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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 4  
नाट्यशास्त्र

1. भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय

प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।

उत्तर -

नाट्यशास्त्र से अभिप्राय - नाटकों के सम्बन्ध में शास्त्रीय जानकारी को नाट्यशास्त्र कहते हैं। इस जानकारी का सबसे पुराना ग्रन्थ भी नाट्यशास्त्र के नाम से जाना जाता है जिसके रचयिता भरत मुनि थे। भरत मुनि का जीवनकाल 400 ईसापूर्व से 100 ई0 के मध्य किसी समय माना जाता है।

संगीत, नाटक और अभिनय के सम्पूर्ण ग्रन्थ के रूप में भरत मुनि के नाट्यशास्त्र का आज भी बहुत सम्मान है। उनका मानना है कि नाट्यशास्त्र में केवल नाट्य रचना के नियमों का आकलन नहीं होता बल्कि अभिनेता, रंगमंच और प्रेक्षक इन तीनों तत्त्वों की पूर्ति के साधनों का विवेचन होता है। 37 अध्यायों में भरत मुनि ने रंगमंच, अभिनेता, अभिनय, नृत्यगीतवाद्य, दर्शक, दशरूपक और रस निष्पत्ति से सम्बन्धित सभी तथ्यों का विवेचन किया है। भस्त के नाट्यशास्त्र के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि नाटक की सफलता केवल लेखक की प्रतिभा पर आधारित नहीं होती बल्कि विभिन्न कलाओं और कलाकारों के सम्यक सहयोग से ही होती है।

भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय - भरतनाट्यम आदि भारतीय शास्त्रीय नृत्य, नाट्यशास्त्र से प्रेरित हैं। नाट्य और नृत्त, दृश्य काव्य के ये दो भेद हैं। नट-नटी द्वारा किसी अवस्था विशेष की अनुकृति नाट्य है- "नाट्यते अभिनयत्वेन रूप्यते – इति नाट्यम्"। ताल और लय की संगति से अनुबद्ध अनुकृत को 'नृत्त' कहते हैं। ये दोनों ही अभिनय के विषय हैं और ललित कला के अन्तर्गत माने जाते हैं। नाट्य के प्रमुख अंग चार हैं- वाचिक, सात्विक, आंगिक और आहार्य। उक्ति - प्रत्युक्ति की यथावत् अनुकृति वाचिक अभिनय का विषय है। भावों का यथावत् प्रदर्शन सात्विक अभिनय है।

भाव प्रदर्शन के लिए हाथ, पैर, नेत्र, भ्ररू, एवं कटि, मुख, मस्तक आदि अंगों की विविध चेष्टाओं की अनुकृति आंगिक अभिनय है। देशविदेश के अनुरूप वेशभूषा, चालढाल, रहन सहन और बोली की अनुकृति आहार्य अभिनय का विषय है। चतुर्विध अभिनय के सहायक नृत्य, गीत, वाद्य एवं गति, वृत्ति, प्रवृत्ति और आसन का अनुसंधान भी नाट्य के अन्तर्गत है। इस प्रकार अभिनय के विविध अंग एवं उपांगों के स्वरूप और प्रयोग के आकार-प्रकार का विवरण प्रस्तुत कर तत्सम्बन्धी नियम तथा व्यवहार को निर्धारित करने वाला शास्त्र 'नाट्यशास्त्र' है। अभिनय के अनुरूप स्थान को नाट्यगृह कहते हैं जिसके प्रकार, निर्माण एवं साजसज्जा के नियमों का प्रतिपादन भी नाट्यशास्त्र का ही विषय विविध श्रेणी के अभिनेता एवं अभिनेत्री के व्यवहार, परस्पर संलाप और अभिनय के निर्देशन एवं निर्देशक के कर्त्तव्यों का विवरण भी नाट्यशास्त्र की व्यापक परिधि में समाविष्ट है। इसका मुख्य उद्देश्य ऐहिक जीवन की नाना वेदनाओं से परिश्रान्त जनता का मनोरंजन है—यह देव, दानव एवं मानव समाज के लिए आमोद प्रमोद का सरल साधन है। यह नयनों की तृप्ति करने वाला एवं भावोद्रेक का परिमार्जन कर प्रेक्षक वर्ग का आह्लादित करने वाला मनोरम अनुसंधान है - यह जातिभेद, वर्गभेद, वयोभेद आदि नैसर्गिक एवं सामाजिक विभेदों से निरपेक्ष, भिन्न रुचि की जनता का सामान्य रूप से समाराधन करने वाला एक कांत, 'चाक्षुषक्रतु' है। इसके प्रवर्तक स्वयं प्रजापति हैं जिन्होंने ऋग्वेद से पाठ्य, सामवेद से गीत, यजुर्वेद से अभिनय तथा अथर्वागिरस से रस का परिग्रह कर सार्ववर्णिक पंचम वेद का प्रादुर्भाव किया। उमा - महादेव ने सुप्रीत हो लोकानुरंजन के हेतु लास्य एवं ताण्डव का सहयोग देकर इसे उपकृत किया है। वस्तुतः ऐसा कोई शास्त्र, कोई शिल्प, न कोई विद्या और न कोई कला ऐसी है जिसका प्रतिनिधित्व नाट्यशास्त्र में न हो। इस तरह अनुपम दिव्यता से अनुप्राणित नाट्यशास्त्र के अधिष्ठाता देव की भी कल्पना, इतर वेद एवं वेदांगों के अधिष्ठाताओं की भाँति, की गई है जिसके स्वरूप का उल्लेख 'नृसिंहप्रासाद' नामक ग्रन्थ में मिलता है।

नाट्यशास्त्रमिदं रम्यं मृगवक्तं जटाधरम्।
अक्षसूत्रं त्रिशूलं च विभ्रार्णाच त्रिलोचनम्।

नाट्य सम्बन्धी नियमों की संहिता का नाम 'नाट्यशास्त्र' है। भारतीय परम्परा के अनुसार नाट्यशास्त्र के आद्य रचयिता स्वयं प्रजापति माने गए हैं और उसे 'नाट्यवेद' कहकर नाट्यकला को विशिष्ट सम्मान प्रदान किया गया है। जिस प्रकार परम पुरुष के निःश्वास से आविर्भूत वेदराशि के द्रष्टा विविध ऋषि प्रकल्पित हैं उसी तरह महादेव द्वारा प्रोक्त नाट्यवेद के द्रष्टा शिलाली, कृशाश्व और भरत मुनि माने गए हैं। शिलाली एवं कृशाश्व द्वारा संकलित नाट्यसंहिताएँ आज उपलब्ध नहीं है, केवल भरत मुनि द्वारा प्रणीत ग्रन्थ ही उपलब्ध होता है जो 'नाट्यशास्त्र' के नाम से प्रथित है। इसका प्रणयन सम्भवत: कश्मीर, भारत देश में हुआ। नाट्यशास्त्र का रचनाकाल, निर्माणशैली तथा बहि: साक्ष्य के आधार पर ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के लगभग स्थिर किया जा सकता है।

भरत मुनि का नाट्यशास्त्र - इस ग्रन्थ में प्रत्यभिज्ञा दर्शन की छाप है। प्रत्यभिज्ञा दर्शन में स्वीकृत 36 मूल तत्त्वों के प्रतीक स्वरूप नाट्यशास्त्र में 36 अध्याय हैं। पहले अध्याय में नाट्योत्पत्ति, दूसरे में मण्डपविधान देने के पश्चात् अगले तीन अध्यायों में नाट्यारम्भ से पूर्व की प्रक्रिया का विधान वर्णित है। छठे और सातवें अध्याय में रसों और भावों का व्याख्यान है, जो भारतीय काव्यशास्त्र में व्याप्त रससिद्धान्त की आधारशिला है। आठवें और नवें अध्याय में उपांग एवं अंगों द्वारा प्रकल्पित अभिनय के स्वरूप की व्याख्या कर अगले चार अध्यायों में गति और करणों का उपन्यास किया है। अगले चार अध्यायों में छन्द और अलंकारों का स्वरूप तथा स्वरविधान बतलाया है। नाट्य के भेद तथा कलेवर का सांपोपांग विवरण 18वें और 16वें अध्याय में देकर 20वें वृत्ति विवेचन किया है। तत्पश्चात् 26वें अध्याय में विविध प्रकार के अभिनय की विशेषताएँ दी गई हैं। 26 से 34 अध्याय तक गीत वाद्य का विवरण देकर 35वें अध्याय में भूमिविकल्प की व्याख्या की है। अन्तिम अध्याय उपसंहारात्मक है। यह ग्रन्थ मुख्यतः दो पाठान्तरों में उपलब्ध है- 1. औत्तरीय पाठ और 2. दाक्षिणात्य पाठ। पाण्डुलिपियों में एक और 37वाँ अध्याय भी कदाचित् उपलब्ध होता है जिसका समावेश निर्णयसागरी संस्करण में सम्पादक ने किया है। इसके अतिरिक्त मूल मात्र ग्रन्थ का प्रकाश चौखंबा संस्कृत सीरीज, वाराणसी से भी हुआ है जिसका पाठ निर्णयसागरी पाठ से भिन्न है। अभिनव भारती टीका सहित नाट्यशास्त्र का संस्करण गायकवाड सीरीज के अन्तर्गत बड़ौदा से प्रकाशित है।

वस्तुत: यह ग्रन्थ नाट्यसंविधान तथा रससिद्धान्त की मौलिक संहिता है। इसकी मान्यता इतनी अधिक है कि इसके वाक्य 'भरतसूत्र' कहे जाते हैं। सदियों से इसे आर्ष सम्मान प्राप्त है। इस ग्रन्थ में मूलतः 12,000 पद्य तथा कुछ गद्यांश भी था, इसी कारण इसे 'द्वादशसाहदागी संहिता' कहा जाता है। परन्तु कालक्रमानुसार इसका संक्षिप्त संस्करण प्रचलित हो चला जिसका आयाम छह हजार पद्यों का रहा और यह संक्षिप्त संहिता 'षटसाहदागी' कहलाई। भरत मुनि उभय संहिता के प्रणेता माने जाते हैं और प्राचीन टीकाकारों द्वारा उनका 'द्वादश' साहदागीकार तथा 'षट्साहदागीकार' की उपाधि से परामर्श यत्र तत्र किया गया है। जिस तरह आज उपलब्ध चाणक्य नीति का आधार वृद्ध चाणक्य और स्मृतियों का आधार क्रमशः वृद्ध वशिष्ठ, वृद्ध मनु आदि माना जाता है, उसी तरह वृद्ध भरत का भी उल्लेख मिलता है। इसका यह तात्पर्य नहीं कि वसिष्ठ, मनु, चाणक्य, भरत आदि दो-दो व्यक्ति हो गए, परन्तु इस सन्दर्भ में 'वृद्ध' का तात्पर्य परिपूर्ण संहिताकार से है।

नाट्यशास्त्र पर अनेक व्याख्याएँ लिखी गईं और भरतसूत्रों के व्याख्याता अपने - अपने सिद्धान्त के प्रतिष्ठापक आचार्य माने गए जिनके मत काव्यशास्त्र सम्बन्धी विविध वाद के रूप में प्रचलित हुए। ऐसे आचार्यों में उल्लेखनीय नाट्यशास्त्र के व्याख्याता हैं— रीतिवादी भट्ट उद्भट, पुष्टिवादी भट्ट लोल्लट, अनुमितिवादी शंकुक, मुक्तिवादी भट्टनायक और अभिव्यक्तिवादी अभिनव गुप्त। इनके अतिरिक्त नखकुट्ट, मातृगुप्त, राहुलक, कीर्तिधर, थकलीगर्भ, हर्षदेव तथा श्रीपादशिष्य ने भी नाट्यशास्त्र पर अपनी-अपनी व्याख्याएँ प्रस्तुत की थीं। इनमें से 'श्रीपादशिष्यकृत' 'भरततिलक' नाम की टीका सर्वप्राचीन प्रतीत होती है। अभिनव गुप्त द्वारा उचित अभिनवभारती, नाट्यशास्त्र पर सर्वाधिक प्रचलित भाष्य है। अभिनव गुप्त ने नाट्यशास्त्र को 'नाट्यवेद' भी कहा है।

नाट्यशास्त्र में प्रतिपादित संगीताध्याय के व्याख्याता अनेक हो गए हैं। जिनमें प्रमुख भट्ट सुमन, भट्टवृद्धि, भट्टयन्त्र और भट्ट गोपाल हैं। इनके अतिरिक्त भरत मुनि के प्रधान शिष्य मातंग, दत्तिल एवं कोहल नाट्यशास्त्र के आधार पर संगीतपरक स्वतन्त्र ग्रन्थ, सदाशिव और रंदिकेश्वर ने नृत्य पर तथा भट्ट तौत प्रभृति ने रसमीमांसा पर रचे हैं। भरत नाट्यशास्त्र का रस भावाध्याय भारतीय मनोविज्ञान का आधार ग्रन्थ माना जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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