अपने कुछ सैनिकों सहित अंग्रेजी सेना को पार करती कालपी पहुँच गयी और वहाँ तात्याटोपे, बाँदा के नवाब, बाणपुर तथा शाहगढ़ के नरेश से भेंट की। सर ह्यूमरोज ने कालपी पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की। अब रानी तथा तात्या ग्वालियर की ओर चल दिये। ग्वालियर का राजा सिन्धिया जो अंग्रेजों का मित्र था, अपने मंत्री दिनकर रास के साथ आगरा भाग गया और सन् 1858 ई. में रानी तथा तात्या ने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया।
ह्यमरोज ने ग्वालियर पर भी आक्रमण कर दिया। तात्याटोपे की सेना परास्त हो गयी, किन्तु रानी ने सेना का पुनः संगठन किया। 17 जून को रानी तथा उसकी दो सखियाँ मुन्दरा तथा कांशी ने अंग्रेजों को भागने के बाध्य कर दिया। 18 जून को जनरल स्मिथ तथा ह्यमरोज ने पुनः आक्रमण किया। रानी की सेना के अनुपात में अंग्रेजी सेना बहुत बड़ी थी। रानी की सेना के सैनिक एक-एक करके भी समाप्त हो गये। रानी अंग्रेजी सेना को चीर कर निकल गयी। दो अंग्रेजों ने पीछे से रानी के सिर तथा सीने पर वार किया। रानी ने मरते-मरते दोनों को समाप्त कर दिया। उनके विश्वस्त रामचन्द्र राव देशमुख तथा अन्य व्यक्तियों ने शव को ले जाकर अंतिम संस्कार किया।
(v) जगदीशपुर ( बिहार ) - राजा कुँवर सिंह की बिहार स्थिति छोटी-सी रियासत जगदीशपुर भी डलहौजी ने अपने अधिकार में कर ली थी। अतः राजा कुँवरसिंह ने क्रान्तिकारियों का संगठन किया। उस समय उनकी आयु 80 वर्ष से अधिक थी, पर उनमें युवकों से भी अधिक साहस था। अत्यधिक वीरता के साथ युद्ध करने पर वह असफल रहे। सन् 1858 ई. में उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके भाई अमर सिंह ने संघर्ष जारी रखा। अंग्रेजों ने जगदीशपुर को चारों तरफ से घेर कर अमर सिंह को परास्त कर दिया। अमरसिंह अपने विश्वस्त साथियों के साथ कैमूर की पहाड़ियों में चला गया। उसका फिर पता ही न चल सका।
(vi) मौलवी अहमदुल्ला - फैजाबाद के मौलवी अहमदुल्ला ने भी सन् 1857 ई. के विद्रोह में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह मूल रूप से मद्रास के रहने वाले थे। वहाँ के अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र क्रान्ति की भावना का प्रचार कर रहे थे। जनवरी सन् 1857 ई. में वे फैजाबाद आये। अंग्रेज सरकार उनके वक्तव्यों से संदिग्ध थी। अतः कम्पनी ने उन्हें पकड़ने के लिए एक सेना भेजी। मौलवी ने इस सेना का डटकर मुकाबला किया। अवध में क्रान्ति आरम्भ होते ही वे इसमें निर्णायक और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे। अवध के क्रान्तिकारियों के वे एक प्रमुख नेता बन गये। लखनऊ पर अंग्रेजों का अधिकार हो जाने के पश्चात् वे रोहिलखण्ड में विद्रोह का संचालन करने लगे। यहीं पर धोखे से पुवैन के राजा ने मौलवी की हत्या कर डाली। इस कार्य के बदले में अंग्रेजों ने राजा को 50,000 रुपये पुरस्कार स्वरूप प्रदान किये। मौलवी की देशभक्ति, साहस, वीरता और सैनिक क्षमता की प्रशंसा अंग्रेजों ने भी की है।
(vii) तात्याटोपे - अब क्रान्तिकारियों में रामचन्द्र पांडुरंग उर्फ तात्या टोपे ही शेष रह गया था। वह अकेले ही संघर्ष करता रहा। 20 जून को वह ग्वालियर से नर्मदा नदी पार कर दक्षिण पहुँचा और पेशवा के नाम पर वहाँ सैन्य संग्रह करने लगा। अंग्रेजों ने उसे पकड़ने के लिए अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी। विशाल अंग्रेजी सेनाओं ने नर्मदा नदी को चारों तरफ से घेर लिया। तात्या अंग्रेजी सेना को आश्चर्य में डालता हुआ कभी उनसे युद्ध करता और कभी एकाएक लुप्त हो जाता था और अंग्रेज उसे देखते ही रह जाते कि तात्याटोपे कहाँ चला गया। अक्टूबर, सन् 1857 ई. को तात्याटोपे नर्मदा पार कर नागपुर पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर उसने जनता को विद्रोह के लिए उत्तेजित किया। थोड़े ही समय पश्चात् अंग्रेजीसेनाओं ने उसे चारों तरफ से घेर लिया तात्याटोपे अंग्रेजों को धोखा देकर बड़ौदा की ओर चला गया।
बड़ौदा से 80 कि.मी. दूर उदयपुर के समीप अंग्रेजों ने पुनः उसे घेर लिया। वह इस बार भी अंग्रेजों को चकमा देकर निकल गया। इस प्रकार तात्याटोपे की लुका-छिपी तथा भाग-दौड़ का यह क्रम बराबर चलता रहा। तत्कालीन यूरोप के समाचार-पत्रों में उससे सम्बन्धित समाचार बराबर निकलते रहते थे। उसे 'भारतीय नेपोलियन' की संज्ञा दी जाने लगी।
कहा जाता है कि लालच में फँसकर एक विश्वासघाती व देशद्रोही सरदार मानसिंह ने अलवर के जंगलों में उसे 8 या 9 अप्रैल, सन् 1859 ई. को रात्रि को सोते समय पकड़वा दिया। 18 अप्रैल सन् 1858 ई. या सन् 1859 ई. को शिवपुरी में उसे फाँसी दे दी गई, और उसकी शहादत के स्थान पर आज उसकी प्रतिमा है। आज एक तथ्य यह भी सामने आया है कि जिस व्यक्ति को फाँसी दी गयी थी वह तात्या का हमशक्ल सेवक था। उसने वह शहादत इसलिये दी कि तात्या की उस समय (अंग्रेजों से लोहा लेने के लिये) अति आवश्यकता थी। मेजर मीड भी इस तथ्य को जानता था कि फाँसी पर चढ़ने वाला असली तात्या नहीं और इसीलिये अंग्रेज अफसर इस फाँसी के बाद भी तात्या के अनुज रामकृष्ण पन्त और नाना साहब के भतीजे राव साहब से तात्या के बारे में पूँछताछ करते थे।
अंग्रेजों ने कठोरतापूर्वक व कूटनीति का सहारा लेते हुए विद्रोह को दबाने का प्रयास किया। किन्तु किवदंतियाँ हैं कि तात्याटोपे अमर हैं, सुभाष चन्द्र बोस, अश्वत्थामा एवं भहतरी की तरह। यह कभी मरे ही नहीं। अतः अंग्रेजों का दमन भारत के स्वतंत्रता को न रोक सका।
नानाराव के सेनापति तात्याटोपे से अंग्रेज भय खाते थे। उन्हें डर था कि यह भारतीय नेपोलियन (तात्याटोपे) मरकर भी जी न उठे।
सतयुग से द्वापर तक विश्व विजयी रहा। भारत आक्रान्ताओं के छल के जाल में फँस गया था किन्तु देशभक्त सदैव उसे इस जाल से निकालने के लिए जान की बाजी लगाते रहें।
उन्हीं के बलिदानों से यह देश स्वतंत्र हुआ, 15 अगस्त सन् 1947 ई. का सूर्य उन देशभक्तों को नमन करता हुआ उदय हुआ। आज ये देशभक्त नहीं है किन्तु उनकी स्मृति शेष हैं। ये भारत की जनता के हृदय में जीवित रहेंगे।
हम भारत के लोग इन देशभक्त स्वतंत्रता सेनानियों के ऋणी रहेंगे, जिन्होंने अपने प्राण देश पर न्यौछावर कियें।
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- प्रश्न- 1857 के विद्रोह के कारणों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह के स्वरूप पर एक निबन्ध लिखिए। उनके परिणाम क्या रहे?
- प्रश्न- सन् 1857 ई. की क्रान्ति के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह का दमन करने में अंग्रेज किस प्रकार सफल हुए, वर्णन कीजिये?
- प्रश्न- सन् 1857 ई० की क्रान्ति के परिणामों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- 1857 ई० के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह की असफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह में प्रशासनिक और आर्थिक कारण कहाँ तक उत्तरदायी थे? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 1857 ई० के विद्रोह के राजनीतिक एवं सामाजिक कारणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह ने राष्ट्रीय एकता को किस प्रकार पुष्ट किया?
- प्रश्न- बंगाल में 1857 की क्रान्ति की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1857 के विद्रोह के लिए लार्ड डलहौजी कहां तक उत्तरदायी था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह के राजनीतिक कारण बताइये।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. की क्रान्ति के किन्हीं तीन आर्थिक कारणों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. की क्रान्ति में तात्याटोपे के योगदान का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के महान विद्रोह में जमींदारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह के यथार्थ स्वरूप को संक्षिप्त में बताइये।
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के झाँसी के विद्रोह का अंग्रेजों ने किस प्रकार दमन किया, वर्णन कीजिये?
- प्रश्न- सन् 1857 ई. के विप्लव में नाना साहब की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम स्वाधीनता संग्राम के परिणामों एवं महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवाद के प्रारम्भिक चरण में जनजातीय विद्रोहों की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- भारत में मध्यम वर्ग के उदय के कारणों पर प्रकाश डालिए। भारतीय राष्ट्रवाद के प्रसार में मध्यम वर्ग की क्या भूमिका रही?
- प्रश्न- भारत में कांग्रेस के पूर्ववर्ती संगठनों व इसके कार्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद के उदय में 'बंगाल विभाजन' की घटना का क्या योगदान रहा? भारत में क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रारम्भिक इतिहास का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदय की परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए कांग्रेस की स्थापना के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस की नीतियाँ क्या थी? सविस्तार उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उग्रपंथियों के उदय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- उग्रपंथियों द्वारा किन साधनों को अपनाया गया? सविस्तार समझाइए।
- प्रश्न- भारत में मध्यमवर्गीय चेतना के अग्रदूतों में किन महापुरुषों को माना जाता है? इनका भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन व राष्ट्रवाद में क्या योगदान रहा?
- प्रश्न- गदर पार्टी आन्दोलन (1915 ई.) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कांग्रेस के द्वारा घोषित किये गये उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कांग्रेस सच्चे अर्थों में राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व करती थी, स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जनजातियों में ब्रिटिश शासन के प्रति असन्तोष का सर्वप्रमुख कारण क्या था?
- प्रश्न- महात्मा गाँधी के प्रमुख विचारों पर प्रकाश डालते हुए उनके भारतीय राजनीति में पदार्पण को 'चम्पारण सत्याग्रह' के विशेष सन्दर्भ में उल्लिखित कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के प्रारम्भ होने प्रमुख कारणों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ कब और किस प्रकार हुआ? सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के प्रारम्भ होने के प्रमुख कारणों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में टैगोर की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद पर टैगोर तथा गाँधी जी के विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- 1885 से 1905 के की भारतीय राष्ट्रवाद के विकास का पुनरावलोकन कीजिए।
- प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा 'खिलाफत' जैसे धार्मिक आन्दोलन का समर्थन किन आधारों पर किया गया था?
- प्रश्न- 'बारडोली सत्याग्रह' पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गाँधी-इरविन समझौता (1931 ई.) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'खेड़ा सत्याग्रह' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारपंथी चरण के विषय में बताते हुए उदारवादियों की प्रमुख नीतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारपंथी चरण की सफलताओं एवं असफलताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उग्रपंथियों के उदय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- उग्रपंथियों द्वारा पूर्ण स्वराज्य के लिए किन साधनों को अपनाया गया? सविस्तार समझाइए।
- प्रश्न- उग्रवादी तथा उदारवादी विचारधारा में अंतर बताइए।
- प्रश्न- बाल -गंगाधर तिलक के स्वराज और राज्य संबंधी विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रारम्भ में कांग्रेस के क्या उद्देश्य थे? इसकी प्रारम्भिक नीति को उदारवादी नीति क्यों कहा जाता है? इसका परित्याग करके उग्र राष्ट्रवाद की नीति क्यों अपनायी गयी?
- प्रश्न- उदारवादी युग में कांग्रेस के प्रति सरकार का दृष्टिकोण क्या था?
- प्रश्न- भारत में लॉर्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीतियों ने किस प्रकार उग्रपंथी आन्दोलन के उदय व विकास को प्रेरित किया?
- प्रश्न- उदारवादियों की सीमाएँ एवं दुर्बलताएँ संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- उग्रवादी आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के 'नरमपन्थियों' और 'गरमपन्थियों' में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन पर विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कांग्रेस के सूरत विभाजन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अखिल भारतीय काँग्रेस (1907 ई.) में 'सूरत की फूट' के कारणों एवं परिस्थितियों का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- कांग्रेस में 'सूरत फूट' की घटना पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कांग्रेस की स्थापना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वदेशी विचार के विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वराज्य पार्टी की स्थापना किन कारणों से हुई?
- प्रश्न- स्वराज्य पार्टी के पतन के प्रमुख कारणों को बताइए।
- प्रश्न- कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कांग्रेस के द्वारा घोषित किये गये उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कांग्रेस सच्चे अर्थों में राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व करती थी, स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दाण्डी यात्रा का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- मुस्लिम लीग की स्थापना एवं नीतियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मुस्लिम लीग साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए कहाँ तक उत्तरदायी थी? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिक राजनीति के उत्पत्ति में ब्रिट्रिश एवं मुस्लिम लीग की भूमिका की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा मुस्लिम लीग को किस प्रकार संगठित किया गया?
- प्रश्न- लाहौर प्रस्ताव' क्या था? भारत के विभाजन में इसकी क्या भूमिका रही?
- प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना ने किस प्रकार भारत विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार की?
- प्रश्न- मुस्लिम लीग के उद्देश्य बताइये। इसका भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना के राजनीतिक विचारों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मुस्लिम लीग तथा हिन्दू महासभा जैसे राजनैतिक दलों ने खिलाफत आन्दोलन का विरोध क्यों किया था?
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के क्या कारण थे?
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के क्या परिणाम हुए?
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन पर प्रथम विश्व युद्ध का क्या प्रभाव पड़ा, संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उत्पन्न हुए होमरूल आन्दोलन पर प्रकाश डालिए। इसकी क्या उपलब्धियाँ रहीं?
- प्रश्न- गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लखनऊ समझौते के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध का उत्तरदायित्व किस देश का था?
- प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध में रोमानिया का क्या योगदान था?
- प्रश्न- 'लखनऊ समझौता, पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'रॉलेक्ट एक्ट' पर संक्षित टिपणी कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय जागृति के क्या कारण थे?
- प्रश्न- होमरूल आन्दोलन पर संक्षित टिपणी दीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवादी और प्रथम विश्वयुद्ध पर संक्षित टिपणी लिखिए।
- प्रश्न- अमेरिका के प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने के कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के बाद की गई किसी एक शान्ति सन्धि का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध का पराजित होने वाले देशों पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध का उत्तरदायित्व किस देश का था? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गदर पार्टी आन्दोलन (1915 ई.) पर संक्षित प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 1919 का रौलट अधिनियम क्या था?
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के सिद्धान्त, कार्यक्रमों का संक्षित वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- श्रीमती ऐनी बेसेन्ट के कार्यों का मूल्यांकन व महत्व समझाइये |
- प्रश्न- थियोसोफिकल सोसायटी का उद्देश्य बताइये।