बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचनासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर
6. प्रतीकवाद
प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रतीकवाद का अर्थ बताते हुए प्रतीकों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर -
प्रतीक शब्द का अर्थ - प्रतीक शब्द प्रती इक से बना है। 'प्रती' शब्द का अर्थ है - और 'ईक' शब्द का अर्थ है - झुका हुआ। प्रतीक का शाब्दिक अर्थ है- अवयव, अंग, पताका, चिन्ह, निशान। प्रतीक का अर्थ है प्रतिष्ठान अथवा एक वस्तु के लिए किसी अन्य वस्तु की स्थापना। प्रतीक शब्द से अभिप्राय अंग्रेजी के सिम्बल (एभ्ध्य) शब्द से लिया जाता है। एब्द (सीम्बोल) शब्द ग्रीक भाषा के एब्स्दत्दह ( सीम्बोलन) शब्द से आया है। जिसका शाब्दिक अर्थ है-संयोग।
संस्कृत साहित्य में प्रतीक का अर्थ - प्रतीयमान अर्थ की अभिव्यक्ति करने वाले शब्द को प्रतीक कहते हैं। ( प्रतीयेते अनेन इति प्रतीकम् ) भारतीय साहित्यशास्त्र में प्रतीक के लिए " उपलक्षण" शब्द आया है।
उपलक्षण - जब कोई नाम या वस्तु इस रूप में व्यवहृत हो कि वह उस गुण में अपने समान अन्य वस्तुओं के गुणों का ज्ञान भी करा दे तो उस शब्द को उपलक्षण कहा जा सकता है।
अप्रस्तुत का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रस्तुत का नाम प्रतीक है। प्रतीक से सम्पर्क से व्यक्ति के मन में तुरन्त कोई भावना जाग्रत होती है।
प्रतीक-योजना पर सम्बन्धित युग, देश, संस्कृति एवं मान्यताओं का प्रभाव रहता है। प्रतीक अपने विशेष अर्थ में रूढ़ हो जाता है। प्रतीक के द्वारा एक से अधिक भावों की अभिव्यक्ति की जाती हैं। अर्थ-प्रेषण की दृष्टि से प्रतीक का सम्बन्ध शब्द-शक्ति की ध्वनि-शैली से हैं।
प्रतीक की परिभाषा
डॉ0 भागीरथ मिश्र के अनुसार, “जब कोई वस्तु या कार्य किसी अप्रस्तुत वस्तु, भाव, विचार, क्रियाकलाप, देश, जाति, संस्कृति आदि का प्रतिनिधित्व करता हुआ प्रकट किया जाता है, तब वे प्रतीक कहलाता है। "
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, “किसी देवता का प्रतीक सामने आने पर जिस प्रकार उसके स्वरूप और उसकी विभूति की भावना मन में आ जाती है उसी प्रकार काव्य में आई हुई कुछ वस्तुएँ विशेष मनोधिकारों या भावनाओं को जाग्रत कर देती है। "
पन्त के अनुसार, "प्रतीक अव्यक्त को व्यक्त करने का माध्यम है।”
जार्ज हवैले के अनुसार, "प्रतीक के स्वरूप में प्रत्येक प्रतीकात्मक एवं सांकेतिक वस्तु का समाहार हो जाता है। "
नगेन्द्र के अनुसार, “उपमान जब किसी पदार्थ विशेष के लिए रूढ़ हो जाता है। तब प्रतीक बन जाता है। "
प्रतीक की विशेषता
1. प्रतीक वस्तुतः अप्रस्तुत का स्थापन होता है।
2. प्रतीक में आरोप विषय की प्रमुखता रहती है
3. प्रतीक अन्योक्ति मूलक होता है।
4. प्रतीक मूर्त और अमूर्त दोनों ही हो सकता है।
5. प्रतीक किसी वस्तु का चित्रांकन नहीं करता अपितु केवल संकेत-द्वारा उसकी किसी विशेषता
को ध्वनित करता है।
6. कम शब्दों में अधिक भावों की व्यंजना।
7. भाषा की लाक्षणिकता और व्यंजकता का विकास।
8. प्रतीक अलंकारों की भाँति किसी उक्ति को उत्कर्ष तथा सौन्दर्य प्रदान करते हैं।
९. प्रतीक कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक भावों को गति प्रदान करते हैं।
प्रतीक का वर्गीकरण-कुछ विद्वानों के द्वारा प्रतीकों को तीन वर्गों में विभक्त किये हैं-
1. परम्परागत प्रतीक - यह रूढ़ होते हैं।
2. वैयक्तिक प्रतीक - किसी विशेष कवि की मानसिकता निहित होती है।
3. प्राकृतिक प्रतीक - नये युग के अनुरूप निर्मित
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने प्रतीकों को दो भेद-
1. मनोविकार भावनाओं को जगाने वाले
2. विचारों को जागृत करने वाले
डॉ0 भागीरथ मिश्र ने प्रतीक के पाँच भेद किये हैं-
1. प्राकृतिक प्रतीक
2. सांस्कृतिक प्रतीक - इसके तीन भेद और हैं-
संस्कार सम्बन्धी प्रतीक - इस प्रतीक में जन्म, बधाई, उपनयन, विवाह, उत्सव आदि से सम्बन्धित प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है।
पौराणिक प्रतीक
आध्यात्मिक प्रतीक
3. ऐतिहासिक प्रतीक - इतिहास के व्यक्ति और घटनाएँ जब किसी विशिष्ट भाव, विचारादि का प्रतिनिधित्व करती हुई वर्णित की जाती हैं।
4. जीवन व्यापार सम्बन्धी प्रतीक।
5. शास्त्रीय प्रतीक।
डॉ0 सरोजनी पाण्डे ने प्रतीक को सात भागों में विभाजन किया है.
1. सार्वभौम प्रतीक - ऐसे होते हैं जिनके प्रति सभी देशों में, सभी काल एवं युगों में एक धारणा बनी रहती है।
2. देशपरक प्रतीक - वे प्रतीक आते हैं जो देश-काल, वहाँ की सभ्यता, संस्कृति मान्यताओं एवं जलवायु से बाधित होते हैं।
भारत में गधा 'मूर्खता एवं मतिमन्दता' का प्रतीक माना जाता है। किन्तु अमेरिका में यह 'श्रमशीलता एवं कार्यपरता' का प्रतीक माना गया है।
3. साधनात्मक साम्प्रदायिक प्रतीक - यह प्रतीक रूढ़ होते हैं।
4. रहस्यात्मक संकेतसूचक प्रतीक।
5. परम्परागत प्रतीक।
6. रूपकात्मक प्रतीक।
7. लक्षणामूलक प्रतीक।
विभिन्न प्रतीकों के उदाहरण
1. प्राकृतिक प्रतीक-
कमल तुम्हारा दिन है
और कुमुद यामिनी तुम्हारी है।
कोई निराश क्यों हो
आती सबकी समान बारी है।
यहाँ पर कमल इस समय सुखी का और कुमुद दुःखी का प्रतीक है।
2. संस्कार सम्बन्धी प्रतीक-
दुलहनी गावहु मंगलचार,
हम घरि आए हो राजा राम भरतार ॥
तन रत करि मैं मन रत करिहूँ, पंचतत्त बराती।
राम देव मोरैं पाँहुने आये मैं जोबन में माती ॥
यहाँ दुलहनी - आत्मा का भरतार - परमात्मा का प्रतीक है।
3. पौराणिक प्रतीक-
मैं हूँ भरत तुम शकुन्तला
कहाँ है दुष्यन्त, माँ,
यह है तीर तरकस में
सभी विष बुझे खाली। -(लक्ष्मीकान्त वर्मा)
यहाँ भरत, शकुन्तला और दुष्यन्त पौराणिक प्रतीक है।
4. आध्यात्मिक प्रतीक-
गगन गरजि, बरसै अमी, बादर गहिर गम्भीर।
चहुँ दिसि दमके दामिनी, भोजै दास कबीर ॥
यहाँ पर गगन शून्य मंडल का, गरजना अनाहत नाद का, बादल आत्मनुभूति का,
दामिनी ज्योति का और भोजन आनन्द का प्रतीक है।
5. ऐतिहासिक प्रतीक-
सत्य है राजा हर्षवर्धन के हाथों से मिला हुआ पान का सुगन्धित एक लघु बीड़ा
चाहे वह झूठा हो पर उस पर लगा हुआ वर्कदार सोना था
हाय बाणभट्ट! हाय तुमको भी, तुमको भी आखिर यही होना था।
यहाँ पर हर्षवर्धन वैभवसम्पन्न, उच्चवर्गीय शासक का तथा बाणभट्ट कवि का प्रतीक है।
6. शास्त्रीय प्रतीक-
नया चाँद आया नया चाँद आया।
नये चाँद ने इस तरह सर उठाया
कि सब कह उठे लो नया चाँद आया।
नया चाँद छोटा अँधेरा बड़ा है
नया चाँद फिर भी अकेला खड़ा है।
यहाँ पर नया चाँद साम्यवाद का प्रतीक और अँधेरा पूँजीवाद का प्रतीक है।
7. सार्वभौम प्रतीक-
काट अध-उर के बंधन स्तर
वहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे।
8. साधनात्मक साम्प्रदायिक प्रतीक-
आकासे मुखि आँधा कुआं, पाताले पनिहारी।
ताका पाणी कोहंसा पीवै, बिरला आदि विचाररि ॥
इसमें 'अकास' ब्रह्मण्ड का, औंधा कुआं, 'सहस्रदल कमल और पनिहारि 'कुण्डलिनी शक्ति' का प्रतीक है। ये प्रतीक हठयोग-साधना के प्रतीक हैं।
९. रहस्यात्मक संकेतसूचक प्रतीक-
अंचल के चंचल क्षुद्र प्रपात!
मचलते हुए निकल आते हो;
उज्ज्वल ! धन-वन-अंधकार के साथ
खेलते हो क्यों? क्या पाते हो?
यहाँ प्रपात ( झरने) को मानवीय रूप देकर संकेत द्वारा कवि ने प्रच्छन्न रूप से जीव की ओर संकेत किया है। अंचल ( पहाड़ ) परोक्ष सत्ता का प्रतीक है। अन्धकार और धन क्रमशः माया और मायोपाधिक जीव को संकेतित करते हैं।
10. परम्परागत प्रतीक-
देखूँ सबके उर की डाली-
किसने रे क्या कया चुने फूल
जग के छवि-उपवन से अकूल?
इसमें कलि, किसलय, कुसुम, शूल!
यहाँ प्रयुक्त कलि, किसलय, कुसुम और शूल क्रमशः प्रसन्नता, आनन्द, उल्लास पीड़ा, व्यथा' नादि के चिर परिचित प्रतीक है।
11. रूपकात्मक प्रतीक-
"कै विधि हो नैया लागे पार।
नहि पतवार धार विच भरमत मदमत्त सेवार।
झंझा पवन झकोरत जात माच्यो हाहाकार।
बदरीनारायण नारायण करत कृपा करो पार ॥
यहाँ नैया "जीवन' का प्रतीक है और पतवार 'साधन एवं भक्ति' का प्रतीक है।
12. लक्षणामूलक प्रतीक-
उषा का था उर में आवास,
मुकुल का मुख में मृदुल विकास
चाँदनी का स्वभाव में भास
विचारों में बच्चों की सांस।
यहाँ गुण या धर्म का उल्लेख न करके वस्तुओं का ही उल्लेख कर दिया गया हैं जो तुल्य गुण व धर्म के कारण लाक्षणिक प्रतीक का काम करते हैं। हृदय में उल्लास था, यह न कहकर ऊषा का आवास ही बता दिया गया है। मुख से वाणी के उद्गार निकलते थे, वे रमणीय होते थे, यह न कहकर अधखिली कली का मृदुल विकास ही उसमें दिखाया गया है। कवि की प्रेयसी का स्वभाव अत्यन्त ही स्निग्ध तथा आहादक था, यह बताने के लिए उसने चाँदनी की शरण ली। विचारों के भोलेपन के लिए बच्चों की साँस की उपमा गृहीत की गयी। इसमें ऊषा, मुकुल, चाँदनी और बच्चों के साँस-ये चार मुख्य प्रतीक हैं, जो क्रमशः हृदय की कोमलता, मुख की कान्ति स्वभाव की मृदुलता और विचारों की सरलता के बोधक हैं।
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- प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
- प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
- प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
- प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
- प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
- प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
- प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
- प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
- प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
- प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
- प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
- प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
- प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
- प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
- प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
- प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
- प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
- प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
- प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
- प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
- प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
- प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
- प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
- प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
- प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?