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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

ध्वनि सिद्धान्त

प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।

अथवा
'काव्यस्यात्मा ध्वनिरीति' उक्ति के आधार पर सिद्ध कीजिए की कि काव्य में ध्वनि ही महत्वपूर्ण है।
अथवा
ध्वनि सिद्धान्त (ध्वनि सम्प्रदाय) का परिचय देते हुए 'ध्वनि ही काव्य की आत्मा है, पर विस्तार से विवेचन कीजिए।
अथवा
ध्वनि की परिभाषा देते हुये ध्वनि सिद्धान्त की प्रमुख स्थापनाओं का निरूपण कीजिये।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. ध्वनि क्या है और काव्य में इसका क्या महत्व है?
2. ध्वनि के भेद बताइए।
3. ध्वनि शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ को स्पष्ट कीजिए। 
4. ध्वनि के प्रमुख भेदों का परिचय दीजिये।
5. 'वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा एवं शैली सम्बन्धी विचारों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिये।

उत्तर -

ध्वनि का स्वरूप

'ध्वनि' से तात्पर्य स्वर अथवा आवाज से है अर्थात् जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है, उसे ही 'ध्वनि' कहते हैं-

'ध्वन्यते अनने इति ध्वनि।

इसकी व्युत्पत्ति 'ध्वन' धातु में 'उ' प्रत्यय के जुड़ने से होती है। इसका प्राचीनतम प्रयोग अथर्ववेद में मिलता है -

'ध्वनयो यन्तु शोभम्'

अलंकारवादियों ने ध्वनि का प्रयोग पाँच अर्थों में किया है 

(1) ध्वनयति यः व्यञ्जक शब्दः स ध्वनि उस व्यंजक का अर्थ ध्वनि है, जो ध्वनित करे या कराये।

(2) ध्वनति ध्वनयति वा यः स व्यंञ्जकः अर्थ ध्वनि: वह व्यंजक अर्थ ध्वनि है, जो ध्वनि करे या कराये।

(3) ध्वयनते इति ध्वनि : जो ध्वनित हो, उसे ध्वनि कहते हैं।

(4) ध्वन्यते अनेन इति ध्वनि : जिसके द्वारा ध्वनि की उत्पत्ति होती है, वही ध्वनि है।

(5) ध्वन्यतेऽस्मित्रिति ध्वनि: उस काव्य को ध्वनि कहते हैं, जिसमें वस्तु अलंकार एवं रस ध्वनित होते हैं। -भारतीय आलोचनाशास्त्र

ध्वनि सिद्धान्त की प्रमुख स्थापनाएँ एवं इसका महत्व : ध्वनि सिद्धान्त की स्थापना करने वाले आचार्य आनन्दवर्द्धन हैं। यद्यपि आनन्दवर्द्धन अपने कुछ पूर्ववर्ती आचार्यों की भाँति ही ध्वनि को काव्य की आत्मा मानने वाला बताया है-

काव्यास्यात्मा ध्वनि रिति बुधैर्यः समाम्नात पूर्वः
तस्याभावं जगदुरपरे भक्तमाहु स्तमन्ये।

काव्य की आत्मा ध्वनि है, यह सिद्धान्त कुछ विद्वान स्वीकार कर चुके हैं। कुछ ने इस सिद्धान्त का विरोध किया है एवं कुछ ने इसका अन्तर्भाव अन्य सिद्धान्तों में किया है।

वस्तुतः आनन्दवर्द्धन के पूर्ववर्ती आचार्यों भरतमुनि, भामह, दण्डी, वामन ने ध्वनि को काव्य की आत्मा नहीं स्वीकार किया है। सम्भवतः आनन्दवर्द्धन अपने सिद्धान्त की प्राचीनता सिद्ध करने के लिए यह स्वीकार करते हों।

आनन्दवर्द्धन की स्थापना-

यथार्थः शब्दौ वा तमर्थमुपसर्जनीकृत स्वार्थी।
व्यक्तः काव्य विशेषः स ध्वनिरितिसुरिभिः कथितः।

(जहाँ शब्द अथवा अर्थ अपने अर्थ का त्याग करके किसी विशेष अर्थ (व्यंग्यार्थ ) की प्रतीति कराते हैं, विद्वानों ने उसे ध्वनि कहा है।)

(1) आनन्दवर्द्धन - आनन्दवर्द्धन ने प्रतीयमान अर्थ को ही ध्वनि माना है। वह अंगनाओं के लावण्य के समान अलग ही झलकता है-

प्रतीयमानं पुरन्मदेव वस्त्वस्ति वाणीषु महाकवीनाम्।
यत्तत् प्रसिद्धावयवातिरिक्तं विभाति लावण्यमिवांगनासु ॥

उनके अनुसार - "महाकवियों की वाणी में वाच्यार्थ से भिन्न प्रतीयमान (अर्थ) कुछ और ही वस्तु है जो प्रसिद्ध अलंकारों अथवा प्रतीत होने वाले अन्य गुणादि तत्वों के भिन्न सुन्दरियों के लावण्य के समान ( अलंकारादि से अलग ही) प्रकाशित होता है। जिस प्रकार सुन्दरियों का सौन्दर्य समस्त अंगों से पृथक दिखाई देता है और सहृदय नेत्रों के लिए अमृत-सा कुछ और ही होता है, उसी प्रकार वह प्रतीपमान अर्थ कुछ और ही होता है।'  -डॉ. कृष्णदेव झारी

(2) अभिनवगुप्त : अभिनवगुप्त ने 'ध्वन्यालोक' को लोचन नाम्नी व्याख्या में ध्वनि सम्बन्धी समस्त भ्रान्तियों का निराकरण किया है। उन्होंने रस और ध्वनि के पारस्परिक सम्बन्ध की चर्चा करते हुए रस के कारण ही ध्वनि को महत्व दिया और यह भी कहा कि व्यंजना व्यापार के द्वारा ही रस की सिद्धि सम्भव है। उनके अनुसार रस का बोध व्यंग्य द्वारा होता है और रस का रहस्योद्घाटन व्यंजनावृत्ति द्वारा ही हो सकता है। अभिनव गुप्त रसात्मक सौंदर्य से युक्त ध्वनि को ही काव्य मानने के पक्ष में अपना मत व्यक्त करते हैं और केवल ध्वनि में काव्य-सौन्दर्य स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार वस्तु तथा अलंकार ध्वनियों में अन्ततः रस की ही प्रतीति होती है। वे ध्वनि को काव्य की आत्मा मानकर भी उसे काव्य का सर्वस्व स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार काव्य में 'शब्दार्थ गुणालंकार संयुक्त रसात्मकता। की चारुता का होना नितान्त आवश्यक है। (भारतीय आलोचनाशास्त्र - डॉ. हीरा।)

(3) भोजराज : इन्होंने 'श्रृंगार प्रकाश' में ध्वनि का विवेचन किया है। इन्होंने तात्पर्य शक्ति को ध्वनि से अभिन्न मानकर, इसके अन्तर्गत ही ध्वनि का विवेचन किया है।

(4) मम्मट : ध्वनि - सिद्धान्त को व्यवस्थित करने का श्रेय इन्हीं को है। इन्होंने ध्वनि की प्रधानता के आधार पर काव्य का वर्गीकरण किया। इनके अनुसार जहाँ वाच्यार्थ की अपेक्षा व्यंग्यार्थ में चमत्कार हो, वहीं उत्तम (ध्वनि) काव्य होता है। मध्यम काव्य में व्यंग्यार्थ या तो वाच्यार्थ के समान चारु होता है या वाच्यार्थ से कम चमत्कारक होता है। अधम काव्य में व्यंग्यार्थ का नितांत अभाव रहता है और उसमें शब्द एवं अर्थगत चारुता रहती है  -भारतीय आलोचनाशास्त्र - डॉ. हीरा

(5) विश्वनाथ : इन्होंने 'साहित्य दर्पण' के चतुर्थ परिच्छेद में ध्वनि और गुणीभूत व्यंग्य का विस्तृत विवेचन किया है और ध्वनि और व्यंजना की महत्ता स्वीकार की है।

(6) पंडितराज जगन्नाथ : इन्होंने अपना स्वतंत्र मत व्यक्त किया और रसादि ध्वनि को असंलक्ष्यक्रम हीन मानकर संलक्ष्यक्रम भी स्वीकार किया।

हिन्दी आचार्य :

(1) चिन्तामणि त्रिपाठी : इन्होंने ध्वनि की व्याख्या की और ध्वनि काव्य को उत्तम माना। साथ ही ध्वनि के भेदों की भी व्याख्या की -

प्रतिशब्दाकृत लब्धक्रम व्यंग्य सु त्रिविध बखानि।
शब्द, अर्थ, जुग सक्ति भव इति ध्वनि भेद सुजानि ॥

(2) कुलपति मिश्र : इन्होंने अपने 'रस रहस्य' में 'काव्य - प्रकाश' के आधार पर ध्वनि का निरूपण किया है और काव्य के तीन भेदों का भी उल्लेख किया है। उनका मत है

व्यंग्य जीव ताको कहत शब्द अर्थ है देह।
गुण-गुण भूषण भूषणो दूषण दूषण एह ॥

(3) भिखारीदास : इन्होंने 'काव्य निर्णय' में ध्वनि का विवेचन किया है

वाच्य अरथ ते व्यंग में चमत्कार अधिकार।
धनु ताही को कहत हैं, उत्तम काव्य-विचार |

(4) प्रताह साहि : इन्होंने 'काव्य-विलास' में 118 छंदों में ध्वनि का विवेचन किया है। इनके अनुसार-

वाच्य अपेक्षा अरथ को व्यंग चमत्कृत होइ।
शब्द अर्थ में प्रकट जो धुनि कहियत है सोइ।

ध्वनि के भेद :

(1) लक्षणा मूला या अविवक्षित वाच्य ध्वनि: इसके मूल में लक्षणा को स्वीकार किया गया। इसके भी दो भेद माने गये।

(अ) अर्थातंर संक्रमित वाच्य ध्वनि: इसके मूल में उपादान लक्षणा को मानकर यह कहा गया कि जहाँ वाच्यार्थ अन्यार्थ में संक्रमण कर जाये, वहाँ यह ध्वनि होती है -

सीता हरन तात जनि, कहेउ पिता सन जाय।
जो मैं राम तो कुल सहित कहहि दसानन आय ॥

(आ) अत्यन्त तिरस्कृत ध्वनि: जहाँ मुख्यार्थ का एकदम तिरस्कार हो जाय या वाच्यार्थ का सर्वथा त्याग हो-

"सकल रोओं से हाथ पसार, लूटता इधर लोभ गृहद्वार।"

(2) अभिधामूला ध्वनि - इसके मूल में तो अभिधा का होना स्वाभाविक है। इसके भी दो भेद माने गये-

(अ) असंलक्ष्यक्रम व्यंग्य ध्वनि: जहाँ वाच्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ का पूर्वा पर क्रम स्पष्ट न हो या दिखाई न पड़े। 

(आ) संलक्ष्यक्रम व्यंग्य ध्वनि : जिस ध्वनि के वाच्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ का क्रम अच्छी तरह दिखाई पड़े।

(3) अलंकार ध्वनि: जहाँ व्यंग्यार्थ का कारण अलंकार हो-

सुबरन को ढूँढ़त फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।

(4) रस ध्वनि: इसके अन्तर्गत भाव, भावाभास, रसाभास, भावसंधि एवं भाव- शांति की चर्चा की गयी है। यह ध्वनि महत्वपूर्ण है।

(5) वस्तु ध्वनि: इसमें वस्तु (तथ्य) की व्यंजना होती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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