बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवाद बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवादसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवाद - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- उग्रपंथियों द्वारा किन साधनों को अपनाया गया? सविस्तार समझाइए।
सम्बन्धित लघु / अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. 'बहिष्कार' से क्या अभिप्राय है?
2. 'स्वदेशी' की धारणा क्या है?
3. 'निष्क्रिय प्रतिरोध' पर टिप्पणी कीजिए।
4. उग्रपंथियों द्वारा किस प्रकार की शिक्षा पर बल दिया गया और क्यों?
उत्तर -
(Methods of the Extremists)
उग्रपंथी नेता अपने लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य को प्राप्त करने के लिये अहिंसात्मक परन्तु प्रत्यक्ष व प्रभावकारी साधनों का प्रयोग करना चाहते थे। इस सन्दर्भ में तिलक का कहना था कि - "अपने उद्देश्य के कारण नहीं वरन् उसे प्राप्त करने के कारण हमें उग्र कहा जाता हैं। उग्रपंथियों का उदारवादियों की भाँति संवैधानिक साधनों व ब्रिटिश न्यायप्रियता में कोई विश्वास नहीं था, अपितु वो तो सरकार को जड़ से उखाड़कर फेंकना चाहते थे। उग्रपंथियों का मानना था कि ब्रिटिश राज्य भारत में शक्ति पर आधारित है और शक्ति के द्वारा ही प्राप्त किया गया है, अतः अंग्रेज भारत को खुशी से नहीं छोड़ेंगें। इस सन्दर्भ में तिलक ने 'केसरी' नामक पत्रिका में स्पष्ट किया है- "हमें अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना ही पड़ेगा।'
वस्तुतः उग्रपंथियों द्वारा इस सन्दर्भ में अपनाये गये प्रमुख साधन निम्नलिखित थे-
(i) बहिष्कार - उग्रपंथियों द्वारा अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु 'बहिष्कार रूपी साधन को अपनाया गया। वे इसके अन्तर्गत सरकार के साथ असहयोग करने पर बल देते थे। बहिष्कार कार्यक्रम के अन्तर्गत विदेशी सरकार का बहिष्कार, सरकारी नौकरियों, प्रतिष्ठानों, उपाधियों और ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार भी सम्मिलित था। इस प्रकार के बहिष्कार आन्दोलनों से उग्रपंथियों ने कुछ महत्वपूर्ण सफलताएँ भी प्राप्त कीं।
(ii) स्वदेशी - उग्रपंथियों द्वारा अपने सशक्त साधन के रूप में 'स्वदेशी' का भी प्रयोग किया गया। स्वदेशी से अभिप्राय विदेशी वस्तुओं संस्थाओं और मूल्यों को त्यागकर उनके स्थान पर भारतीय वस्तुओं मूल्यों और संस्थाओं को अपनाने से था। इस आन्दोलन के तहत 'विदेशी कपड़ा जलाओं और भारत में बना हुआ कपड़ा पहनो की धारणा पर विशेष बल दिया गया। स्वदेशी आन्दोलन की महत्ता के सन्दर्भ में तिलक का अभिमत था कि - "जनता में आत्मनिर्भरता, स्वाभिमान और त्याग की भावना जाग्रत करने के लिए स्वदेशी आन्दोलन को सफल बनाना आवश्यक हैं। इस आन्दोलन के अन्तर्गत स्वयंसेवकों की टोलियाँ बनाई गयीं जिन्होंने विदेशी माल की दुकानों पर धरना दिया तथा विदेशी कपड़ों के स्थान पर स्वदेशी माल का उपयोग करने पर जोर दिया। तत्कालीन समय में यह आन्दोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अत्यन्त प्रभावशाली सिद्ध हुआ।
(iii) निष्क्रिय प्रतिरोध - निष्क्रिय प्रतिरोध से तात्पर्य यह था कि ब्रिटिश सरकार के प्रत्येक उस कार्य और कानून का विरोध किया जाये जो भारतीयों का दमन करता हो और भारतीय हितों के प्रतिकूल हो परन्तु यह विरोध आक्रामक न होकर संगठित हों। इस सन्दर्भ में तिलक का मानना था कि हमें सरकार की गलत नीतियों का प्रतिकार असहयोग के रूप में करना चाहिए, इससे जनता को सरकार के कोप का भाजन भी नहीं बनना पड़ेगा और उसका विरोध भी दर्ज हो जायेगा। विपिनचन्द्र पाल ने इस सन्दर्भ में कहा था कि - "यदि सरकारी नौकरी करने वाले सभी भारतीय संगठित होकर असहयोग करें तो हम सरकार को असम्भव बना सकते हैं।"
(iv) राष्ट्रीय शिक्षा - उग्रपंथियों द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर भी अत्यधिक बल दिया गया। इनका मानना था कि अंग्रेजों द्वारा स्थापित विद्यालयों द्वारा मानसिक रूप से गुलाम बनाने वाली शिक्षा व्यवस्था का बहिष्कार किया जाना चाहिए। साथ ही साथ ऐसे राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना की जाये जो अपनी शिक्षा व्यवस्था द्वारा विद्यार्थियों को भारतीय सभ्यता, संस्कृति और परम्पराओं का ज्ञान करायें तथा उनमें राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न करें। इस आन्दोलन को सफल बनाने के उद्देश्य से अरविन्द घोष ने बड़ौदा के महाराज की उच्चपदीय नौकरी को त्यागकर कलकत्ता के राष्ट्रीय महाविद्यालय के प्राचार्य का पद ग्रहण कर लिया था। इसी प्रकार तिलक ने 'दक्षिण शिक्षा समाज' की स्थापना की और मदनमोहन मालवीय द्वारा 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' की स्थापना की गयी।
इस प्रकार उग्रपंथियों द्वारा अपनाये गये साधनों के बहिष्कार और स्वदेशी के आन्दोलन को अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई। भारत के कुछ क्षेत्रों में तो बहिष्कार आन्दोलन कितना अधिक प्रबल और लोकप्रिय था, इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि "परीक्षार्थियों ने विदेशी कागज की कॉपियों को छूने से इनकार कर दिया, बच्चों ने विदेशी जूते पहनना बन्द कर दिया।" इस प्रकार स्पष्ट है कि उग्रपंथियों द्वारा अपनाये गये साधन अत्यधिक कारगर सिद्ध हुये और इनसे भारतीय जनता में आत्मविश्वास व स्वाभिमान की भावना बलवती हुई।
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- प्रश्न- सन् 1857 ई. के महान विद्रोह में जमींदारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन पर विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कांग्रेस के सूरत विभाजन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अखिल भारतीय काँग्रेस (1907 ई.) में 'सूरत की फूट' के कारणों एवं परिस्थितियों का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- कांग्रेस में 'सूरत फूट' की घटना पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कांग्रेस की स्थापना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वदेशी विचार के विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वराज्य पार्टी की स्थापना किन कारणों से हुई?
- प्रश्न- स्वराज्य पार्टी के पतन के प्रमुख कारणों को बताइए।
- प्रश्न- कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कांग्रेस के द्वारा घोषित किये गये उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कांग्रेस सच्चे अर्थों में राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व करती थी, स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दाण्डी यात्रा का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- मुस्लिम लीग की स्थापना एवं नीतियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मुस्लिम लीग साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए कहाँ तक उत्तरदायी थी? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिक राजनीति के उत्पत्ति में ब्रिट्रिश एवं मुस्लिम लीग की भूमिका की विवेचना कीजिये।
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- प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना ने किस प्रकार भारत विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार की?
- प्रश्न- मुस्लिम लीग के उद्देश्य बताइये। इसका भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा?
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